(मनोज इष्टवाल)
नैपथ्य में व्याप्त कई ऐसे प्रामाणिक सत्य होते हैं जिनसे हम सभी अंजान होकर वह सब इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि उसका हमें ज्ञान ही नहीं होता। हर बर्ष बद्रिकेदार यात्रा पर लाखों श्रद्धालु देश दुनिया से आकर दर्शन करते हैं। बद्रिकेदार धाम यात्रा पर आने वाले कुल श्रद्धालुओ के 50 प्रतिशत ही केदारनाथ धाम पहुँच पाते हैं क्योंकि वहाँ की यात्रा बेहद दुरूह समझी जाती है। ऐसे में बद्रीनाथ की यात्रा कर अपनी पुण्य की कामना करने वाले धर्मावलम्बी यह नहीं जानते कि बिना केदारनाथ यात्रा के उनकी बद्रीनाथ यात्रा का कोई औचित्य नहीं है।
स्कन्द पुराण में वर्णित श्लोकों की व्याख्या करते हुये टंगनी गांव निवासी पंडित गुंजन भट्ट व आशीष भट्ट ने जानकारी देते हुये बताया कि जो श्रद्धालु केदार धाम के दर्शन नहीं कर पाते वे आदिकेदार के दर्शन कर उतने ही मनोरथ हासिल करते हैं जीतने केदारनाथ दर्शन से होते हैं। ज्ञात हो कि टंगनी गांव जोकि जोशिमठ में पड़ता है वहाँ के भट्ट जाति के ब्राह्मण बद्रीनाथ स्थित आदिकेदार के पुरोहित हैं।
यहाँ के पुजारियों का कहना है कि पहले बदरिकाश्रम भी आदिदेव महादेव का ही था लेकिन छल पूर्वक विष्णु भगवान ने महादेव से बद्रिधाम ले लिया। इसके पीछे स्कन्दपुराण में बर्णित कथा का हवाला देते हुये पंडित गुंजन भट्ट व आशीष भट्ट का कहना है कि जब बद्रिकाश्रम क्षेत्र में भगवान शिब घोर तपस्यारत थे तभी एक दिन उन्हे व माँ पार्वती को नारद कुंड के समीप किसी बच्चे के रोने की आवाज आई। माँ पार्वती को यह सहन नहीं हुआ और उन्होने भगवान शिब से आग्रह किया कि चलिये देखते हैं इस निर्जन स्थान पर आखिर कौन अपना बच्चा छोड़ गया। बच्चे को देख दयाभाव जागा और उसे लेकर पार्वती व शिब अपने महल (बद्रीनाथ मंदिर) ले आए। बच्चा महल में आकर खुश हुआ और खेलने लगा। यह देख शिब पार्वती नहाने के लिए नारद कुंड में प्रस्थान करते हैं। लौटते वक्त देखते हैं कि महल का दरवाजा तो अंदर से बंद है वे आवाज देते हैं लेकिन तब भी दरवाजा नहीं खुलता। आदिदेव महादेव को क्रोध आए इससे पूर्व भगवान बिष्णु अपने विराट रूप में दर्शन देकर कहते हैं कि हे भोलेनाथ अब यह महल मेरा हुआ क्योंकि मुझे तुम स्वयं नारद कुंड से उठाकर यहाँ लाये। शिब निरुत्तर होकर तत्काल वहाँ से केदारनाथ के लिए प्रस्थान करते हैं तब बिष्णु भगवान कहते हैं कि हे आदिदेव इस स्थान पर मेरे से पहले आपका वास रहा है अत: यहाँ प्रथम पूजा आपकी ही होगी। जो भक्त बिना आपके दर्शन किए पहले मेरी पूजा करेगा वह पूजा सफल नहीं मानी जाएगी अत: आप महल के बाहर ही विराजमान रहिए।
बद्रीनाथ मंदिर की जो सीढ़ियाँ नारद कुंड के लिए उतरती हैं उसके शुरुआत में शंकराचार्य विराजमान हैं जबकि बद्रीनाथ मंदिर समिति के कार्यालय से सटा मंदिर आदिकेदार कहलाता है। बद्रीनाथ दर्शन से पूर्व तप्त कुंड स्नान का भागी हर कोई व्यक्ति बनता है लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्हे यह जानकारी है कि बिना आदिकेदार के दर्शन किए बद्रीनाथ यात्रा के फल प्राप्त नहीं होते। जो व्यक्ति केदारधाम की यात्रा न कर पाया हो वह बद्रीनाथ के दर्शन से पूर्व आदिकेदार के दर्शन अवश्य करे तभी उनके मनोरथ सिद्ध होते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलते ही पुरोहित समाज माणा गांव की महिलाओं द्वारा बुना गया विगत बर्ष का धृत कंबल जोकि भगवान बद्रीश को ओड़ाया गया होता है उसे हटाकर भगवान बिष्णु की मूर्ति का स्नान करवाते हैं। उनके पास उनके बड़े भाई उद्धव व कुबेर विराजमान होते हैं जोकि शीतकाल में पांडुकेश्वर चले जाते हैं। वहीं माँ लक्ष्मी मुख्य मंदिर से बाहर अपने मंदिर में विराजमान हैं। यहाँ देवता भी हमारी पुरातन संस्कृति का निर्वहन करते नजर आते हैं क्योंकि हिन्दू धर्म में जेठ से पर्दा होता है यहाँ भी उद्धव जी जोकि बिष्णु भगवान के बड़े भाई माने जाते हैं उन्ही के साथ विराजमान हैं अत: माँ लक्ष्मी को बाहर आश्रय लेना पड़ता है।
यह मंदिर नेपाली काष्ठ कला का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है इसके गर्भ गृह में प्रयुक्त कार्य (काष्ठ कला) का मिश्रण काठमांडू स्थित पशुपति नाथ मंदिर से मिलता जुलता है। ज्ञात हो कि संवत 1963 में नेपाल की महारानी तीन सरकार द्वारा यहाँ निर्माण कार्य करवाया गया था क्योंकि उस दौर में मंदिर जर्जर हो गया था ऐसा बताया जाता है।
इस बर्ष विगत 10 मई 2019 को ब्रह्ममुहूर्त पर ठीक 4:15 बजे बद्रिनाथ भगवान के कपाट खुले। स्कन्द पुराण में वर्णित कथा का रस्वाद्न करते हुये सभी धर्मावलंबियों से अनुरोध है कि यात्रा का विधान ध्यान में रखते हुये पहले आदिकेदार के दर्शन अवश्य करे ताकि आपके मनोरथ सिद्ध हों!