(मनोज इष्टवाल)
धर्म संस्कृति व धर्मस्व की जब भी उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में बात हो ऐसे में “दिप्रग्या बामण” (देवप्रयाग क्षेत्र के पंडितों) की बात न हो तो बात अनर्थ सी लगती है क्योंकि देवप्रयाग के साथ लगा पौड़ी गढ़वाल का बड़ा क्षेत्रफल वहां के उन ब्राह्मणों से भरा है जिनमें ज्यादात्तर बदरीनाथ में कई युगों से पंडिताई करते आ रहे हैं! वे कैसे यहाँ से बदरीनाथ तक पंडिताई करने पहुंचे उसके पीछे बहुत लम्बी कहानी है लेकिन संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हरिद्वार से देवप्रयाग या फिर कोटद्वार दुगड्डा से देवप्रयाग पहुँचने वाला ढाकर पैदल मार्ग ही एक मात्र ऐसा रास्ता था जिस से होकर विभिन्न चट्टियों से गुजरने वाले यात्री बदरीनाथ केदारनाथ गंगोत्री यमुनोत्री तक सफर करते थे ऐसे में उन्हें अपने मार्ग प्रशस्त करने के लिए पुरोहित यहीं से मिल जाया करते थे जो इन धामों में उनकी पूजाविधि सम्पन्न करते थे! इसी तरह देश भर में यहाँ के पंडितों के यजमान हैं!
इसी क्षेत्र में सबदरखाल पौड़ी क्षेत्र का एक गाँव है सेमन…! भट्ट, रणाकोटि, ध्यानी व जाने किन किन जातियों के लोग इस गाँव में रहते हैं! बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक इकलौते डंडे पर झूलती अर्थी भी शमशान जाती है जिन्हें पता नहीं उन्हें जानकारी के लिए बता दूँ कि पौड़ी गढ़वाल स्थित सेमन गॉव (सबधरखाल) व टिहरी गढ़वाल कीर्ति नगर के पास रण-कंडियाल गॉव के लोग अर्थी सिर्फ एक ही डंडे पर बांधकर ले जाते हैं!
सेमन गॉव का किस्सा तो यह हुआ कि एक की चिता सजी तो दुसरे घर में एक और मर गया उसे जलाकर आये तो तीसरा और तीसरे को जलाकार आये तो एक बालक मर गया अंत में जब यह सब चलता रहा तो लोगों ने पता करवाया कि यह क्यों हो रहा है तब उन्हें यह सलाह दी गयी कि अगर आप लोग आगे की कुशल चाहते हो तो एक डंडे पर ही अर्थी ले जाना! तब से यहाँ के लोग सिर्फ एक डंडे पर ही अर्थी बांधकर ले जाते हैं!
वहीँ अगर कोई गॉव का व्यक्ति गॉव से बाहर कहीं मरा हो तो उसके लिए यह नियम लागू नहीं होता. उसकी अर्थी के चार ही काँधे होते हैं! ऐसा ही टिहरी गढ़वाल के रण-कंडियाल गॉव में भी होता है. वहां ऐसा क्यूँ होता है यह जानकारी जुटा रहा हूँ! अगर उत्तराखंड में कहीं और भी ऐसा होता हो तो कृपया ज्ञानवर्धन के लिए जरुर बताएं!