Sunday, September 8, 2024
Homeउत्तराखंडशिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कारों में फिर से शर्मसार उत्तराखण्ड। आखिर...

शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कारों में फिर से शर्मसार उत्तराखण्ड। आखिर गुनाहगार कौन!

शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कारों में फिर से शर्मसार उत्तराखण्ड। आखिर गुनाहगार कौन!

*शिक्षा व्यवस्था अर्श से फर्श पर उत्तराखंड! 

  मनोधर नैनवाल
(लेखक राष्ट्रीय सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षक हैं।)

बर्ष 2017 के राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के घाव अभी ठीक से भरे भी नहीं थे कि वर्ष 2017 के लिए केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (एनसीईआरटी) द्वारा घोषित राष्ट्रीय सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पुरस्कारों (राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार) जो कि शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के अभिनव प्रयोगों के लिए शिक्षकों को दिए जाते हैं, में भी उत्तराखंड को एक बार फिर से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। उत्तराखंड को अपने कोटे के दो आईसीटी पुरस्कारों में से एक भी पुरस्कार हासिल नहीं हो पाया। इससे पहले 5 सितंबर को राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार में भी उत्तराखंड को वर्ष 2017 के लिए अपने कोटे का एक शिक्षक पुरस्कार भी हासिल नहीं हो पाया था। यह स्थिति तो तब है जबकि वर्ष 2014 तक उत्तराखंड राज्य राष्ट्रीय आईसीटी शिक्षक पुरस्कार के मामले में अव्वल रहा है। वर्ष 2014 में उत्तराखंड राज्य देशभर में आईसीटी पुरस्कार की सूची में 7 पुरस्कारों के साथ सर्वोच्च स्थान पर था वर्ष 2015 में कोई भी पुरस्कार हासिल ना कर पाने के कारण वह फिसल कर दूसरे स्थान पर आ गया। वर्ष 2016 में भी एक पुरस्कार हासिल कर राज्य देशभर में दूसरे स्थान पर बना रहा, किंतु अब वर्ष 2017 में कोई भी पुरस्कार हासिल न कर पाने के कारण उत्तराखंड राज्य (8 राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कारों के साथ) राष्ट्रीय सूची में राजस्थान के साथ तीसरे स्थान पर लुढ़क चुका है। इस सूची में वर्ष 2014 तक क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर मौजूद तमिलनाडु(14 राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार) एवं कर्नाटक राज्य (11 राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार) अब क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर पहुंच चुके हैं। देश के अन्य राज्य जहां अपने कोटे के पूरे पुरस्कार हासिल करने में सफल हो रहे हैं वहीं उत्तराखंड राज्य अपने कोटे के दो पुरस्कारों में से एक भी पुरस्कार हासिल नहीं कर पा रहा है।
ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि क्या उत्तराखंड के शिक्षक सचमुच कोई नवाचारी कार्य नहीं कर पा रहे हैं अथवा अथवा यहां पर शिक्षकों के पुरस्कार के लिए चयन करने वाले जिम्मेदार चयनकर्ता अच्छे शिक्षकों की पहचान कर पाने में असफल हो रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों से राज्य से आईसीटी पुरस्कार के लिए चयनित कर भेजे गए शिक्षकों की सूची को देखने से यह पता चलता है कि इसमें से कुछ शिक्षक/शिक्षिकाएं निरंतर 3-3 वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रस्तुतीकरण देने जा रहे हैं। ऐसे शिक्षक जो बार-बार राष्ट्रीय स्तर पर असफल हो रहे हैं उन्हें ही अगली बार पुन: राष्ट्रीय स्तर पर भेज दिया जा रहा है। इसके पीछे अच्छे शिक्षकों की अनुपलब्धता कारण है अथवा चयनकर्ताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ यह समझना मुश्किल है। कारण जो भी हो लेकिन इस खेल में राज्य के हितों को बलि पर चढ़ाया जा रहा है? इससे राष्ट्रीय स्तर पर राज्य को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है।
कमोवेश यही स्थिति इस बार के राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कारों में भी देखने को मिली। राज्य से ऐसे शिक्षकों को चयनित करके भेजा गया जो राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी छाप छोड़ने में नाकाम रहे। उनमें से कुछ शिक्षक तो ऐसे भी थे जो राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के मानकों को भी पूरा नहीं करते थे। तो क्या जानबूझकर ऐसे शिक्षकों को चयनित किया जा रहा है? या इसके पीछे कुछ और खेल है? लेकिन इसका खामियाजा पूरे राज्य को भुगतना पड़ा और राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में दिए जाने वाले दोनों प्रतिष्ठित पुरस्कारों में राज्य को शून्य से संतोष करना पड़ा।
राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार की स्थापना एनसीईआरटी के केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा वर्ष 2010 में शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने एवं इस क्षेत्र में अभिनव प्रयोग करने वाले शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए की गई थी। इसके अंतर्गत देश के अधिक आबादी वाले राज्यों को प्रतिवर्ष तीन-तीन एवं कम आबादी वाले राज्यों के लिए दो-दो पुरस्कारों का कोटा निर्धारित किया गया है। किंतु यह पुरस्कार किसी भी राज्य को तभी दिए जाते हैं जब उस राज्य से चयनित कर भेजे गए शिक्षक /शिक्षिकाएं राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार के मानकों को पूर्णतया संतुष्ट कर पाते हैं अन्यथा की स्थिति में कोई भी पुरस्कार नहीं दिया जाता है। यही कारण है कि कठोर मानकों के चलते प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कारों में से कई पुरस्कार अनावंटित रह जाते हैं। कुछ इसी प्रकार की व्यवस्था अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कारों के मामले में भी लागू कर दी गई है। इससे पुरस्कारों के चयन के मामले में राज्यों एवं राजनीतिज्ञों की मनमानी पर काफी हद तक अंकुश लग गया है।

