(मनोज इष्टवाल)
यह विश्व का शायद पहला ऐसा अनोखा अनूठा मन्दिर है जो सिर्फ कुंवारी कन्याओं की पुकार पर ही एक दिन के लिए पूरे साल में खुलता है। सूर्यास्त होते ही इसके कपाट बंद किये जाते हैं और यह पुनः पूरे साल के लिए बन्द हो जाता है। नाम है वंशी नारायण मन्दिर।
उत्तराखण्ड के चमोली जिले के उर्गम घाटी में जहां यह मंदिर स्थित है वहां तक पहुंचने के लिए आपको 12 किमी. पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको उर्गम घाटी के अंतिम गाँव बांसा पहुंचना होगा जहाँ से आपको लगभग 10 किमी दूरी तय कर 12000 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित प्रसिद्ध श्री वंशी नारायण मंदिर तक बांसागांव से मुल्ला तप्पड़ तक 2 किमी. , मुल्ला तप्पड़ से कुड़मुल्ला तक 1 किमी., कुड़मुला से बडजीखाल तक 2 किमी., बड़जीखाल से नक्चुना तक 2 किमी., व नक्चुना से 3 किमी. दूरी तय कर बंशीनारायण मंदिर पहुंचना होता है।
हिमालयी बुग्यालों में अवस्थित इस मंदिर तक पहुँचनेके लिए आपको खड़ी चढाई चढ़नी पड़ती है व साथ ही तीन विभिन्न पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इस पूरे मार्ग में आपको तरह तरह की बनौषधीयां विभिन्न जड़ी बूटियों, भोज पत्र के वृक्षो, सिमरु व जूनिफर के अनेक प्रजाति के झाडी नुमा वृक्षों से होकर गुजरना पड़ता है। सुमेरु जिसे यहां की आम भाषा में सिमरू कहा जाता है, में सफ़ेद व हल्का बैगनी रंग के खिलते हैं। प्रथम दृष्टा ये हिमालयी भूभाग के डेढ़ दो फिटी बुरांश की झाड़ियों के फूल दिखाई देते हैं।
संभवत: यह विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जो मात्र एक दिन के लिए रक्षाबंधन के दिन खुलता है । यहाँ कुंवारी कन्याओं के साथ ही विवाहिताएं वंशीनारायण को राखी बांधने के बाद ही भाइयों की कलाई पर स्नेह की डोर बांधेंगी। सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट एक साल के लिए फिर से बंद कर दिए जाएंगे।
नक्चुना से यहां तक लगभग तीन से साढ़े तीन चार किमी. तक पसरी मखमली बुग्याल में पहुंचने पर आपकी सारी थकान दूरी हो जाती है। आठवीं सदी की प्रसिद्ध कत्यूरी पहाड़ी शैली में बना लगभग 10 फीट ऊंचे वंशीनारायण मंदिर में भगवान की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है।
पुरातन परंपरान के अनुसार इस मंदिर के पुजारी राजपूत हैं। वर्तमान पुजारी कलगोठ गांव के बलवंत सिंह रावत हैं। पुजारी जी के अनुसार भगवान विष्णु द्वारा बामन अवतार धारण कर दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा। राजा बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का आग्रह किया। इस पर श्रीहरि विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए। ऐसे में पति को मुक्त कराने के देवी लक्ष्मी पाताल लोक पहुंची और राजा बलि के राखी बांधकर भगवान बिष्णु को मुक्त कराया।
किवदंतियों के अनुसार पाताल लोक से भगवान यहीं प्रकट हुए। क्षेत्रीय लोकमान्यताओं के अनुसार यहां भगवान विष्णु की मूर्ति पर राखी बांधने से स्वयं श्रीहरि कुंवारी व विवाहिताओं की रक्षा करने का वचन निभाते हैं, और अगर भूल से भी इन पुत्रियों के ससुराल में उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ का सामना करना पड़े तब श्रीहरि बिष्णु उनके हर कष्ट के निवारण हेतु दौड़े चले आते हैं व उन्हें तकलीफ देने वालों को अपने क्रोध का आभास करवाकर क्षमा याचना मंगवाते हैं। रक्षाबंधन को आसपास के दर्जनों गांवों के लोग यहां एकत्र होकर इस अद्भुत क्षण के गवाह बनते हैं।