(मनोज इष्टवाल)
जब हिमालय की बात हो और उसके गर्भ में छुपे खजानों से रत्न निकालने की बात हो तब क्या प्रकृति व क्या प्रकृति का भोग कर रहे मानस! सभी ने इस धरा को अपने कर्मों से रत्नजडित भी बनाया और हालाहल भी! जिसने जो कर्म किये वैसी ही पहचान भी बनाई! इन्हीं वादियों घाटियों में आकर बसे हिमालय पुत्र कहे जाने वाले हिमालयन समीर ने इस धरती के प्रति जो अगाध प्रेम दर्शाया है वह सचमुच अतुलनीय है!
आज हिमालयन समीर के नाम से सुप्रसिद्ध समीर शुक्ला की पुत्री की शादी के आमन्त्रण में जब मेहमानों में नजर दौड़ाई तो कई चिरपरिचित हस्तियों में शामिल जागर गायक प्रीतम भरतवाण दिखाई दिए थे ! फिर क्या था प्रीतम भाई वेद विलास उनियाल व मेरा हाथ थामकर आत्मीयता के भव सागर में ले गये चर्चाएँ लाजिम था कि लोक संस्कृति, लोक समाज के दायरे से मंडराती हुई जागर तक पहुँच गयी होंगी! जागर में कितनी शक्ति है इसका अनुमान तब लगा जब प्रसंग वश वह सात समुन्द्र पार तक पहुँच गयी!
प्रीतम भरतवाण किस्सा सुनाते हैं कि उन्हें दुबई के एक होटल में परफोर्म करने के लिए बुलाया गया था और मंच में चढ़ने से पहले आयोजकों ने साफ़ कह दिया था कि न आप यहाँ दीप जलाएंगे और न ही जागर गायेंगे क्योंकि यहाँ किसी पर भी देवता उतर जाएगा तो उस से माहौल खराब होने के पूरे -पूरे चांस हैं और हम नहीं चाहते कि यहाँ आने वाले पाकिस्तान के राजदूत गिलानी साहब को यह सब बुरा लगे! खैर मैंने भी अटपटे मन से शुरुआत लोकगीतों से की और एक घंटे का पहला सेशन समाप्त होने के बाद ब्रेक हुआ! मुझे जागर न गाने की हिदायत देने वाले आयोजक मेरा परिचय देते समय यह भूल गए कि इनके परिचय में जागर का जिक्र या फिर बद्री केदार नाथ की भूमि से आये धार्मिक परम्पराओं के श्रेष्ठकर गायक कहकर उन्होंने माहौल अलग ही बना दिया था ऐसे में गिलानी साहब की पत्नी उनके पास आई और बोली कि क्या आप अपने क्षेत्र के कुछ रूहानी गीत या जागर नहीं जानते और अगर जानते हैं तो सुनाइये! क्योंकि मंच से आपका कुछ ऐसा ही परिचय दिया गया था!
प्रीतम बोले- इष्टवाल जी, मुझे तो मन मांगी मुराद मिल गयी थी! मैंने माँ जगदम्बा का स्मरण किया और कहा हे माँ, तू सचमुच मेरे कंठ से उतरकर उस पावन धरा से इस सात समुद्र पार की धरा में अवतरण कर रही है! हमारा समाज तेरा हमेशा ही ऋणी रहेगा! फिर मैंने आयोजकों को कहा कि आप जिस बात के लिए मना कर रहे हैं उसके लिए तो आपके वीवीआईपी मुझे गाने को कह रहे हैं! आखिर ये तय हुआ कि मैं जागर गा सकता हूँ! फिर क्या था माँ सरस्वती मुख से निकली! गजाबल शिब पूड़े पर और अंगुलियाँ पार्वती पूड़े पर नृत्य करने लगी! अंगूठे की घुर्र के साथ देव अवतरण शुरू क्या हुआ कि पूरे हाल में बैठे 50-60 लोगों पर देवता उतर आये!
यह सब देखकर दुबई की संस्कृति या इस्लामिक संस्कृति के लोग बेहद रोमांचित भी नजर आये और देव शक्तियों पर विश्वास करना उनका भी एक माध्यम बन गया! अचानक देखा कि मंच पर मेरे साथ संगत (कोरस) कर रही कुमाऊं की लोकगायक माया उपाध्याय को भी माँ भगवती अवतरित होने लगी थी वह कड़कडी होते देख मैंने कहा – अक्षत लाइए! जब उनकी समझ नहीं आया कि अक्षत क्या हुआ तो मैंने कहा- आई नीड सम राइस..! फिर क्या था एक 6 फुटा पगड़ी वाला एक प्लेट में चिकन बिरयानी लेकर हाजिर हो गया! मैं सचमुच सकपका गया और फिर बोला- सिर्फ चावल! सिर पर टीका करने वाला! तब कोई हिन्दुस्तानी दौड़ कर गाया चावल लाया और फिर जितनों पर देव आत्माएं उतरी थी उन्हें मैंने अक्षत कर कैलाश भेजा! प्रीतम बताते हैं कि गिलानी साहब व उनकी पत्नी ही नहीं सभी वीवीआईपी ने मेरे गायन और वादन को खूब सराहा और तो और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मैं इधर लोगों के साथ फोटो खिंचवाने में ब्यस्त रहा जबकि श्रीमती गिलानी मेरा इन्तजार करती रही! और अंत में मुझसे मिलकर गयी! मुझे लगा मैंने सचमुच जग जीत लिया है क्योंकि अपनी थाती-माटी के लोक देवताओं का स्मरण दुबई की धरती में करके मैं इसलिए भी गौरान्वित हुआ क्योंकि जिनपर देवआत्माएं अवतरित हुई उनमें कई ऐसे प्रवासी भी थे जिन्होंने बर्षों से अपने पहाड़ की धरती को नहीं देखा। मेरे लिए यह सबसे अहम बात थी।