Friday, July 26, 2024
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डंडेश्वर ………जहाँ शिव लिंग खंडित हुआ! जहाँ आदिदेव महादेव को दंड स्वरुप अपना ऐश्वर्य खोना पड़ा और पृथ्वी को त्राहि-त्राहि झेलनी पड़ी…! 

डंडेश्वर ………जहाँ शिव लिंग खंडित हुआ!
जहाँ आदिदेव महादेव को दंड स्वरुप अपना ऐश्वर्य खोना पड़ा और पृथ्वी को त्राहि-त्राहि झेलनी पड़ी…! 

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 5 अगस्त 2015)

श्रावण मास में हर कोई हिन्दू धर्म संस्कृति को मानने वाला व्यक्ति शिबलिंग पूजा करता है लेकिन विद्वान् सी विद्वान् लोग जिन्हें शास्त्रों का ज्ञान न हो वह भी यह नहीं जानते कि सम्पूर्ण पृथ्वी में शिबलिंगों की उत्पति कैसे हुई..?
आईये मैं आपको संक्षेप में इस सम्बन्ध में जानकारी दे दूँ. कहते हैं सती वियोग में शिब जहाँ तन्हा पृथ्वी में विचरण कर रहे थे यहाँ जब वह नागेश वन पहुंचे और देवदार के घने जंगल में जटा गंगा के छोर में वे ध्यानलीन हुए तो उनका रूप सौन्दर्य ओज हर ओर फ़ैल गया वे दुनिया के सबसे रूपवान व्यक्ति नजर आने लगे!  स्वयं मनोज (कामदेव) भी उनके रूप के समुख फीके दिखाई देने लगे, कहा जाता है कि उस युग में इस दारुकावन में सप्तऋषि तपस्या करते थे ! एक दिन उनकी पत्नियां यहाँ ऋषियों के यज्ञ हेतु लकडियाँ इकट्ठा करते करते वहां आ पहुंचे जहाँ ध्यानरत शिब तपस्यारत थे.

शिब के इस सौन्दर्य को देखकर सभी ऋषि पत्नियां सम्मोहित हो गयी और वे उनके रूप यौवन से इतनी प्रभावित हुयी कि उनकी इन्द्रियाँ उनके वश में न रही वे शिब को किसी भी रूप में पाने को लालायित हो गयी . लेकिन शिब की तपस्या न टूटी. घंटों सिर्फ के इर्द-गिर्द शिब को रिझाने के लिए उन्होंने नृत्य किया अंत में बेहोश होकर शिब के चारों ओर गिर पड़ी लेकिन आदिदेव महादेव अपनी कुंडली जागृत करने के लिए ध्यानमग्न रहे. जब ऋषि पत्नियां शांयकाल तक अपने आश्रयों में नहीं लौटी तब ऋषियों ने उनकी ढूंढ की और ढूंढते हुए वे उस स्थान में आ पहुंचे जहाँ आज डंडेश्वर महादेव विराजमान हैं. उन्होंने अपनी अपनी पत्नियों के अस्त-ब्यस्त कपडे देख व वहीँ मूर्छित पड़ी हुयी अपनी पत्नियों की दशा से सीधे अर्थ लगाया कि यह जो भी व्यक्ति है इसने ही उनकी पत्नियों के साथ दुष्कर्म किया. अत: उन्होंने श्राप दिया कि तू जो भी है जा तेरा लिंग तुझसे खंडित हो जाय. ऋषियों के श्राप से लिंग खंडित हुआ तो उससे उत्पन्न ज्वाला से चारों ओर भयानक अग्नि प्रज्वलित हुई शिब की तपस्या भंग हुई जब उन्होंने अपने इर्द-गिर्द थर्र-थर्र कांपते ऋषियों को देखा तो उन्होंने कहा बिना सचाई जाने तुम सबने मुझे जो श्राप दिया वह मुझे स्वीकार है लेकिन अब पृथ्वी को बचा सकते हो तो बचाओ. सभी ऋषि मुनि गण त्राहि-माम करते हुए देवलोक गए सभी ने ॐ नम: शिवाय का जाप करना शुरू किया अंत में दयालु शिब ने कहा कि मेरे लिंग का भार उठाना किसी के वश में नहीं है सिर्फ सती में ही इतनी इतनी आदिशक्तियां मौजूद थी अत: उसके पुनर्जन्म की कामना करें. फिर उन्होंने बिष्णु को कहा कि वह अपने चक्र से मेरे लिंग को कई टुकड़े कर दे वरना पृथ्वी के अनर्थ को कोई नहीं बचा सकता. बिष्णु ने सुदर्शन चक्र से शिब के लिंग के 12 टुकड़े किये जिनसे 12 ज्योतिलिंग पैदा हुए उनमें से 8वां ज्योतिलिंग यही जागेश्वर में है जो अर्धनारेश्वर भी माना जाता है. और अलावा लिंग के लाखों टुकड़े ही जो सम्पूर्ण भूमंडल में फ़ैल गए. अकेले जागेश्वर में शिब के 108 लिंग हैं और 125 मंदिर समूह जिनमें भट्ट जाति के 72 नम्बुरी ब्राह्मण दिन रात शिब पूजन में विभिन्न विभागों को संभाले हुए हैं. डंडेश्वर से जागेश्वर की दूरी लगभग 1 किमी है.
मैं अल्मोड़ा क्षेत्र की पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती शोभा जोशी, अध्यापिका अंजलि साह व उनके परिजनों का बेहद आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस दिव्य क्षेत्र के दर्शन करवाए, साथ ही विधान सभा अध्यक्ष माननीय गोबिंद सिंह कुंजवाल, उनके पुत्र व क्षेत्र के युवा नेता हरीश कुंजवाल का भी ह्रदय से आभार वक्त करता हूँ कि जिन्होंने मुझे इस श्रावण मास में आदिदेव के दर्शनों की सलाह दी.

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