Thursday, March 13, 2025
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चार धाम के हम न्यासी हैं, देश का भरोसा बना रहे,यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी।

3 मई से विगत दिवस तक जिस तरह का सैलाब चार धाम यात्रा में उमड़ा है वह अकल्पनीय है। शायद ही आजतक के इतिहास में केदारनाथ धाम में कभी डेढ़ से दो किमी लम्बी कतार पूर्व में दर्शनार्थियों की लगी दिखी होगी। इस अतुलनीय श्रद्धालुओं की भीड़ के आ जाने से स्वाभाविक है कि शासन प्रशासन के हाथ पांव फूलेंगे ही फूलेंगे। ऑक्सीजन की कमी, ठंड इत्यादि की वजह से अभी तक 20 लोगों की जानें चली गयी हैं, जिसका ठीकरा सरकार के ऊपर फूटना लाजिम है। ऐसे में पेशे से पुलिस उपाध्यक्ष उत्तराखंड पुलिस प्रमोद साह जी का यह लेख सचमुच हम सभी को एक दिशा देने में सहायक हो सकता है।

चार धाम के हम न्यासी हैं, देश का भरोसा बना रहे,यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी ।

(प्रमोद साह)

3 मई को यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुल चुके हैं ,कल 6 मई को बाबा केदार और 8 मई को भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने के साथ हमारे चार धाम यात्रा का पूर्ण प्रारंभ हो रहा है ।
यद्यपि यह चार धाम उत्तराखंड के भूभाग में स्थित हैं ।पूरे देश की आध्यात्मिक एंव धार्मिक आस्था कि यह धरोहर हमारे उत्तराखंड में स्थित हैं ,यह हमारा सौभाग्य है। इस नाते हम सिर्फ इसके न्यासी हैं । इन धामो का और अधिक बेहतर प्रबंध हो यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है ।


आज भारतवर्ष को एक राष्ट्र के रूप में जिस प्रकार हम देखते हैं। तब आठवीं सदी में जब से चार धाम यात्रा का प्रारंभ माना जाता है। एसे एकीकृत भारत की कल्पना कर पाना भी कठिन था। तब भारत राजनीतिक अथवा राजनीतिक सत्ता के रूप में सैकड़ों रियासतों में विभक्त था । यह सभी राज्य जिनमें चोल ,चालुकय,राष्ट्रकूट आदि शासक मुख्य थे ,इनके अतिरिक्त भी भारत भूभाग में सैकड़ों देसी राजा सत्ता पर काबिज थे । लेकिन यह पूरा भारत खंड जो अलग-अलग राज वंशो में बंटा हुआ था। का मुख्य धार्मिक विश्वास हिंदू सनातन परंपरा ही थी ।

हिंदू विश्वास और परंपरा का अभी थोड़े समय पूर्व तक बौद्ध मत से गहरा टकराव जारी था।

सन 780 में केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर आदि गुरु शंकराचार्य जो कि शिव के अवतार कहलाए ने हिंदू धर्म की एकता और इसे अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने के लिए बहुत व्यापक और नियोजित प्रयास किए ,उन्होंने अखंड भारत की परिकल्पना के साथ ,पूर्व में जगन्नाथ पुरी, दक्षिण में श्रृंगेरी ,पश्चिम में द्वारिका मठ की स्थापना करने के साथ ही उत्तर में बद्रिकाश्रम की चार धाम के रूप में स्थापना की ।

इन चार धामों की पूजा पद्धतियां और विश्वास को एक दूसरे क्षेत्र से जोड़ने के लिए ऐसी परंपराएं और नियम बनाएं की संपूर्ण भारत का एक दूसरे क्षेत्र से आध्यात्मिक और भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न हो सके ,फिर भले राजनीतिक सत्ता ही क्यों न अलग हो , बद्रिकाश्रम के मुख्य पुजारी रावल आज भी केरल के नंबूद्रीपाद ब्राह्मण ही हैं ।
देश के चार धामों में बद्रीनाथ धाम की स्थापना करने के साथ ही 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम की भी आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापना की, यहां के रावल भीम लिंगम भी दक्षिण के लिंगायत संप्रदाय से आते हैं।

इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में ही गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की स्थापना भी की गई ।

देश के चार अलग-अलग दिशाओं में स्थित चार धामों के अतिरिक्त उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ अलग से चार धाम के रूप में स्थापित हुए ।

यह सभी धाम आठवीं सदी में अपने वर्तमान स्वरूप की पूजा पद्धति के रूप में मान्यता प्राप्त कर गए थे ।

वर्ष 888 ई० में चांदपुर गढ़ी के राजा भानु प्रताप ने अपने दामाद के रूप में राजा कनक पाल को अपनाकर जिस टिहरी राजवंश की स्थापना की। उस टिहरी राजवंश ने कालांतर में लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी इन चार धामों के संरक्षण में बहुत शानदार योगदान दिया । अपने राजस्व का एक निश्चित भाग (सदाब्रत )इन धामो के खर्चों के लिए अलग से आवंटित किया, चार धामों को इस अर्थ आवंटन की व्यवस्था को 1815 के बाद अंग्रेजों ने भी जारी रखा, जॉर्ज विलियम ट्रेल ने कुमाऊं के भी 226 गांव की लगान को मंदिरों के लिए आरक्षित रखा।

आठवीं सदी में शंकराचार्य जी द्वारा चार धामो की स्थापना के बाद इस दुर्गम पर्वतीय भू-भाग का संबंध राष्ट्र की मुख्यधारा से तीब्र गति से हुआ , शेष भारत के साथ हम उत्तराखंड वासियों के आत्मीय संबंधों की स्थापना हुई ,हर वर्ष यात्रा काल में हजारों यात्री यहां यात्रा पर आते ,उनमें सैकड़ों यंही बस जाते । उत्तराखंड में निवास कर रहे अधिकांश ब्राह्मण परिवार का संबंध दक्षिण भारत से ही है। देवप्रयाग की तो पूरी बस्ती ही दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों से संबद्ध है ।
पिछले 14सौ वर्षों से जिस प्रकार अखिल भारतीय सामाजिक सहयोग से उत्तराखंड के तीर्थो का व्यवस्थापन होता रहा है , उससे हम उत्तराखंड वासियों के ऊपर शेष भारत का अटूट विश्वास बना है।
आज यमुनोत्री ,गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ यह चार धाम यद्यपि हमारे भूभाग में हैं ।लेकिन इन पर भावनात्मक और आध्यात्मिक अधिकार पूरे देश का है ।इस प्रकार हम इन चार धामों के ट्रस्टी मात्र हैं ।

और एक ट्रस्टी के रूप में पूरे उत्तराखंडी समाज की जिम्मेदारी है कि हम अपने -अपने स्तर से प्रारंभ हो रही इस चार धाम यात्रा में अपना सहयोग करें ,इसे और बेहतरीन और सुरक्षित बनाने के लिए लगातार प्रयत्नशील रहें।

बाबा यात्रा शुभ और सुरक्षित हो जय बद्री, जय बाबा केदार ।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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