Sunday, September 8, 2024
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फेस इन द क्राउड….अभिलाषा भारद्वाज! मुसीबतों का पहाड़ व आग का दरिया पार कर फर्श से पहुंची अर्श पर!

(मनोज इष्टवाल/ट्रेवलाग 30 मई 2019)



20 साल की थी जब सिलगढ नदी के छोर पर बसे दुगड्डा में उसने शहनाइयों के वादन के साथ बाबुल का घर छोड़ा! वही सिलगढ़ सा कलकलाता, छलछलाता पावन जल सा हृदय..! चाँद तारों को छू लेने की परिकल्पना और चेहरे पर माँ बाबूजी ने बख्शीश में व ईश्वर की नेमत से मिली चमकते दाँतों में हंसी! हाथ में चित्रकार की कूंची व आँखों में प्रकृति के कई चितेरे स्वरूप..! स्लिम-ट्रिम काया में चार-चाँद लगाती वह बालपन से जवानी की ओर रूप-विन्हास! बस इतना ही तो जानता था मैं अभिलाषा ध्यानी को!

दरअसल यह बात 1989-90 की है जब मैं दूरदर्शन के लिए डाडामंडी गेंद का मेला कवर कर दुगड्डा इस आशय से पहुंचा था कि क्यों न लगे हाथ दुगड्डा ढाकर मंडी पर भी एक छोटी सी डाकुमेंटरी फिल्म शूट कर दूँ! आईडिया दिमाग में आया तो लोग जुटने भी शुरू हुए! लोवर बाजार में श्री कैलाश बंसल साहब (राष्ट्रीय ज्वाला/अंतर्ज्वाला के सम्पादक) यानि पत्रकार सुभाष बंसल के पत्रकार पिता जी! तो दूसरी ओर ढाकर बाजार के रायसाहब श्रीराम नैथानी के पौते पेशे से अध्यापक ईशमोहन नैथानी..! बात यहीं रुक जाती तो अलग बात थी! कुछ युवा जुटे जिनमें सुभाष बंसल व दीपक बडोला (पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दुगड्डा) इत्यादि शामिल थे! सिलगढ़ पार ज्योति साहित्य परिषद की श्रीमती राजेश्वरी जोशी (पेशे से अध्यापिका), दुगड्डा चौराहे पर ही अध्यापक बेनी माधव ध्यानी जी और जाने जाने कितने और..! तब मेरे पास दूरदर्शन का बड़ा सा लो बैंड कैमरा व कैमरामैन साथ था तो स्वाभाविक सा था उस काल में मेरे इर्द-गिर्द भीड़ जुटना क्योंकि तब दूरदर्शन के अलावा भी कोई और न्यूज़ चैनल था मुझे याद नहीं!

समर कैंप में विभिन्न स्कूलों की छात्राओं के साथ गढवाल सभा कण्वनगरी कोटद्वार के अध्यक्ष योगम्बर रावत, उपाध्यक्ष व शिक्षिका डॉ. मंजू कपरवाण के साथ!

मुझे अच्छे से याद है कि सुभाष बंसल ने तब पत्रकारिता शुरू कर दी थी और दीपक बडोला भी समाजिक कार्यों में रूचि रखने वाले ठहरे! इन सबसे परिचय करवाने वाले सूत्रधार सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शिब प्रसाद डबराल चारण थे या फिर डॉ. पुष्कर मोहन नैथानी मुझे ढंग से याद नहीं! लेकिन इतना जरुर याद है कि मैं अपनी अम्बेसडर गाडी से दीपक बडोला सुभाष बंसल के साथ चौकिसेरा रथुवाढाब वाली सडक पर स्थित उस पेड़ की शूटिंग करने भी गया था जिस पर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस या चन्द्रशेखर आजाद में से किसी एक क्रांतिकारी की गोली प्रशिक्षण के दौरान लगी थी!

