(मनोज इष्टवाल)
यों तो देश के प्रधानमंत्री को कपडों का बेहद शौकीन माना जाता है और उनके परिधानों पर गाहे-बगाहे हमेशा ही बहस छिड़ी रहती है लेकिन इस बार कुछ अलग ही हुआ जब वे आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन बाबा केदार की शरण में लोकसभा का चुनाव प्रचार निबटाकर पहुँचे। प्रधानमंत्री बनने से लेकर अब तक यह उनकी चौथी केदारनाथ यात्रा है। इस बार सोशल साइट व टीवी चैनल्स के पास अगर प्रधानमंत्री की केदारनाथ यात्रा को लेकर बहस का विषय है तो वह है उनके पहने हुए अंगवस्त्र।
प्रधानमंत्री के इस ड्रेस को हर कोई अपने अपने हिसाब से आंकलन कर सोशल साइट या न्यूज़ चैनल्स पर परोस रहा है। ज्यादात्तर मीडिया कर्मियों का मानना है कि यह ठेठ पहाड़ी या ठेठ गढवाळी परिधान की श्रेणी में आता ही लेकिन मैं इस सब से भिन्न राय व्यक्त करता हूँ क्योंकि न यह मिरजई है न त्युंखा या दौंखा। ऐसा टिपिकल पहनावा कश्मीर लेह लद्दाख या लाहौल स्पीति के लोकसमाज, लोकसंस्कृति में दिखने को मिलते हैं, लेकिन सच यह है कि यह भी उन संस्कृतियों से इसलिए कुछ भिन्न है क्योंकि कमर में भगवा कमरबन्द, कंधे में बाघम्बर व सिर पर हिमाचली फेटशिकाई टोपी के बाद बौद्ध भिक्षुक या बौद्ध धर्म अनुयायियों की तरह लंबा चोगा किसी एक संस्कृति का कहा जाय तो गलत होगा क्योंकि यह मूलतः किसी एक संस्कृति का पहनावा नहीं है। हां इतना जरूर है कि ऐसा ही कुछ परिधान केदारनाथ के रावल अक्सर पहनते हैं जो लगता तो ठेठ पहाड़ी है लेकिन हर पहाड़ी संस्कृति को जोड़ता वह कुछ लग सा होता है।
केदारनाथ के मौसम के हिसाब से यह ऊनि वस्त्र प्रधानमंत्री मोदी ने यूँहीं नहीं धारण किया है क्योंकि वे धर्म व नियमों का अपने निजी जीवन में कट्टरता के साथ पालन करते हैं इसलिए हो सकता है आज बुद्ध पूर्णिमा के उपलक्ष्य में उन्होंने इसे विशेष रूप से धारण किया है। यों भी केदारनाथ भूमि को बौद्ध भूमि कहकर पुकारा जाता है जिसका सीधा सा आशय यह है कि बुद्ध पूर्णिमा में बौद्ध धर्म के अनुपालन में नरेंद्र मोदी द्वारा यह परिधान पहना गया हो। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसे लद्दाख में फोगोस कहा जाता है जबकि ऐसा ही पहनावा कजाकिस्तानियों या ख़ज़ाकियों व मंगोलियन का होता है जिसे वहां kos (कोज/कोस) नाम से पुकारते हैं लेकिन उसका कॉलर ज्यादा स्टाइलिस होता है जबकि यह khogoes (खोगोएस/खोगोज़) कहा जा सकता है। इसे उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुद्धिष्ठ ज्यादा पहना करते हैं।
यह परिधाम मूलतः बौद्ध भिक्षुक या बौद्ध साधुओं द्वारा धारण किया जाता है ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी भी महात्मा बुद्ध को स्मरण कर उनकी जीवन शैली से प्रभावित होकर चुनावी थकान मिटाने ले लिए “बुद्धम शरणम गच्छयामि, संघम शरणम गच्छयामि” जैसे मूल मंत्र को धारण कर अपने चित्त को शांत करने की कोशिश कर रहे हों। अतः प्रधानमंत्री के इस पहनावे को बुध पूर्णिमा पर धारण किया गया पहाड़ी या हिमालयी ऐसे परिधान की संज्ञा दी जा सकती है जो सर्व धर्म एक समान का संदेश दे रही हो।