Saturday, July 27, 2024
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भारी हँगामे के बीच UCC बिल हुआ टेबल। ये हैं मुख्य बिंदु..

UCC bill tabled amidst huge uproar. These are the main points..

भाजपा ने सदन में लगाए जयश्री राम के नारे। विपक्ष के हँगामे के मध्य सदन दो बजे तक के लिए स्थगित।

(मनोज इष्टवाल)

आखिरकार बहुप्रतिक्षित UCC (समान नागरिक संहिता) विधेयक उत्तराखंड राज्य द्वारा विधान सभा के पटल पर रख दिया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड देश का ऐसा राज्य बन गया है जिसने UCC बिल सर्वप्रथम विधान सभा के पटल पर रखा है। बिल टेबल होते ही विपक्ष ने जोरदार हँगामा शुरू कर दिया जबकि भाजपा के विधायक एवं मंत्रियों ने जय श्री राम के नारों का उद्घघोष करना प्रारम्भ कर दिया। इस हँगामे के मध्य नजर विधान सभा अध्यक्षा श्रीमति ऋतु खंडूरी ने सदन दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।

यूँ तो इस विधेयक में 392 अनुच्छेद व 192 पृष्ठ हैं, लेकिन इसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस ये हैं जिन्हें समान नागरिकता संहिता, उत्तराखण्ड, 2024 को अधिनियमित किया जाना प्रस्तावित है:-

1. खण्ड 1 में संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और विस्तार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है

2 खण्ड 2 में अनुसूचित जनजातियों पर संहिता की प्रयोज्यता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

3. खण् 3 में परिभाषाओं का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

4. खण्ड 4 में विवाह हेतु अपेक्षित आवश्यकतायें के उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

5. खण्ड 5 में विवाह के अनुष्ठान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

6. खण्ड 6 में संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात अनुष्ठापित / अनुबंधित विवाह का अनिवार्य पंजीकरण होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

7. खण्ड 7 में संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व अनुष्ठापित / अनुबंधित विवाह का पंजीकरण होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

8. खण्ड 8 में संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात पारित विवाह-विच्छेद या अकृतता के न्यायिक आदेश का पंजीकरण होने के उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

9. खण्ड 9 में संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता के न्यायिक आदेश का पंजीकरण होने के उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

10. खण्ड 10 में धारा 6 एवं धारा 7 के अंतर्गत विवाह के पंजीकरण की अवधि एवं प्रक्रिया होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

11. खण्ड 11 में धारा 8 और धारा 9 के अन्तर्गत विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता के न्यायिक आदेश के पंजीकरण की अवधि और प्रक्रिया होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

12. खण्ड 12 में महानिबंधक, निबंधक और उप-निबंधक की नियुक्ति होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

13. खण्ड 13 में धारा 10 अथवा धारा 11 के अंतर्गत ज्ञापन प्राप्त होने पर कार्यवाही होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

14. खण्ड 14 में पंजीकरण की अस्वीकृति के विरुद्ध अपील होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

15. खण्ड 15 में जनसाधारण के निरीक्षण हेतु पंजिकाओं के उपलब्ध होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

16. खण्ड 16 में अभिलेखों का साक्ष्यिक मूल्य होने का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

17. खण्ड 17 में उपेक्षा या मिथ्या कथन के लिए शास्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
18. खण्ड 18 में पंजीकरण न होने की स्थिति में प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

19. खण्ड 19 में उप-निबंधक की निष्क्रियता के लिए दण्ड का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

20. खण्ड 20 में पंजीकरण न कराने से विवाह अविधिमान्य नहीं होगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

21. खण्ड 21 में दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

22. खण्ड 22 में न्यायिक पृथक्करण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

23. खण्ड 23 में शून्य विवाह का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

24. खण्ड 24 में शून्यकरणीय विवाह का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

25. खण्ड 25 में विवाह-विच्छेद का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

26. खण्ड 26 में विवाह विच्छेद की कार्यवाहियों में वैकल्पिक अनुतोष का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

27. खण्ड 27 में पारस्परिक सम्मति से विवाह विच्छेद का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

28. खण्ड 28 में विवाह के एक वर्ष के भीतर विवाह-विच्छेद की याचिका पर प्रतिबंध का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

29. खण्ड 29 में विवाह-विच्छेद पर प्रतिबंध का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

30. खण्ड 30 में किसी व्यक्ति का पुनर्विवाह करने का अधिकार जहां विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता का न्यायिक आदेश पारित किया गया हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

31. खण्ड 31 में शून्य और शून्यकरणीय विवाहों के बच्चों की धर्मजता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

32. खण्ड 32 में कतिपय प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दण्ड का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

33. खण्ड 33 में याचिका लंबित रहते भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

34. खण्ड 34 में स्थायी निर्वाहिका एवं भरण-पोषण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

35. खण्ड 35 में बच्चों की अभिरक्षा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 36. खण्ड 36 में संपदा का व्ययन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

37. खण्ड 37 में न्यायालय जिसमें याचिका प्रस्तुत की जाएगी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

38. खण्ड 38 में इस भाग के अंतर्गत अभिवचन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

39. खण्ड 39 में इस भाग के अंतर्गत न्यायालय में कार्यवाही की प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

40. खण्ड 40 में कुछ मामलों में याचिकाएँ अंतरित करने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

41. खण्ड 41 में इस भाग के अन्तर्गत याचिकाओं के विचारण और निस्तारण से संबंधित विशेष प्रावधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 42. खण्ड 42 में अभिलेखीय साक्ष्य का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

43. खण्ड 43 में कार्यवाहियों में न्यायिक आदेश का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

44. खण्ड 44 में विवाह-विच्छेद और अन्य कार्यवाहियों में प्रत्यर्थी को अनुतोष का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

45. खण्ड 45 में दण्डित करने की शक्ति और उसकी प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

46. खण्ड 46 में न्यायिक व अन्य आदेशों की अपीलें का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

47. खण्ड 47 में न्यायिक व अन्य आदेशों का प्रवर्तन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

48. खण्ड 48 में नियम बनाने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

49. खण्ड 49 में उत्तराधिकार के सामान्य नियम का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित 12

50. खण्ड 50 में उत्तराधिकार का तरीका का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 51. खण्ड 51 में श्रेणी 1 के उत्तराधिकारियों के मध्य संपदा का वितरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

52. खण्ड 52 में श्रेणी 2 के उत्तराधिकारियों के मध्य संपदा का वितरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

53. खण्ड 53 में निकटतम डिग्री के अन्य नातेदारों के मध्य संपदा का वितरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

54. खण्ड 54 में डिग्रियों की गणना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

