Wednesday, December 4, 2024
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दाल की खेती क्यों घटी?

दाल की खेती के इलाके अगर सिकुड़ रहे हैं, तो यह सवाल बहुत गंभीर हो जाता है। यह और भी चिंताजनक कि जिन किसानों को पहले बाजार से दाल नहीं खरीदनी पड़ती थी, वे भी अब ऐसा करने पर मजबूर हैं। यह खबर चिंताजनक है कि बीते साल के मुकाबले भारत में धान और अरहर की खेती वाले इलाके इस साल घट गए हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक धान की खेती वाले इलाके 34 फीसदी और अरहर की खेती वाले इलाके 65 फीसदी कम हो गए हैं। खरीफ के सीजन में सोयाबीन की खेती वाले इलाके भी बीते साल के मुकाबले 34 फीसदी घट गए। यहां यह बात ध्यान में रखने की है कि दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक तीनों है। यानी भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। ऐसी हालत में दाल की खेती के इलाके अगर सिकुड़ रहे हैं, तो यह सवाल बहुत गंभीर हो जाता है। यह और भी चिंताजनक कि जिन किसानों को पहले बाजार से दाल नहीं खरीदनी पड़ती थी, वे भी अब ऐसा करने पर मजबूर हैं। यह हालत क्यों पैदा हुई?

वजह यह है कि किसानों को अब दाल की खेती करना फायदेमंद नहीं लगता। महाराष्ट्र जैसे दाल उत्पादक राज्य में अब रबी और खरीफ के सीजन के बीच के समय में उगाई जाने वाली मूंग और उड़द की जगह सोयाबीन ने ले ली है। जबकि अरहर की खेती वाले इलाकों क्षेत्र में दशकों से विस्तार नहीं हुआ है। जाहिर है, सोयाबीन का बेहतर भाव और तत्काल नकदी मिलने से किसानों में इसकी खेती के प्रति आकर्षण बढ़ा है। किसानों ने मीडियाकर्मियों को बताया है कि सोयाबीन की फसल सिर्फ 110 दिन में तैयार हो जाती है। उपज भी प्रति एकड़ 7-8 क्विंटल तक होती है। लेकिन अरहर की फसल 152 से 183 दिनों में तैयार होती है और उपज औसतन तीन क्विंटल प्रति एकड़ तक ही रहती है। लेकिन दालों का संबंध खाद्य सुरक्षा और लोगों को प्रोटीन उपलब्ध कराने से है। इसलिए सरकार को इस समस्या की तरफ ध्यान देना चाहिए। फिलहाल, सूचना यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर जैसे पांच दलहन शामिल हैं, लेकिन, अक्सर किसानों को यह मूल्य नहीं मिलता। इस ट्रेंड को तुरंत पलटे जाने की जरूरत है, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में ना पड़े।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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