●जिमराड़ा से दमराड़ा बनने का रोचक इतिहास
(हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से)।
दमराड़ा गॉव का परिचयः
दमराड़ा गॉव एक नहीं बल्कि पॉच गॉवों से बना है, जिसकी वर्तमान में दो ग्राम सभा है, एक जिया दमराड़ा जिसमें जिया दमराड़ा, चाय दमराड़ा और उनियाल दमराड़ा आता है, जबकि दूसरी ग्राम सभा आसो दमराड़ा है, जिसमें आसो दमराड़ा और डांड दमराड़ा आता है। सुविधा की दृष्टिकोण से ग्राम सभा के दृष्टिकोण से दोनो ग्राम सभा का अलग अलग विवरण दिया जा रहा है। जिया दमराड़ा ग्राम सभा की भौगोलिक, इतिहास, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं वर्तमान स्थिति का गहन चर्चा करेगें।
जिया/चाय/उनियाल दमराड़ा की भौगोलिक स्थितिः-
शतरूद्रा सतभामा या सतेडी नदी के बायीं छोर एवं यमकेश्वर ब्लॉक मुख्यालय से जुडा जिया दमराड़ा गॉव बडोली न्याय पंचायत की ग्राम सभा है। सतरुद्रा या सतेडी नदी के विषय मे किवदंती है कि यहां इस नदी के किनारे छोटे छोटे सौ रुद्र हैं, जिस कारण इसे सतरुद्रा, सत्यभामा, आगे लालढांग जाकर यह रवासन कहलाती है। समुद्रतल से लगभग 1800 फीट की उॅचाई पर बसा यह गॉव पहाड़ की तलहटी पर बसा है। ऋषिकेश और कोटद्वार से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। इस गॉव का कुछ हिस्सा नदी के समतल तट पर है। वहीं चाय दमराड़ा और उनियाल दमराड़ा पहाड़ी के मध्य भाग में बसा हुआ है। इसके पूरब में डांड दमराड़ा और पश्चिम उत्तर में बडोली एवं पश्चिम में उमरोली अमोला तथा दक्षिण दिशा में बिथ्याणी गॉव अवस्थित हैं। चाय दमराड़ा और उनियाल दमराड़ा में सीढीनुमा ढलावदार खेत हैं, जबकि जिया दमराड़ा में समतलीय खेत हैं। गॉव के समीप ही गॉव का जंगल हैं। यहॉ साल के पेड़ अधिक मात्रा में हैं। इसके अलावा, पीपल, गूलर, हल्दू, बहेड़ा आदि सभी प्रकार की वनस्पतियॉ गॉव के आस पास हैं। नदी के किनारे बसागत होने के कारण यहॉ मौसम अपेक्षाकृत गर्म रहता है।
जिया दमराड़ा/चाय/उनियाल दमराड़ा गॉव का इतिहासः
जिया दमराड़ा के निवासी श्री विद्यादत्त रतूड़ी जी बताते हैं कि इस गॉव की बसागत लगभग 18वीं सदी के मध्य में हुई है, क्योंकि उनकी इस गॉव में 10वी पीढी चल रही है, वह खुद आठवीं पीढी के है। जिया दमराड़ा के संबंध में किवदंति है कि इसका नाम पूर्व में जिमराड़ा था, क्योंकि आज से लगभग कुछ साल पूर्व तक बुजुर्ग लोग यमकेश्वर को जमकेश्वर कहते थे। यमकेश्वर में यम और शिवजी के मध्य हुए यु़द्ध के कारण यहॉ पर यमराज द्वारा शिव से हारने पर उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप किया गया था। जिस कारण इसे पूर्व में जमकेश्वर बाद में यमकेश्वर हो गया। दमराड़ा गॉव भी यमकेश्वर की सीमा से लगा हुआ है, जिस कारण इसे जिमराड़ा कहा जाता था, बाद में इसका अपभ्रंश होकर दमराड़ा हो गया। प्राचीन दमराड़ा जिया दमराड़ा गॉव ही है।
जिया दमराड़ा और उमरोली तक कस्याली के नेगी थोकदारों के अधीन था। यहॉ तक पूर्व में पंवार और शाह वंशजों का शासन था, बाद में 1816 में अग्रेजों एवं गढ़वाल रियासत के बीच हुई संधि के बाद ब्रिटिश गढवाल अग्रेजों को मिलने पर यह क्षेत्र भी ब्रिटिश गढवाल के अधीन हो गया। लेकिन इससे पूर्व यह गढ़ राजवंश के अधीन था। कस्याली के थोकदारों को टिहरी के राजा द्वारा अपनी कुछ जमीन अपने सरोलों को देने के लिए कहा गया। रतूड़ी जाति के लोग सरोला ब्राहमण थे। यहॉ टिहरी