Saturday, July 27, 2024
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घेस के बाद देश नहीं……! “नंग माथ मॉस नी, घेस माथ देश नी”!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग नंदा राज जात 30 अगस्त 2014)

आली बुग्याल से घेस गाँव का दृश्य (फोटो- मनोज इष्टवाल)


पहाड़ में एक कहावत प्रचलित है “नंग माथ मॉस नी, घेस माथ देश नी” यानी नाख़ून के ऊपर मांस नहीं है, घेस गॉव के बाद देश नहीं है! समुद्रतल से २५२० मीटर उंचाई पर स्थित कैल घाटी के इस गॉव के दर्शन करके मैं अविभूत हुआ जब मैंने आली बुग्याल की मखमली घास में लेटकर इस गॉव की फोटो अपने लेंस ५५- ३०० से खीचने का सफलतम प्रयास किया! फिर भी हवाओं की तेजी ने इस कोशिश को पूर्ण सफल नहीं होने दिया!

बृहद घेस क्षेत्र…!

भैन्स्या बुग्याल के पार आली बुग्याल से कम से कम 15-20 किमी. दूर सुदूर पहाड़ी पर स्थित यह गॉव अपनी सम्पन्नता की कहानी सुनाता नजर आ रहा था! दूरबीन से गॉव की आवोहवा ने भावविभोर कर दिया! सोचा इसके बारे में भी अपने मित्रों से अपनी जुटाई जानकारी शेयर करूँ!
30 अगस्त 2014 को जब सुबह सबेरे मैं ठाकुर रतन असवाल और पवन, बेदनी कुंड से आली बुग्याल की ओर बढे थे तब मेरा मन तो नहीं था कि मैं आली बुग्याल जाऊं लेकिन मन मार कर मैं आली की तरफ निकल ही पड़ा! जब बेदनी की धार पार करके आली बुग्याल की खूबसूरती का साम्राज्य देखा तो मन्त्रमुग्ध हो गया! कई किमी. तक फैले आली बुग्याल की हरी मखमली घास के एक छोर पर भेड़-बकरियों के झुण्ड चुग रहे थे जबकि ऊपर गगन में गरुड़ ठंडी हवा के बीच गुजरते बादलों के साथ अठखेलियाँ खेल रहे थे!

मन्त्र मुग्ध करती आली बुग्याल (फोटो- रतन सिंह असवाल)

आपको नंदा राज जात के बारे में अपने पुराने अध्ययन के अनुसार जानकारी देना चाहूँगा कि
हिमालयी जिलों का गजेटियर लिखने वाले ई.टी. एटकिन्सन, विद्वान एच.जी.वाल्टन, जी.आर.सी.विलियम्स के अलावा स्थानीय इतिहासकार डॉ0 शिव प्रसाद डबराल, डॉ॰ शिवराज सिंह रावत ”निसंग“, यमुना दत्त वैष्णव, पातीराम परमार एवं राहुल सांकृत्यायन आदि के अनुसार नन्दा यानि माँ पार्वती को हिमालय पुत्री माना है और उनके ससुराल को उच्च हिमालयी शिखर कैलाश माना है, इसलिये वह खसों या खसियों की प्राचीनतम् आराध्य देवी है। पंवार वंश से पहले भी कत्यूरी वंश के शासनकाल से इस यात्रा के प्रमाण हैं।

डॉ. शिब प्रसाद डबराल “चारण” के अनुसार रूपकुण्ड दुर्घटना सन् 1150 में हुयी थी जिसमें राजजात में शामिल होने पहुंचे कन्नौज नरेश जसधवल या यशोधवल और उनकी पत्नी रानी बल्लभा जिसे स्थानीय भाषा में बल्लमा नाम से भी जाना जाता है, की सुरक्षा और मनोरंजन आदि के लिये सैकड़ों की संख्या में साथ लाये हुये दल-बल की रूपकुंड नामक स्थान में मौत हो गयी थी, जो बेदनी कुंड के पश्चात सम्भवतः अगला पड़ाव् भी कहा जा सकता है। इन नृतकों व सैनिकों के कंकाल कंकाल आज भी रूप कुण्ड में बिखरे हुये हैं।

