कोटद्वार (हि. डिस्कवर)।
विनोद रावत की गिनती उत्तराखंड में चुनावी बिसात बिछाने के महारथियों में होती है। पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत के चुनाव की रणनीति विनोद रावत के हाथ में होती थी। कार्यकर्ताओं से सीधी पकड़, विधानसभा सीट के हर समीकरण का बारीकी से अध्ययन और फिर उसी के हिसाब से चक्रव्यूह तैयार करना। यही वजह थी कि हरक सिंह रावत जिस भी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े उन्होंने वहां से जीत हासिल की। इस बार हरक सिंह रावत भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए हैं और अपनी बहू को चुनाव लड़ा रहे हैं। शायद उन्हें बी लैंसडौन में विनोद रावत की कमी खल रही होगी।
विनोद रावत भाजपा में है और पार्टी ने उन्हें कोटद्वार सीट के अहम जिम्मेदारी सौंपी है। विनोद रावत रितु खंडूरी के अहम सिपहसालार के रूप में कोटद्वार मैं भाजपा को दोबारा जिताने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। विनोद रावत की चुनावी काबिलियत और पार्टी के प्रति उनके कार्यों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सहित तमाम बड़े नेता उनकी तारीफ करते नहीं थकते। विनोद रावत की पार्टी के प्रति निष्ठा आप इस बात से समझ सकते हैं कि मातृ शोक होने के बावजूद भी वह अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को फोन के माध्यम से दिशा निर्देश देते रहे। कार्यकर्ताओं को किस तरह विपक्षी प्रत्याशी कि अपने क्षेत्र में घेराबंदी करनी है उसके बारे में भी समझा रहे। विनोद रावत कहते हैं इस बार के समीकरण बदले हुए हैं उसी के हिसाब से रणनीतियां बनाई हुई। क्षेत्रीय जातीय व सामाजिक ताने-बाने से सबसे अलग इस सीट पर गांव स्तर रणनीतियां तय करनी होती है। उन्हें उम्मीद है कि इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करेगी।
उत्तराखंड के गढ़वाल जिले की एक विधानसभा सीट है कोटद्वार विधानसभा सीट। इसे गढ़वाल का द्वार भी माना जाता है। गढ़वाल जिले की अधिकांश राजनीति कोटद्वार से ही डील की जाती है । कोटद्वार एक मैदानी क्षेत्र है जिसके कारण गढ़वाल की राजनीति में कोटद्वार की पूरी भागीदारी रहती है. कोटद्वार में गढ़वाल के हर कोने के लोग कोटद्वार में निवास करते हैं। कोटद्वार से करीब दो किलोमीटर दूर हिमालय पर्वत की निचली श्रेणियों पर सिद्धबली धाम मौजूद है।
कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र के अंदर छह प्रमुख नदियां कोल्हू, खोह, सुखरौ, मालन, तेली स्रोत, सिगड्डी स्रोत बहती हैं। ये नदियां बरसात के मौसम में विकराल रूप धारण कर लेती हैं। कोटद्वार में बरसात के मौसम में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होने की आशंका हमेशा बनी रहती है। कोटद्वार गढ़वाल का आखिरी रेलवे स्टेशन है। गढ़वाल से आने वाले यात्री को मैदानी क्षेत्रों में जाने के लिए कोटद्वार से वाहन की सुविधा मिलती है।
कोटद्वार विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो साल 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीसी खंडूरी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। बीसी खंडूरी के चुनाव लड़ने से चर्चा में आई सीट पर कांग्रेस ने सुरेंद्र सिंह नेगी को उम्मीदवार बनाया था । सुरेंद्र सिंह नेगी ने बीजेपी के बीसी खंडूरी को हरा दिया था। सुरेंद्र सिंह नेगी कांग्रेस की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे।
कोटद्वार विधानसभा सीट से 2017 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से फिर से सुरेंद्र सिंह नेगी चुनाव मैदान में थे। कांग्रेस के सुरेंद्र के खिलाफ बीजेपी ने डॉक्टर हरक सिंह रावत को उम्मीदवार बनाया। इस दफे सुरेंद्र सिंह नेगी को मात मिली. बीजेपी के डॉक्टर हरक सिंह रावत ने कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी को 11318 वोट के अंतर से शिकस्त दे दी।
कोटद्वार विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां हर जाति-वर्ग के मतदाता अच्छी तादाद में हैं। कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र में गढ़वाल के हर क्षेत्र के लोग हैं। यहां राजपूत मतदाताओं के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति जनजाति के मतदाता भी चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र में करीब सवा लाख मतदाता हैं।
कोटद्वार विधानसभा सीट से विधायक डॉक्टर हरक सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव के समय कोटद्वार को जिला बनवाने के साथ ही यहां सैनिक स्कूल की स्थापना का वादा किया था। विधायक ने लालढांग से चिल्लरखाल तक सड़क, मेडिकल कॉलेज के निर्माण और राजा भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का वादा किया था, लोग विधायक को वादे पूरा करने में नाकाम बता रहे हैं।