भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में दिक्कत है कि पार्टी आलाकमान को किसी पर भरोसा ही नहीं है। कांग्रेस के पास आरएसएस जैसी कोई ताकत नहीं है, जिसके प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव की वजह से भाजपा के नेता बगावत नहीं करते हैं और करते हैं तो कामयाब नहीं हो पाते हैं। तभी भाजपा में पार्टी का आलाकमान किसी को भी अध्यक्ष बना कर कमान अपने हाथ में रख पाता है। सोनिया और राहुल गांधी के साथ मुश्किल यह है कि उनके पास ऐसे नेता की कमी है, जिसको अध्यक्ष बना दें तो 24 घंटे राजनीति करे, नेताओं से मिले, मीडिया से बात करे और जो निर्देश दिया जाए उस पर अमल कर दे या करा दे।
मुश्किल यह है कि कांग्रेस में जिसे अध्यक्ष बनाया जाता है उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ जाती है। सीताराम केसरी भी प्रधानमंत्री बनने की प्लानिंग करने लगे थे। नरसिंह राव ने तो नेहरू-गांधी परिवार को करीब करीब निपटा ही दिया था। तभी कांग्रेस आलाकमान का किसी पर भरोसा नहीं बनता है। अन्यथा कांग्रेस के पास दिग्विजय सिंह हैं, जिनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। अशोक गहलोत, मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खडग़े, गुलाम नबी आजाद, डीके शिवकुमार, पी चिदंबरम जैसे अनेक नेता हैं, जिनको अध्यक्ष बना कर सोनिया-राहुल अपनी राजनीति कर सकते हैं।
अगर किसी बड़े अखिल भारतीय कद के नेता को अध्यक्ष नहीं बनाना है तब भाजपा के मॉडल पर काम हो सकता है। महाराष्ट्र एक एमएलसी थे नितिन गडकरी, जब उनको अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय महाराष्ट्र से बाहर शायद ही कोई उनको जानता था। इसी तरह जेपी नड्डा अध्यक्ष बनने से थोड़े दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश की राजनीति से दिल्ली लाए गए थे। जना कृष्णमूर्ति, बंगारू लक्ष्मण आदि के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। सो, कांग्रेस चाहे तो ऐसा ही कोई नेता किसी प्रदेश से ला सकती है और अध्यक्ष बना कर एआईसीसी मुख्यालय में बैठा सकती है।