(मनोज इष्टवाल)
यौवन और पहाड़ी नदी की तीव्रता को अगर सही दिशा में मोड़ा न जाये तो वह दिशाहीन होकर अपना भी नुकसान करती है और अन्य का भी । ऐसा ही हाल मेरा भी उस दौर में था जब मैं कालेज से निकलकर पत्रकारिता में प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जमीं तलाश रहा था। तब मैं दूरदर्शन के बीटाकैम हाई लो बैंड की एबीसीडी सीख रहा था। इसी दौरान एक दिन विनोद दुआ जी से संसद मार्ग स्थित दूरदर्शन के स्टूडियो में मुलाकात हो गयी। यह मुलाकात मेरे हिसाब से दूरदर्शन समाचार के सम्पादक राजेन्द्र धस्माना जी ने करवाई थी, क्योंकि उन्हीं दिनों मैं दूरदर्शन के लिए राजस्थान के भरतपुर घाना बर्ड सेंचुरी शूट का फुटेज लाया था। तब दूरदर्शन के प्रोग्राम डायरेक्टर कौन थे मुझे याद नहीं लेकिन उन्होंने भी मेरे शूट व कैमरा एंगल की प्रशंसा की थी।
विनोद दुआ अब तक दूरदर्शन के लिए अपने आधे घण्टे के न्यूज कैप्सूल “परख” को सफलता से आगे बढ़ा रहे थे व उनके इस कार्यक्रम टीआरपी भी अच्छी खासी थी। मुझे आज भी याद है 25 दिसम्बर 1992 का वह दिन जब उन्होंने मुझे अपने कार्यालय बुलाया था। मैं रात खुलने का बेताबी से इंतजार करता रहा। यों तो राजेन्द्र धस्माना जी का नाम भी समाचार समाप्त होने के बाद दूरदर्शन की ब्लैक एंड वाइट स्क्रीन पर उभरता था, लेकिन विनोद दुआ जी की शक्ल समाचार उद्घोषक के रूप में टीवी पर उभरती थी व उनकी प्रस्तुतिकरण का मैं मुरीद था।
उन्होंने मुझे एक सब्जेक्ट पर इंट्रो लिखने को बोला। तब मैं झटपट कलम लिखी व एक लम्बा सा इंट्रो लिखकर उनके सामने रख दिया। इंट्रो पढ़ने के बाद अपने नजर के चश्मे को नाक की नोक पर सरकाते हुए उनकी बड़ी बड़ी आंखों ने मुझे घूरा। बोले- इंट्रो का मतलब जानते भी हो? तुमने तो पूरा इतिहास लिख दिया। ये प्रिंट मीडिया नहीं है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है। यहां खबर का विस्तार विजुअल व वॉइस ओवर समझाता है, इंट्रो व क्लोजिंग नहीं। हफ्ते भर लगातार खबरें देखो, प्रैक्टिस करो और तब मेरे पास आओ।
यकीन मानिए मैंने जुनूनी हद तक जाकर इलेट्रॉनिक मीडिया की बारीकियां समझी। कभी कभार मैं राजेन्द्र धस्माना जी के घर मोती बाग भी पहुंच जाया करता था। वे मुझे डपट देते कि तू जब मर्जी तब चला आता है। फिर बोलते – अच्छा बैठ। क्यों आया है। फिर उनसे कुछ देर सवाल जबाब करता। वे झुंझलाकर कहते- बमुश्किल इस वक्त मेरा कुछ रिलेक्स का समय होता है और तू आकर रंग में भंग कर देता है। अच्छी आफत मोल ले ली मैंने। खैर उनकी टिप्स पर काम किया और जब दुबारा न्यूज़ स्क्रिप्ट व विजुअल सहित विनोद दुआ जी के सामने पहुंचा तो उन्होंने उसी चश्मे के एंगल व बड़ी बड़ी आंखों से मुझे घूरा। सच कहूँ तो डर के मारे मेरी टांगे कांप गयी। फिर वे निश्छल हंसी के साथ बोले। वाह- आपने दिल खुश कर दिया। तुम बहुत आगे जाओगे।
बस फिर क्या था। मैंने खबरें नहीं बल्कि शार्ट स्टोरीज करनी शुरू कर दी। तब कैमरे के पीछे बहुत काम करना पड़ता था । हर विजुअल शूट करने के बाद उसके काउंटर नोट करने पड़ते थे वह भी एक्यूरेट टाइम के साथ।
1993 से लेकर 1998 तक “परख” व फिर डीजीबीटा कैमरे के शुरुआती दौर में 2000 से लेकर 2003 तक सहारा समय में चलने वाले न्यूज़ कैप्सूल “सहारा न्यूज़ लाइन” तक मैं विनोद दुआ जी के पूरब मीडिया प्राइवेट लिमिटेड का हिस्सा रहा। यह बहुत कम समय हुआ जब इतने सालों तक विनोद दुआ जी के साथ हर हफ्ते मुलाकात होती रही हो। क्योंकि कुछ सालों बाद मैं गढ़वाल से रिपोर्टिंग करना शुरू कर दिया था तब उनके सम्पादक संदीप चौधरी जी से ही अक्सर मुलाकात होती थी व उन्हीं से चेक भी प्राप्त होता था।
भारत के जाने-माने पत्रकारिता के स्तम्भ वरिष्ठ पत्रकार की मृत्यु 03 दिसंबर 2021 को शाम के समय एक लंबी चली आ रही बीमारी के कारण हो गई। उनको इसी साल अप्रैल के महीने में अस्पताल में भर्ती कराया था, और कुछ दिनों से उनकी हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। इसके कारण उनको आईसीयू में डॉक्टरों निगरानी में रखा गया। विनोद दुआ की मौत की खबर उनकी बेटी ने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिये साझा की।
टीवी लाइव इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की नलिनी सिंह जी व उन्हें सच्चे मायने में मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का गुरु मानता हूं। ऐसे गुरु का अंतिम स्मरण तो नहीं कह सकता, क्योंकि उनकी आंखें हमेशा मुझे आज भी मेरी गलतियों पर ताकती हैं और मुझे गलती का आभास करवाती हैं। जिन्होंने मुझे फीचर लेखन की बारीकियां सिखाई उन्हें शत शत नमन । विनम्र श्रद्धांजलि…!