Wednesday, December 25, 2024
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शून्य शिखर…! जहाँ गूंजती है भंवरों के ॐ शब्द के जाप से पूरी घाटी ! लिखा गया पिछली सदी का स्वर्वेद!

शून्य शिखर…! जहाँ गूंजती है भंवरों के ॐ शब्द के जाप से पूरी घाटी ! लिखा गया पिछली सदी का स्वर्वेद!

(मनोज इष्टवाल यात्रावृत्त 15/04/2023)

पार्वती उवाच:- “अरे आवजी, नहीं सास नहीं आस। नहि गिरी, नहि कविलास। सर्वत्र धुंध धुंधकार (धौं धौं कार)। तै दिन की उत्पत्ति बोली जैs।।” इस स्थान पर खड़े होकर जब आप चारों दिशाओं में नजर दौड़ाते हैं,तो लगता यही है कि क्या यहीं खड़े होकर जलमग्न पृथ्वी की पुन: संरचना की गई होगी। ऐसा लगता है कि ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से मानों यहीं मनु व उनकी पत्नी शतरूपा की उत्पत्ति की होगी! क्योंकि कहा तो यह भी जाता है कि शून्य से ही ॐ शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है। खैर यह बहुत बड़ा बिषय है इस पर उलझने की जगह आज हम आपको लिए चलते हैं वैदिक कालीन मालिनी नदी घाटी की शून्य शिखर में।

देहरादून से कोटद्वार विगत दिवस पहुंचा तो नवीन कंडवाल जी को फोन कर उनकी इच्छा जानना चाहा कि क्या वह चरक शिखर स्थित बल्ली-कांडे तक सपरिवार भ्रमण पर चलेंगे। मुझे पता था कि वैशाखी की छुट्टी पर वह घर आये होंगे लेकिन उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए अपनी अर्धांगिनी प्रणिता कंडवाल व मोहित कंडवाल को मेरे साथ इस यात्रा में शामिल होने के निर्देश दिए। मैंने प्रणिता व मोहित को भी अपना लक्ष्य नहीं बताया कि मेरा मुख्य टार्गेट आखिर है क्या? दरअसल नवीन कंडवाल ने एक माई झूपा देवी व एक साइंटिस्ट जो बाद में साधू बन गए थे उनके बारे में मुझे एक फोटो व्ह्ट्सएप्प कर जानकारी दी थी कि सतीमठ आ बसने से पूर्व ये लोग शून्य शिखर या बल्ली-कांडे गाँव क्षेत्र से कहीं सम्पर्क में थे। दरअसल साध्वी जूपा देवी को इसी क्षेत्र की बताया जाता रहा है। बहरहाल प्रणिता ने कार ड्राइविंग सीट संभाली व मोहित ने कैमरा…! यूँ भी मैंने एक बार प्रशंसा के तौर पर प्रणिता का परिचय देते हुए कह दिया था कि ये हैं हमारी पायलेट प्रणिता…! बस फिर क्या था तब से प्रणिता यही राग अलापती है कि भाई साहब ने तो मुझे ड्राईवर ही बनाकर रख दिया है अपना..!

कोटद्वार से भरत नगर- बल्ली व बल्ली से बाएं हाथ को सारी-कांडे होते हुए जब हम आगे बढे तो प्रणिता बोली- भाई साहब हम जा कहाँ रहे हैं! मैं मुस्कराया और बोला – शून्य शिखर…! मोहित के मुंह से निकला शून्य शिखर…! यह ख़ुशी मिश्रित शब्द थे जबकि प्रणिता बोली- आपने तो कहा था बल्ली तक जाना है। मैं बोला- शून्य शिखर का नाम लेता तो तुम लोग ज्यादा ताम-झाम लेकर चलते व यात्रा को प्लान करते। हो सकता था टाल भी देते कि कौन जाए इतनी चिलचिलाती धूप व गर्मी में शून्य शिखर…! फिर मैं गम्भीर होकर बोला कि मालिनी घाटी पर अब ये मत सोचिये कि मैं सिर्फ अकेला ही सारा क्रेडिट लेकर किताब छाप लूँ। आप लोग किताब के कई पन्नों में छपे मिलेंगे क्योंकि यह सब सामूहिक प्रयास ही तो है। प्रणिता बोली- अरे लेकिन आपको बताना तो था। मैं और अधिक खाना बनाकर लाती। खैर यह सब प्रसंगवश लिखना आवश्यक था क्योंकि मैं अचानक ही अपने दो सहयोगियों को लेकर इस यात्रा पर निकल गया था।