दुगड्डा की पहली याद इतनी ही थी लेकिन सम्बन्ध बनाये रखना मेरी आदत थी! दूसरी बार रायसाहब श्रीराम नैथानी जी के पौते इश्मोहन नैथानी जी से पुरिया नैथानी जी के बारे में जानकारी जुटाने के लिए मिला तो एक के बाद एक तार जुड़ते चले गए! रात्री बिश्राम सुश्री राजेश्वरी जोशी दीदी के घर में हुआ तो लम्बी चर्चाओं का दौर भी! शायद 1995 में वह पहला अवसर था जब मेरी पुनः बेनीमाधव ध्यानी जी से चौराहे पर मुलाक़ात हुई और उन्होंने शिष्टतावश घर में चाय का आमन्त्रण दिया! पतली सी गैलरी के साथ फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचा तो देखा अभिलाषा निकुंज में एक लड़की अपनी कूंची से एक पेंटिंग को मूर्त रूप देने में लगी हुई है! ध्यानी जी ने बताया यह मेरी इकलौती पुत्री अभिलाषा है! इसके बाद दो एक बार और यहाँ जाना हुआ लेकिन तीसरी बार तब गया जब अभिलाषा की शादी हुए हफ्ता भर भी नहीं हुआ था! मैं खुश हुआ यह जानकर कि कोटद्वार के तेजी से नाम कमा रहे वकील राजेश भारद्वाज की वह अर्धांगनी बनी हैं!

शहर के कुछ बुद्धिजीवियों का बलूनी पब्लिक स्कूल में वहां की निदेशक अभिलाषा भारद्वाज के साथ छाया चित्र

आज यानि 30 मई 2019 को पत्रकारिता दिवस पर मुझे कोटद्वार के सम्मानित पत्रकार समूह दुन्दुभी ने मेरी जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए दुन्दुभी सम्मान से सम्मानित किया तो ख़ुशी इस बात की ज्यादा हुई कि वरिष्ठ पत्रकार नागेन्द्र उनियाल जी ने दुन्दुभी के सम्पादक सुधीन्द्र नेगी जी को कहा कि इस सम्मान समारोह में जितने भी पत्रकार कवर करने आये हैं उन सबको मंच पर बुला लीजिये ताकि मनोज इष्ट’वाल का यह सम्मान यादगार बने! सचमुच मैं इस सम्मान के लिए कोटद्वार के पत्रकार मित्रों का ऋणी रहूँगा! फोन की घंटी घनघनाई तो पता चला विश्व हिन्दू परिषद् के छोटे भाई संजय थपलियाल का फोन है और उन्होंने मुझे गढवाल सभा कण्वाघाटी कोटद्वार द्वारा मोटाढ़ाक स्थित बलूनी स्कूल में आमंत्रित कर दिया! यहाँ से समाजसेवी संजय बुडाकोटि जी मेरे मार्गदर्शक बने जिनके साथ मैं इस विद्यालय के बिशाल प्रांगण में पहुंचा तो वहां गढवाल सभा की पूरी टीम से मुलाक़ात हुई! शांयकाल को संजय थपलियाल मुझे एक सुंदर से ऑफिस में ले गये तो एक मुस्कराती महिला से परिचय करवाया कि ये अभिलाषा भारद्वाज हैं इस स्कूल की डायरेक्टर..! मैं उनके स्वागत योग्य अंदाज से प्रभावित हुआ और अभी बातों का सिलसिला शुरू हुआ ही था कि अभिलाषा पड़ी- जाने मुझे ऐसा क्यों लगता है कि आपको मैं पहले मिल चुकी हूँ! बस हल्का सा परिचय और बढ़ा तो लगभग 23 बर्ष पूर्व की अभिलाषा ध्यानी याद आ गयी! स्वाभाविक है आत्मीयता के सुर पनपे और भुली-भैजी भी शुरू हुआ!

समर कैंप के शुभारम्भ के अवसर पर !

अब आते हैं अतीत के उन काले आखरों की ओर…! जिन्होंने न सिर्फ बेचैनी बढ़ाई बल्कि सूखी आँखों को भी गीली कर दिया! अभिलाषा की तरक्की पर मैं अभी कसीदे पढ़ ही रहा था कि पूछ पड़ा- भारद्वाज जी कैसे हैं व कितने बच्चे हैं? प्रश्न ऐसा था कि संजय थपलियाल ही नहीं जितने भी कमरे में थे एकदम चुप हो गए! अभिलाषा मुस्कराती हुई बोली- चाय पीजिये! और कुछ देर शान्ति के बाद जो बबंडर आया वह सचमुच हृदय चीर देने वाला था! अभिलाषा बोली- राजेश कभी दिल से उतर ही नहीं सकता उसने वकालत में जितनी तेजी से नाम कमाया उतनी तेजी से ही वह मिट भी गया! दिल का खुमार और मन की हुक को शांत करने के लिए रिवाल्विंग चेयर से उसकी निगाह उपर पंखे की तरफ जा पहुंची जब नीचे उतरी तो उन आँखों में आंसुओं का सैलाव था! बोली- भैजी, आज भी याद है वह दिन..! जब हम 18 अक्टूबर 2004 को अपनी कार से देहरादून से कोटद्वार शहर में हंसी ख़ुशी इंटर कर ही रहे थे कि कौडिया में एक व्यक्ति को बचाने के चक्कर में राजेश नियंत्रण खो बैठे व गाड़ी ट्रक के नीचे समा गई! जहाँ ताश खेल रहे 9 लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी! दुर्घटना इतनी भयानक थी कि राजेश का शरीर दो हिस्सों में बंट गया एक जिला बिजनौर और एक जिला पौड़ी ! मैं बस इतना ही देख पाई थी क्योंकि मेरे भी चेहरे व गर्दन जबड़े के पास से कई शीशे अंदर घुस गए थे! कब मुझे हॉस्पिटल ले जाया गया और कैसे मुझे बचाया गया यह मैं नहीं जानती लेकिन मैं हर बार राजेश के बारे में ही पूछती रही! जब डिस्चार्ज होकर अपनी ससुराल पहुंची तो पाया मेरी मांग तो कब की उजड़ चुकी है!

