Sunday, June 8, 2025
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डोबरा -चांठी पुल के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है।

(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की कलम से)

यूपीएससी एग्जाम में अरुणाचल के डिफो ब्रिज के स्थान पर आ गया है डोबरा- चांठी सस्पेंशन ब्रिज
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डोबरा चांठी सस्पेंशन ब्रिज में 14 ट्रकों को लोड
टेस्टिंग को आज सफलता मिली। एक ट्रक पर 15 टन माल था। 30 – 30 मीटर की दूरी पर यह ट्रक खड़े किए गए थे या चल रहे थे। कुल 440 मीटर के सस्पेंशन ब्रिज में पूरे स्थान पर लोड ट्रक खड़े थे, चल रहे थे। यह काम कोरिया के टीम लीडर मिस्टर किम की देखरेख में हो रहा था। वह पिछले ढाई तीन महीनों से कोरोना के चलते कोलकाता में फंसे हुए थे। अब वह 10 दिन पहले आए थे। इसलिए आज टेस्टिंग पूरा हो गई।टेस्टिंग पूरे होने के बाद आज मेरे लेखन इस पुल का एक दस्तावेज ( किताब ) के रूप में जो तैयार है उसे भी सफलता मिली है। इसलिए मैंने पहले घोषणा नहीं की थी। सोचा पहले पुल की लोडिंग,टेस्टिंग का वह दिन आये। पूरे साल भर कई दस्तावेज दिए जा रहे थे, जिनमें ज्यादातर से मैं संतुष्ट नहीं था। कई यूट्यूब से जानकारी दी जा रही थी। जिससे मैं संतुष्ट नहीं था। मैंने मन बनाया की मैं एक परफेक्ट दस्तावेज के रूप में शुरुआत से 2005 से 2020 तक अब तक के बारे में जानकारी दूं। 29 अक्टूबर 2005 को अंतिम टनल बंद होने के बाद झील भरनी शुरू हो गई थी। और प्रतापनगर की करीब एक लाख से ज्यादा आबादी को जोड़ने वाला भलड़ियाणा पुल डूब गया था,तभी बड़े वाहनों के पुल की जरूरत महसूस हुई थीं।

2006 में प्रताप नगर के विधायक श्री फूल सिंह बिष्ट ने डोबरा में मुझे ले जाकर इस पुल का उद्घाटन किया था।
मैं तब एक सशक्त और प्रभावी न्यूज़ चैनल सहारा टीवी का पत्रकार था। तब मुट्ठी भर अधिकारी वहाँ थे। चूंकि फूल सिंह जी उस पार प्रतापनगर के एमएलए थे, जो अपना एक बड़ा हिस्सा अलग- थलग पड़ने से दुखी थे। उन्होंने पूरी ताकत झोंक कर इसे देहरादून से चीफ मिनिस्टर श्री नारायण दत्त तिवाड़ी से 60% टीएचडीसी 40 %राज्य सरकार धन देगी पर स्वीकृत कराया था। पुल को बनाने के लिए बहुत दिक्कतें आई। बीच में काम रोकना पड़ा। 2007- 8 में मैं इस पुल को बनाने वाले अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग मित्र श्री शशांक भट्ट को बोलता रहा कि, एक बार पुल देखना है कि, कितना बना है ? कई महीनों में नहीं देखा था। इंजीनियर भट्ट जी ने मुझे कहा कि जिस दिन आईआईटी के प्रोफेसर आएंगे, उस दिन आपको बुलाएंगे। वह दिन भी आया। मैंने और मेरे सहयोगी ने भट्ट जी के साथ और प्रोफ़ेसर साहब के साथ डोबरा का दौरा किया। लंच किया और फिर उनकी कवरेज की। उनके साथी प्रोफेसर, ठेकेदार और अन्य सहायक अभियंता, अवर अभियंता उस पार चांठी जाने के लिए ट्राली पर चढ़ गए। मुझे चलने के लिए कहा लेकिन मैंने मना किया और यहीं से विदा ली…हम चल ही रहे थे नई टिहरी के लिए तो तब तक मजदूरों की आवाज आई। थोड़ी दूर भागे तो भट्ट जी नीचे लहूलुहान थे। बेहोश थे। चित थे। कुछ नहीं सूझा।

