Saturday, July 27, 2024
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छान पुनर्जीवित क्या हुई कि बंजर खेत खिलखिलाने लगे..! गाय रम्भाई, पक्षी चहचहाने लगे।

छान पुनर्जीवित क्या हुई कि बंजर खेत खिलखिलाने लगे..! गाय रम्भाई, पक्षी चहचहाने लगे।

(मनोरमा नौटियाल की कलम से )

छान टूटने लगी थी। पठालें दरक रहीं थीं और सीलिंग पर लगे तख्त सड़ने लगे थे। बरसों से छूटी हुई बन्द छान का यही हश्र होना था और हम सबने इसे स्वीकार भी कर लिया था। कुछ तख्त जो सही सलामत रह गये थे उन्हें पिताजी घर ले आये।

खेतों में हिंसर-किलगोड़-कण्डाली के झाड़ इतने फैल गये थे कि यकीन करना मुश्किल था ये वही खेत हैं जिनमें कभी कोदे-झँगोरे की फसलें लहरातीं थीं। अब उनकी मेड़ों पर घास तक नहीं दिखाई दे रही थी। पुश्ते ढह चुके थे।

एक दिन विमल ने कहा- क्यों न हम छान को खोलकर उसे नये सिरे से बनाएँ ! खेतों को सुधारकर वहाँ सेब का बगीचा बनाएँगे।

बड़ा असमंजस था मन में….!  फिर भी सबने हामी भर दी कि जो होगा देखा जाएगा। और कुछ नहीं तो खेत साफ हो ही जाएँगे।

कहने जितना आसान करना नहीं होता यह सब…! लेकिन शेफ विमल के पेस्ट्री-केक पर कलाकारी करने वाले हाथों ने गैन्ती-सब्बल कैसे उठाए होंगे, वही जाने।

माँ के विषय में तो कुछ भी कहना असंभव हो चला है। उनके व्यक्तित्व का हर पहलू शब्दों के पार है। इसलिए नहीं कि वह मेरी माँ हैं। इसलिए कि यही सत्य है जिसे उन्हें जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति मानता है।

सुबह होने से पहले माँ और विमल फावड़ा कुदाल दाथरी लेकर खेतों में पहुँच जाते और अंधेरा होने तक कट्यार करते, पत्थर-ढेले तोड़ते। दो-चार साथी और….!

बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी पिताजी की, घर-बाहर के काम आशीषा। लगभग डेढ़ वर्ष तक यही दिनचर्या रही। यह एक मिशन था, सच कहूं तो यज्ञ था।

इस बीच कुछ मजेदार घटनाएँ भी घटीं। गाँव के कुछ लोग शुरू में विमल को देख हँसते। इस पर बौळ लग गई है। देश-विदेश घूमने के बाद यहाँ मिट्टी में झक्क मार रहा है। क्या फायदा इतने पढ़ने-लिखने का….!
जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता गया, वही लोग कुढ़ने लगे। खीझ में कोई पानी के पाइप उखाड़कर फेंक देता, कोई खेत में बना पॉलीहाउस तोड़ने की कोशिश करता। विरोध किया तो हुक्का-पानी बंद करने की भभकियाँ भी मिलीं।

विभीषण-कुंभकर्ण ने जैसे मन मारकर दुष्ट रावण का साथ दिया था वैसे ही कुछ सज्जन लोग भी भाई-बंधु होने की लाचारीवश यज्ञ में विघ्न डालने के कुकृत्य में दुर्जनों के साथ खड़े नजर आये।

ये दुर्जन वही थे जिन्होंने बरसों तक चौमास में उसी छान में शरण ली, उन्ही खेतों में अन्न उगाकर अपने परिवार को पाला। ये वही आस्तीन के सर्प थे जिन्हें दादाजी-दादी से लेकर पिताजी-माँ ने अपने सगों से अधिक अपना माना।

ख़ैर! ये भी जरुरी था…।

हवनकुण्ड की अग्नि अपवित्र को भी पवित्र कर देती है। धीरे-धीरे हँसने वालों, विघ्नकर्ताओं को सद्बुद्धि आई और वे भी अपने बंजर पड़े खेतों पर ध्यान देने लगे, पौध रोपने लगे।

दो साल के भीतर कच्चा सा सपना पक्का आकार ले चुका था। छान बनकर तैयार हो गई। छोटा सा बगीचा भी पल्लवित हो गया। विमल की हौस के किस्से सुने तो कुछ भले लोग गाँव की चढ़ाई चढ़ छान तक पहुँचे। उनके स्नेह, आशीर्वाद, मार्गदर्शन से और भी हिम्मत बढ़ी, प्रेरणा मिली।

सर्वश्री लोकेश नवानी, प्रह्लाद अधिकारी, दिनेश डबराल, प्रमोद नैनवाल, बृजभूषण रावत, प्रोफेसर सतपाल बिष्ट और उन सभी का हार्दिक धन्यवाद जो इस यात्रा में साथी हुए और सदा सहयोग करने को तत्पर रहे। मौसाजी वीरेंद्र जोशी पैर चोटिल होने और हमारे रोकने के बावजूद पैदल उख्यात चढ़े। आपके प्रेम को, उत्कट भावों को प्रणाम।

दोस्त धरा पाण्डे दूर देस इन्दौर से उख्यात पहुँचीं। बहुत प्यार आपको प्रिय धरा….। कुछ शब्द होते हैं जो मूक ही अंतस को पवित्र बनाये रखते हैं। धरा के लिए भी इस धरा सा प्यार….।

सोशल मीडिया पर भी जिन मित्रों ने सदा उत्साह बढ़ाया, मिशन की सफलता की प्रार्थनाएँ कीं, आप सब तक इस मन की आवाज पहुँचे जो अत्यंत आभारी है और कृतज्ञ भी ।

और भी…….शुभचिंतक जिनकी उपस्थिति और सद्भावनाओं का मुझे ज्ञान-भान नहीं! इस शुभ संदेश में स्वयं को सम्मिलित जानें और विनम्र धन्यवाद स्वीकारें।

गाँव के उन जोशीले युवाओं, पूजनीय बुजुर्गों और चाची-बडियों के उल्लेख के बिना यह लेख अधूरा है जो माँ और विमल के मजबूत हाथ बने, निरंतर आशीष देते रहे। जिन्होंने हँसते-खेलते एक असंभव लगने वाले कार्य को सम्भव किया।

स्वर्गीय मिस्त्री जी, जिनकी लगन से उजड़ी हुई छान पुनर्जीवित हुई। आपकी निश्छलता सदैव दिलों में जीवंत, अक्षुण्ण रहेगी। आपकी पावन आत्मा सदा परमेश्वर के हृदय के निकट रहे।

बगीचे में सेब की लालिमा छाई है। घुघुतियों, तितलियों, भँवरों, जुगनुओं, कबुल्डों (तोते), सेंटुलियों (मैना) की दावतें चल रही हैं।रुणझुण बरखा लगी है। चौमासी छान में चंदो की मौज है।

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया…।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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