क्यों स्थानीय लोग नहीं पिया करते थे/हैं इसका जल..?
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग नंदा राज जात 2013)
(बात अचम्भित करने वाली है, क्योंकि आज अचानक नंदा देवी राज जात 2013 के दौरान लिखी डायरी के पन्ने पलट रहा था कि देखा नंदाकिनी नदी के जल पर मैंने बहुत ही सूक्ष्म कोई नोटिंग लिखी हुई है। उस नोटिंग को पढ़ा तो लगा आप सभी से इस बात को शेयर करना चाहिए। )
माँ नंदा के मायके के क्षेत्र में बहने वाली नदी नंदाकिनी के बारे में क्षेत्रीय विद्वानों व पंडितों ने जो जानकारी दी थी कि नंदाकिनी नदी का उदगम रूपकुंड से होने के कारण इस नदी के पानी को आज भी सूतक समझा जाता है, क्योंकि रूपकुंड में आज भी हजारों-हजार नरकंकाल पड़े हैं व राजा यशधवल की पत्नी व माँ नंदा की बहन बल्लभा का यात्रा के दौरान गंगतोली गुफ़ा में प्रसव होना माना गया है जिसे वर्तमान में बल्लभा स्वीलडा के नाम से पुकारा जाता है। कहते हैं प्रसव के दौरान जिस घास के बिछौने को इस्तेमाल किया गया, उसे तत्कालीन समय में यहीं रूपकुंड के समीप से नंदाकिनी नदी में बहा दिया गया था। यही कारण है कि तब से नंदाकिनी के जल से न आचमन होता है, न यह जल किसी मंदिर में चढ़ाया जाता है, और न ही यह किसी देवकार्य में इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय लोगों का तो यह भी कहना है कि अधिकतर क्षेत्रवासी इस जल को पीने के पानी के रूप में भी इस्तेमाल में नहीं लाते।
(रूपकुंड से निकलती नंदाकिनी नदी की परिकल्पना)
यह कितनी बड़ी बिडम्बना की बात है कि नंदाकिनी नदी के अलकनंदा में मिलते ही इसका जल पवित्र हो जाता है लेकिन इसे जब और जहाँ तक नंदाकिनी अस्तित्व में है, वहां तक परित्याज्ञ माना गया है, जबकि आज पूरी नंदाकिनी में जाने कितनी लाशें बहकर आती हैं। जाने कितने शहरों के मलद्वार नदी में खुलते हैं! जाने कितने प्रसवों के कपडे बहाए जाते हैं! कितनी चिताएं जलाई जाती हैं! प्रदूषित होती गंगा आज भी जीवनदायिनी माँ गंगे है। एक समय था कि इसकी पवित्रता को लेकर समाज बेहद गम्भीर था,अगर ऐसा नहीं होता तो नंदाकिनी के इतिहास में ये अध्याय न जुड़ा होता।