55. खण्ड 55 में गर्भस्थ बच्चे का अधिकारका उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

56. खण्ड 56 में समसामयिक मृत्युयों के विषयों में उपधारणा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

57. खण्ड 57 में पुनर्विवाह पर निरर्हता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

58. खण्ड 58 में हत्यारा निरर्हित का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

59. खण्ड 59 में उत्तराधिकारी, जबकि उत्तराधिकारी निरर्हित हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

60. खण्ड 60 में रोग, शारीरिक / मानसिक दोश या विकृति से निरर्हता न होना क उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
61. खण्ड 61 में इच्छापत्र करने के लिए सक्षम व्यक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

62. खण्ड 62 में कपट, प्रपीडन या अतियाचना द्वारा अभिप्राप्त इच्छापत्र का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

63. खण्ड 63 में इच्छापत्र प्रतिसंहृत या परिवर्तित की जा सकती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

64. खण्ड 64 में इच्छापत्रों का निष्पादन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

65. खण्ड 65 में संदर्भ द्वारा अभिलेखों का सम्मिलित किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

66. खण्ड 66 में हित के कारण या निष्पादक होने के कारण साक्षी का निरर्हित न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

67. खण्ड 67 में इच्छापत्र या क्रोडपत्र का प्रतिसंहरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

68. खण्ड 68 में विशेषाधिकार रहित इच्छापत्र में मिटाने, अंतरालेखन या परिवर्तन का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

69. खण्ड 69 में विशेषाधिकार रहित इच्छापत्र का पुनः प्रवर्तन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 70. खण्ड 70 में इच्छापत्र के शब्द का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

71. खण्ड 71 में इच्छापत्र को पाने वाले या उसकी विषयवस्तु से संबंधित किसी प्रश्न को का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। अवधारित करने के लिए जांच का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

72. खण्ड 72 में पाने वाले का मिथ्या नाम या मिथ्या वर्णन का उपबन्ध किया जा प्रस्तावित है।

73. खण्ड 73 में शब्दों की पूर्ति कब की जाएगी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावि है।

74. खण्ड 74 में विषयवस्तु के वर्णन में गलत वर्णन का अस्वीकार किया जाना व उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

75. खण्ड 75 में वर्णन का भाग कब अस्वीकार नहीं किया जाएगा कि वह गलत का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

76. खण्ड 76 में प्रत्यक्ष संदिग्धार्थता के मामलों में बाहरी साक्ष्य की ग्राह्यता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

77. खण्ड 77 में प्रत्यक्ष संदिग्धार्थता या कमी से मामलों में बाहरी साक्ष्य की अग्राह्यता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

78. खण्ड 78 में खंड का अर्थ सम्पूर्ण इच्छापत्र से निकाला जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

79. खण्ड 79 में शब्दों को कब सीमित अर्थों में और कब प्रायिक से विस्तृत अर्थों में समझा जाएगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

80. खण्ड 80 में दो सम्भाव्य अर्थान्वयन में से किसे अधिमान दिया जाएगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

81. खण्ड 81 में यदि युक्तियुक्त अर्थान्वयन किया जा सके तो किसी भाग को अस्वीकृत न किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

82. खण्ड 82 में इच्छापत्र के विभिन्न भागों में पुनः प्रयुक्त शब्दों का निर्वचन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

83. खण्ड 83 में जहां तक संभव हो इच्छापत्रकर्ता के आशय को प्रभावी बनाया जाना का उपवन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

84. खण्ड 84 में दो असंगत खंडों में से अंतिम का अभिभावी होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

85. खण्ड 85 में अनिश्चितता के कारण इच्छापत्र या इच्छापत्र का शून्य होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

86. खण्ड 86 में वस्तुओं का वर्णन करने वाले शब्दों का, इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु पर, वर्णन के अनुरूप संपदा को निर्दिष्ट करना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

87. खण्ड 87 में साधारण उत्तरदान द्वारा निष्पादित नियोजन की शक्ति का उपब- किया जाना प्रस्तावित है।

88. खण्ड 88 में नियोजन के अभाव में शक्तियों के उद्देश्यों के लिए विवक्षित दान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

89. खण्ड 89 में किसी व्यक्ति के “उत्तराधिकारियों’ आदि को, विशेषित करने वान शब्द के बिना उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

90. खण्ड 90 में विशिष्ट व्यक्ति के “प्रतिनिधियों” आदि को उत्तरदान का उपबन किया जाना प्रस्तावित है।

91. खण्ड 91 में परिसीमा संबंधी शब्दों के बिना उत्तरदान का उपबन्ध किया जा प्रस्तावित है।

92. खण्ड 92 में विकल्प में उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

93. खण्ड 93 में किसी व्यक्ति के लिए उत्तरदान में किसी वर्ग का वर्णन करने वाले शब्दों को जोडने का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

94. खण्ड 94 में केवल साधारण वर्णन वाले व्यक्तियों के वर्ग को उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

95. खण्ड 95 में पदों का अर्थान्वयन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

96. खण्ड 96 में जहां इच्छापत्र में एक ही व्यक्ति को दो उत्तरदान करने का तात्पर्य हो वहां अर्थान्वयन के सिद्धांत का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

97. खण्ड 97 में अवशिष्टीय इच्छापत्रदार का गठन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

98. खण्ड 98 में संपदा, जिसके लिए अवशिष्टीय इच्छापत्रदार अधिकारी है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

99. खण्ड 99 में साधारण निबन्धनों वाली इच्छापत्रीय संपदा के निहित होने का समय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

100. खण्ड 100 में इच्छापत्रीय संपदा किन मामलों में व्यपगत होती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

101. खण्ड 101 में इच्छापत्रीय संपदा व्यपगत नहीं होती यदि दो संयुक्त इच्छापत्रदारों में से एक की मृत्यु हो जाती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

102. खण्ड 102 में विशिष्ट अंश देने की इच्छापत्रकर्ता के आशय को दर्शित करने वाले शब्दों का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

103. खण्ड 103 में व्यपगत अंश कब अव्ययनित समझा जाएगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

104. खण्ड 104 में इच्छापत्रकर्ता की संतान या रैखिक वंशज के लिए उत्तरदान इच्छापत्रकर्ता के जीवनकाल में उसकी मृत्यु हो जाने पर कब व्यपगत नहीं होती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

105. खण्ड 105 में ख के लाभ के लिए क का उत्तरदान क की मृत्यु से व्यपगत नहीं होता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

106. खण्ड 106 में वर्णित वर्ग के लिए उत्तरदान के मामले में उत्तरजीविता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

107. खण्ड 107 में किसी विशिष्ट वर्णन वाले किसी व्यक्ति को, जो इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु पर विद्यमान नहीं है, उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

108. इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु पर अविद्यमान व्यक्ति को पूर्वोक्त उत्तरदान के अध्यधीन उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

109. खण्ड 109 में शाश्वतता के विरुद्ध नियम का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है

110. खण्ड 110 में उस वर्ग को उत्तरदान जिनमें से कुछ धारा 108 और 109 के अन्दर आते हैं का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

111. खण्ड 111 में उत्तरदान का किसी पूर्विक उत्तरदान की निष्फलता पर प्रभावी होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

112. खण्ड 112 में संचयन के लिए निर्देश का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

113. खण्ड 113 में इच्छापत्रीय संपदा के निहित होने की तिथि जब संदाय या आधिपत्य रोक दिया गया हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

114. खण्ड 114 में निहित होने की तिथि जब इच्छापत्रीय संपदा विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना पर समाश्रित हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

115. खण्ड 115 में किसी वर्ग के ऐसे सदस्यों का उत्तरदान में हित निहित होना, जो किसी विशिष्ट आयु को प्राप्त करे का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

116. खण्ड 116 में दुर्भर उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

117. खण्ड 117 में एक ही व्यक्ति को दो पृथक् और स्वतंत्र उत्तरदानों में से एक स्वीकार तथा दूसरी अस्वीकार की जा सकती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

118. खण्ड 118 में उत्तरदान जो किसी विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना पर, जिसके घटित होने के लिए समय वर्णित नहीं है, समाश्रित है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

119. खण्ड 119 में कुछ व्यक्तियों में से ऐसे व्यक्तियों को उत्तरदान जो अविनिर्दिष्ट कालावधि पर उत्तरजीवी हैं का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

120. खण्ड 120 में असंभव शर्त पर उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

121. खण्ड 121 में अवैध या अनैतिक शर्त पर उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

122. खण्ड 122 में इच्छापत्रीय संपदा के निहित होने के तिथि के पूर्व की शर्त की पूर्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

123. खण्ड 123 में ख को किये गये पूर्व उत्तरदान के निष्फल हो जाने पर क को उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

124. खण्ड 124 में प्रथम उत्तरदान की निष्फलता पर द्वितीय उत्तरदान का कब प्रभावी न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

125. खण्ड 125 में परवर्ती उत्तरदान का विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने या घटित न होने पर आश्रित होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

126. खण्ड 126 में शर्तों का कड़ाई से पूरा किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

127. खण्ड 127 में मूल उत्तरदान का द्वितीय उत्तरदान की अविधिमान्यता द्वारा प्रभावित न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

128. खण्ड 128 में इस शर्त के साथ उत्तरदान कि यह विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने की दशा में प्रभावी नहीं रहेगी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

129. खण्ड 129 में ऐसी शर्त धारा 114 के अधीन अविधिमान्य नहीं होनी चाहिए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

130. खण्ड 130 में इच्छापत्रदार द्वारा उस कार्य को, जिसके लिए कोई समय विनिर्दिष्ट नहीं है और जिसके न किए जाने पर विषयवस्तु अन्य व्यक्ति को मिलेगी, असंभव बनाने या अनिश्चित काल तक रोकने का परिणाम का उपबन् किया जाना प्रस्तावित है।

131. खण्ड 131 में पुरोभाव्य या उत्तरभाव्य शर्त का विनिर्दिष्ट समय के भीतर पूरा किया जाना। कपट के मामले में अतिरिक्त समय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

132. खण्ड 132 में किसी व्यक्ति को या उसके लाभ के लिए निधि की आत्यंतिक उत्तरदान के बाद यह निर्देश कि निधि का उपयोजन विशिष्ट रीति से किया जाए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

133. खण्ड 133 में यह निर्देश कि आत्यन्तिक उत्तरदान के उपभोग की रीति. इच्छापत्रदार को विनिर्दिष्ट लाभ सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित की जानी है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

134. खण्ड 134 में निधि का कतिपय प्रयोजनों के लिए, जिनमें से कुछ को पूरा नहीं किया जा सकता है, उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

135. खण्ड 135 में निष्पादक के रूप में नामित इच्छापत्रदार जब तक निष्पादक के रूप में कार्य करने का आशय दर्शित न करे, वह इच्छापत्रीय संपदा प्राप्त नहीं कर सकता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

136. खण्ड 136 में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदा की परिभाषा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

137. खण्ड 137 में कतिपय धनराशि का उत्तरदान, जहां वह स्टाक आदि, जिसमें उसका विनिधान किया गया है वर्णित है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

138. खण्ड 138 में स्टाक का उत्तरदान, जहां इच्छापत्रकर्ता के पास इच्छापत्र की तिथि को उसी प्रकार के स्टाक की समान या अधिक मात्रा है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

139. खण्ड 139 में धन का उत्तरदान, जहां वह, जब तक इच्छापत्रकर्ता की संपदा का भाग कतिपय रीति से व्ययन न किया जाए, संदेय नहीं है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

140. खण्ड 140 में कब प्रगणित वस्तुओं का विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया नहीं माना जाता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

141. खण्ड 141 में विभिन्न व्यक्तियों को क्रमबार विनिर्दिष्ट उत्तरदान का उसी रूप में प्रतिधारण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

142. खण्ड 142 में दो या अधिक व्यक्तियों को क्रमवार उत्तरदान की गई संपदा का विक्रय और आगमों का विनिधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

143. खण्ड 143 में जहां इच्छापत्रीय संपदा के संदाय के लिए आस्तियों में कमी है वहां विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदा का साधारण इच्छापत्रीय संपदा के साथ उपशमन न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

144. खण्ड 144 में निदर्शित इच्छापत्रीय संपदा की परिभाषा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

145. खण्ड 145 में संदाय का आदेश जहां इच्छापत्रीय संपदा का संदाय ऐसी निधि से किए जाने का निर्देश हो, जो विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदा की विषय वस्तु हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

146. खण्ड 146 में विखंडन का स्पष्टीकरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 147. खण्ड 147 में निदर्शित इच्छापत्रीय संपदा का विखंडित न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

148. खण्ड 148 में तृतीय पक्षकार से कुछ प्राप्त करने के अधिकार की विनिर्दिष्ट उत्तरदान का विखंडन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

149. खण्ड 149 में विनिर्दिष्ट रूप से उत्तरदान की गई संपूर्ण वस्तु के भाग की इच्छापत्रकर्ता द्वारा प्राप्ति पर उस सीमा तक विखंडन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

150. खण्ड 150 में ऐसी संपूर्ण निधि के भाग की, जिसका भाग विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया है, इच्छापत्रकर्ता द्वारा प्राप्ति पर उस सीमा तक विखंडन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

