(जे पी मैठाणी की कलम से)
*पीपलकोटी से हाट लगभग 3 किलोमीटर है ….!
*मायापुर से पैदल २ किलोमीटर है – अब रोड भी चली गयी है ।
बेलपत्र हाट
जनपद चमोली के विकासखण्ड दशोली के अंतर्गत बण्ड क्षेत्र में अलकनन्दा नदी के दाहिनी तट पर ग्राम सभा हाट स्थित है। समुद्र तल से हाट की ऊँचाई लगभग 1050 मीटर है। हाट गाँव पुरातन समय से ही गढ़वाल क्षेत्र में तेरहवीं चैदहवीं शताब्दी से बद्रीनाथ धाम यात्रा मार्ग की एक प्रमुख चट्टी या प्रमुख पड़ाव के रूप में स्थापित था। चमोली लाल सांगा के बाद मठ छिनका, बांवला, सियासैण के बाद हाट गाँव एक प्रमुख पड़ाव था। यहाँ अलकनन्दा के तट पर पौराणिक शिव मंदिर, हनुमान मंदिर और गाँव में चंडिका मंदिर के अलावा क्षेत्र का अति प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर स्थित हैं। चमोली से चलकर प्रायः यात्री हाट में ही मध्याह्न भोजन या चाय नाश्ता कर पीपलकोटी आते थे।
हाट गाँव को बद्रीनाथ यात्रा मार्ग की छोटी काशी भी कहा जाता है। वर्तमान ग्राम प्रधान राजेन्द्र हटवाल बताते हैं कि, स्कन्द पुराण में जिस छोटी काशी का जिक्र है वो यही हाट गाँव है। लक्ष्मी नारायण का मंदिर संभवतः हरिद्वार के बाद हाट गाँव में ही है। बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। अतः हाट के लक्ष्मी नारायण मंदिर में लक्ष्मी और विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा होती है। हाट गाँव में बहुतायत से हटवाल, गैरोला, पंत, डिमरी, जोशी आदि ब्राह्मण परिवारों के अतिरिक्त कुछ परिवार अनुसूचित जाति एवं जनजाति के भी है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद विष्णुगाड़-पीपलकोटी हाइड्रो इलैक्ट्रिक 444 मेगावाट की परियोजना हाट गाँव में ही बन रही है। इस परियोजना की वजह से हाट गाँव को पूर्णतः विस्थापित किए जाने का कार्य चल रहा है। वर्तमान में हाट गाँव से 70 प्रतिशत से अधिक परिवार विस्थापन के बाद अन्य जगहों पर बस गए हैं।
हाट गाँव के पौराणिक शिव मंदिर के आसपास और सियासैण से हाट गाँव तक शिवालय के आसपास के इलाके में एक विशिष्ट बिल्व पत्र यानि बेलपत्र के साथ-साथ हरड़ के पौधों का एक छोटा सा पवित्र उपवन (Sacred Grove) है। जनपद चमोली में एक ही स्थान पर यहाँ सबसे ज्यादा बेलपत्र के पेड़ एक साथ मौजूद हैं। यह सिर्फ हाट गाँव में ही है। जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य से इस क्षेत्र के पारिस्थितिकीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। और उसकी वजह से इस क्षेत्र की जैव विविधता बेहद संकट में है। केदारखण्ड के बाइसवें-तेइसवें श्लोक में हाट गाँव के बेल पत्र के छोटे जंगल और बिल्लेश्वर महादेव के बारे में वर्णित है कि-
अलकनंदोत्तरे तीरे वृक्ष गुल्म लतावृत्ते।
विल्लेश्वरो महादेवस्तत्र तिष्ठति नित्यश।।
तत्र चिहंन प्रवक्ष्यामि निष्कण्ठो बिल्ववृक्षक।
बदरी फल मानानि फलानि श्रीफले प्रिये।।
अलकनन्दा बद्रीनाथ के लिए जब तीर्थयात्री पैदल यात्रा करते थे तो उस समय हाट गाँव में रात्रि पड़ाव भी हुआ करता था। तीर्थयात्री यहाँ तप्तकुण्ड, नारदकुण्ड और सूर्यकुण्ड के दर्शन करते थे। दि संडे पोस्ट देहरादून 16 अक्टूबर 2018 के पृष्ठ पाठ पर संतोष सिंह कुंवर द्वारा लिखे लेख ‘संकट में छोटी काशी‘ में यह भी बताया गया है कि हाट गाँव के सूर्यकुण्ड में आज भी पितरों का विसर्जन करते हैं। महान इतिहासकार एडविन टी. एटकिन्सन ने भी हिमालयन गजेटियर में हाट गाँव के सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन के बारे में लिखा है और बताया है कि- नंदप्रयाग के बाद हाट और पीपलकोटी तीर्थ यात्रियों की पसंद के चट्टी या पड़ाव थे।
हाट के बेलपत्र वृक्षों की स्थिति बेहद खराब है 50-60 से अधिक पेड़ सूख कर मर गये हैं। सड़क निर्माण, विस्फोटकों के प्रयोग, टनल निर्माण आदि से उड़ने वाली धूल बेलपत्र की चैड़ी पत्तियों पर चिपक कर उनकी स्टोमेटा के छिद्रों का बंद कर रही है। पौधसे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कम हो रही है। कभी-कभी वातावरण में अत्यधिक नमी हो जाने से बेल पत्र के तनों और टहनियों पर शैवाल जम रही है। आसपास की आंशिक परजीवी बेल बेलपत्र के पौधों के लिए संकट बनकर प्रतिकूल वातावरण बना रही है। साथ ही आस पास के ग्रामीण भी शिवालय में चढाने के लिए बेल पत्र तोड़ते wअक्त पूरी की पूरी टहनियां तो देते हैं जिससे इन पौधों पर संकट बढ़ रहा है, बीजो को एकत्र कर बोने के प्रयोग नहीं हुए हैं , ये भी दुखद है ।
यही नहीं भूमि के अंदर होने वाले विस्फोटों से यहाँ के पौधों की जड़ों को पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है। आज मैंने मिट्टी और पौधों के सैंपल एकत्र कर लिए हैं। साथ ही नमूने के रूप में दो पौधे उसी जंगल की मिट्टी के साथ रोप दिए हैं। हाट के नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान राजेन्द्र हटवाल पूरे मनोयोग से बेलपत्र के इन वृक्षों को बचाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। वे बताते हैं कि पूर्व में कई बार यहाँ से ले जाकर बेलपत्र के वृक्षों को अन्य स्थानों पर लगाने का प्रयास किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। और ना ही बीजों के बोने के पश्चात् नये पौधे जम पाये। वर्तमान में यहाँ कुछ पुराने पेड़ों पर हरे और हल्के पीले रंग के फल दिखाई दे रहे हैं। जबकि संपूर्ण भारत में आपको इस समय बेलपत्र के पेड़ों पर कहीं फल नहीं दिखाई देंगे।
हाट का अपना अलग माइक्रो इकोसिस्टम है। इसी लिए मैं बेलपत्र के इस जंगल को पवित्र उपवन (Sacred Grove)घोषित करने की मांग करता हूँ। टी.एच.डी.सी. की जिस जल विद्युत परियोजना ने पूरे हाट गाँव, हटसारी को तो विस्थापित किया है साथ ही यहाँ के पर्यावरण, जैव विविधता, सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को बुरी तरह नुकसान पहुँचाया है।