(मनोज इष्टवाल)।
एक कहावत है जिसे मैं उस कर्मयोगी पर बार बार लागू कर लिखता हूँ कि “खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से आकर पूछे कि तेरी रजा क्या है!” ऐसा अगर इन भाजपाई नेता कुंवर जपिंदर सिंह के बारे में कहा जाय तो गलत नहीं होगा! प्राइवेट स्कूल्स व शैक्षिक संस्थानों के द्वारा बर्षों से मनमाफिक फीस वसूलना, अपनी तरह का सैलेबस पढ़ाना! केंद्र सरकार की एनसीईआरटी की पुस्तकों को तबज्जो न देना! बुकसेलर्स फिक्स करवाकर अभिवाहकों की जेब पर डाका डालना इत्यादि सभी काम नौकरशाही की मिलीभगत व कमजोर नेतृत्व क्षमता वाले नेताओं के कारण बदस्तूर जारी रखने वाले इन निजी संस्थानों को जो आइना मात्र एक व्यक्ति ने दिखाया, उससे तय है कि इन अरब-खरबपति शिक्षा माफियाओं के सपने में कुंवर जपेंद्र ही दीखते होंगे! क्योंकि अब तक कई और लोग भी पीआईएल दाखिल करवा चुके हैं और वक्त वक्त पर करते रहते थे! उन्हें कभी टुकडा मिल जाता था तो कभी पूरी रोटी..! इसलिए शिक्षा माफियाओं को यह लगता था कि दुनिया में हर चीज बिकाऊ है! ये कुंवर जपिंदर जरा अलग किस्म के निकले!
उन्होंने पीआईएल दाखिल करने से पहले क्या यह नहीं सोचा रहा होगा कि यहाँ सिर्फ लड़ाई शिक्षा माफियाओं के साथ नहीं बल्कि प्रशासन के उस करप्ट सिस्टम से भी लड़नी पड़ेगी जिनकी बदौलत्त 20 साल बाद भी इन निजी संस्थानों पर नकेल कसने के लिए नेताओं व नौकरशाहों ने फीस एक्ट नहीं बनाया क्योंकि उनकी जेब भी तो यही शिक्षा माफिया अब तक भरते रहे हैं!
आज कुंवर जपिंदर सिंह की इस जीत का छोटा सा एक अंश कहीं न कहीं मैं अपनी पत्रकारिता को भी मानता हूँ , क्योंकि मैं लगातार बहुत समय से बेहद मुखरता के साथ इस बिषय को उठाता रहा हूँ! कुंवर जपिंदर सिंह को यह भी अवश्य पता रहा होगा कि मैं यहाँ कहीं न कहीं अपनी सरकार के विरुद्ध जा रहा हूँ और हो न हो उनका जबाब तलब भी हो! लेकिन इस महामारी के दौर में उन्हें समाज का वह बर्ग अवश्य दिखाई दिया होगा जो बमुश्किल अपने बच्चों के भविष्य के सतरंगी सपनों में जैसे तैसे अपनी गृहस्थी के बजट के बड़े हिस्से को अपने बच्चों की फीस पर खर्च कर रहा है!
कुंवर जपिंदर सिंह को जरुर आम भीड़ के बीच वे 16 लाख से अधिक परिवार दिखाई दिए होंगे जिनके चेहरे पर ऑनलाइन पढ़ाई का तनाव, लॉकडाउन में वेतन न मिलना, बच्चों की मोटी फीस व कोरोना का भय रहा होगा! यह भय शायद कुंवर जपिंदर महसूस कर चुके थे तभी वे इस बात के लिए भी तैयार थे कि उनकी पार्टी उन्हें इस प्रकरण में जो नोटिस जारी करेगी उसका भय दिखायेगी उसके साथ उन्हें कैसे निबटना है!