वह थोड़ा रुकी..! हाथों से आंसू पोंछे घंटी दबाई और पानी मंगवाया ! पानी पिया फिर बोली- उस दिन मेरी शादी को 4 साल हुए थे! तब मेरे पास मेरी ढाई साल की बेटी व एक साल एक दो दिन का बेटा था! राजेश क्या गया मानो दुनिया लुट चुकी हो! जो सासू माँ कल तक मेरे ब्यवहार का बखान करते नहीं थकती थी अब मैं उनके लिए आँख की किरकिरी हो गयी थी! क्या जेठ क्या घर के अन्य सदस्य..! सभी की नजरों में मैं अब उनके भाई या बेटे की कातिल से कम नहीं थी! और तो और अभी कुछ ही दिन हुए थे कि मुझे फरमान सूना दिया गया कि हमारा घर छोड़कर कब जा रही हो?

समर कैंप में छात्राओं के मध्य !

मुझे लगा कि इस तरह भाग्य के भरोंसे बैठे रहने से काम नहीं चलता! मायके जाकर रहना भी माँ बाप के दुःख का कारण ही बनूँगी इसलिए किराए पर कमरा लिया बमुश्किल आँगनबाड़ी की ढाई हजार की नौकरी मिली और जैसे तैसे अपनी दिनचर्या को वापस लौटाने का यत्न करने लगी! जो बच्चे कल तक चाकलेट व बिस्कुट खाते थे उन्हें दूकान के पास से ले जाते हुए यही लगता था कि कहीं इन्होने मांग रख दी तो क्या करुंगी! और जब ऐसा होता था तो मैं दस या पांच रूपये का बिस्कुट खरीदकर उन्हें समझा लेती! सोचती थी 20 रूपये की चाकलेट या बिस्कुट की जगह 10 रूपये खर्च हुए कोई नहीं! दस के एक किलो आलू तो आयेंगे ताकि दो दिन की सब्जी हो सके!  मुसीबत यहीं ख़त्म नहीं हुई! इधर 9 लोगों की मौत का केस चल रहा था जिसकी पेशी पर मैं कभी पौड़ी तो कभी बिजनौर जाया करती थी! माँ पिता जी को भरोंसा था कि राजेश अपने खाते में लाखों रुपये छोड़ गया होगा लेकिन उन्हें क्या मालुम कि सिर्फ 25 हजार ही हैं! इस संघर्ष में मैं अँधेरे में जितना रोती उतना ही अपने को मजबूत भी बनाती! युवा भी थी व दिखने में ठीक भी..! इस दौरान जाने कितनी निगाहें उठी और कितनों को समझने का मौक़ा मिला लेकिन मैंने मजबूती से खड़े होकर सबका सामना करते हुए कभी अपने बजूद को मिटने नहीं दिया और न ही अपने घर परिवार पर आंच आने दी!

