Saturday, September 7, 2024
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चिंताजनक ! — वेदनी की वेदना😢😢😢😢…!

चिंताजनक ! — वेदनी की वेदना😢😢😢😢…!

( विश्व पर्यावरण दिवस- 5 जून विशेष )
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
विश्व प्रसिद्ध बेदनी बुग्याल के वेदनी कुंड की ये तस्वीर 28 मई 2018 की है जिसे एक सप्ताह पूर्व मेरे द्वारा वेदनी – आली बुग्याल भ्रमण के दौरान खींची गई है जबकि तीसरी तस्वीर नंदा देवी राजजात यात्रा 2014 के दौरान किसी व्यक्ति नें ली है। यें तस्वीरें बहुत कुछ बोलती हैं और बहुत कुछ कहती भी हैं।

28 मई को जैसे ही वेदनी बुग्याल में वेदनी कुंड की ओर नजर गई तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि पूरे कुंड में एक बूंद भी पानी नहीं है। मन को तस्सली देने के लिए पूरे कुंड का दो बार चक्कर लगाया तो बिन पानी वेदनी कुंड की वेदना नजर आई।

३,३५४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित ये बुग्याल बरसों से लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र रहा है। खासतौर पर इसकी सुंदरता और मध्य में स्थित वेदनी कुंड तो सुंदरता में चार चांद लगा देता है। लेकिन इस बार वेदनी कुंड में पानी न होने से सैलानी बेहद अचंभित और मायूस है।

मौसम चक्र में भारी बदलाव है प्रमुख कारण!

विगत कुछ सालों से मौसम चक्र में हुये भारी परिवर्तन से सर्दियों में बारिश कम हो रही है। पिछले साल सर्दियों में बहुत ही कम बारिश और बर्फवारी हुई जिस कारण हिमालय में मौजूद छोटे बड़े ताल, झील और कुंड में पानी की कमी पायी गई है। पिछले साल अक्टूबर माह में रहस्यमयी रूपकुंड झील भी पूरी तरह से सूख गईं थी। ये सब शुभ संकेत नहीं है।

हिमालय में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप का दबाव!

हिमालय के उच्च बुग्यालो में अनियंत्रित और अनियोजित रूप से मानवीय हस्तक्षेप का दबाव हर साल बढ रहा है। बुग्याल इस दबाब को झेलने में असमर्थ है, जिससे इन बुग्यालो पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है। जो बुग्यालो को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।

पानी के बहुत बड़े रिचार्ज टैंक!
हिमालय में मौजूद हजारों ताल, झील और कुंड पानी के बहुत बड़े रिचार्ज टैंक हैं। इनके कारण ही हिमालय से निकलने वाली नदियाँ वर्षभर सदानीर रहती है। साथ ही हिमालय में विचरण करने वाले जानवरों, पशु – पक्षियों से लेकर सैलानियों के लिए प्यास बुझाने के स्रोत होते हैं। ऐसे में इन रिचार्ज टैंको का सूखना भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।

बुग्यालो पर आवाजाही के लिए बने बुग्याल नीति!

उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहाँ टिम्बर रेखा (यानी पेडों की पंक्तियाँ) समाप्त हो जाती हैं, वहाँ से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं। आमतौर पर ये ८ से १० हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आप में पर्यटकों का आकर्षण बन चुके हैं। लेकिन कोई स्पष्ट नीति न होने से इन बुग्यालो में अनियंत्रित आवाजाही और दोहन हो रही है। जिससे बुग्याल संकट में हैं। इसलिए बुग्यालों के लिए स्पष्ट नीति तैयार हो।

— क्या है बुग्याल!

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैम्पसाइट का। गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ़ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फ़ानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर इस प्रकार के बुग्याल मिल जाएंगे। जब बर्फ़ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत और घाटियां भान्ति-भान्ति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुँचते हैं। इनकी सुन्दरता यही है कि हर मौसम में इन पर नया रंग दिखता है। बरसात के बाद इन ढ़लुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे फूल खिल आते हैं। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊँचाई तक ही बढ़ते हैं। जलवायु के अनुसार ये अधिक ऊँचाई वाले नहीं होते। यही कारण है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।

आज विश्व पर्यावरण दिवस है लेकिन वेदनी की वेदना नें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है। यदि समय रहते चेते नहीं तो आने वाले दिनों में कहीं हम इन बुग्यालो को खो न दें। आवश्यकता है इन बुग्यालो को बचाया जाय। अब प्री मानसून और फिर मानसून में बदरा झमाझम से बरसेंगे। ऐसे मे उम्मीद की जानी चाहिए की वेदनी बुग्याल का वेदनी कुंड एक बार फिर पानी से भर जाय।

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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