कुंवर जपिंदर सिंह पर उत्तराखंडी समाज के कुछ लोग यह आरोप लगाते हुए दीखते हैं कि उन्हें मैदानी दल पार्टी या ऐसा ही एक अखबार निकालकर उत्तराखंड की जनभावनाओं को आहत किया है! यहाँ मेरा पूछना है कि जो उत्तराखंड के नाम पर वोट पाकर आज तक मंत्री, विधायक, मुख्यमंत्री, सांसद, केन्द्रीय मंत्री व शिक्षा मंत्री बनते आये हैं उन्होंने कद्दू पर ऐसा कौन सा तीर मारा जिससे हमारी शिक्षा नीति सुधर गयी हो! पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (से.निवृत्त) भुवन चंद खंडूरी ने शिक्षा विभाग में स्थानांतरण के नाम पर लाखों के लेन देन अवैध कारोबार को बंद करने के लिए एक फूलप्रूफ शिक्षा नीति बनाई! हुआ क्या अगली बार कांग्रेस सरकार आई व जनरल खंडूरी की शिक्षा नीति को निरस्त कर फिर वहीँ ट्रांसफर नीति का अवैध कारोबार जारी रखने व अफसरों बाबुओं अपने गुर्गो व खुद की जेब गर्म करने का काम शुरू कर दिया!
जनरल खंडूरी ने यहाँ जमीन व बहुमंजिला इमारत बनाने में पाबंदी लगवाई तो पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने आते ही सबसे पहले वह पाबंदी हटवाई! देहरादून कंक्रीट के आलिशान बहुमंजिला इमारतों में तब्दील होता गया और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत काल तक वह चरम पर पहुँच गया! हर बार नेता या प्रशासन में बैठे करप्ट नौकरशाह यह भूल जाते हैं कि पैंसे से बड़ी वह जनता है जो आपको वोट देकर यहाँ तक पहुंचाती है! वे यह भी भूल जाते हैं कि नौकरशाह का काम ही आपको अँगुलियों पर नचाना है! आप पांच साल बाद दुबारा अपनी करनी और कथनी के अंतर से नेता बन भी पाते हैं या नहीं लेकिन इतना जरुर कर जाते हैं कि पूरे सिस्टम को बीमार कर जाते हैं! जनता नहीं भूलती कि किस नेता ने कब उनके साथ क्या गुल खिलाया और जैसे ही उनकी बारी आती है वह उन्हें वहां पहुंचा देते हैं जहाँ से उठने के लिए उनकी पिछली पांच साल की कमाई हराम की दौलत यूँही बर्बाद हो जाती है!
अब आते हैं कुंवर जपिंदर सिंह के उस कारनामे पर , जिसने उन्हें सबका चहेता बना दिया है! उत्तराखंड के निजी स्कूलों में लॉक डाउन के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई करवाने, तीन महीने की फीस मांगने और एजुकेशन एक्ट के मामले में स्थगन की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए निजी स्कूल प्रबंधकों को झटका लगा है। कोर्ट ने मामले में निजी स्कूल प्रबंधकों को स्टे (स्थगन) नहीं दिया है। जबकि, भाजपा के वरिष्ठ नेता और समाजसेवी कुंवर जपेंदर सिंह को मामले में अपना पक्ष रखने की मंजूरी दे दी।
कुंवर जपिंदर सिंह ने लॉक डाउन में निजी स्कूलों के फीस मांगने, फीस एक्ट न होने और ऑनलाइन पढ़ाई करने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने जपिंदर सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए निजी स्कूलों की पूरी जानकारी कोर्ट में रखने के लिए शिक्षा विभाग को निर्देश दिए थे व 12 मई 2020 को कुंवर जपिंदर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शिक्षा विभाग को आदेश जारी किये कि वे इस बात का संज्ञान लें कि कोई भी निजी स्कूल इन तीन माह की फीस न वसूले वरना उन पर कार्यावाही हो । इससे घबराए निजी स्कूल प्रबंधक सुप्रीम कोर्ट की शरण में चले गये। उन्होंने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे मांगा था। लेकिन, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्टे