मैं नौकरी की तलाश में कभी कान्वेंट स्कूल के चक्कर काटती तो कभी कहीं अन्य! लेकिन जब वक्त साथ न हो तो फिर हर मुसीबत आकर आपके बगल में बैठ जाती है! जो कल तक राजेश के सहायक हुआ करते थे उनके घरों में मैंने बर्तन तक मांजे जबकि वे लगातार मना करते रहे लेकिन मैं सोचती थी कि ये लोग मेरा केस भी लड़ रहे हैं तो स्वाभाविक है मैं उन्हें फाइनेंशियल हेल्प नहीं कर पाऊँगी, दरअसल मैं खुद उन पर बोझ नहीं बनना चाहती थी! फिर एक दिन वह भी आया जब मेरे कजिन बलूनी बलिक स्कूल के संस्थापक डॉ. नवीन व बिपिन बलूनी मुझे उठाकर अपने साथ देहरादून ले गए! जहाँ मैंने उनके संरक्षण में काम किया! यहाँ भी ईश्वर ने अपनी नाइंसाफी दिखाई व मुझे मुंह का कैंसर हो गया! मैं कुछ दिन रोई भी लेकिन फिर अपनी किस्मत पर हंसी आई जानती थी कि जब भाग्य साथ न हो तो सब्र से काम लेना ही होगा! कैंसर के कारण कई दांत भी निकालने पड़े! यह देखकर सन 2011 में डॉ. बलूनी ने मेरे लिए कोटद्वार में एक कोचिंग सेंटर खोला ताकि मैं अपना जीवन यापन कर बच्चों की परवरिश कर सकूं।एक दिन हमने डॉ. नवीन बलूनी से बोला- क्यों न हम कोटद्वार में भी देहरादून की तर्ज पर बलूनी स्कूल खोलें! उन्होंने मुस्कराते हुए कहा यह इतना आसान नहीं है! खैर देखते हैं क्या कुछ हो सकता है।

बलूनी पब्लिक स्कूल की निदेशक अभिलाषा भारद्वाज के साथ बातचीत के दौरान लिया गया छायाचित्र!

सचमुच ये दोनों भाई मेरे लिए भगवान बनकर आये! वक्त ने फिर पलटी खाई और डॉ. बिपिन बलूनी ने मुझे कहा कि चलो कोटद्वार में भी शुरुआत कर देते हैं लेकिन इसके लिए तुम्हे स्वयं भी मेहनत करनी होगी। फिर बलूनी पब्लिक स्कूल कोटद्वार में संचालित करने के लिए उन्होंने एडुकेशन प्लान तैयार किया! उनकी युक्ति समझ में आई व मैंने इस सबके लिए जमीन देखनी शुरू कर दी! साथ ही स्कूल खुलने की पब्लिसिटी भी शुरू कर दी! बलूनी स्कूल का जलवा इतना होगा मैंने सोचा भी नहीं था! जनसम्पर्क बढ़ा तो कई कहते कि कहाँ खुलेगा वह जगह दिखाओ! मुंह में दांत टूटे थे फिर भी कपड़ा बांधे अमिन बच्चों के अभिवाहकों को गाडी भरकर यहाँ लाती और यहाँ उगी झाड़ियों को देखकर कुछ दिग्भ्रमित हो जाती कभी इधर जमीन बताती तो कभी दूसरी ओर! लेकिन यह मेरे परिश्रम का प्रतिफल था या ईश्वर की दया का प्रसाद ..! जिसे भी यहाँ लाया उसने ही हामी भरी!  आखिर मेहनत रंग लाई व एक साथ लगभग 110 बीघा जमीन का सौदा हुआ! धनराशि करोडों से ज्यादा चाहिए थी! मैंने बलूनी स्कूल खोलने के लिए भाइयों के विश्वास को मजबूती से आगे बढ़ाया और पहले सेशन में ही 750 परिवार बलूनी स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला करने को राजी हो गए! एडुकेशन प्लान में डॉ. नवीन बलूनी ने एक से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई में मात्र डेढ़ लाख रुपये की राशि प्रत्येक छात्र से की और पढ़ाई पूरी होने के बाद राशि वापसी की गारंटी भी! रात दिन एक करके आखिर 15 सितम्बर 2011 में जमीन की रजिस्ट्री के बाद भूमि पूजन हुआ और 14 मार्च 2012 को भवन बनकर तैयार.! पहले दिन क्या एक माह तक हम बच्चे सम्भालते सम्भालते थक गए क्योंकि हमें उम्मीद नहीं थी कि यहाँ इतना अच्छा रिस्पोंस मिलेगा!