उत्तरकाशी मार्ग पर चिन्यालीसौड़ के पास रतूड़ा गॉव से रतूड़ी और उनके साथ चाय दमराड़ा के उनियाल लोग साथ आये, तब कस्याली के थोकदारों ने राजाज्ञा के तहत दमराड़ा गॉव दे दिया गया। टिहरी रियासत में कहा जाता है कि जिन कन्याओं का विवाह नहीं हो पाता था उन्हेंं जिया कहा जाता था। राजपरिवार की किसी जिया के अधीन यह गॉव कर दिया गया जिस कारण इस गॉव का नाम जिया दमराड़ा पड़ा। अब यह बात टिहरी रियासत में कही जाती है तो स्वाभाविक है कि यहां नागवंशी रहे होंगे जो धीरे-धीरे आम राजवंश में घुल मिल गए हैं क्योंकि जिया ब्वे या जिया नागवंशी जाति की धोतक रही हैं क्योंकि नाग पूजा में “जिया ब्वे नागीण” का जिक्र आता है।
इसी तरह उनियाल जाति के लोगों के निवास करने के कारण उनियाल दमराड़ा और बांस के प्रजाति का चाय अधिक होने के कारण अन्य दमराड़ा को चाय दमराड़ा नाम दिया गया। दमराड़ा गॉव में स्व0 पूर्णानंद रतूडी स्वतंत्रता सग्रांम सेनानी रहें हैं, वहीं उनियाल दमराड़ा में स्व0कातिंचंद उनियाल और स्व0 रूपचंद उनियाल भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहें हैं। डॉ0 रूपचन्द्र उनियाल पुत्र स्व0 रामकृष्ण उनियाल निवासी चाय दमराड़ा जन्म तिथि 27 मई 1912 पट्टी वल्ला उदयपुर पौड़ी गढवाल। तत्कालीन कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता जिन्हेंं देश की आजादी के दौरान (1932 से 1942) दो बार 400 रूपये का जुर्माना सहित ढाई वर्ष की कैद भी हुई।
स्व0 क्रान्तिचन्द्र उनियाल (1912 -1970) पुत्र श्री रामेश्वर उनियाल, ग्राम चाय दमराड़ा, उदयपुर वल्ला पौड़ी गढवाल को सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सन् 1932 में 02 वर्ष की कड़ी कैद तथा 400 रूपये का जुर्माना और जुर्माना ना देने पर 04 माह की कड़ी कैद की सजा दी गयी। 1970 में हरिद्वार में इन्होंने अपनी अतिंम सांस ली। स्व0 इश्वरी दत्त रतूड़ी के पास पूर्व में पदमचारी थी जिनको राजस्व वसूल करने का अधिकार प्राप्त था।
जिया/चाय/उनियाल दमराड़ा की सामाजिक स्थितिः-
जिया दमराड़ा में बहुल जाति के लोग निवास करते हैं, जिसमें रतूड़ी जाति के लोग टिहरी गढवाल के रतूड़ा गॉव से आये हैं, वहीं थपलियाल भी इन्ही के साथ यहॉ आकर बसे, जबकि केष्टवाल जाति के लोग केष्टा गॉव से आये हैं। बेलवाल जाति के लोग पौखाल के पास से यहॉ आकर बस गये। इसी तरह से भट्ट जो सुंडली भट्ट के नाम से जाने जाते हैं उनका मूल गॉव सौंडल असवालस्यूँ गॉव पौड़ी बताया जाता है। वहीं रावत जाति का एक परिवार यहॉ रहता है, जो अपने ननिहाल में है। इसी तरह नेगी जाति का और कुछ परिवार गुसाई जाति के यहॉ निवास करते हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति में लुहार जाति के लोग यहॉ बसागत करते हैं।
चाय और उनियाल दमराड़ा में उनियाल जाति के लोग रहते हैं, इनके संबंध में दो मत हैं, कुछ टिहरी के मूल निवासी बताते है, जबकि कुछ अमाल्डू के मूल निवासी बताते हैं। इसी तरह नैथाणी जाति के लोग कांडाखाल के विस्ताना गॉव से आये हैं। डबराल जाति के लोग मसोगी से आये हैं। वहीं बडोला परिवार जो ढुंगा के मूल निवासी हैं। इसी तरह से देवराणी जो डूंडेख के मूल निवासी हैं, यहॉ पर अपने ससुराल मे निवासरत हैं, और जमीन क्रय कर यहॉ के निवासी बन गये हैं, जबकि भट्ट जाति के लोग जो बूंगा वीरकाटल के निवासी हैं, अपने ननिहाल में निवास करते हैं।
