विकास पोखरियाल की कलम से….।
ध्यान से देखें इस फोटोग्राफ को ….! मौत को भी इंतजार करना पडा इस आदमी का ……! क्योंकि “ललावेद” को पूरा जो होना था।
इस फोटो में कंप्यूटर के सामने बैठे हैं, कल ही दिवंगत हुए हमारे भाई त्रेपनसिंह चौहान।
पिछले 8 – 10 वर्षों में गंभीर बीमारियों से जूझते रहे। पहले कैंसर और फिर लाइलाज बीमारी “मोटर न्यूरॉन से।
बीमारियों के दौर में भी उन्होंने “श्रम का सम्मान” और “घसियारी” जैसे बड़े आयोजन कर डाले। इस दौरान भी उनके मुस्कराते हुए फोटो सोशल मीडिया में देखे जाते रहे हैं।
उत्तराखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि पर उन्होंने पहले “यमुना” उपन्यास लिखा और फिर “हे ब्वारी”।
गत 2 वर्ष से तीसरा उपन्यास “ललावेद” लिख रहे थे कि इसी दौरान बीमारी गंभीर होती चली। ‘मोटर न्यूरॉन” में मस्तिष्क का नियंत्रण मांसपेशियों पर से कटता जाता है। भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को वर्षों पहले यह बीमारी हुई थी। उनके ऐसे ही फोटोग्राफ आपने देखे होंगे।
शुरू में त्रेपन भाई स्वयं कंप्यूटर पर बैठकर टाइप करते रहे। फिर जब हाथों ने काम करना बंद किया तब बोल कर अन्य साथियों से टाइप करवाया। लेकिन फिर जबान भी जवाब दे गई। गर्दन से नीचे हाथ – पैर, कमर सब निष्क्रिय।
वह लिखना जारी रखना चाहते थे। उन्हें बीमारी की गंभीरता का अंदाजा था। तब उनके साथी शंकर गोपाल एक ऐसा सॉफ्टवेयर लेकर आए जिसके द्वारा आंखों की पुतलियों के इशारे से कंप्यूटर पर अपना उपन्यास लिखना जारी रख सकते थे। स्टीफन हॉकिंग वर्षों तक भौतिक विज्ञान के शोध ऐसे ही लिखते रहे।
त्रेपन भाई ने इस अवस्था में भी करीब 1 साल तक लेखन जारी रखा। उन्हें कम्प्य़ूटर के सामने बिठा दिया जाता। संभव है अब “ललावेद” उपन्यास पूरा लिखा जा चुका होगा। मौत को भी इसका इंतजार करना पड़ा होगा।
त्रेपन भाई कल हमारे बीच से विदा हो गए। लेकिन अंतिम समय तक भी उनकी यह जीवटता हम सब के लिए प्रेरक है कि किस तरह गंभीर और असाध्य बीमारी से ग्रस्त होने पर भी जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय और सार्थक जीवन जिया जा सकता है।
सच में त्रेपन भाई, पहाड़ के साहित्य जगत के स्टीफन हॉकिंग बन कर ही बिदा हुए हैं। ये फोटोग्राफ बहुतों को प्रेरित करता रहेगा। जीवटता का दस्तावेज ……………….।
विनम्र श्रद्धांजलि ।