151. खण्ड 151 में संदाय का क्रम, जहां निधि का भाग एक इच्छापत्रदार को विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया है और उसी निधि पर भारित इच्छापत्रीय संपदा अन्य व्यक्ति को उत्तरदान किया गया है और इच्छापत्रकर्ता नेउस निधि का एक भाग प्राप्त किया है और अब शेष दोनों इच्छापत्रीय संपदाओं का संदाय करने के लिए अपर्याप्त है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

152. खण्ड 152 में जहां विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया स्टाक इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु के समय विद्यमान नहीं है, वहां विखंडन का उपबन्ध किया जाना

प्रस्तावित है। 153. खण्ड 153 में जहां विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया स्टाक, इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु के समय, केवल भागतः विद्यमान रहता है, वहां उस सीमा तक विखंडन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

154. खण्ड 154 में ऐसे माल का, जिसका वर्णन किसी स्थान से उसे संबंधित करता है, विनिर्दिष्ट उत्तरदान का माल हटाए जाने के कारण विखंडित न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

155. खण्ड 155 में उत्तरदान की गई वस्तु का हटाया जाना कब विखंडित नहीं होता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

156. खण्ड 156 में जहां उत्तरदान की गई वस्तु इच्छापत्रकर्ता द्वारा अन्य व्यक्ति से प्राप्त होने वाली मूल्यवान वस्तु है और इच्छापत्रकर्ता स्वयं या उसका प्रतिनिधि उसे प्राप्त करता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

157. खण्ड 157 में विनिर्दिष्ट उत्तरदान की विषयवस्तु में, इच्छापत्र की तिथि और इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु के बीच, विधि के प्रवर्तन द्वारा परिवर्तन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

158. खण्ड 158 में इच्छापत्रकर्ता की जानकारी के बिना विषयवस्तु में परिवर्तन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।


159. खण्ड 159 में विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किया गया स्टाक तृतीय पक्षकार को इस शर्त पर पट्टे पर दिया जाना कि उसको प्रतिस्थापित किया जाएगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

160. खण्ड 160 में विनिर्दिष्ट रूप में उत्तरदान किए गए स्टाक को विक्रय करके उसका प्रतिस्थापन होना और इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु पर उसका इच्छापत्रकर्ता के स्वामित्व में होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

161. खण्ड 161 में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रदारों को विमुक्त करने का निष्पादक का दायित्व न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

162. खण्ड 161 में उत्तरदान की गई वस्तु के लिए इच्छापत्रकर्ता के अधिकार को पूरा करना उसकी संपदा के खर्च पर होगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

163. खण्ड 163 में इच्छापत्रदार की स्थावर संपदा की विमुक्ति, जिसके लिए भू-राजस्व या भाटक कालिक रूप से संदेय है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

164. खण्ड 164 में संयुक्त स्टाक कम्पनी में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रदार के स्टाक की विमुक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

165. खण्ड 165 में साधारण शब्दों में वर्णित वस्तुओं का उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

166. खण्ड 166 में निधि के ब्याज या आगम का उत्तरदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

167. खण्ड 167 में जब तक इच्छापत्र से कोई प्रतिकूल आशय प्रकट न हो, इच्छापत्र द्वारा सृजित वार्षिकी केवल जीवन पर्यन्त संदेय होगी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

168. खण्ड 168 में जहां इच्छापत्र में यह निर्देष दिया गया हो कि वार्षिकी संपदा के आगमों में से या साधारणतः संपदा में से दी जानी चाहिए या जहां उत्तरदान किए गए धन का विनिधान वार्षिकी का क्रय करने में किया जाना है, वहां विनिधान की अवधि का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

169 . खण्ड 169 में वार्षिकी का उपशमन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

170. खण्ड 170 में जहां वार्षिकी का दान और अवशिष्ट दान हो, वहां सम्पूर्ण वार्षिकी का पहले चुकाया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

171. खण्ड 171 में लेनदार, प्रथमदृष्ट्या, इच्छापत्रीय संपदा, तथा ऋण, दोनों के लिए अधिकारी है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

172. खण्ड 172 में संतान प्रथमदृष्ट्या, इच्छापत्रीय संपदा तथा हिस्सा, दोनों के लिए अधिकारी है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

173. खण्ड 173 में इच्छापत्रदार के लिए पश्चात्वर्ती उपबन्ध द्वारा विखंडन न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
174. खण्ड 174 में किन परिस्थितियों में चयन होता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

175. खण्ड 175 में स्वामी द्वारा त्यागे गए हित का न्यागमन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

176. खण्ड 176 में इच्छापत्रकर्ता के स्वामित्व के संबंध में उसका विश्वास तत्त्वहीन है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

177. खण्ड 177 में व्यक्ति के लाभ के लिए उत्तरदान, चयन के प्रयोजन के लिए कैसे माना जाए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

178. खण्ड 178 में अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पाने वाले व्यक्ति को चयन नहीं करना है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

179. खण्ड 179 में इच्छापत्र के अधीन व्यक्तिगत सामर्थ्य में लेने वाला व्यक्ति दूसरे सामर्थ्य में उसके विपरीत लेने का चयन कर सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

180. खण्ड 180 में अंतिम छह धाराओं के उपबन्धों का अपवाद का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

181. खण्ड 181 में इच्छापत्र द्वारा दिए गए लाभ का प्रतिग्रहण कब इच्छापत्र के अधीन लेने के चयन को गठित करता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

182. खण्ड 182 में वे परिस्थितियां जिनमें ज्ञान या अधित्यजन उपधारित या अनुमित किया जाता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

183. खण्ड 183 में इच्छापत्रकर्ता के प्रतिनिधि इच्छापत्रदार से चयन करने के लिए कब कह सकेंगे का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

184. खण्ड 184 में निर्योग्यता की दशा में चयन को स्थगित रखना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

185. खण्ड 185 में मृत्यु को आसन्न मानकर दान द्वारा अन्तरणीय संपदा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

186. खण्ड 186 में मृतक की संपदा के लिए उत्तराधिकार द्वारा अधिकार का दावा करने वाला व्यक्ति सदोश आधिपत्य के विपरीत अनुतोष के लिए आवेदन कर सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

187. खण्ड 187 में न्यायाधीश द्वारा की गई जांच का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

188. खण्ड 188 में प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

189. खण्ड 189 में कार्यवाहियों के अवधारण के लंबित रहने के दौरान रक्षक की नियुक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

190. खण्ड 190 में रक्षक को प्रदान की जा सकने वाली शक्तियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
191. खण्ड 191 में रक्षक द्वारा कतिपय शक्तियों के प्रयोग का प्रतिषेध का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