शून्य शिखर-

कांडे गाँव की सरहद पर जहाँ सड़क ख़त्म हो जाती है वहीँ से जंगल के मध्य एक उतुंग शिखर पर एक विशाल महलनुमा आकृति दिखाई देती है जो महल ण होकर शून्य शिखर आश्रम है। यहाँ से हमें शून्य शिखर पहुँचने के लिए ढलान उतरकर आगे बढ़ना होता है, बमुश्किल सौ कदम आगे कुछ ही एक वटवृक्ष तपस्यालीन दिखाई देता है मानों उसका सीधा सम्पर्क शून्य शिखर से हो। इसका नाम मैंने ऋषि वृक्ष रख दिया क्योंकि यह ध्यान मुद्रा में आपको भी दिखाई देगा। हमने इस ऋषि वृक्ष को प्रणाम किया और तदोपरांत प्रकृति व उसमें वास करने वाले सभी प्राणियों को नमस्कार कर उनसे अपनी यात्रा के सुखद अनुभवों को संजोने की इजाजत मांगी। यहाँ से थोड़ी सी दूरी पर आम्रवृक्ष के नीचे पेयजल टंकी के पास आम्रवृक्ष की छाँव में बैठ फरफराती हवा में प्रणिता ने कपों में चाय उड़ेली व घर से बनाए पकवान परोसे..व प्रकृति को चढ़ाकर हमने भोग का जीमण किया। यहाँ से छ: फुट्टी पैदल सडक पर हम कभी उतराई उतरते तो कभी हल्की चढ़ाई पर सांस फुलाते आगे बढ़ते। जंगल से बकरी चुगाते ग्रामीणों की आवाज व पक्षियों का कलरव हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करता रहता। लगभग सवा घंटे पैदल चलने के बाद हम शून्य शिखर आश्रम पहुंचे।

शून्य शिखर आश्रम गढ़वाल राजा के गढ़ चाणक्य कहे जाने वाले राजनीतिक सलाहकार सेनापति पुरिया नैथाणी के वंशजों की की भूमि ईड़ा मल्ला गाँव के ग्विराला तोक में अवस्थित है। जिसे ईड़ा बड़ा, ईड़ा छोटा व ईड़ा मल्ला गाँव ने घेरे में लिया है। मूलतः यह आश्रम ईड़ा मल्ला गाँव की सरहद में पड़ता है। इसी आश्रम में अध्यात्म मार्तण्ड महर्षि सदाफलदेव जी महाराज ने घनघोर जंगल की उतुंग शिखर में तपस्या कर ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया व यहीं सन 1937 में उन्होंने “स्वर्वेद” ग्रन्थ की संरचना की। इस स्थान के बारे में उन्होंने लिखा है – “शून्य शिखर की कन्दरा, योगिन कर यह धाम! सर्वत्र सिद्धि प्रदायिनी, होवे पूरण काम!!” ( स्वर्वेद ०१/०९/०६)

सुरम्य वन सम्पदा से परिपूर्ण व मनमोहक प्राकृतिक सौन्दर्य से फलीभूत यह स्थान महर्षि कालिदास के नाट्य शास्त्र अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित है साथ ही यह स्थान प्राचीन काल से हि ऋषि-महर्षियों की शरणस्थली व तपस्थली रहा है। इसी क्षेत्र ने भारतभूमि को राजा दुष्यंत व शकुंतला पुत्र चक्रवर्ती राजा भरत, अपने तपोबल से  अलग स्वर्ग बसाने वाले व राजा त्रिशंकु को सप्राण स्वर्ग भेजने वाले, गायत्री मंत्र की यहीं संरचना करने वाले महर्षि विश्वामित्र, शकुन्तला को श्राप देने वाले दुर्भाषा ऋषि, देव गुरु कश्यप ऋषि, स्वर्ग अप्सरा मेनका को आश्रय दिया है। वैदिक काल अर्थात नालंदा विश्वविद्यालय से कई हजार बर्ष पूर्व वैदिक विश्वविद्यालय में 10 हजार राजकुंवर व ऋषि पुत्रों को शिक्षा दीक्षा देने वाले कण्व ऋषि का आश्रम था।