वर्ष 2010 से 2017 तक राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार में उत्तराखंड राज्य का प्रदर्शन-
वर्ष 2010- दो राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार (श्री सुप्रिय बहुखंडी एवं श्री उमेश चंद्र पांडे)
वर्ष 2011- कोई पुरस्कार नहीं
वर्ष 2012- दो राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार (श्री जगदंबा प्रसाद डोभाल एवं श्री रमेश प्रसाद बडोनी)
वर्ष 2013- एक राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार (श्री प्रदीप नेगी)
वर्ष 2014- दो राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार (श्री परमवीर सिंह कठैत एवं श्री मनोधर नैनवाल)
वर्ष 2015- कोई पुरस्कार नहीं।
वर्ष 2016- एक राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार (श्री कौस्तुभ चंद्र जोशी)
वर्ष 2017- कोई पुरस्कार नहीं।

वर्ष 2014 के राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार विजेता एवं उत्तराखंड के एकमात्र प्राथमिक शिक्षक जिन्हें राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, श्री मनोधर नैनवाल का कहना है, कि- ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड राज्य में शिक्षक आईसीटी के क्षेत्र में गंभीरता से कार्य नहीं कर रहे हैं। अनेक सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षक निजी प्रयासों से मल्टीमीडिया कक्षा-कक्षों एवं स्मार्ट क्लासरूम की स्थापना कर रहे हैं तथा बच्चों को इसका लाभ भी मिल रहा है। लेकिन विभागीय अधिकारियों, मंत्रियों, एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते ऐसे प्रयासों को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है। कई बार तो हमारे उच्चाधिकारी ही हमें इस प्रकार के नवा चारों को करने में हतोत्साहित भी करते हैं। हमें किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सहायता अथवा विभागीय सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है। जिस कारण इस तरह के खर्चीले प्रयोगों को जारी रख पाना काफी मुश्किल हो जाता है। एक शिक्षक निरंतर लंबे समय तक केवल जन सहयोग से इस प्रकार के प्रयासों को जारी नहीं रख पाता है। इसके लिए विभागीय अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का सहयोग अत्यधिक आवश्यक है। तभी शिक्षकों को सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के नवाचारी प्रयोग करने हेतु प्रोत्साहन मिल सकता है। देश के अनेक राज्यों में केवल माध्यमिक ही नहीं अपितु प्राथमिक विद्यालयों में भी सरकार द्वारा टेलीविजन एवं कंप्यूटर जैसे आईसीटी उपकरण उपलब्ध कराए गए किंतु उत्तराखंड राज्य में केंद्र सरकार से पर्याप्त सहायता एवं समर्थन मिलने के बावजूद सरकार आईसीटी के प्रयोग के प्रति पूर्णतया उदासीन नजर आती है। आईसीटी को बढ़ावा देने के नाम पर अधिकारियों द्वारा केवल कुछ उपकरणों की खरीद कर इतिश्री कर ली जाती है। इस हेतु आवश्यक शिक्षक प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन जैसे कार्यों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। स्वयं के प्रयासों से कार्य करने वाले शिक्षकों को भी अधिकारियों और सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने के बजाय प्राय: निरुत्साहित ही किया जाता है।
उनका कहना है कि वर्ष 2014 तक राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार के बारे में बहुत अधिक जानकारी अधिकारियों को भी नहीं होती थी। इसी कारण विभिन्न नवाचारी शिक्षकों द्वारा स्वयं के प्रयासों से राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर जो पहचान दिलाई गई थी आज अधिकारियों के हस्तक्षेप एवं व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते राज्य की वह पहचान भी समाप्त हो गई है। इस बात से राज्य के सभी आईसीटी पुरस्कार प्राप्त शिक्षक अत्यधिक दुखी महसूस करते हैं। राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को ना तो कोई प्रोत्साहन दिया जाता है ना ही आईसीटी से जुड़े किसी भी महत्वपूर्ण मामले में उन को सम्मिलित किया जाता है। और तो और उत्तराखंड राज्य में राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों के समकक्ष भी नहीं समझा जाता है जबकि अन्य राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है। देश के अधिकांश राज्यों में आईसीटी पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को भी राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों के समान एक वेतन वृद्धि, मकान बनाने के लिए प्लॉट एवं बसों इत्यादि में यात्रा किराए में छूट प्रदान की जाती है। राज्यों द्वारा आईसीटी की नीति निर्धारण में भी राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को सम्मिलित किया जाता है। राज्य के सभी आईसीटी पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों का यह भी कहना है कि यदि सरकार पहल करे तो वे एनसीईआरटी के साथ मिलकर राज्य के अधिकांश शिक्षकों को आईसीटी में प्रशिक्षित करने हेतु सहर्ष तैयार हैं।
      

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES

ADVERTISEMENT