इंजीनियर शशांक भट्ट ट्रॉली में चढ़ते ही 5 मिनट में ट्रॉली से नीचे गिर गए थे । नीचे नुकेले पत्थर थे।उनके सिर में चुभ गए। जो ऊपर थे वह वहीं फंसे रहे। भट्ट जी को नाव के जरिए भागीरथीपुरम अस्पताल ले जाया गया। जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। पूरे जिले में शोक की लहर फैल गई। पुल के कार्य पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए। इंजीनियर भट्ट की मौत के बाद उनकी बाइट सहारा टीवी में चली और विस्तार पूर्वक रिपोर्ट चली हमने ट्रॉली के निर्माण पर सवाल उठाए यह वीके गुप्ता का पहला घटिया काम था जिसने एक कुशल इंजीनियर की जान ले ली थी उस दिन हमने भट्ट जी को ले जाने के लिए नाव की और तमाम फोन किए। श्री यूडी चौबे, जिलाधिकारी थे। उनके कम से कम 26 कॉल मुझे डोबरा आए। डोबरा में फोन नहीं लग रहा था। बीएसएनएल खराब था। शायद बीएसएनएल कहीं और शिफ्ट हो रहा था जैसे कि आज महसूस होता है। कोटीकालोनी में नाव की व्यवस्था कराई गई। जिला प्रशासन ने वहां गाड़ी एंबुलेंस भेजी और फिर भट्ट जी को भागीरथीपुरम में ले गए शायद उनकी डेथ झील के ऊपर ही हो गई थी खून बहुत बह रहा था मैंने अपनी आंखों से देखा। हमारी चीखने चिल्लाने की आवाज कोई सुन नहीं सकता था क्योंकि झील थी झील में कोई नहीं था हमारे सिवा। मैं मई 2008 देहरादून आ गया था। लेकिन पुल के बारे में मेरा दिल देहरादून से भी धड़कता रहा। मैं *एक था भरतु* पर काम कर रहा था.इसी बीच मेरा ख्याल आया की पुल पर भी दस्तावेज लिखा जाए । मेरे गांव से 25 किलोमीटर की दूरी पर है डोबरा। हम लोग यहीं से आते जाते थे। यह टिहरी उत्तर काशी प्रमुख सड़क पर था। पहले उप्पू पडता है। तब डोबरा तब सिराई तब मलीदेवल,तब भगवतपुर, तब दोबाटा, तब टिहरी। दोबाटा से चम्बा के लिए गाड़ी जाती थीं। यह बेल्ट उप्पू डोबरा छोड़ कर डूब गई है। किताब का नाम **डोबरा के भागीरथ** रखा गया है। इसको बनाने के लिए जो भी भागीरथ है उनको ईमानदारी से रखा गया है। बड़ा शोध किया गया है। 2019 तक अरुणाचल प्रदेश में डिफो सस्पेंशन ब्रिज, भारत का सबसे बड़ा था। आज के बाद डोबरा -चांठी ( उद्घाटन) के बाद भारत का सबसे बड़ा सस्पेंशन ब्रिज बन जाएगा। मैंने 2015 में कोलकाता में हावड़ा ब्रिज को भी देखा था, जो आर्च ब्रिज था उसका अध्ययन भी इसके काम आया। इसी घाटी में चिन्यालीसौड़ में आर्च ब्रिज भी बना हुआ है।ऐसी संभावनाएं हैं की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी देश के इस सबसे बड़े सस्पेंशन ब्रिज का उद्घाटन करें। ऐसा प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चाहते हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री कल रोहतांग दर्रे हिमाचल में सबसे बड़ी अटल टनल का उद्घाटन करने गए थे। उसी तरह डोबरा में आने की संभावनाएं बल दे रही हैं। वैसे प्रधानमंत्री द्वारा वर्चुअल उद्घाटन की बात भी कही जा रही है।

आज टेस्टिंग सफलता के बाद **एक था भरतु** पर बचा हुआ काम पूरा होगा। यूपीएससी की परीक्षा के लिए डोबरा चांठी पुल भारत का सबसे बड़ा सस्पेंशन ब्रिज है यह उत्तर हो गया है जब तक देश में 440 मीटर से बड़ा सस्पेंशन ब्रिज नहीं बन जाता 14 साल की कठोर परिश्रम से इस पुल पर सरकार ने करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए है।

जारी….

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