Monday, July 14, 2025
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पुराने टिहरी में टिहरी राज भवन प्रवेश द्वार में  काष्ठ  कला ।

पुराने टिहरी में टिहरी राज भवन प्रवेश द्वार में पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ  कला , अलकंरण , उत्कीर्णन , अंकन

Traditional House Wood Carving Art of Tehri  Palace  door  , old Tehri

  गढ़वाल, कुमाऊँ,  भवनों   (तिबारी, जंगलेदार निमदारी , बाखली, खोली, मोरी, कोटिबनाल  ) में  पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ  कला , अलकंरण , उत्कीर्णन , अंकन,  415

( लेख में ईरानी , इराकी , अरबी की वर्जना हुयी है। )

संकलन – भीष्म कुकरेती  

प्रसिद्ध पत्रकार मनोज इष्टवाल ने अपनी यात्राओं में गढ़वाल कुमाऊं ही नहीं नेपाल के भवनों व राजमहलों  की भवन कला पर शोध ही नहीं किया अपितु इस कला को आम जन तक भी सुगमता से पंहुचाया।  आज गढ़वाल के भवनों में पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ  कला , अलकंरण , उत्कीर्णन , अंकन, कड़ी में मनोज इष्टवाल द्वारा  दी गयी सूचना आधार पर पुराने टिहरी राज प्रासाद के प्रवेश द्वार में पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ  कला, अलकंरण , उत्कीर्णन , अंकन, पर चर्चा होगी।

 मनोज इष्टवाल की इस टिहरी राज प्रासाद की सूचना कई कारणों व उद्देश्यों हेतु महत्वपूर्ण सूचना है।   प्रासाद भवन दीवार  संरचना (काष्ठ कड़ी व पत्थर )  पारम्परिक जौनसार भवनों  की कोटि बनाल शैली से शत प्रतिशत मिलती है।  दीवार की संरचना कुछ-कुछ खल नागराजाधार के स्व बनवारी लाल भट्ट  के भवन (निर्माण वर्ष 1887) से मिलती जुलती है।  अर्थात सन 1815 से  1900 तक  गढ़वाल भवन निर्माण शैली बीसवीं  सदी से भिन्न अवश्य थी।  टिहरी प्रासाद का प्रस्तुत भवन एक कड़ी है जो भविष्य में गढ़वाल में भवन शैली हेतु भी महत्वपूर्ण है।

इस  पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ  कला, अलकंरण , उत्कीर्णन , अंकन  श्रृंखला  की दृष्टि से टिहरी प्रास के प्रवेश द्वार में अभिनव काष्ठ कला भी महत्वपूर्ण है जो द्योतक है कि  गढ़वाल में क्योंकर खोली  का गढ़वाल में   अत्यंत महत्वपूर्ण है। टिहरी प्रासाद का प्रवेश द्वार में काश्त कला भी द्योत्तक है कि टिहरी नरेश खोली में गणेश आगमन को महत्व देते थे जैसे बद्रीनाथ मंदिरों को महत्व देते थे।

प्रासाद के द्वारों में  दोनों ओर मुख्य  सिंगाड़ /स्तम्भ  तीन तीन उप स्तम्भों के युग्म से निर्मित हुए है और बहुत ही शक्ति शाली हैं। दो उप स्तम्भ हैं तीसरे उप स्तम्भ से कटान व काष्ठ कला उत्कीर्णन में भीं हैं।  तीनों उप स्तम्भ ऊपर जाकर प्रवेश द्वार के मुरिन्ड /मथिण्ड /header का निम्न स्तर निर्माण करते दीखते हैं।  बाहर के दो उप स्तम्भों में सर्पाकार गुंथी लताएं , चुटिया /धपेली  नुमा प्राकृतिक  कला अंकन हुआ है।  आंतरिक स्तम्भ   सपाट ज्यामितीय कटान का सक्षम उदाहरण है। इन आंतरिक सपाट  उप स्तम्भों के ऊपर मुरिन्ड का निम्न भाग है व इस शक्तिशाली पटिले पर पुष्प , लता , पत्तियों , ॐ आदि का मिश्रित आकषक काष्ठ कला उत्कीर्ण हुयी है।  अब तक के भवन सर्वेक्षणों में गढ़वाल में इस प्रकार का कला उत्कीर्णन अवश्य मिला है किन्तु टिहरी प्रास के प्रवेश द्वार के मुरिन्ड /header के निम्न स्तर में यह उत्कीर्र्ण उतकृहत उदाहरण है।  कलाकारों /शिल्पकारों को नमन।

मुरिन्ड के दो स्तर   में उप स्तम्भों की  कला का प्रति रुपण हुआ है किन्तु मध्य में आयातकार  काष्ठ गट्टे बिठाये गए हैं व नीचे स्तर में चारपाई के आधार के पाए जैसी आकृति   बिठाई गयी हैं।

 टिहरी राज प्रासाद के प्रवेश द्वार के मुरिन्ड के दाहिने व बायीं ओर  एक एक विशेष  काष्ठ दीवालगीर  स्थापित है। यह दीवालगीर पर्तीकात्मक है जिसका प्रयोजन  इष्ट देवता को प्रसन्न करने हेतु तो है ही अपितु छल कपटियों को सूचना देने हेतु भी है कि छल कपट करोगे तो तुम्हारी खैर नहीं।  यह आकृति मुंह खोले मगरमच्छ /मगर की है जो शगुन का भी प्रतीक है।

निष्कर्ष निकलता है कि  पुराने टिहरी के राज प्रासाद की दीवारों की निर्माण शैली व द्वार  खोली  में काष्ठ  उत्कीर्णन शैली गढ़वाल के भवनों की संरचना शैली व काष्ठ कला हेतु महत्वपूर्ण है और इस छाया चित्र का प्रचार प्रसार व संरक्षण आवश्यक है जिससे भविष्य में शोधकर्ताओं को सुविधा हो।

 निष्कर्ष निकलता है कि पुराने टिहरी के राज प्रासाद के प्रवेश द्वार /खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण कला उत्कीर्ण हुए हैं।  कला भव्य है।

  सूचना व फोटो आभार:उत्तरभारत व नेपाल प्रसिद्ध पत्रकार  मनोज इष्टवाल   

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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