नौटी गाँव में राजजात के सन् 1843, 1863, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968 एवं 1987 में आयोजित होने के अभिलेख उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट होता है कि प्रचलित मान्यतानुसार यह यात्रा हर 12 साल में नहीं निकलती रही है। कुरूड़ से प्राप्त अभिेलेखों में 1845 तथा 1865 की राजजातों का विवरण है। कुरूड़ के पुजारी और अधिकांश इतिहासकार नन्दा को पंवारों की नहीं बल्कि खसों की प्राचीनतम देवी व तीर्थयात्रा मानते हैं। इसी आधार पर आयुद्धजीवी खसों की आराध्य कुरूड़ की नन्दा देवी की डोली ही इस राजजात का नेतृत्व करती रही है। इस पैदल यात्रा में उच्च हिमालय की ओर चढ़ाई चढ़ते जाने के साथ ही यात्रियों का रोमांच भी बढ़ता जाता है। इसका पहला पड़ाव 10 किलोमीटर पर ईड़ा बधाणी है। उसके बाद दो पड़ाव नौटी में होते हैं। नौटी के बाद सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, चेपड़ियूं, नन्दकेशरी, फल्दिया गांव, मुन्दोली, वाण, गैरोलीपातल, पातरनचौणियां, शिलासमुद्र होते हुये अपने गन्तव्य होमकुण्ड पहुंचती है। 

बहरहाल यात्रा पडाव हमने 27 अगस्त 2014 को मुन्दोली से शुरू की यहाँ पत्रकार गीता बिष्ट व सहारा समय दिल्ली के जगमोहन आजाद से हमारी मुलाक़ात हुई, गीता इसी क्षेत्र की रैबासी कही जा सकती है जबकि जगमोहन आजाद हंस फाउंडेशन के भोले जी महाराज व माता मंगला के साथ यहाँ पहुंचे थे क्योंकि यहाँ हंस फाउंडेशन का लंगर था और यात्रियों के लिए रात्री काटने के लिए सुप्रसिद्ध गायिका कल्पना चौहान व हेमा नेगी करासी का नदी किनारे विशाल पंडाल पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी! अगले दिन बाण में लाटू देवता की शरण में गाड़ने के बाद विगत 29 को हम बेदनी कुंड पहुंचे हैं! जबकि माँ नंदा की डोली ने गैरोली पातळ में बिश्राम किया! यहाँ हमारे पोर्टर ने हमारा एक तम्बू व दो बिस्तर खो दिए थे! सारा मूड ऑफ हुआ लेकिन ठाकुर रतन असवाल ने यह नुक्सान चेहरे पर जाहिर नहीं होने दिया! हमारे आस-पास नैनीताल का ग्रुप रुका हुआ था जिसमें टोनी शाह व वरिष्ठ फोटोग्राफर राजीव काला जिन्हें हम कालू दा के नाम से प्यार से पुकारते हैं को मैं जानता था! आज अलसुबह हमें वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल गणी, उनकी अर्धांगिनी अंजू भूली, अरुण कुकसाल भैजी व सरोज कबटियाल मैडम इत्यादि से बेदनी कुंड के नजदीक मुलाक़ात हुई !

