(मनोज इष्टवाल)
जिस सनातन धर्म की रक्षा के लिए आज से हजारों-हजार बर्ष पूर्व इस भारत भूमि की माटी के ऋषि मुनियों ने अनेकों शोध करके हमें स्वास्थ्य व आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व गुरु बनाया था, आज उसी की माटी में जन्में उसी सनातन धर्म के लोभी, पाखंडी, तथाकथित बुद्धिजीवी, धनलोलुप राजनेता, अफसरान आयुर्वेद को मिट्टी में मिलाने का यत्न करने पर जी जान लगाये हुए हैं।
जिस आयुर्वेद ने युगों तक पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया वही आयुर्वेद व उसके डॉक्टर्स को अपने देश के राजनेताओं ने व सरकारों ने दोयम दर्जे पर लाकर खड़ा कर दिया। शायद वह भूल गए कि चरक संहिता, भृगु संहिता, धन्वंतरि, सुश्रुतसंहिता, पतंजलि, चक्रपाणि, चिकित्सा चंद्रोदय सहित दर्जनों ऐसी पुस्तकें हैं जिनकी रचना 5000 बर्ष पूर्व से लेकर 1100 बर्ष पूर्व तक हुई है।
अब ऐलोपैथ के जन्मदाताओं जातियों का जन्म ही जब 1700 साल से ज्यादा पुराना नहीं है तो भला वह आयुर्वेद को क्या जाने। नेस्ले प्रोडक्ट के बीच आयुर्वेद का जिक्र करना मैं अपना ही नहीं अपने देश का गौरव व लेख का स्वाभिमान भी समझता हूं। आइये अब मूल पर चर्चा करते हैं।
भारतीय चिकित्सा की रीढ़ कहे जाने वाले आयुर्वेद की कमर तोड़ने के लिए विगत दिनों एक विदेशी मूल से चली आ रही संस्था ने बाबा रामदेव के ऐलोपैथ के एक बयान पर उन पर 1000 करोड़ की मानहानि का दावा ठोकने की धमकी दे डाली थी, यह वह गैरसरकारी संस्थान है जिसकी दादागिरी चिकित्सा के विभिन्न क्षेत्रों में सेवाओं के लिए बांटे जाने वाले प्रमाणपत्रों से लेकर विभिन्न मापकों व मानकों पर चलती आ रही है।
पतंजलि से पहले आयुर्वेद को अक्सर यही लोग बेचारा आयुर्वेद की श्रेणी में रखते थे अब जबकि बाबा ने आयुर्वेद के माध्यम से न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी करोडों का व्यवसाय शुरू कर दिया है व पतंजलि का सालाना टर्नओवर अरबों में चला गया है, तब देश के ही बहुत से बुद्धिजीवी व स्वास्थ्य के नाम पर सिर्फ धंधा करने वाले लोगों, सो कॉल्ड राजनेताओं व घूसखोर अफसरों ने बाबा को बर्षों से घेरने के कई षड्यंत्र रचे लेकिन वे नाकाम ही रहे। जब बाबा ने कोरोना काल में विगत बर्ष कोरोनिल लांच की तब भी ऐसी ही स्थिति बनी थी और आज भी लगभग पतंजलि को पुनः घेरने का प्रयास किया जा रहा है। कोरोनिल पर एक साथ कई सर्टिफिकेट ऐसे ही संस्थानों ने जारी किए व इसे बकवास प्रोडक्ट कहने के साथ बाबा से माफी मांगने को कहा गया कि उन्होंने दुष्प्रचार किया कि कोरोनिल कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए लाभप्रद है। इतना कुछ होने के बादजूद भी पंतजलि स्टोर्स पर हर हमेशा कोरोनिल की शॉर्टेज बनी रहती है व विश्व के बड़े मार्केट्स पंतजलि के प्रोडक्ट्स खरीदने में जुटे हैं। अमेरिका जैसा विस्तारवादी बड़ा बाजार व जापान जैसा देश पतंजलि के प्रोडक्ट्स के बाद आयुर्वेद की ओर तेजी से अग्रसरित हुआ है वहीं अपने देश में आये दिन बाबा रामदेव व उनके पतंजलि प्रोडक्ट्स पर हमला होता रहता है।
शुक्र मनाइए कि नेस्ले के 60 प्रतिशत प्रोडक्ट्स को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताने वाले अखबार डेली बिजनेश फाइनेंस टाइम्स हिंदुस्तान से नहीं छपता वरना अब तक सेक्युलर मानसिकता के लोग इस सब पर बबाल काटते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जोर जबरदस्ती इस प्रकरण में लपेटकर यह कहना भी शुरू कर सकते थे कि यह सब मोदी करवा रहव हैं।
नेस्ले पर क्या है रिपोर्ट।