192. खण्ड 192 में रक्षक प्रतिभूति देगा और पारिश्रमिक प्राप्त कर सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

193. खण्ड 193 में कलेक्टर की रिपोर्ट जहां संपदा में राजस्व संवत करने वाली भूमि सम्मिलित है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

194. खण्ड 194 में वादों को संस्थित करना और उनमें प्रतिरक्षा करना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

195. खण्ड 195 में रक्षक द्वारा अभिरक्षा के लंबित रहने के दौरान दृश्यमान स्वामियों को भत्ते का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

196. खण्ड 196 में रक्षक द्वारा लेखा पत्रावलित किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

197. खण्ड 197 में लेखाओं का निरीक्षण और दोहरी प्रति रखने का हितबद्ध पक्षकार का अधिकार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

198. खण्ड 198 में एक ही संपदा के लिए दूसरे रक्षक की नियुक्ति पर बंधन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

199. खण्ड 198 में रक्षक के लिए आवेदन करने की समय-सीमा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

200. खण्ड 200 में मृतक द्वारा लोक व्यवस्थापन या विधिक निर्देष के विपरीत इस भाग के प्रवर्तन का वर्जनी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

201. खण्ड 201 में वाद लाने के अधिकार की व्यावृत्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

202. खण्ड 202 में संक्षिप्त कार्यवाही के विनिश्चय का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

203. खण्ड 203 में लोक रक्षकों की नियुक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 204. खण्ड 204 में निष्पादक या प्रशासक की, उस रूप में, प्रकृति और संपदा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

205. खण्ड 205 में न्यायालय के माध्यम से मृत व्यक्तियों के ऋणियों से ऋणों की उगाही के लिए प्रतिनिधि के अधिकार के सबूत का पुरोभाव्य शर्त होनी। का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

206. खण्ड 206 में पश्चात्वर्ती प्रोबेट या प्रशासन-पत्र का प्रमाणपत्र पर प्रभावी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

207. खण्ड 207 में केवल प्रोबेट या प्रशासन-पत्र के प्राप्तकर्ता द्वारा, जब तक उसे प्रतिसंहृत न कर दिया जाए, वाद आदि लाया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
208. खण्ड 208 में इस अध्याय का लागू होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

209. खण्ड 209 में प्रशासन किसे अनुदत्त किया जाएगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

210. खण्ड 210 में प्रशासन-पत्र का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

211. खण्ड 211 में प्रशासन-पत्र द्वारा कृत्यों को वैध न किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

212. खण्ड 212 में प्रोबेट केवल नियुक्त निष्पादक के लिए ही का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

213. खण्ड 213 में वे व्यक्ति जिन्हें प्रोबेट अनुदत्त नहीं किए जा सकते हैं का उपबन किया जाना प्रस्तावित है।

214. खण्ड 214 में विभिन्न निष्पादकों को साथ-साथ या विभिन्न समय पर प्रोबेट का अनुदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

215. खण्ड 215 में प्रोबेट के अनुदान के पश्चात् क्रोडपत्र के पृथक् प्रोबेट का पता लगना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

216. खण्ड 216 में उत्तरजीवी निष्पादक के प्रतिनिधित्व का प्रोद्भूत होना का उपव किया जाना प्रस्तावित है।

217. खण्ड 217 में प्रोबेट का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

218. खण्ड 218 में राज्य के बाहर सिद्ध इच्छापत्रों की अधिप्रमाणित प्रति की प्रति उपाबद्ध करके प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

219. खण्ड 219 में जहां निष्पादक ने पद त्याग नहीं किया है वहां प्रशासन का

अनुदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 220. खण्ड 220 में निष्पादकत्व के त्याग का प्रपत्र और प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

221. खण्ड 221 में जहां निष्पादक त्याग करता है या समय के भीतर स्वीकार कर में असफल रहता है वहां प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

222. खण्ड 222 में सर्वस्व या अवशिष्ट इच्छापत्रदार को प्रशासन का अनुदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

223. खण्ड 223 में मृतक अवशिष्ट इच्छापत्रदार के प्रतिनिधि का प्रशासन के लिए अधिकार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

224. खण्ड 224 में जहां निष्पादक, अवशिष्ट इच्छापत्रदार या ऐसे इच्छापत्रदार क प्रतिनिधि नहीं है वहां प्रशासन का अनुदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

225. खण्ड 225 में सर्वस्व या अवशिष्ट इच्छापत्रदार से भिन्न इच्छापत्रदारों को प्रशासन-पत्र के अनुदान के पूर्व उपस्थिति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

226. खण्ड 226 में किन्हें प्रशासन-पत्र अनुदत्त नहीं किया जा सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

227. खण्ड 227 में नियमों का राज्य विधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 228. खण्ड 228 में खो गए इच्छापत्र की प्रति या प्रारूप का प्रोबेटका उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

229. खण्ड 229 में खो गए या विनष्ट इच्छापत्र की अंतर्वस्तुओं का प्रोबेटका उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

230. खण्ड 230 में जहां मूल विद्यमान है वहां उसकी प्रति का प्रोबेट का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

231. खण्ड 231 में इच्छापत्र के प्रस्तुत किए जाने तक प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

232. खण्ड 232 में अनुपस्थित निष्पादक के अटर्नी को इच्छापत्र को उपाबद्ध करते हुए प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

233. खण्ड 233 में ऐसे अनुपस्थित व्यक्ति के जो यदि उपस्थित होता तो प्रशासन के लिए अधिकारी होता, अटर्नी को इच्छापत्र उपाबद्ध करते हुए प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

234. खण्ड 234 में इच्छापत्र रहितता के मामले में प्रशासन के लिए अधिकारी अनुपस्थित व्यक्ति के अटर्नी को प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

235. खण्ड 235 में एकमात्र निष्पादक या अवशिष्ट इच्छापत्रदार की अवयस्कता के दौरान प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

236. खण्ड 236 में विभिन्न निष्पादकों या अवशिष्ट इच्छापत्रदारों की अवयस्कता के दौरान प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

237. खण्ड 237 में पागल या अवयस्क के उपयोग और लाभ के लिए प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

238. खण्ड 238 में वाद के विचाराधीन रहने के दौरान प्रशासन के अधीन होगा और उसके निर्देश के अधीन कार्य करेगा। का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है 239. खण्ड 239 में इच्छापत्र में विनिर्दिष्ट प्रयोजन तक सीमित प्रोबेट का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

240. खण्ड 240 में विशिष्ट प्रयोजन के लिए सीमित प्रशासन, इच्छापत्र को उपाबद्ध करते हुए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