यों तो यही मालिनी नदी घाटी क्षेत्र सप्तऋषि मंडप का स्थापना क्षेत्र व चक्रवर्ती राजा भरत का जन्मस्थान कहलाता है। यहाँ विभिन्न वेद पुराणों की संरचना भी समय समय पर होती रही जिसका संदर्भ विभिन्न धर्मग्रंथों में मिलता रहा है। चक्रवर्ती राजा भरत का भरतबर्ष नौ भूखंडो में वर्णित है। लेकिन यह सत्य है कि भरत का जन्म इसी क्षेत्र में हुआहै व चक्रवर्ती राजा भरत व उसके राज्य भरतबर्ष सम्बन्धी उल्लेख विष्णु पुराण।।अध्याय-2, मत्स्य पुराण अध्याय ११३, वायु पुराण अध्याय ३४, वराह पुराण अध्याय ७५, भागवत वी अध्याय १६, गरुड़ पुराण भाग-१ अध्याय ५४, ब्रह्म पुराण अध्याय १८, महाभारत भीष्म पर्व अध्याय ६, हरिवंश कुर्म पुराणअध्याय ४५, मार्कन्डेय पुराण अध्याय ५४, अग्नि पुराण अध्याय ११९, शिब पुराण धर्म संहिता अध्याय ३३, देवी भागवत अध्याय ४, पद्म पुराण स्वर्ग भाग अध्याय २ सहित विभिन्न धर्मग्रंथों व एतिहासिक पुस्तकों में पढने को मिल जाएगा।

शून्य शिखर को स्थानीय भाषा में ग्वीराला डांडा कहा जाता है। इस शिखर के घनघोर जंगल में हिंसक वन्य प्राणियों का वास था, जहाँ अपने एकांतवास के दौरान एक छोटी सी गुफा में अध्यात्म मार्तण्ड महर्षि सदाफलदेव जी महाराज ने बर्षों तपस्या की। यह स्थान मूलतः योगिनियों का निवास स्थल माना जाता है, जहाँ अप्रत्यक्ष रूप से बहुत सी एड़ी, आंछरी, बणद्यो, परियां, अप्सराएं निवास करती हैं! इसी गुफा में बैठ सदाफलदेव जी महाराज ने विगत सदी का “स्वर्वेद” ग्रन्थ लिखा व उन्हीं के प्रताप से आज उत्तरप्रदेश के काशी स्थित ‘स्वर्वेद महामंदिर धाम’ व उत्तराखंड में शून्य शिखर आश्रम व मंदिर की महत्तता पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है।

विगत 14दिसम्बर 2021 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल श्रीमति आनंदीबेन पटेल व उत्तर प्रदेश के उर्जावान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी स्थित ‘स्वर्वेद महामंदिर धाम’ पहुंचकर धाम का आलोकन किया व साथ ही शून्य शिखर स्थित सदाफलदेवजी महाराज की तपस्थली का दृश्यावलोकन किया। इस अवसर पर प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि- “यह स्वर्वेद महामंदिर धाम न सिर्फ काशी के लिए बल्कि हिन्दुस्तान के लिए एक बहुत बड़ा नजराना बन जाएगा।”

स्वर्वेद रचनास्थल शून्य शिखर आश्रम के बारे में प्रधानमन्त्री मोदी की जानने की प्रबल इच्छा ने इस आश्रम की महत्तता को आम जन के बीच लोकप्रिय बना दिया है। यह स्थान यकीनन ध्यान, योग, जप, तप के लिए मैदानी भूभाग के निकट अवस्थित वैदिक कालीन कण्वाश्रम व मालिनी नदी घाटी का सबसे मुफीद स्थान कहा जा सकता है।

मधुमक्खियाँ (भंवरें) यहीं करती हैं ॐ का जाप।

शून्य शिखर आश्रम के चारों ओर बेहद बेशकीमती जड़ी बूटियों का खजाना है, क्योंकि यह श्रेणी चरक ऋषि की तपोस्थली भी कही जाती है व यहीं बैठकर महर्षि चरक ने आयुर्वेद का बेशकीमती ग्रन्थ “चरक संहिता” लिखी थी व इसी पर्वत श्रृंखला से हजारों बेशकीमती जड़ी बूटियाँ ढूंढी थी, जिसमें कश्यप ऋषि के द्वारा शकुन्तला पुत्र भरत (रिपुदमन) की बांह में बंधी अपराजिता नामक बूटी भी शामिल है।