देने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में प्रिसिंपल प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर की गई। याचिका एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप और चिल्ड्रेन अकेडमी के अतुल राठौर ने दायर की थी। दूसरी याचिका सेंट जूडस स्कूल की ओर से दायर की गई। बुधवार को दोनों याचिकाओं को क्लब कर सुनवाई हुई। हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले देहरादून निवासी जपिंदर सिंह का कहना है कि बिना पढ़ाई कराये स्कूलों का फीस लेना अनुचित है।
स्कूल बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई कराने का तर्क दे रहे हैं। लेकिन, छोटे बच्चों को कैसे ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जा रही है। यही सबसे बड़ा सवाल है। स्कूलों की इस तरह की मनमानी के खिलाफ ही जनहित याचिका दायर की गई है। अब सुप्रीम कोर्ट ने हमें मामले में पक्ष रखने का मौका दिया है। स्कूलों की मनमानी का पूरा कच्चा चिट्ठा कोर्ट में रखा जाएगा। इस मामले में सीबीआई जांच कराने की गुहार कोर्ट से लगाई जाएगी ताकि अभिभावकों का शोषण बंद हो सके।
कुंवर जपिंदर सिंह ने कहा है कि यह मामला छोटा मोटा नहीं है इसकी तो सीबीआई जांच होनी चाहिए क्योंकि यह अभी तक अरबों का घोटाला है! उन्होंने हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा है कि ये ऐसे माफिया हैं जिन्होंने शिक्षा नीति ही नहीं बनने दी! कहीं न कहीं यह ब्यूरोक्रेट्स की मिली भगत की वजह से होता आया है जिसमें हमारे नेतागण हर काल में कहीं न कहीं शामिल रहे! ये प्राइवेट स्कूल्स युनियन बनाकर पहले हाई कोर्ट पहुंचे अब सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे! लेकिन कोर्ट में इनकी एक न चली! न इनका पैंसा और न इनके वकीलों की बड़ी टीम कुछ कर पाई! सुप्रीम कोर्ट न अब मुझे अभिवाहकों का पक्ष रखने के लिए कहा है तो वह यह कोशिश जरुर करेंगे कि जो भी खामियां उत्तराखंड की शिक्षा नीति की हैं, प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस पर फीस एक्ट की हों या फिर एडमिशन के नाम पर चैरिटी के रूप में लाखों रुपये वसूलने का है वह सब पक्ष वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखेंगे!
उन्होंने कहा कि किसी भी भाजपा के बड़े नेता ने उन्हें इस लड़ाई में मेरे को पीछे हटने की सलाह नहीं दी! चाहे वह मुख्यमंत्री हों या अन्य..! मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी जी, मानव संसाधन मंत्री डॉ. निशंक जी व मुख्यमंत्री सहित सभी पार्टी नेता भी चाहते हैं कि शिक्षा के इस मक्कड़जाल से प्रदेश बाहर निकले और उनकी जीरो टोलरेंस की पालिसी में अभिवाहकों व जनता का सरकार के प्रति विश्वास और मजबूती से कायम हो! उन्होंने कहा हर दल में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति जरुर होता है जो आपसी ध्वेस भाव की भावना रखता हो! कुंवर जपेंद्र सिंह ने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑनलाइन शिक्षा के तोड़ का हल डीटीएच प्रणाली लागू किये जाने की भूरी-भूरी प्रशंसा की है! उन्होंने कहा कि वे हर सम्भव कोशिश करेंगे कि मैं उस हर अभिवाहक के लिए सुप्रीम कोर्ट से राहत के दरवाजे खुलवा सकूं जो आज तक उत्तराखंड के प्राइवेट स्कूलों की मनमानी में अपने आपको लुटता महसूस करता रहा हो!