Sunday, October 20, 2024
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आश्चर्यजनक…! ऑर्थो सर्जिकल चिकित्सकीय पद्धत्ति के लिए चुनौती हैं मालन लताएँ! जो टुकड़ों में विभक्त मांस पिंड व टूटी हड्डी को जोड़ लेती हैं!

आश्चर्यजनक…! ऑर्थो सर्जिकल चिकित्सकीय पद्धत्ति के लिए चुनौती हैं मालन लताएँ! जो टुकड़ों में विभक्त मांस पिंड व टूटी हड्डी को जोड़ लेती हैं!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 19 मार्च 2020)

हिमालय दिग्दर्शन यात्रा 2020। ढाकर शोध यात्रा….!

तब बुद्धि यकीनन आज से तीन गुना तीव्र थी लेकिन उसमें ठहराव नहीं था! यह बात में बर्ष 1994 की कर रहा हूँ जब मालन क्षेत्र के बिस्तर काटल में मैंने बकरे का कटा मांस कुछ पत्तों में लपेटकर रखा और कोटद्वार लौट आया था! यह आश्चर्यजनक था कि वह अलग-अलग टुकड़ों में बंटा मांस व हड्डियां आपस में जुड़कर एक पिंड बन गयी थी! मैं दूसरे दिन इस दिव्य पत्ते को ढूँढने फिर बिस्तर काटल क्षेत्र ही नहीं रतनाल, सिगड्डी होता हुआ पापी डांडा भी उस पेड़ की तलाश में गया! जब नहीं मिला तो कण्वाश्रम, लछ्मपुर, किशनपुरी, सिगड्डी क्षेत्र के कई लोगों से पूछा भी कि आखिर वह कैसे पत्ते थे जिन्होंने ये चमत्कार किया! सबने मेरी मजाक ही उड़ाई!

मालन लता व बेलों के साथ फोटो-हिमांशु बिष्ट/अमित सजवाण

आज 19 मार्च 2020 अर्थात लगभग 26 बर्ष बाद वह सच सामने आ ही गया जब हम हेमकूट पर्वत शिखर की तलहटी में बहती मालिनी नदी के छोर मयड़ा/महेड़ा व मांडई भ्रमण में मिली जानकारियों में खुलासा हुआ! यूँ तो अधिवक्ता अमित सजवाण जी ने पहले ही जानकारी दे दी थी लेकिन मैं जब तक उन मालन लताओं व उसके पत्तों को नहीं देख लेता तब तक सत्यता भला कैसे महसूस कर सकता था!

मयडा/महेड़ा गाँव के रेवत अली, गुलासुगाड़ के घनश्याम सिंह व अर्जुन सिंह, किमसेरा के सुमन चंद कुकरेती व सौंटियाल धार के मोहम्मद यासीम ने भी इस दावे को पुख्ता किया कि मालन की बेल लताओं से मांस के टुकड़े पिंड में तब्दील हो जाते हैं व टूटी हड्डियां जुड़ जाती हैं! इसका बर्णन कहाँ- कहाँ धर्म ग्रन्थों में व शास्त्रों में मिलता है इसकी पड़ताल करनी भी आवश्यक हो जाती है! इसलिए मैंने कोटद्वार में रह रहे अपने अधिवक्ता मित्र अमित सजवाण को याद दिलाया कि वे भी कह रहे थे कि लेखक अनुसूया प्रसाद काला की पुस्तक “ऋषि-मुनियों की तपोभूमि उत्तराखंड” में भी इस का जिक्र है!

मालिनी नदी घाटी।

आइये थोड़ा बहुत इस मालन लता के बारे में भी पढ़ लेते हैं! अभिज्ञान शाकुंतलम में महाकवि कालिदास ने किमसेरा क्षेत्र व मालिनी का वृहद बर्णन किया है! यह क्षेत्र 5000 बर्ष पूर्व जहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों की तपस्थली रहा है वहीँ यहाँ अनेकों बनोषधियों का अकूत भंडार बताया जाता है! विकास खंड दुगड्डा का यह क्षेत्र चम्या और चंडा के मध्य अवस्थित है! अभिज्ञान शाकुंतलम में एक श्लोक में “मालिनी जननीमिवाधितिष्टाम”!” कहा गया है! जिसके शाब्दिक भावार्थ है कि मालिनी घाटी या मालिनी नदी क्षेत्र यहाँ के वासियों की जननी है! भगवत पुराण में इसी मालिनी तट का शानदार बर्णन देखने को कुछ इस तरह मिलता है:- “समास्त्रीनवसाsत्रिदिक्षु चक्रमवतर यत:!!”
मालिनी के इसी तट पर राजा भरत का जन्म हुआ जिन्होंने समस्त वसुधा और दिशाओं पर 270000 बर्ष तक एक क्षत्र राज्य किया!

