Wednesday, February 12, 2025
Homeउत्तराखंडखिर्सू का बासा...! ग्रामीण महिलाओं के लिए पर्यटन के क्षेत्र में नया...

खिर्सू का बासा…! ग्रामीण महिलाओं के लिए पर्यटन के क्षेत्र में नया रोजगार।

(मनोज इष्टवाल)

*बुखारी, सीसम लकड़ी के फर्नीचर और संलग्न बाथरूम एन वाशरी सुविधाओं के साथ चार बेड रूम हैं।

पौड़ी गढ़वाल का हर वह व्यक्ति जो 40 बर्ष या इस से अधिक पार कर गया हो, अगर आप उससे पूछेंगे कि का नाम सुना है आपने तो यह तय समझ लीजिएगा कि वह बोलेगा ख़िर्सू तो हमारी यादों के साथ जीवित हुआ है जहां दो चीजें बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थी एक बौडिंग व दूसरा बद्दी मेला।

और.. हो सकता है गुनगुनाने भी लगे- “ख़िर्सू बौडिंग लग्यूँ च तिन भी सूणी मूली।” या फिर “ख़िर्सू बौडिंग लग्यूँ च निर्पणी का डांडा…!”

बांझ-बुरांस, देवदार, काफल, काफल, थुनेर, मोरपंखी के जंगल के आगोश में बसा यह छोटा सा कस्बा ब्रिटिश काल से ही हम सबके लिए एक सम्मोहन का बिषय रहा है। वह चाहे ख़िर्सू का बौडिंग रहा हो जहां हर बर्ष कई सांस्कृतिक प्रतियोगिता व मेला आयोजित होता था या फिर ग्वाड़ गांव की सरहद में गूंजती बद्दी जाति की आवाजें “खण्ड बाजे” का बद्दी मेला ! जहां रस्सी के सहारे कभी बद्दी समाज के लोग क्षेत्र की खुशहाली के लिए लांग खेलते थे व मीलों लंबी रस्सी में फिसलते थे। जिसे बाद में काठ का बद्दी बनाकर उसके प्रतीक के रूप में आज भी आयोजित किया जाता है।

एक सदी से दूसरी सदी तक पहुंचते-पहुँचते अचानक ख़िर्सू उपेक्षित सा हो गया। हम तुम सब ख़िर्सू की सामाजिक लोक परम्पराओं को भूल गए और अब अगर किसी को ख़िर्सू याद रहता है तो सबको बस इतना ही पता है कि यहां एक बंगला गढ़वाल मंडल विकास निगम का है जहां कुछ लोग गर्मियों में अपने परिवार के साथ ठहरना पसन्द करते हैं।

लेकिन तीसरी सदी के दूसरे दशक में जनपद पौड़ी को एक ऐसा होनहार जिलाधिकारी मिलता है जो ऑफिस में कुर्सी तोड़ने की जगह सम्पूर्ण जनपद में भ्रमण कर कागजों के स्थान पर ग्रास रूट पर विकास करने का निश्चय करता है। विभागीय योजनाओं में कहीं फल पट्टी तो कहीं गौधन कहीं कृषि का नवीनीकरण तो कहीं प्रदेश के टूरिस्ट डेस्टिनेशन को अमलीजामा पहनाना इस अधिकारी का मूल लक्ष्य होता है। जिस पौड़ी में जिलाधिकारी बैठते हैं उसका मैपिंग कर उसके सौंदर्य विकास में कई योजनाओं को प्रारूप देने के लिए स्थानीय प्रबुद्ध लोगों के साथ विचार विमर्श कर उस पर तत्काल कार्य करवाकर सबको अचंभित कर देना यह इस जिलाधिकारी की कार्य कुशलता का अनूठा उदाहरण है। अब पौड़ी में माल रोड हो या ठंडी सड़क…! आप जरूर पूछेंगे कि यह हैं कहाँ? बस। इंतजार कीजिये कुछ समय बाद आप इन सड़कों पर चहलकदमी करते नजर आएंगे।

टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में हमारे इन्हीं जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल ने ख़िर्सू के सौंदर्य पर चार चांद लगाने के लिए वहां होम स्टे का जो खाका तैयार किया है उसे देखते ही आंखें खुद चौंधिया जाती हैं व मुंह से निकल पड़ता है …वाह।

यह सब हमारे उस पौड़ी में होता है जहां का चपरासी से लेकर अधिकारी तक इतना चकडैत कहलाता है कि अब तक यह सबको चराते रहे हैं। योजनाएं तीन साल तक कागजों में दम तोड़ देती थी लेकिन मजाल क्या कोई जिलाधिकारी अपनी बनाई योजनाओं का अपने कार्यकाल में सुख भोग सके व गर्व कर सके कि ये है मेरी कार्यकुशलता का दर्पण।

लेकिन पौड़ी के वर्तमान जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल ने अपने कार्यकाल में जो भी योजनाएं बनाई वह धरातल पर जिस तरह वह अपने कार्यकाल में ही उतार रहे हैं वह अविश्वशनीय सी लगती हैं। अब ख़िर्सू स्थित इस “बासा” (होम स्टे) को ही देख लीजिए। कितनी शिद्दत से इस पर पहाड़ी परिवेश की संस्कृति के अमूल्य स्वरूपों को उकेरा गया है। बेजोड़ काष्ठ कला का नमूना व पहाड़ी वास्तुकला के आधार को जीवंत बनाकर संजोना सचमुच अतुलनीय है। इस बासा को बनाने के लिए जिलाधिकारी द्वारा अल्मोड़ा जनपद से लकड़ी के कारीगर बुलाये गए व उन्हें अपने ही बंगले में रखकर लकड़ी का काम करवाया ताकि वह लापरवाही न कर सकें व ना ही कहीं और कोई कार्य पकड़ सकें जिससे समय पर इस बासा को पूरा करने में परेशानी हो। अब यह बासा बनकर तैयार है जिसे ग्राम सभा ग्वाड़ के अंतर्गत ख़िर्सू की ग्रामीण महिलाओं का स्वयं सहायता समूह अब संचालित करेगा जिससे ग्रामीण महिलाओं में रोजगार की एक नई पहल शुरू होगी।

ख़िर्सू की श्रीमती बिमला रावत बताती हैं कि उन्होंने इस हट को अपनी आंखों के सामने बनते देखा और आज जब बनकर तैयार हो गया है तो जब भी उधर नजर उठती है तो उसके प्रति एक अपनत्व सा पैदा होता है मानो यह हम सबको प्रेरणा देने का एक माध्यम हो। इसमे पहाड़ के लोक समाज व लोक संस्कृति को जीवंत बनाने के लिए डीएम साहब ने जो निजी प्रयास किये हैं उससे वह हम सबकी नजरों में बेहद आदरणीय हो गए हैं। श्रीमती बिमला कहती हैं कि हम सब ग्वाड़ ग्राम सभा में आते हैं, भले ही मैं इस स्वयं सहायता समूह में नहीं हूँ लेकिन मैंने कभी यह महसूस नहीं किया कि यह बासा हम सबका आय का संसाधन नहीं बनेगा। इसमें मेरी देवरानी हैं व श्रीमती रचना सहित लगभग 10 महिलाएं है जिनका समूह इसे संचालित करेगा। इसका उद्घाटन होना था लेकिन मुख्यमंत्री नहीं पहुंच पाए इसलिए सभी बहनों का कहना है कि हिन्दू नवबर्ष यानि माघ मास में इसका उद्घाटन करेंगे ताकि रिद्धि सिद्धि सम्पन्न हों। अभी काले महीने चल रहे हैं।

श्रीमती बिमला रावत का “बासा” के प्रति यह स्नेह दर्शाता है कि किस तरह यहां का समाज अपनी जड़ों के साथ जुड़कर प्रसन्नचित्त है। जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल इस पर अपने सोशल साइट पर लिखते हैं:-