241. खण्ड 241 में संपदा तक सीमित प्रशासन जिसमें व्यक्ति लाभप्रद हित रखता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

242. खण्ड 242 में वाद तक सीमित प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

243. खण्ड 243 में प्रशासक के विरुद्ध लाए जाने वाले वाद में पक्षकार बनने के प्रयोजन तक सीमित प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

244. खण्ड 244 में मृत व्यक्ति की संपदा के संग्रहण और परिरक्षण तक सीमित प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

245 खण्ड 245 में उस व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति की प्रशासक के रूप में नियुक्ति जो सामान्य परिस्थितियों में प्रशासन के लिए अधिकारी है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

246. खण्ड 246 में अपवाद के अधीन रहते हुए, प्रोबेट या इच्छापत्र को उपाबद्ध करते हुए प्रशासन-पत्र का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है 247. खण्ड 247 में अपवाद सहित प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

248. खण्ड 248 में अवशिष्ट का प्रोबेट या प्रशासन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

249. खण्ड 249 में अप्रशासित भंडार का अनुदान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

250. खण्ड 250 में अप्रशासित भंडार के अनुदान के बारे में नियमका उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

251. खण्ड 251 में प्रशासन जहां सीमित अनुदान का पर्यवसान हो गया हो फिर भी संपदा का कुछ भाग अप्रशासित हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

252. खण्ड 252 में कौन सी गलतियां न्यायालय द्वारा सुधारी जा सकेंगी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

253. खण्ड 253 में इच्छापत्र को उपाबद्ध करते हुए प्रशासन का अनुदान करने के पश्चात् क्रोडपत्र का पता चलने पर प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

254. खण्ड 254 में न्यायोचित कारण से प्रतिसंहरण या अकृतकरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

255. खण्ड 255 में प्रोबेटों आदि के अनुदान और प्रतिसंहरण में जिला न्यायाधीश की अधिकारिता का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

256. खण्ड 256 में अप्रतिविरोधात्मक मामलों में कार्यवाही करने के लिए जिला न्यायाधीश की प्रत्यायोजिती की नियुक्ति करने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

257. खण्ड 257 में प्रोबेट और प्रशासन के अनुदान के बारे में जिला न्यायाधीश की शक्तियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

258. खण्ड 258 में जिला न्यायाधीश किसी व्यक्ति को इच्छापत्रीय अभिलेख प्रस्तुत करने का आदेश दे सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

259. खण्ड 259 में प्रोबेट और प्रशासन के संबंध में जिला न्यायाधीश के न्यायालय की कार्यवाहियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

260. खण्ड 260 में संपदा के संरक्षण के लिए जिला न्यायाधीश कब और कैसे हस्तक्षेप कर सकता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

261. खण्ड 261 में जिला न्यायाधीश द्वारा प्रोबेट या प्रशासन पत्र कब अनुदत्त किया जा सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है.
202. खण्ड 262 में उस जिले के न्यायाधीश को, जिसमें मृत्तक का नियत निवास सीन नहीं था, किए गए आवेदन का निस्तारण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

263. खण्ड 263 में प्रोबेट और प्रशासन-पत्र प्रतिनिधि द्वारा अनुदत्त किया जा सकता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

264. खण्ड 264 में प्रोबेट या प्रशासन-पत्र का निश्चायक होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

265. खण्ड 265 में धारा 264 के परन्तुक के अधीन अनुदानों के प्रमाणपत्र का उच्च न्यायालय को पारेषण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

266. खण्ड 266 में प्रोबेट या प्रशासन-पत्र के लिए आवेदन का, यदि उन्हें समुचित रूप से लिखा और सत्यापित किया गया है निश्चायक होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

267. खण्ड 267 में प्रोबेट के लिए याचिका का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

268. खण्ड 268 में किन मामलों में इच्छापत्र का अनुवाद याचिका के साथ उपाबद्ध किया जाएगा। न्यायालय के अनुवादक से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा अनुवाद का सत्यापन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 269. खण्ड 269 में प्रशासन-पत्र के लिए याचिका का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

270. खण्ड 270 में कतिपय मामलों में प्रोबेट या प्रशासन-पत्र के लिए याचिका, आदि में कथनों में वृद्धि का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

271. खण्ड 271 में प्रोबेट आदि के लिए याचिका पर हस्ताक्षर और उसका सत्यापन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

272. खण्ड 272 में प्रोबेट के लिए याचिका को इच्छापत्र के एक साक्षी द्वारा सत्यापित किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

273. खण्ड 273 में याचिका या घोषणा में मिथ्या प्रकथन के लिए दंड का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

274. खण्ड 274 में जिलान्यायाधीश की शक्तिय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

275. खण्ड 275 में प्रोबेट या प्रशासन के अनुदान के विरुद्ध केवियट का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

276. खण्ड 276 में केवियट की प्रविष्टि के के पश्चात् याचिका पर किसी कार्यवाही का तब तक न किया जाना जब तक केवियटकर्ता को सूचना न दे दी जाए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

277. खण्ड 277 में जिला प्रतिनिधि कब प्रोबेट या प्रशासन का अनुदान नहीं करेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

278. खण्ड 278 में संदेहास्पद मामलों में जहां कहीं प्रतिविरोध नहीं है जिला न्यायाधीश को कथन पारेषित करने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

279. खण्ड 279 में जहां प्रतिविरोध है या जिला प्रतिनिधि यह सोचता है कि प्रोबेट या प्रशासन-पत्र देना उसके न्यायालय में अस्वीकार किया जाना चाहिए वहां प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

280. खण्ड 280 में प्रोबेट के अनुदान का न्यायालय की मुद्रा के अधीन होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

281. खण्ड 281 में प्रशासन-पत्रों के अनुदान का न्यायालय की मुद्रा के अधीन होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

282. खण्ड 282 में प्रशासन बन्धपत्र का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

283. खण्ड 283 में प्रशासन बन्धपत्र का समनुदेशन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

284. खण्ड 284 में प्रोबेट और प्रशासन के अनुदान के लिए समय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

285. खण्ड 285 में मूल इच्छापत्रों को, जिनके प्रोबेट या प्रशासन-पत्र इच्छापत्र को उपाबद्ध करते हुए, अनुदत्त किए गए हों, पत्रावलित करना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

286. खण्ड 286 में प्रतिविरोध के मामले में प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

287. खण्ड 287 में प्रतिसंहत प्रोबेट या प्रशासन-पत्र का अभ्यर्पण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

288. खण्ड 288 में प्रोबेट या प्रशासन के प्रतिसंह्नत किए जाने के पूर्व निष्पादक या प्रशासक को संदाय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