वर्तमान में स्कूल में 1100 छात्र-छात्राएं हैं, जिनको लाने ले जाने के लिए 20 बसें, 24 ड्राईवर, 100कम्प्यूटर, 47 अध्यापक, 21 सहायिकाएं (बच्चों को लाने ले जाने के लिए), 10 गार्ड व 6 अन्य स्टाफ लगाकर लगभग 100 से अधिक परिवारों को यहाँ रोजगार मिल रहा है! यह डॉ नवीन बलूनी व विपिन बलूनी की मेहनत का ही प्रतिफल है कि उनकी बलूनी पब्लिक स्कूल इतने लोगों को रोजगार दे रही है।

अभिलाषा हंसती हुई फिर अतीत की तरफ जाती हैं! बोलती हैं अभी मुंह का कैंसर समाप्त हुआ ही था कि अथक मेहनत के चलते अब शरीर में कमजोरी महसूस होने लगी थी! एक दिन यूँहीं बात करते करते मेरे हाथ अकड़ना शुरू हो गया! यह सन 2015 की बात है और देखते ही देखते पूरे शरीर के एक हिस्से को लकवा मार गया! फिर वही हाय-तौबा मच गई! लेकिन जिसके पास डॉ. नवीन बलूनी व अनिल बलूनी जैसे भाई का आशीर्वाद हो भला वह कभी अपने को असहाय कैसे महसूस कर सकती है! इन भाइयों ने न सिर्फ मुझे बल्कि दर्जनों विधवा बहनों को यहाँ रोजगार देकर यह साबित कर दिया है कि मातृशक्ति के प्रति वे कितने भावुक हृदयी हैं! हमेशा भैय्या कहते हैं कि कभी कमीशन पर विश्वास नहीं रखना यह आदमी को गिरा देता है! कम खाने को मिले तो सुख शान्ति बनी रहती है! उनका वसूल है कि बच्चों में बुक्स एक्सचेंज करने की काबिलियत हो ताकि हम उस गरीब छात्र का ख्याल रख सकें जिसके पास किताबों के लिए पैंसे नहीं होते!

लकवाग्रस्त होने के बाद भी अभिलाषा ने जब अस्पताल में पाया कि वह इस तरह पड़े-पड़े कभी ठीक नहीं हो सकती क्योंकि जैसे ही वह करवट बदलती तो उसकी सहायिकाएं फ़ौरन हाथ बंटाने के लिए सामने खड़ी हो जाती इसलिए उसने सबको इशारों में कह दिया कि उसे लाइट में नींद नहीं आती इसलिए कमरे की बत्ती बंद कर दिया करो और जब सब सो जाती तो उसने हिम्मत करके खुद चलना शुरू कर दिया! वह बताती हैं यह आसान नहीं था! शुरूआती दौर में वह रात को सर पर सफेद कपड़ा बंधवाती और नीचे जमीन से उठाने का प्रयास करती! धीरे धीरे दिवार पकड़कर उसने अभ्यास किया फिर हंसती हुई कहती हैं अब देखिये मैं आपके समुख हूँ!

अभिलाषा यहीं नहीं रुकी! उसने न सिर्फ छात्र संख्या बढाई बल्कि सोचा कि क्यों न खाली पड़ी जमीन पर कुछ और गरीबों को रोजगार मिलें इसलिए उसने अपनी बात फिर बलूनी पब्लिक स्कूल के प्रबंधन के सामने रखी। डॉ. नवीन बलूनी ने तुरंत ऐसे लोगों के लिए स्कूल से दूर बकरी फ़ार्म खोला और दो से ढाई सौ बकरियां उसमें पाली लेकिन प्रोपर देख-रेख न होने के कारण वह मरती गयी! अभिलाषा ने सिर्फ अपने ही बच्चे नहीं पाले बल्कि वर्तमान में वह 6 गरीब परिवार के बच्चों को भी पाल रही हैं! उन्होंने 100 से अधिक बेटियों को गोद ले रखा है जिन्हें वह मुफ्त सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध करवाती हैं! वह कहती हैं यह बलूनी पब्लिक स्कूल की परंपरा रही है कि चाहे आगरा हो या फिर उत्तराखण्ड के विभिन्न शहर…! हर जगह डॉ. नवीन बलूनी व विपिन बलूनी गरीब बच्चों की वकालत कर उन्हें मुफ्त शिक्षा देते हैं। वह कहती हैं ये उन्हीं का शत है कि उन्होंने मुझ जैसी अनप्रोफेशनल पर भरोसा जताया है और मुझे इसके संचालन की जिम्मेदारी दी है।

सचमुच यह अभिलाषा हर किसी की अभिलाषा सी बनी है! मात्र ढाई हजार की नौकरी से शुरुआत करने वाली अभिलाषा आज एडुकेशन के क्षेत्र में करोड़ों का कारोबार देख रही है! जिसने मजबूती के साथ बेहद हिम्मत से एक लक्ष्य को प्राप्त किया ऐसी आयरन लेडी को सलूट!   

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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