Saturday, July 27, 2024
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वेद विलास बोले- अजीब दास्तां है ये . …! और कुसुम गा पड़ी- चाँद तन्हा है आसमां तन्हा!

गीत-संगीत एक ऐसी विधा है जो दुनिया में सभी किस्म के लोगों को एक सा आनंद प्रदान करता है। इसकी स्वर लहरियों न आकाश की ऊंचाई की कोई सीमा रखती है न समुद्र की गहराई व जमीन की मपाई की…! बस उसकी स्वर लहरी की कम्पन, थिरकन बोल और ताल में वह जादू होता है जो रूह तक पहुंच जाया करती है।

यूँ तो विश्व भर में न जाने कितने अभिनेता अभिनेत्री व फनकार हुए हैं लेकिन जब अभिनेत्री मीना कुमारी की बात होती है तो लगता है मानो वह सब इसी के लिए बनी रही हो। उसके अभिनय के स्वर उसके तन बदन से  रोवें रोवें में समा जाते और उसके चाहने वाले संगीत प्रेमी उसे खुदा की नेमत कहकर पुकारते थे। आज ही के दिन मीना कुमारी का जन्म हुआ तो स्वाभाविक है उन पर कुछ कलमकारों के शब्द बहे होंगे तो कुछ स्वर सम्राटों के स्वर लहराए होंगे। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है। बर्षों तक संगीत व संगीतज्ञों पर फीचर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार वेद बिलास उनियाल ने उन्हें अपने सोशल पेज पर कुछ इस तरह के शब्दों से नवाजा तो वही दूसरी ओर गजल गायिकी की शौकीन जिसमें मीना कुमारी स्वयं विराजमान लगती हैं , शास्त्रीय संगीत की धनी कुसुम भट्ट ने उन्हें उन्ही के एक गीत के साथ कुछ इस तरह याद किया-

अजीब दास्तां है ये . …! कहाँ शुरू कहाँ खतम।

(वेद विलास उनियाल)

भारतीय फिल्म कला को संपूर्णता में समझना हो तो आपको मीना कुमारी की कालजयी फिल्मों को देखना होगा। मीना कुमारी ने जिस फिल्म में अभिनय किया लोगों ने यही कहा कि मीना कुमारी की फिल्म है। पाकिजा, साहब बीबी और गुलाम बेजूबावरा वो कालजयी फिल्में है जिसमें मीनाकुमारी के अभिनय की ऊंचाइयां थी। मीना कुमारी की आंखों से अभिनय झलकता था। जिंदगी के जिस दर्द को उन्होंने स्वंय में जिया वो दर्द फिल्मी पर्दे पर भी झलक आया । श्वेत श्याम सिनेमाई पर्दे के उस दौर में मीनाकुमारी के अभिनय में संजीदगी सुंदरता अलग तरह से झलकती रही। फूल और पत्थर , दो बीघा जमीन, फूल और पत्थर , दिल अपना प्रीत पराई , पूर्णिमा , प्यार का सागर कोहिनूर जैसी कई यागदार फिल्में मीनाकुमारी के अभिनय से सजी है। धमेंद्र राजकुमार राजेंद्र कुमार जैसे अभिनेताओं के साथ उनकी यादगार फिल्में हैं
हर अदाकारा ने चाहा कि वो जब पर्दे पर गाते हुए दिखे तो लताजी की आवाज उन्हें मिले। मीना कुमारी उन अदाकारों में हैं जिनके बारे में कहा गया कि लताजी की आवाज उनपर फबती थी। मीना कुमारी को पर्दे पर गाते हुए देखना यही लगता था कि लताजी के स्वर उनके गले पर उतर आए हो। इसलिए उनकी आखरी फिल्म पाकिजा को ही याद कर लीजिए। सारी राह चलते-चलते, थाड़े रहियो वो बाकें यार, या फिर इन्ही लोगों ने-2  इन्हीं लोगोने ले लीना दुपट्टा मेरा जैसे गीत सुनाई दिए तो यही कहा गया मीनाकुमारी के ये गीत हैं। ये अमर है इन गीतों में मीना कुमारी का अभिनय पर्दे पर नजर आया तो भारतीय फिल्म जगत के लिए धरोहर बना। पाकिजा का दुख यही यही है कि इसकी अपार सफलता को न तो मीना कुमारी जीते जी देख पाई न ही संगीतकार गुलाम मोहम्मद जान पाए कि जमाने ने उनके संगीत को कितना चाहा। हर घर में बजते रहे वो तराने, आज की रात बड़ी देर से आई है, चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था, इन्ही लोगों ने-2  इन्हीं लोगोने ले लीना दुपट्टा मेरा, चलो दिलदार चलो। कला के रसिकों ने पाकिजा को बहुत मन से देखा उसके गीतों को मन भर के सुना। पाकिजा अगर लखनऊ की दास्तान पर थी तो साहब बीबी और गुलाम बंगाल के जमींदराना परिवेश की। मीना कुमारी ने दोनों ही भूमिकाओं में न्याय किया। दो अलग शहर संस्कृति के परिवेश को मीना कुमारी ने अपने अभिनय से पर्दे पर साकार किया था। बेशक वह देवदास की पारो भी बनना चाहती थी। शायद देवदास में यह रोल उन्हें मिल गया होता तो यह खास परिवेश की कालजयी फिल्मों में अभिनय की एक त्रिवेणी होती।

उन्हें समझने के लिए जानने के लिए और उनकी फीलिंग को महसूस करने के लिए कुछ नहीं तो श्वेत श्याम दौर का कोई एक गीत ही सुन देख लीजिए। एक अगस्त को जन्मी मीना कुमारी उम्दा शायरी भी लिखती रही। अपने जीवन के दर्द दुख बेवसी को आत्मसात कर उन्होने लिखने या अपने अभिनय से जो कुछ किया बेमिसाल किया बहुत सुंदर किया संजीदगी के साथ किया। कुछ ही लोग जानते होंगे कि बहुत अस्वस्थ होने पर भी उन्होंने पाकिजा के अंतिम नृत्य को किसी तरह पूरा किया था।
उनका कला के प्रति यह समपर्ण था । हमारे लिए वह फिल्म का एक दृश्य भर था मगर मीना कुमारी के लिए वह दृश्य मीना कुमारी होने का अहसास था।

उन्हें नमन।

जिस जहां में भी रहो तन्हां न रहो……! बस यही दुआ है। जन्मदिन मुबारक हो खूबसूरत अप्सरा, अदाकारा….कवियत्री।

(कुसुम भट्ट की सोशल साइट से)

मीना कुमारी (1 अगस्त, 1932 – 31 मार्च, 1972) भारत की एक मशहूर अभिनेत्री थीं। इन्हें हिंदी सिनेमा जगत में उनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। फिल्म बैजू बावरा व पाकीज़ा से वे काफी मशहूर हुईं।

फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
1966 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार – काजल
1963 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार – साहिब बीबी और ग़ुलाम
1955 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार – परिनीता
1954 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार – बैजू बावरा

मीना जी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी।

~चांद तन्हा है आसमां तन्हा ~

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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