289. खण्ड 289 में प्रशासन-पत्र को अस्वीकार करने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 290. खण्ड 290 में जिला न्यायाधीश के आदेश के विरूद्ध अपीलें का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

291. खण्ड 291 में निष्पादक या प्रशासक का हटाया जाना और उत्तराधिकारी के लिए उपबंध का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

292. खण्ड 292 में निष्पादक या प्रशासक को निर्देश का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

293. खण्ड 293 में स्वयं के दोष से निष्पादक का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 294. खण्ड 294 में स्वयं के दोष से निष्पादक का दायित्व का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

295. खण्ड 295 में मृतक की मृत्यु से समाप्त न हुए बाद हेतुकों और मृत्यु पर देयअऋणों के संबंध में का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

206. खण्ड 296 में मृतक की या उसके विरुद्ध मांगें और कार्यवाही करने के अधिकारों का निष्पादक या प्रशासक के पक्ष में या उसके विरुद्ध समाप्त न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

297. खण्ड 297 में सम्पत्ति के व्ययन के लिए निष्पादक या प्रशासक की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

298. खण्ड 298 में प्रशासन की साधारण शक्तियां कोई निष्पादक या प्रशासक का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

299. खण्ड 299 में मृतक की संपदा का निष्पादक या प्रशासक द्वारा क्रय किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

300. खण्ड 300 में कई निष्पादकों या प्रशासकों की शक्तियों का उनमें से एक द्वारा प्रयोग का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

301. खण्ड 301 में कई निष्पादकों या प्रशासकों में से एक की मृत्यु पर शक्तियों का समाप्त न होनाका उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

302. खण्ड 302 में अप्रशासित भंडार के प्रशासन की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

303. खण्ड 303 में अवयस्कता के दौरान प्रशासन की शक्तियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

304. खण्ड 304 में विवाहित निष्पादिका या प्रशासिका की शक्तियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

305. खण्ड 305 में मृतक की अन्त्येष्टि के संबंध में का उपवन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

306. खण्ड 306 में भंडार सूची और लेखा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

307. खण्ड 307 में भंडार सूची में कतिपय मामलों में भारत के किसी भी भाग की संपदा का सम्मिलित किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

308. खण्ड 308 में मृतक की संपदा और उसे देय ऋण के संबंध में का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

309. खण्ड 309 में व्ययों का सभी ऋणों के पूर्व संदाय किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

310. खण्ड 310 में ऐसे व्ययों के पश्चात् दूसरे व्ययों का संदाय किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

311. खण्ड 311 में उसके बाद कतिपय सेवाओं के लिए मजदूरियों का और तत्पश्चात् अन्य ऋणों का संदाय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

312. खण्ड 312 में पूर्वोक्त के सिवाय सभी ऋणों का समान रूप से और आनुपातिक रूप से संदाय किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

313. खण्ड 313 में जहां अधिवास भारत में न हो वहां ऋण के संदाय के लिए जंगम संपदा का उपयोग का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

314. खण्ड 314 में इच्छापत्रीय संपदाओं के पूर्व ऋणों का संदाय किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

315. खण्ड 315 में निष्पादक या प्रशासक का प्रतिपूर्ति के बिना, इच्छापत्रीय संपदा के संदाय के लिए बाध्य न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

316. खण्ड 316 में साधारण इच्छापत्रीय संपदा ओं में कमी का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

317. खण्ड 317 में जब आस्तियां ऋणों के संदाय के लिए पर्याप्त हों तब विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदाओं में कमी न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

318. खण्ड 318 में जब आस्तियां ऋणों और आवश्यक व्ययों के संदाय के लिए पर्याप्त हैं तब निदर्शित इच्छापत्रीय संपदा के अधीन अधिकार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

319. खण्ड 319 में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदाओं में आनुपातिक कमी किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

320. खण्ड 320 में वे इच्छापत्रीय संपदाएं जो कमी करने के प्रयोजन के लिए साधारण इच्छापत्रीय संपदाएं मानी जाती हैं का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

321. खण्ड 321 में इच्छापत्रदार के अधिकार को पूर्ण करने के लिए अनुमति का आवश्यक होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

322. खण्ड 322 में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदा के लिए निष्पादक की अनुमति का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

323. खण्ड 323 में सशर्त अनुमति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

324. खण्ड 324 में अपनी स्वयं की इच्छापत्रीय संपदा के लिए निष्पादक की अनुमति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

325. खण्ड 325 में निष्पादक की अनुमति का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

326. खण्ड 326 में निष्पादक इच्छापत्रीय संपदा का परिदान कब करेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

327. खण्ड 327 में वार्षिकी का प्रारंभ, जब इच्छापत्र में कोई समय नियत न हो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

328. खण्ड 328 में त्रैमासिक या मासिक संदाय वाली वार्षिकी प्रथम बार कब शोध्य होती है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

329. खण्ड 329 में आसनुक्रमिक संदायों की तिथियां जब प्रथम संदाय दिए गए समय के भीतर या निश्चित दिन करने का निर्देश हो, संदाय की तिथि से पूर्व वार्षिकीदार की मृत्यु का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

330. खण्ड 330 में जहां इच्छापत्रीय संपदा, जो विनिर्दिष्ट नहीं है, जीवन पर्यन्त के लिए दी गई है, वहां उत्तरदान की गई धनराशि का विनिधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

331. खण्ड 331 में भविष्य में संदेय, साधारण इच्छापत्रीय संपदा का विनिधान, मध्यवर्ती व्याज का व्ययन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

332. खण्ड 332 में जहां कोई निधि वार्षिकी से भारित या उसके लिए विनियोजित नहीं की गई है वहां प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

333. खण्ड 333 में समाश्रित इच्छापत्र का अवशिष्ट इच्छापत्रदार को अन्तरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

334. खण्ड 334 में किन्हीं विशिष्ट प्रतिभूतियों में विनिधान किए जाने के निर्देश के बिना जीवन पर्यन्त के लिए उत्तरदान किए गए अवशेष का विनिधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

335. खण्ड 335 में किन्हीं विनिर्दिष्ट प्रतिभूतियों में विनिधान किए जाने के निर्देश के सहित जीवन पर्यन्त के लिए उत्तरदान किए गए अवशेष का विनिधान का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

337. खण्ड 337 में ऐसे मामले में प्रक्रिया जहां अवयस्क उत्तरदान के तुरन्त संदाय या आधिपत्य का अधिकारी है और उसके निमित्त किसी व्यक्ति को संदाय किए जाने का निर्देश नहीं है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। .

