(मनोज इष्टवाल)।
शोले पिक्चर का डायलॉग इस घटनाक्रम को देखते हुए यकीनन हम सबके जेहन में जरूर आएगा जिसमें गबर सिंह साम्भा को पूछता है- “कितने आदमी थे? सांभा कहता है-सरदार तीन! फिर गबर सिंह बोलता है -गोली छ: और आदमी तीन! बहुत नाइंसाफी है। फिर वह तीन गोली हवा में फायर कर देता है।
ये हवा में फायर हुई गोलियां आप उत्तराखंड क्रांति दल, आम आदमी पार्टी व अन्य निर्दलीय मान सकते हैं लेकिन जो पिस्तौल में तीन गोलियां हैं वह तीनों मुख्यमंत्रियों को निशाने पर लिए हुए हैं क्योंकि इस पुल के स्थान पर नए पुल निर्माण की कार्यवाही ठंडे बस्ते में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के काल से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के काल तक रही लेकिन सूत्रों के अनुसार दो साल पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा नए पुल के निर्माण हेतु बजट की संस्तुति दे दी थी।
अब जब दो साल पहले संस्तुति मिल गयी थी तब पूर्व मुख्यमंत्री क्यों निशाने पर रहें। अब नौबत आती है पूर्व मुख्य सचिव ओम प्रकाश, तत्कालीन सचिव वित्त व सचिव लोक निर्माण विभाग की। तीनों भी गोलियों की रेंज से दूर। अब बचे विभागाध्यक्ष लोकनिर्माण विभाग, अधिशासी अभियंता व पुल का कार्यभार संभालने वाले अन्य अभियंता की। फायर हुआ तो इनमें से ही कोई एक नपेगा। सुना जिनके जिम्मे यह सब था उनका स्थानांतरण कहीं दूर दराज हो गया है, क्योंकि कुंभ की थकान मिटाने के लिए शायद वर्तमान मुख्यमंत्री धामी व लोक निर्माण विभाग मंत्री सतपाल महाराज ने उन्हें योग ध्यान के लिए भेजा है ताकि वे कुछ मनन लर सकें।
फिर पिस्तौल की नली घूमती है उस मुख्यमंत्री पर जिसने खनन के पट्टे पर हस्ताक्षर कर अपने मातहत को पकड़ाया और उस अधिकारी ने सम्बंधित ठेकेदार को जिस पर आरोप है कि उसने नियमों का पालन न करते हुए पुल से 500 मीटर दूरी तो छोड़िए पुल के पिल्लरों तक रेत बजरी उठा डाली। ठेकेदार वाली बात कितनी प्रामाणिक है यह कह पाना सम्भव नहीं है। अभी तो इसकी पड़ताल करनी जरूरी है कि क्या इस नदी में खनन के लिए पट्टे आबंटित हुए भी थे कि नहीं? या फिर अवैध खनन कारोबारियों की करतूत से 1964 में बना पुल बीचों-बीच धराशायी हो गया।
बहरहाल लोगों ने पुल गिरने के बाद तो यही कहा कि आज फिर देहरादून में मनचले ठेकेदार से तंग आकर एक पुल नें नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।
तत्कालीन मुख्यमंत्री फिलहाल जनता की गोली के दायरे से बाहर बताए जा रहे हैं क्योंकि ये जनता भी जानती है कि मुख्यमंत्री धामी को पद ग्रहण किये हुए अभी जुम्मा-जुम्मा कुछ ही दिन हुए हैं।
फिलहाल तीनों मुख्यमंत्री रानीपोखरी के बीचोबीच टूटे पुल के निरीक्षण पर हैं। मुख्यमंत्री धामी उड़न खटोले से व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व हरीश रावत अपने दल बल के साथ सड़क मार्ग से पुल देखने पहुंचे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज गढ़वाल मण्डल के देवप्रयाग, तोताघाटी, तीनधारा, कौड़ियाला, ऋषिकेश, रानीपोखरी, नरेन्द्रनगर, फकोट एवं चंबा के आपदा ग्रस्त इलाक़ों का हवाई सर्वेक्षण किया। उनके साथ मंत्री डाॅ धन सिंह रावत व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, मुख्य सचिव एस एस संधु भी थे।
लेकिन यहां ये बात कतई प्रदेशवासियों की समझ में नहीं आती कि ऐसे मामले में विभागीय मंत्री मुख्यमंत्री के साथ क्यों नहीं दिखे। तभी तो आज सतपाल महाराज सड़कों व पुलों के घटिया निर्माण को लेकर अपनी खीज उतारते हुए अधिकारियों पर बरस पड़े।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत।
उत्तरकाशी के गरतांग गली प्रवास से लौटते ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सीधे रानीपोखरी पंहुँचे।जहां उन्होंने क्षतिग्रस्त हुए पुल का स्थलीय निरीक्षण कर संबंधित अधिकारियों को शीघ्रातिशीघ्र नव-निर्माण प्रक्रिया को आरंभ करने के निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि यह पुल केवल देहरादून ही नहीं अपितु समस्त गढवाल व बागेश्वर, पिथौरागढ जनपद को भी जोड़ता है इसलिए हमारी प्राथमिकता रहेगी कि जल्द से जल्द अधिकारी इसे आवागमन के लिए खोल सकें।
अब पूर्व मुख्यमंत्री के निर्देश अधिकारियों पर असरदायक होते हैं या वर्तमान मुख्यमंत्री के। यह कहना सम्भव नहीं है लेकिन यह बतौर विधायक उनका विधान सभा क्षेत्र है अतः अधिकारियों को निर्देशित करना उनका हक अधिकार भी हुआ और जिम्मेदारी भी।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी अपने दौरे निबटाकर रानी पोखरी पुल का स्थलीय निरीक्षण करने पहुंचे व उन्होंने बेहद कम शब्दों में अपनी बात रखते हुए सोशल साइट पर ट्वीट किया कि “आज #रानीपोखरी पहुंचकर वहां क्षतिग्रस्त हुये #पुल का जायजा लिया।
#uttarakhand”
यहां पहली बार एक खुशखबरी वाली बात दिखी तीनों मुख्यमंत्रियों में एक ने भी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाए और न ही किसी अधिकारी को ही सम्बंधित प्रकरण में लपेटे में लिया है। जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि पुल की मियाद पूरी हो चुकी थी व नए पुल की तैयारी में कहीं न कहीं कोई ऐसा मगरमच्छ बीच में था जो वित्त स्वीकृति के बाद टेंडर प्रक्रिया में कुछ घालमेल करने के लिए आतुर था।
बहरहाल कटु सत्य यही है कि आज फिर देहरादून में मनचले ठेकेदार से तंग आकर एक पुल नें नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।