मैगी नूडल्स, किटकैट्स, सैन पेलेग्रिनो पेय, डिगियोर्नो थ्री मीट क्रोइसैन क्रस्ट पिज्जा, नेस्कैफे सहित दर्जनों खाद्य पदार्थ बनाने नेस्ले के बारे में एक रिपोर्ट में माना है कि उसके प्रोडक्ट स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। 70 प्रतिशत फूड एंड ड्रिंक्स ‘स्वास्थ्य मानकों के पैरामीटर’ को पूरा नहीं करते हैं जबकि 60 प्रतिशत उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
वहीं दूसरी ओर नेस्ले ने भी स्वयं स्वीकारा है कि उनके 60 प्रतिशत उत्पाद स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। कंपनी की माने तो चूंकि कंपनी के 60 प्रतिशत प्रोडक्ट्स हेल्दी फ़ूड की कैटेगरी में शामिल नहीं होते इसलिए नेस्ले अब अपने प्रोडक्ट्स की न्यूट्रिशन वैल्यू बढ़ाने पर काम कर रहा है। कंपनी इस बात से सहमत है कि ये 60 प्रतिशत प्रोडक्ट्स ‘स्वास्थ्य की मान्यता प्राप्त परिभाषा’ को पूर्ण करने में विफल रहे हैं। ‘Nestle’ के केवल 37 प्रतिशत फ़ूड और बेवरेज उत्पाद ही ऐसे हैं जिन्हें 5 में से 3.5 से अधिक रेटिंग मिली है। कंपनी के अनुसार हेल्थ स्टार रेटिंग और न्यूट्री स्कोर उत्पाद के गुण के लिए अच्छे माने जाते हैं लेकिन नेस्ले के 60 प्रतिशत उत्पाद इस श्रेणी में शामिल नहीं है।
कंपनी के कुछ उत्पादों जैसे डिगियोर्नो थ्री मीट क्रोइसैन क्रस्ट पिज्जा में एक व्यक्ति के अनुशंसित दैनिक सोडियम सेवन का लगभग 40 प्रतिशत शामिल होता है जबकि अन्य जैसे हॉट पॉकेट पेपरोनी पिज्जा में 48 प्रतिशत होता है।
एक अन्य नेस्ले उत्पाद, नारंगी-स्वाद वाले सैन पेलेग्रिनो पेय, को ‘ई’ रेटिंग मिलती है, जो कि एक अलग स्कॉर्निंग सिस्टम, न्यूट्रिया-स्कोर के तहत उपलब्ध सबसे खराब निशान है. पेय में प्रति 100 मिलीलीटर में 7.1 ग्राम से अधिक चीनी होती है। नेस्ले के कई अन्य खाद्य और पेय पदार्थ हैं जिनमें चीनी या सोडियम का उच्च स्तर होता है।
ज्ञात हो कि यूके के बिजनेस डेली फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक नेस्ले कंपनी के सिर्फ 37 फीसदी फूड प्रोडक्ट्स को 3.7 रेटिंग मिली है। कंपनी के पानी और डेयरी प्रोडक्ट सही है। फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार सभी फूड में 70 फीसदी प्रोडक्ट्स मानक पर खरे नहीं उतरें है वहीं कॉफी समेत 90 फीसदी बेवरेजेज इस मानक पर खरे नहीं उतरें। नेस्ले वॉटर प्रोडक्ट्स और डेयरी प्रोडक्ट्स की रेटिंग अच्छी पाई गई है।
डेमेज कंट्रोल पर जुटा नेस्ले।
अनहेल्दी रिपोर्ट आने के बाद नेस्ले के 60 प्रतिशत उत्पादों की नेगेटिव रिपोर्ट के बाद अब नेस्ले डैमेज कंट्रोल पर जुट गया है। नेस्ले का कहना है कि “हम यह सुनिश्चित करने के लिए लोगों के जीवन के विभिन्न चरणों में अपने पूरे पोर्टफोलियो को देख रहे हैं कि हमारे उत्पाद उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद कर रहे हैं और संतुलित आहार का समर्थन कर रहे हैं।”
नेस्ले ने कहा है कि “हमारे प्रयास दशकों से काम की मजबूत नींव पर बने हैं । उदाहरण के लिए, हमने पिछले दो दशकों में अपने उत्पादों में शर्करा और सोडियम को पिछले सात वर्षों में लगभग 14-15 प्रतिशत कम कर दिया है,” यह कहा गया है।
“हम मानते हैं कि एक स्वस्थ आहार का अर्थ है भलाई और आनंद के बीच संतुलन खोजना. इसमें कम मात्रा में भस्म होने वाले खाद्य पदार्थों के लिए कुछ जगह शामिल है। यात्रा की हमारी दिशा नहीं बदली है और स्पष्ट है, हम अपने पोर्टफोलियो को स्वादिष्ट और स्वस्थ बनाना जारी रखेंगे।”
यकीन मानिए जब विश्व की नामी कम्पनी नेस्ले के प्रोडक्ट्स पर ऐसी रिपोर्ट आ सकती है तो अन्य खाद्य कम्पनियों व दवाई कम्पनियों की उत्पादकता पर भी ऐसी प्रामाणिक रिपोर्ट न आये ऐसा कहना संशय पैदा करने जैसा है। फिलहाल यह उन लोगों के लिए एक आईना है जो बाबा रामदेव के माध्यम से पतंजलि व आयुर्वेद पर गाहे-बगाहे अंगुली उठाते रहते हैं।