338. खण्ड 338 में विनिर्दिष्ट इच्छापत्रीय संपदा के उत्पाद के लिए इच्छापत्रदार का 338 अधिकार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

339. खण्ड 339 में अवशिष्ट इच्छापत्रदार का अवशिष्ट निधि के उत्पाद पर अधिकार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

340. खण्ड 340 में ब्याज, जब साधारण इच्छापत्रीय संपदा के संदाय के लिए कोई समय नियत नहीं है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

341. खण्ड 341 में ब्याज जब समय नियत है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

342. खण्ड 342 में ब्याज की दर का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

343. खण्ड 343 में इच्छापत्रकर्ता की मृत्यु के पश्चात् प्रथम वर्ष के भीतर वार्षिकी पर कोई ब्याज न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

344. खण्ड 344 में वार्षिकी का सृजन करने के लिए विनिहित धनराशि पर ब्याज का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

345. खण्ड 345 में न्यायालय के आदेशों के अधीन संदत्त इच्छापत्रीय संपदा का प्रतिदाय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

346. खण्ड 346 में यदि संदाय स्वैच्छिक है तो प्रतिदाय नहीं होगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

347. खण्ड 347 में उस समय प्रतिदाय जब इच्छापत्रीय संपदा धारा 131 के अधीन अनुज्ञात अतिरिक्त समय के भीतर शर्त का अनुपालन करने पर देय हो गई है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

348. खण्ड 348 में प्रत्येक इच्छापत्रदार को कब अनुपात में प्रतिदाय करने के लिए विवश किया जा सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

349. खण्ड 349 में आस्तियों का वितरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

350. खण्ड 350 में लेनदार इच्छापत्रदार से प्रतिदाय की मांग कर सकेगा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

351. खण्ड 351 में ऐसा इच्छापत्रदार, जिसकी तुष्टि नहीं हुई है या जिसे धारा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। के अधीन प्रतिदाय करने के लिए विवश किया गया है, उस इच्छापत्रदार को, जिसे पूर्ण संदाय किया गया है, प्रतिदार करने के लिए कब बाध्य नहीं कर सकता है का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है ।

352. खण्ड 352 में अतुष्ट इच्छापत्रदार को निष्पादक के विरुद्ध, यदि वह ऋण शोधक्षम है, पहले कब कार्यवाही करनी चाहिए का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

353. खण्ड 353 में एक इच्छापत्रदार की दूसरे इच्छापत्रदार को प्रतिदाय करने की सीमा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

354. खण्ड 354 में प्रतिदाय पर ब्याज का न होना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

355. खण्ड 355 में अवशेष का प्रायिक संदायों के पश्चात् अवशिष्ट इच्छापत्रदार व संदत्त किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है। 356. खण्ड 356 में अधिवास के देश के निष्पादक या प्रशासक को भारत से आस्तियों का वितरण के लिए अंतरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

357. खण्ड 357 में विध्वंस के लिए निष्पादक या प्रशासक का दायित्व का उपबन् किया जाना प्रस्तावित है।

358. खण्ड 358 में संपदा का कोई भाग लेने में उपेक्षा के लिए निष्पादक या प्रशासक का दायित्व का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

359. खण्ड 359 में प्रमाणपत्र अनुदत्त करने की अधिकारिता रखने वाला न्यायालय का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

360. खण्ड 360 में प्रमाणपत्र के लिए आवेदन का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

361. खण्ड 361 में आवेदन पर प्रक्रिया का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

362. खण्ड 362 में प्रमाणपत्र की विषयवस्तु का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

363. खण्ड 363 में प्रमाणपत्र के प्राप्तिकर्ता से प्रतिभूति की अध्यपेक्षा का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

364. खण्ड 364 में प्रमाणपत्र का विस्तार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

365. खण्ड 365 में प्रमाणपत्र और विस्तारित प्रमाणपत्र का प्रपत्र का उपबन्ध किय जाना प्रस्तावित है।

366. खण्ड 366 में प्रतिभूतियों के बारे में शक्तियों के संबंध में प्रमाणपत्र का संशो का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।
खण्ड 367 में प्रमाणपत्रों पर न्यायालय के शुल्क का संग्रहण करने का ढंग का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

368. खण्ड 368 में प्रमाणपत्र का स्थानीय विस्तार का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

369. खण्ड 369 में प्रमाणपत्र का प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

370. खण्ड खण्ड 370 में में प्रमाणपत्र का प्रत्तिसंहरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

371. खण्ड 371 में अपीलें का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

372. खण्ड 372 में पूर्ववर्ती प्रमाणपत्र, प्रोबेट या प्रशासन-पत्र का प्रमाणपत्र पर प्रभाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

373. खण्ड 373 में अविधिमान्य प्रमाणपत्र के धारक को सद्भाव से किए गए कतिपय संदायों का विधिमान्यकरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

374. खण्ड 374 में इस अध्याय के अधीन विनिश्चयों का प्रभाव और उसके अधीन प्रमाणपत्र धारक का दायित्व का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

375. खण्ड 375 में इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए जिला न्यायालयों की अधिकारिता अवर न्यायालय को प्रदान करना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

376. खण्ड 376 में अधिक्रांत और अविधिमान्य प्रमाणपत्रों का अभ्यर्पण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

377. खण्ड 377 में व्यावृत्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

378. खण्ड 378 में सहवासी संबंध के सहवासियों द्वारा कथन का प्रस्तुतिकरण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

379. खण्ड 379 में सहवासी संबंध से जनित बच्चे का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

380. खण्ड 380 में सहवासी संबंध का पंजीकरण न किया जाना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

381. खण्ड 381 में सहवासी संबंध के पंजीकरण की प्रक्रिया का उपबन्ध किया जान प्रस्तावित है।

382. खण्ड 382 में इस भाग के अंतर्गत पंजीकरण मात्र अभिलेख हेतु का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

383. खण्ड 383 में इस भाग के अन्तर्गत निबंधक को अधिकारयुक्त करना, और पंजिकाओं का रखरखाव का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

384. खण्ड 384 में सहवासी संबंध की समाप्ति का कथन प्रस्तुत करना का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

385. खण्ड 385 में निबंधक के कर्तव्य का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

386. खण्ड 386 में सहवासी संबंध के पंजीकरण हेतु नोटिस का उपबन्ध किया जाना है।

387. खण्ड 387 में अपराध एवं दण्ड का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

388. खण्ड 388 में भरण-पोषण का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

389. खण्ड 389 में नियम बनाने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

390. खण्ड 390 में निरसन एवं व्यावृत्तियां का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है

391. खण्ड 391 में नियम बनाने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है

392. खण्ड 392 में कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति का उपबन्ध किया जाना प्रस्तावित है।

फिलहाल अभी UCC विधेयक पर 02 बजे बाद पक्ष व विपक्ष के सदस्यों द्वारा लगातार सदन में चर्चा जारी है। 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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