Monday, October 20, 2025
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देवताओं को जानने के लिए देवता बनना पड़ता है-महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि

धर्म की परंपरा में ग्रंथ बचेगा तो संस्कृति बचेगी

अंत:करण में सहजता हो तो हर प्राणी आपसे मिलने के लिए आतुर होगा

( वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल की कलम से)

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हुए अमर उजाला संवाद में आध्यात्मिक गुरु स्वामी कैलाशानंद गिरी जी ने भी शिरकत की। इस दौरान उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और अध्यात्म पर विस्तार से बात की। उन्होंने प्रयागराज में संपन्न हुए महाकुंभ पर भी बात की। आइए विस्तार से पढ़ते हैं कि पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि ने कार्यक्रम में क्या-क्या कहा…

बिहार के जमुई से आप हरिद्वार में आए। इसी देवभूमि का साधना के लिए चयन क्यों होता है?

  • आभास तो केवल उत्तराखंड में ही होता है। पूज्य शंकराचार्य जी ने 16 वर्ष की उम्र में इस भूमि का चयन किया। यहां दिग्विजय किया और अंतिम समाधि यहीं ली। उत्तराखंड का चयन संन्यासियों के लिए सर्वोपरि है। देवताओं को जानने के लिए देवता बनना पड़ता है। उत्तराखंड में जो निवास करता है, वह देवताओं से कम नहीं है।

वह कौन सा क्षण था, जब आपको लगा कि जीवन की दिशा यही है?

  • जोग लगन ग्रह बार तिथि, सकल भये अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत, राम जनम सुख मूल।। ये पांच जब अनुकूल हुए, तब भगवान राम आए। आज अमर उजाला संवाद जैसा संवाद हमारे माता-पिता ने किया होगा, तभी मैं संन्यास मार्ग पर आया। निषद कहते हैं वाणी को। तुलसी इस संसार में, सबसे मिलिए धाय ना जाने किस वेश में, नारायण मिल जाए। हर संन्यासी का एकमात्र उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति होता है।
    परमात्मा कहां नहीं है। हम अपने धर्म में नियत रहें, सिद्धि मिल जाएगी, प्रभु को प्राप्त कर लोगे। भगवान कृष्ण कहते हैं कि कोई ऐसा प्राणी नहीं है, जिसमें मैं विद्यमान नहीं हूं। जिस दिन कोई संन्यासी बनता है तो संन्यासियों के संपूर्ण कर्तव्य समाप्त हो जाते हैं। उसका पिंडदान हो जाता है। परमात्मा का आलिंगन और सबका कल्याण, यही उद्देश्य रह जाता है। केवल परमात्मा की अभिलाषा रखने वाला ही संन्यासी है।
  • इस दुनिया में सारे विवाद धर्म के नाम पर क्यों हैं?
    • धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। भगवान कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन युद्ध करो! अर्जुन ने कहा कि ये सब के सब मेरे सगे हैं। मैं किनसे युद्ध करूं। …संवाद का निष्कर्ष ही पथप्रदर्शक होगा। तब भगवान कृष्ण ने कहा- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। यानी मेरी शरण में आओ। अर्जुन का मन अशांत रहता है तो भगवान कृष्ण कहते हैं कि धर्म से स्वयं का कल्याण किया जा सकता है।

    रील्स के जमाने में आजकल युवाओं में एकाग्रता की कमी है।

    • जब मैंने यह साधना 35 वर्ष पहले जब प्रारंभ की तो मैं इसे पूजन कक्ष में करता था। एक-दो लोग देखते थे। आज तक इस पूजन को 200 करोड़ लोगों ने देखा है। अगर आप असली हैं तो किसी यंत्र की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर आपके साथ है। महादेव ने मेरा चयन किया कि तुम इस कर्म को करो। नवरात्रि के एक हवन में मैंने एक जज साहब को बैठाया। वहां तापमान सौ डिग्री तापमान था। इतने तापमान में कोई कैसे हवन कर सकता है? तो भगवती कहती है कि तुम हवन तो करो, मैं कराऊंगी। भगवती सारे रोगों से दूर करने में समर्थ है। आज करोड़ लोग महादेव के उपासक हुए। …महादेव एक बार नाराज होकर समाधि लगा लेते हैं। तजी समाधि संभु अबिनासी। फिर राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे॥
      यानी सबके नाम से जब राम नाम निकला तो सब महादेव के पास आए। महादेव ने कहा कि समाधि टूट गई। तब उन्होंने कहा कि मैं राम का चिंतन कर रहा था। हर दिन 50 ग्राम और पूरे श्रावण में एक लीटर पानी हम पीते हैं, लेकिन महादेव नहीं मिलेंगे।
      प्रथम भगति संतन कर संगा। जब तक शरीर में प्राण रहेगा, महादेव साधना कराएंगे।
    • पुरातन ज्ञान को संजोने का आप क्या प्रयत्न कर रहे हैं?
      • मैं उन लाइब्रेरियों में गया, जहां जाना प्रतिबंधित है। हमारे शास्त्रों को अरबी-फारसी में अनूदित कर छुपा दिया गया था। हमने एक हजार साल पुरानी पुस्तकों को एकत्रित किया और संचित किया। आज हम उसके माध्यम से हवन-पूजन कर पाते हैं। हमने हिंदी-अंग्रेजी में उसका अनुवाद करवाया। धर्म की परंपरा में ग्रंथ बचेगा तो संस्कृति बचेगी।

      आप जितने संन्यासियों के करीब हैं, उतने ही नेताओं, उद्योगपतियों के भी करीब हैं, इसका क्या राज है?

      • केवल महादेव का राज है। महादेव की उपासना। आज हमने 12 हजार नए साधु बनाए। दुनिया के सभी लोग हमारे शिविर में आए। 50 लाख लोगों को भोजन कराने का भाव था, 2.27 करोड़ लोगों ने हमारे शिविर में भोजन किया। छोटा-बड़ा, हर प्राणी आया। अंत:करण में सहजता, सरसता हो तो हर प्राणी आपसे मिलने के लिए आतुर होगा।

      आध्यात्मिक चेतना को वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाले युगदृष्टा

      अध्यात्म और राष्ट्र निर्माण को समर्पित स्वामी कैलाशानंद गिरि न केवल परमार्थ निकेतन और कैलाश आश्रम के प्रतिष्ठित पीठाधीश्वर हैं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना को वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाले युगदृष्टा भी हैं। वे आधुनिक विज्ञान और सनातन धर्म के समन्वय के पक्षधर हैं और युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए डिजिटल माध्यमों का प्रभावशाली उपयोग करते हैं।

      बचपन में ही घर त्यागकर धर्म का रास्ता चुना
      1976 में बिहार के जमुई में स्वामी कैलाशानंद गिरि का जन्म एक मध्यम परिवार में हुआ। बचपन में ही घर त्यागकर धर्म का रास्ता चुन लिया और वे भगवान की भक्ति में इस कदर रम गए कि फिर कभी परिवार की तरफ देखा ही नहीं। स्वामी कैलाशानंद गिरी का प्रभाव केवल धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी है। कई राजनेता, कलाकार और अन्य प्रसिद्ध हस्तियां उनसे आशीर्वाद लेने आते हैं।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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