आली बुग्याल से निशाना घेस गाँव पर (फोटो- रतन असवाल)

हमें आली बुग्याल जाने की जल्दी थी इसलिए सभी से इजाजत लेकर हम आली को प्रस्थान कर गये! जैसा की मैं आगे भी लिख चुका हूँ कि आली ने मन्त्रमुग्ध कर दिया यहाँ आकर जो दृश्य पटल पर दिखाई दे रहा था वह सचमुच दिल खुश कर देने वाला था! यहाँ रास्ते भर जयांण के फूल, व अन्य कई हिमालयी फूलों हवा के झोंको व बुग्याली घास के साथ नृत्य करते दिखाई दे रहे थे! आली के ठीक सामने एक धुंधलका सा गाँव दिखाई दिया व सुंदर सीढ़ीनुमा खेतों में फैली पीताम्बरी चादर..! भेडालों ने बताया कि यह घेस गाँव है! अभी मैं पूछ ही रहा था कि रतन सिंह असवाल जी ने तुर्रा बजा दिया और बोले- क्या यार पंडा जी, इतनी जानकारी भी नहीं है! अरे ये आपके पत्रकार मित्र अर्जुन सिंह बिष्ट का गाँव है! मेरे मुंह से सिर्फ इतना ही निकला- हैंs….! मैंने अपने कैमरे का लेंस बदला व हवा की तीव्रता के विरुद्ध जाते हुए जमीन पर लेटकर कैमरे की क्लिक दबा दी! रिजल्ट इतना अच्छा भी नहीं निकला लेकिन उम्मीद है देहरादून पहुंचकर इसे जब अर्जुन सिंह बिष्ट को दिखाउंगा तो उन्हें ख़ुशी होगी!

घेस गाँव

यहाँ के जनमानस का मानना था कि घेस गॉव के बाद कोई गॉव हो ही नहीं सकता और न ही कोई देश….! क्योंकि घेस गॉव के लोग आज से 10 बर्ष पूर्व तक मीलों पैदल चलकर दो दिन बाद देवाल पहुँचते थे! उन्हें हिमालयी भू-भाग का सबसे निकटवर्ती समझा जाता था! भले ही घेस चमोली जनपद की आबादी क्षेत्र का आखिरी गॉव हो लेकिन इस क्षेत्र में हिमनी, बलाण, पिनाऊ इत्यादि तीन गॉव और भी हैं! जहाँ लोग आलू, ओगल, पिंडालू, राजमा,सेब जैसी नगदी फसलों से अपना जीवन यापन करते हैं!

घेस गॉव के निचले हिस्से में बांज, बुरांश, खर्सू,तेलंग, सौड, अन्यार, देवदार, थुनेर, किल्मोड़ा,रागा, रुवींस इत्यादि पेड़ों ने इसकी खूबसूरती पर चार चाँद लगा दिए हैं. घेस के दूसरी और हिमनी गॉव पड़ता है जो हिमालय का सबसे निकटवर्ती गॉव समझा जाता है और यहीं से आप कैल नदी का उद्गम स्थल देख सकते हैं साथ ही आप विभिन्न बुग्यालों से होते हुए कुमाऊ मंडल के दानपुर क्षेत्र बागेश्वर जिले में प्रवेश कर सकते हैं! यहाँ ठहरने के लिए बन विभाग के त्रिशूली विश्राम गृह व ग्राम पंचायत के मिलन केंद्र मुख्य हैं! अगर आप इस गॉव होकर ट्रेकिंग करना चाहे तो आप यहाँ से त्रिशूली पर्वत, कैलवा विनायक, नंदा चोटी क्षेत्र की खूबसूरती को निहारते हुए बगजी बुग्याल, मणीयाताल, डेनगाड़, गेरुघान, टोटखरीक, द्यालखेत व लाम्ब बुग्यालों के खूबसूरत छटा का लुफ्त उठा सकते हैं.यह क्षेत्र वास्तव में देव आत्माओं का वह शांत क्षेत्र है जहाँ आप एक सुखद चिंतन के लिए अपना वक्त गुजारकर थकावट भरी वर्तमान की जिंदगी में अपने मस्तक का एंटीवायरस ढूंढकर उसमें आये वायरस को साफ़ कर फिर से तारो-ताजा हो अपनी जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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