Saturday, July 27, 2024
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क्या सचमुच जरूरी हो गया है अब भांग की खेती करना।

(पंकज सिंह मेहर की कलम से)

सरकार ने भांग की खेती के लिये नीति बनाने की बात की है, जिसका सोशल मीडिया में मजाक बनाया जा रहा है, लेकिन मैं इस बात का स्वागत करता हूं। क्योंकि भांग का पेड़ एक बहुउद्देश्यीय पेड़ है, इसके रेशे से कपड़े और जूते तक बनाये जा सकते हैं।

इसके बीज हिमालयी लोगों के लिये बहुत फायदेमंद हैं। जाड़ों में जब पाले और बर्फ की अधिकता से पहाड़ और खासतौर पर उच्च हिमालयी क्षेत्र में सब्जियां जल जाती हैं, तब कई लोग भांग के बीज को पीसकर लहसुन और अदरक के साथ बने उसके झोल पर निर्भर रहते हैं, इसके अतिरिक्त भांग के बीज में फैटी एसिड्स, ओमेगा थ्रीे प्रोटीन, विटामिन ई के साथ फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, मैग्नेशियम, सल्फर, कैल्शियम, आयरन और जिंक जैसे खनिज पदार्थ भी मौजूद होते हैं। इसके बीज बैड कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने, मेनोपाज की समस्याओं को दूर करने, एक्जिमा, पाचन तंत्र को दुरुस्त करने, अंडकोषों की सूजन, ग्लूकोमा, अल्जाईमर, कान दर्द, प्रतिरोधी तंत्र की बीमारियों, दमा, हिपेटाईटिस सी, खांसी और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव तक में सहायक है।

भांग की खेती अभी तक नारकोटिक्स में प्रतिबंधित है, इसलिये पहाड़ के इस कल्पवृक्ष की खेती भी प्रतिबंधित है, कई बार प्रशासन और ग्रामीणों में इस कारण विवाद होता रहता है। यदि इसकी खेती के लिये नीति बनेगी तो इसकी खेती पर लगा प्रतिबंध समाप्त हो जायेगा। लोग खुलकर इसकी खेती करेंगे, बीज अपने उपयोग के लिये रखेंगे, नीति बनेगी तो इसका समर्थन मूल्य भी घोषित होगा, इससे ग्रामीणों को आय भी होगी। वर्तमान में भांग के पत्तों से गांजा, गोले और चरस भी बनाई जाती है, जिसकी तस्करी हमारे प्रदेश में सबसे ज्यादा होती है।

नीति में इसका भी समावेश किया जा सकता है, पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश की तरह हम भी भांग के सरकारी ठेके खोल सकते हैं, जिससे अवैध व्यापार पर तो रोक लगेगी ही, दूसरी ओर सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होगी। भांग की खेती को नीति में लाकर उसे जनता के लिये खोला जाना चाहिये, अभी तक भांग की खेती अवैध है। मेरा लालच इतना ही है कि पुरखों द्वारा पता नहीं कहां से लाया गया इजरायल ओरिजिन का यह बीज, जो जाड़ों में पहाड़ की गरीब जनता के लिये सब्जी तथा गर्माहट देने वाली चीज है। वैध-अवैध के चक्कर में कहीं विलुप्त न हो जाय और अमेरिका ने इसे ग्रांट कर दिया है, हम भविष्य में इसे वहां से आयात करने को मजबूर न हों, जब यह २० ग्राम के डब्बों में आयेगा।

हमें यह भी सोचना होगा कि भांग के बीज का इस्तेमाल पहाड़ों में सदियों से हो रहा है, इसके अन्य उपयोग भी हैं, लोग नशे के लिये इसकी पत्तियों को मलकर चरस बनाते हैं और पत्तियों के चूरे से गांजा, अभी यह सब नशे के आदियों को अवैध मिल रहा है, जिससे तस्करी बढ रही है, नेपाल से भी चरस आ रही है। सरकार इसके लिये भांग के सरकारी ठेका खोले, परिष्कृत रुप से भांग बिके, उ०प्र० में भांग के सरकारी ठेके आज भी चल रहे हैं। जब शराब के लिये सारी नीतियां बदली जा सकती हैं, तो पहाड़ के पारम्परिक एक मसाले को आप सिर्फ इसलिये मार देना चाहते हैं कि इसका कोई नशे में भी प्रयोग कर सकता है, फिर तो आपको गन्ना, अंगूर, माल्टा, जौ को प्रतिबंधित कर देना चाहिये, क्योंकि इन सबसे शराब बनती है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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