मृत ब्यक्ति की राख से भी सच उगला देते हैं जौनसार क्षेत्र के ये मसाणिया।
(मनोज इष्टवाल)
विज्ञान कितना भी आगे पहुंच जाए लेकिन मरे व्यक्ति से जिसका शरीर राख में तब्दील हो गया हो उस से वह उसके मरने का कारण जान ले तब तो इसे चमत्कार कहा जायेगा। शायद विज्ञान के ज्ञाता वैज्ञानिकों को इसके लिए सैकड़ों प्रयोग करने होंगे लेकिन जौनसार क्षेत्र के अभी भी चार पांच ऐसे व्यक्ति हैं जो पढ़े लिखे न होने के बावजूद भी अपनी मसाणिया तन्त्र विद्या से मुर्दे की राख व हड्डियों के ऊपर लेटकर न सिर्फ एक मृत आत्मा को बल्कि पूरे गांव के मृत महिला पुरुष को बुला लेते हैं। ये वो आत्माएं होती हैं जिन्हें मुक्ति नहीं मिल पाती या फिर उनका परिवेश दूसरे जीवन में नहीं हो पाता।
इस संदर्भ पर अपनी बात पर मजबूती से बल देते हुए जौनसार बावर क्षेत्र के लोक संस्कृतिकर्मी नन्द लाल भारती बताते हैं कि यह एकदम सच है कि ऐसा आज भी हमारे क्षेत्र के दो चार लोग कर देते हैं। उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर यह भी पुख्ता किया कि उनकी आंखों के समक्ष यह सब होते उन्होंने देखा है।
भारती बताते हैं कि मसाणिया विद्या जानने वाले जब यह तन्त्र साधना करते हैं तब आपका दिल मजबूत होना चाहिए क्योंकि ये लोग तन्त्र साधना सिर्फ शमसान घाट में ही करते हैं। वे बताते हैं कि अक्सर ऐसी विद्या के जानकारों के पास ज्यादात्तर ऐसे केस आते हैं जो मरने वाले की मृत्यु से संतुष्ट नहीं रहते व सोचते हैं कि इनकी मौत कैसे हुई उसके पूछे।
भले ही अब ये गिने चुने ही लोग हैं क्योंकि ज्यादात्तर ने यह मसाणिया विद्या अब छोड़ दी है क्योंकि कई बार मरने वाले व्यक्ति मी आत्मा जब बताती है कि उसकी मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि फलां परिवार के फलाँ सदस्य ने इसलिए की तब यह दुश्मनी लम्बी चलने लगती है। एक दूसरे को मारता है फिर दूसरा भी मसाणिया विद्या का प्रयोग कर उसका अहित करता है। ऐसे ज्यादात्तर आपराधिक किस्म के लोग ही होते हैं जो मसाणिया विद्या को आजमाते हैं। इसे शमशान भैरवी तंत्र भी कहते हैं।
पूर्व में लाखामंडल का मंदिर एक मात्र ऐसा स्थान था जहां यज्ञ शाला के बाहर दो काली मूर्तियों के पास मरे व्यक्ति की लाश रख दी जाती थी व उसे मास अभिमन्त्रित कर कुछ पल के लिए जीवित कर दिया जाता था ताकि वह अपने मारने का कारण वे दिल की अधूरी ख्वाइश बता सके। इस से फायदा यह होता था कि ऐसी आत्मा फिर प्रेत बनकर भटकती नहीं थी ।
मसाणिया विद्या वाले जौनसार में औघड़ नहीं कहलाते हैं वे मसाणिया नाम से जाने जाते हैं व उन्हें आम भाषा में पंडत कहते हैं जबकि ये जाति वर्ण के पंडत नहीं होते फिर भी इनका परिवार होता है। नंद लाल भारती अपने अनुभवों के आधार पर बताते हैं कि मसाणिया विद्या के जानकार जब किसी मृत आत्मा को बुलाते हैं तो उस से पहले सारे पकवान बनाये जाते हैं व उन्हें लेकर रात्रि पहर में शमसान घाट पर जाया जाता है। क्योंकि जौनसार में ऐसे कई घाट हैं जो नदियों की जगह खेतों के पास हैं इसलिए तांत्रिक को यहां तंत्र साधना में दिक्कत नहीं होती। वह शमसानी शमसान घाट की राख व हड्डियों के ऊपर लेटता है। अपने सिद्ध किये मन्त्र बोलता है फिर जो महिला या पुरुष के हाथ पांव की लम्बी सी खोखली हड्डी उसके पास उसके झोले में होती है उसे निकालकर वह उस राख में पटकता है उसके पश्चात वह उस राख को चाटता है। फिर अर्धमूर्छित सा होकर उस हड्डी को दूरबीन की भांति इस्तेमाल करके देखता व जिस गांव के मरे व्यक्ति को बुलाना होता है उसे आवाज देता है। फिर उस गांव की कई मृत आत्माएं आनी शूरु होती हैं वे एक एक करके अपना नाम व अपने खानदान का नाम बताती हैं अपनी इच्छा अनुसार खाना माँगती हैं व चल देती हैं अब जब वह आत्मा आती है जो हाल ही में मरा हो और अपनी मौत का कारण बताती है कि उसकी स्वाभाविक मौत हुई या उसे कैसे मारा गया तब आत्मा को शांत करने के लिए उसे न्यायोचित विदाई दे दी जाती है। जब वह विदा होने लगता है तब वह मसाणिया विद्या के ज्ञाता को भी साथ ले जाने लगता है ऐसे में वह व्यक्ति उसके साथ चलने लगता है। तब शमसानी तंत्र को खत्म करने के लिए किसी अन्य जीवित व्यक्ति को मसाणिया को छूना पड़ता है जिस से वह वहीं जमीन पर गिर पड़ता है व कुछ समय अचेत रहने के बाद चेतना में लौटता है।यह विद्या तन्त्र बेहद दुरूह है व अब इसके जानकार दो या चार ही जौनसार क्षेत्र में बचे हुए हैं।