शून्य शिखर आश्रम से बमुश्किल 300 मीटर पहले पानी के स्रोत के पास ही ईडा मल्ला गाँव के कुछ आवास हैं, जिसके आस पास का वातावरण आपको सम्मोहित कर देता है। यहाँ हवाओं के साथ आपको तरह तरह की भीनी-भीनी महक इस बसंत ऋतु के दौरान महसूस होती है, बहुत से वन्य पुष्प व हिंसर वृक्षों के आस-पास मधुमक्खियाँ मंडराती दिखाई देंगी जिनके गुंजन से उभरते संगीतमय स्वर में आपके कानों में ॐ ॐ ॐ का जाप सुनाई देता है।

शून्य शिखर में रहने ठहरने की व्यवस्था।

यों तो शून्य शिखर आश्रम काफी बड़ा है व यहाँ लगभग एक दर्जन सेवादार भी रहते हैं लेकिन यहाँ ठहरने के लिए आपको अपनी व्यवस्था का खुद भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि यहाँ से भरतपुर बल्ली तक लगभग 5 से 7 किमी. की दूरी तय करनी होती है, जहाँ छोटी बड़ी जरूरतों का सामान मिलता है। इस आश्रम में ठहरने के लिए काशी स्थित स्वर्वेद धाम से इजाजत लेनी पड़ती है जिसके लिए यहाँ के सेवादार स्वयं फोन कर आपकी व्यवस्थाओं के लिए स्वीकृति लेते हैं अन्यथा आपको शून्य शिखर की साईट पर जाकर स्वयं यहाँ ठहरने के लिए इजाजत लेनी पड़ती है। मेरा भी यही मानना है कि आप शून्य शिखर में ठहरेंगे तो आपका चित्त शांत व सौम्य स्वयं ही हो जाएगा क्योंकि यहाँ रोज होते होम व यज्ञ स्वयं ही आपके मनोमस्तिष्क की तन्द्राओं में ऋषित्व उत्पन्न कर देता है। यहाँ उसी प्रवृत्ति के लोग जाएँ जो ध्यान, योग, जप, तप व ज्ञान के माध्यम से स्वयं का आत्मबिश्लेषण कर सकें. यहाँ वह भी जाएँ जो नितांत जीवन से हार मान चुके हों या जिनका ऊर्जापुंज समाप्त हो गया हो। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब भी वह शून्य शिखर से वापस लौटेंगे उनके अंदर एक अदृश्य ऊर्जापुंज स्वयं संचालित हो जाएगा। बस इस धाम में नियम व संयम ही शांत प्रकृति का अमृत घोलेगी। ऐसा मेरा मानना है।

कैसे पहुंचे शून्य शिखर….  !

आप देश विदेश के किसी भी कोने से उत्तराखंड के कण्व नगरी कोटद्वार बस व रेल से पहुँच सकते हैं। यहाँ से आप निजी वाहन या टैक्सी से भरत नगर (उतिर्छा) -बल्ली -कांडे गाँव तक बमुश्किल 30 किमी. की सड़क यात्रा व 02 किमी पैदल यात्रा कर पहुँच सकते हैं। जो ट्रैकिंग के शौक़ीन हैं व जिन्हें वाइल्ड लाइफ ट्रैकिंग पसंद है, वे वैदिक गुरुकुल आश्रम महाविद्यालय कण्वाश्रम व सतीमठ से भी ट्रैक कर सकते हैं! वैदिक गुरुकुल आश्रम महाविद्यालय कण्वाश्रम के सर्वेसर्वा डॉ. योगिराज स्वामी विश्वपाल जयंत सरस्वती जी महाराज व उनके शिष्य भी अक्सर इसी जंगल मार्ग से ट्रैक करके शून्य शिखर पहुँचते हैं। इस जंगल मार्ग में आज भी आपको ब्रिटिश काल के कुख्यात डकैत सुल्ताना भांडू के कई चिन्ह मिल जायेगे जिनमें चक्कियां व उनके पाट भी मौजूद हैं! शून्य शिखर का सूर्योदय व सूर्यास्त हृदय को प्रफुलित ही नहीं करता बल्कि यह देखना बेहद दर्शनीय व अप्रितम है।

शून्य शिखर के बारे में स्वर्वेद में लिखा गया है कि- “शोभा अकथ अवाच्य है, श्वेत ध्वजा फहराए, द्वारे नौबत बाजती, शून्य शिखर घहराव!” (स्वर्वेद ०४/११/२३)

 

 

 

 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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