चाय दमराड़ा मे उनियालों की कुल देवी राज राजेश्वरी का मंदिर है, जबकि क्षेत्रपाल देवता भूम्या है। वहीं जिया दमराड़ा में शिवालय है, और बेलवाल परिवारों के द्वारा भी चण्डी देवी जो कुल देवी है, की स्थापना की गयी है। जिया दमराड़ा गॉव के मध्य में पीपल के पेड़ के नीचे भूम्या का प्रतीक स्वरूप छोटा सा मंदिर स्थापित किया गया है। वर्तमान में दोनो राजस्व ग्राम में लगभग 60 से अधिक परिवार निवासरत हैं।
जिया/चाय/उनियाल दमराड़ा की आर्थिक स्थितिः-
जिया दमराड़ा की आर्थिकी का मुख्य आधार कृषि और पशुपालन रहा है। वर्तमान में तो अब कृषि नाम मात्र की रह गयी है, अब सभी रोजगार की तलाश मे शहरों की ओर उन्मुख हो गये हैं, गॉव में कुछ ही परिवार खेती करते हैं, जबकि गॉव में सिचांई के लिए पानी की गूलें बनायी गयी हैं। यहॉ पूर्व में धान की रोपाई विस्तृत क्षेत्र में होती थी। यहॉ का धान बहुत प्रसि़द्ध था। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय सभी फसलें जैसे मंडुवा, झंगोरा, मक्की, गेहूॅ, जौ, तिलहनी और दलहनी फसल में यहॉ की उड़द पूरे क्षेत्र में यहॉ सर्वाधिक मात्रा में होता था। गॉव में कुछ परिवारों के द्वारा फलों के बाग लगाये गये हैं। वहीं अब वर्तमान में आर्थिकी का मुख्य आधार रोजगार के तहत नौकरी हो गयी है।
जिया दमराड़ा के प्रमुख तोक जिनमें पूर्व मेंं खेती विस्तृत मात्रा में होती थी आज अब घर के नजदीकि खेतों में ही खेती हो रही है। गॉव के मध्य पानी की सुविधा होने से आलू प्याज, मिर्च, लहसून धनिया परिवार के लिए उपयोग करने के लिए प्रचुर मात्रा में हो जाता है। वहीं जिया दमराड़ा के प्रमुख तोकों में मल्ली सारी, तल्ली सारी, लामड़गडी, बिराड़ी, खैराणी, रौखड़ी रिठोली, तल्ली सेरा (जहॉ धान की रोपाई होती थी), मल्ली सेरा, डिंड का सेरा, आसो चक प्रमुख हैं।
चाय/उनियाल दमराड़ा के प्रमुख तोकः
मत्थी सारी, मुड़ी सारी, ढौ सारी प्रमुख हैं, जबकि मत्थी सारी में अब छोटा सा ग्रामीण बाजार के तहत दुकानें खुल गयी हैं, जहॉ पर आवश्यकता का सामान उपलब्ध हो जाता है।
जिया/चाय/उनियाल दमराड़ा ग्राम सभा की वर्तमान स्थितिः
जिया दमराड़ा ग्राम सभा की वर्तमान स्थिति अन्य गॉवों की अपेक्षा बेहतर है, क्योंकि यह गॉव लक्ष्मणझूला-काण्डी रोड़ के किनारे एवं दूसरी ओर ब्लॉक मुख्यालय से तहसील को जोड़ने वाली सड़क के मध्य बसा हुआ है। पोस्ट ऑफिस और प्राईमरी स्कूल गॉव में ही है, जबकि इण्टर कॉलेज यमकेश्वर में और डिग्री कॉलेज लगभग एक किलोमीटर दूर बिथ्याणी मेंं अवस्थित है। इसी तरह तहसील और ब्लॉक मुख्यालय से इस गॉव की सीमा लगती है, यहीं पर गैंस एंजेसी की सेवा भी उपलब्ध है, नजदीकि अस्पताल यमकेश्वर जो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र है। नजदीकि बैंक उत्तराचंल ग्रामीण बैंक यमकेश्वर और काण्डी मे मिनी एवं भृगुखाल में स्टेट बैंक है। गॉव मेंं सिचांई के लिए नहरे बनी हुई हैं, पानी प्रचुर मात्रा में गॉव के मध्य उपलब्ध है। इस तरह से जिया दमराड़ा ग्राम सभा में सभी सुविधायें उपलब्ध हैं, लेकिन यहॉ से भी 60 प्रतिशत आबादी शहरों की ओर पलायन कर चुकी है। विकास की दौड़ में यह गॉव अन्य गॉवों की अपेक्षा कुछ कदम आगे है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य उमरोली एवं गुमाल गाँव डॉ. मीरा रतूड़ी और वर्तमान जिला पंचायत सदस्य गुमाल गांव श्री विनोद डबराल चाय दमराड़ा के मूल निवासी है।