मालिनी की बेल को शास्त्रों व धर्म-पुराण भी औषधीय पादप मानते हैं! यह बेहद विलक्षण है क्योंकि यह अन्य बेलों की अपेक्षा बाएं से दाहिनी ओर लिपटती हुई आगे बढती हैं जबकि अन्य बेले दाहिनी और से बांयी ओर लिपटती हुई आगे बढती हैं! इसकी बेल का रंग भूरा व हल्का सफ़ेद होता है! इसकी बेल पर मूलतः तीन पत्ते लगते हैं! इसके पत्तों में जाने ऐसी क्या औषधीय बिशेषता है कि इससे गहरे जख्म भर जाते हैं! टूटी हड्डियां जुड़ जाती हैं व फटा हुआ, कटा छिला मांस भी जुड़ जाता है! इन पत्तों को पीसकर या यूँहीं बांधकर लगाने से भी यह किसी प्रोफेशनल डॉक्टर की सर्जरी से भी ज्यादा खूबसूरती से घाव भरता है व हड्डी जोड़ता है!
मालिनी तट पर यह औषधीय वृक्ष यदाकदा कई स्थानों पर दिखाई देते हैं लेकिन जुड्डा-रौडियाल क्षेत्र, कण्व ऋषि क्षेत्र के “खाल” नामक स्थानों पर यह दिखाई देते हैं! इसके अलावा भी इस क्षेत्र में हजारों-हजार औषधीय पादपों का बर्णन मिलता है! अभिज्ञान शाकुंतलम में इन्हीं पादपों का कुछ यों बर्णन पढने को मिलता है:-
“दर्भाडकुरेण: चरण: क्षत इत्यखांडेतन्वी स्थिता: कतिचिदेव पदानि गत्वा!
आसीद्वीवृत्तवदना च विमोचयंती शाखासु वल्कलम असक्तं अपि द्रुमाणाम!!”

सुप्रसिद्ध लेखक अनुसूया प्रसाद काला की पुस्तक “ऋषि-मुनियों की तपोभूमि उत्तराखंड” में भी इस क्षेत्र का व्यापक बर्णन सुनने व पढने को मिलता है! उन्होंने यहाँ के कई औषधीय पादपों में मालिनी लता को बिशेष तबज्जो दी है! इसके अलावा उन्होंने महाकवि कालिदास की भाँति हेमकूट त्रिकुट पर्वत शिखरों में पाई जाने वाली कई औषधीय पादपों का जिक्र भी किया है जिनमें कुश, मालिनी, अपराजिता, वनज्योत्सना, माधवी लता, इंगुदी सहित दर्जनों वन वृक्ष हैं। कण्वाश्रम में ऋषि कण्व ने शकुन्तला की विदाई पर इन्हीं वृक्षों से उसके लिए श्रृंगार हेतु आभूषण मांगें थे! कहा जाता है कि ये सभी हजारों बर्ष पूर्व वन देवियाँ हुआ करती थी जो वर्तमान में वृक्ष के रूप में परिवर्तित होकर मानव कल्याण कर रही हैं।

कहा जाता है कि महाबगढ़ स्थित मरीचि आश्रम में “अपराजिता” नामक औषधीय पादप चक्रवर्ती भरत की बांह में बंधा हुआ रहता था जिसके कारण उन्होंने 27000 बर्ष तक एक छत्र राज्य किया! वहीँ माधवी लता शकुन्तला को सबसे ज्यादा प्यारी थी! यह लता मैंने नब्बे के दशक में कोटद्वार स्थित जौनपुर में डॉ. शास्त्री के आवास पर देखी थी जो संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे व तब कण्वाश्रम पर शोधरत थे!

अनुसूया प्रसाद काला ने अपनी पुस्तक “ऋषि-मुनियों की तपोभूमि उत्तराखंड” पृष्ठ संख्या 40 में इस सन्दर्भ में व्यापक बर्णन मिलता है! काला लिखते हैं कि “इस नदी के किनारे व आस-पास के वनों में मालिन की बेल बहुतायत मात्रा में मिलती है! यह एक औषधीय पौधा है! हमने अपने पूर्वजों से सूना था कि मालिनी की बेल होती है और वह पेड़ पर बाएं से दाहिनी ओर लिपटती है! जिसके औषधीय गुणों के बारे में बताया जाता है कि गहरे से गहरे घाव हो या टूटी हड्डी हो, इसकी पत्तियों को पीसकर लेप कर देने से या पत्तियों को लपेटकर बाँध देने से घाव तुरंत ठीक हो जाता है और हड्डी जुड़ जाती है!”

अनुसूया प्रसाद काला विगत सदी के सहत्तर के दशक के वाकिये का बर्णन करते हुए लिखते हैं कि इन दिनों यहाँ पेड़ों की नीलामी हुई थी! ट्रक का खलासी ट्रक की छत्त से नीचे गिर गया और ट्रक पर रस्सी बाँधने वाला हुक उसका बाजू गहराई तक चीरता हुआ ले गया मानों चाक़ू से गहरा जख्म दिया गया हो! उस दौरान कोटद्वार के अलावा कहीं डॉक्टर नहीं था! तब बिजनु गाँव के ईश्वरी दत्त मंजेडा ने मालिनी की लता की छाल पीसकर घांव में भरकर पट्टी बाँध दी थी जिससे रक्त बांध हो गया! खलासी जब कोटद्वार डॉक्टर के पास पहुंचा तब तक इतना गहरा जख्म पूरी तरह भर गया था व घाव ठीक हो गया था!

यह यकीनन आश्चर्य में डालने वाली घटना है! वर्तमान में यकीनन यह वृक्ष साइंस के लिए चुनौती है व सर्जन डॉक्टर्स के लिए बेमिशाल औषधी! काश…कि प्रदेश सरकार इस औषधीय पादप की टेस्टिंग करवाकर इसे जनहित औषधी के रूप में प्रयोग में लाती!
यह हमारा सौभाग्य है कि हमने भी मालिनी लता वृक्षों को अपनी आँखों से देखा है! शुक्रिया अमित सजवाण जी…! आप हमें ठीक जुड्डा रौडियाल के उसी जंगल में ले गए जो पौखाल सडक मार्ग पर अवस्थित है!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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