बासा ……. सामुदायिक पर्यटन की दिशा में एक पहल।

 यह पहल स्थानीय जरूरतों, अर्थव्यवस्था और वास्तुकला को ध्यान में रखते हुए ध्यान केंद्रित करती है, ताकि स्थानीय लोग इसे अपना सकें और यह स्थानीय कपड़े के लिए मूल्य जोड़ सके। गढ़वाली भाषा में बासा एक रात के ठहराव के लिए अपने घर में मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए एक अभिव्यक्ति है। BASA होमस्टे स्थानीय लोगों के लिए एक उदाहरण स्थापित करता है, होमस्टे के एक मॉडल के रूप में यह स्थानीय लोगों को अपने स्पेस को खोलने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि होमस्टे.चेक पहल और स्थानीय लोगों द्वारा प्रबंधित स्थानीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और प्रामाणिक पर्यटन की अनुमति दे सकता है जो प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को संरक्षित करने में मदद कर सकता हैै ख़िर्सू की। इस अभिनव निर्माण के पीछे का स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाना है। बासा होमस्टे स्थानीय SHG (स्वयं सहायता समूह) चलाया जा रहा है। इस स्थानीय ग्राम संगठन का उन्नति बासा है। जिसे एफटीएन द्वारा डिज़ाइन किया गया है व इसका निर्माण “हिमालय होम्स” द्वारा किया गया है, जिसमें चार कमरे, एक सामुदायिक रसोईघर, एक पर्यटन केंद्र और एक पैकेजिंग शामिल है। और स्थानीय उत्पादन और हस्तशिल्प की एक बिक्री इकाई। रात्रि विश्राम के साथ महिलाओं को भी उत्पादन में लगे रहना होगा और सभी स्थानीय उपज और शिल्प को पैकेजिंग करना होगा जो पर्यटकों को बेचा जाएगा। खिर्सू में पर्यटकों को पारंपरिक संस्कृति का अनुभव होगा । बासा जिले भर के देशी पारंपरिक उत्पादों का भी निर्माण करेगी। बासा गाँव के मध्य में स्थित है। चोटी के पहाड़ों, जंगलों, गाँव के जीवन और स्थानीय भोजन के लिए, यहाँ सभी का अनुभव किया जा सकता है। बीएएसए को पर्यटक को समग्र और प्रामाणिक गढ़वाली रहने का अनुभव देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह पत्थरों का उपयोग करके बनाया गया है जो परंपरागत रूप से निर्मित स्थानीय घरों के समान है। कॉटेज में स्थानीय शिल्पकार द्वारा की गई सुंदर और सुरुचिपूर्ण लकड़ी की नक्काशी है जो सौंदर्यशास्त्र में जुड़ती है। पूर्ववर्ती स्थान पारंपरिक और आधुनिक जीवन शैली के संलयन के साथ तैयार किए गए हैं। यह बुखारी, सीसम लकड़ी के फर्नीचर और संलग्न बाथरूम एन वाशरी सुविधाओं के साथ चार बेड रूम हैं। 27000 लीटर पानी की क्षमता वाला एक वर्षा जल संचयन टैंक भी प्रदान किया जाता है। यह कंपिलिशन S4 द्वारा रेसिलिएंट होम चैलेंज के लिए एक पुरस्कार विजेता ने डिजाइन किया है। इस प्रतियोगिता का निर्माण बिल्ड अकादमी, विश्व बैंक, एयर बीएनबी और जीएफडीआरआर द्वारा किया गया था। यह पर्यटन केंद्र नीचे की ओर भारी पत्थर से भरी रिटेनिंग वॉल के साथ बनाया गया है। शीर्ष उपयोग की जाने वाली सामग्री स्थानीय संदर्भ में आसानी से उपलब्ध है और इसे आसानी से ले जाया जा सकता है। सामुदायिक भागीदारी और स्वामित्व को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय ज्ञान और आधुनिक निर्माण तकनीकों के बीच एक संतुलन शामिल है।

                                        

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES