◆ संसदीय कार्यमंत्री प्रेम चंद अग्रवाल व सौरभ बहुगुणा ने भी किया समर्थन।
देहरादून (हि. डिस्कवर)
पिछली त्रिवेंद्र सरकार में अपने मंत्रालय में बेवजह अफसरशाही के हस्तक्षेप से अजीज आ चुके तत्कालीन पर्यटन मंत्री ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि विकास कार्यों की फ़ाइलें विभागों में धूल फांकती रहती हैं व अफसरशाही निरंकुशता से उस पर कुंडली मारकर बैठ जाते हैं जिससे किसी भी मंत्री के लिए विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने में मुश्किलें व ढेरों अड़चनें आती हैं और उन्हें जनता को जबाब देना मुश्किल हो जाता है। अब जनता को कैसे बताएं कि उनके मंत्रालय के अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार मंत्री को नहीं बल्कि मुख्यमंत्री को है।
इस बार सतपाल महाराज इस मुद्दे पर काफी गम्भीर नजर आए और तो और इसमें उनके सहयोगियों का भी उन्हें साथ मिलना शुरू हो गया है। और सही मायने में मंत्रियों की यह लामबंदी कहीं न कहीं जनता को फायदा पहुंचाने वाली व अफसरों के लिए सिरदर्दी बनने वाली नजर आती है।
ज्ञात हो कि 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी ने सभी मंत्रालयों से सम्बंधित सचिव स्तरीय अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार सम्बंधित विभागीय मंत्रियों को सौंप दिया था, जिसे भाजपा सरकार के आने के बाद पुनः अधिकारियों ने बड़ी चतुराई से मुख्यमंत्री के हाथ सौंपकर बेहद चतुराई से इस अब पर विराम लगा दिया था।
सतपाल महाराज ने कहा कि जब देश के अन्य सभी राज्यों और तो और हिमाचल व उत्तर प्रदेश में भी विभागीय सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार विभाग मंत्रियों को है तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं। क्या बोले सतपाल महाराज आप भी सुनिये:-
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने एक बार फिर से विभागीय सचिव की सीआर मंत्रियों द्वारा लिखे जाने की मांग की है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि उन्होंने यह विषय कैबिनेट के सामने भी उठाया। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि अन्य मंत्रियों को भी यह विषय सरकार के सामने लाना चाहिए। महाराज की माने तो इससे एक अनुशासन आएगा। दरअसल पूर्व में भी कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की मांग कर चुके हैं। उनका कहना है की अन्य राज्यों में इस तरह की व्यवस्था है लेकिन उत्तराखंड में तिवारी सरकार के समय थी जिसे बाद में बंद कर दिया गया। इसे दुबारा शुरू किया जाना चाहिए।
कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने भी सतपाल महाराज की बात का समर्थन करते हुए इसे जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि पहली कैबिनेट में इसे मुख्यमंत्री के समक्ष रखा गया है वही इस संबध में उचित निर्णय लेंगे। आपको बता दें इसके पीछे की वजह काम में और अधिक पारदर्शिता और ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण माना जा रहा है। पूर्व में इस तरह के विषय सामने आए हैं जब मंत्रियों की सचिवों के साथ बनी नहीं।
वहीं पहली बार मंत्री पद की शपथ लेने वाले युवा विधायक सौरभ बहुगुणा ने भी इस बात का पुरजोर समर्थन किया है कि एसीआर पर मंत्री का अधिकार होना चाहिए। क्या कहा सौरभ बहुगुणा ने आप भी सुनिए-
आखिर क्या है ACR का अर्थ ?
एसीआर यानी एनुअल कॉन्फिडेंसियल रिपोर्ट (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) सरकारी कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट उनके कार्य, आचरण, चरित्र और क्षमताओं के क्षेत्रों में उनके प्रदर्शन का आकलन करने के उद्देश्य से लिखी जाती है। एसीआर कार्मिक के कार्य व्यवहार पर संस्था प्रधान का गोपनीय प्रतिवेदन ही एसीआर कहलाता है । वार्षिक कार्य मूल्यांकन या बार्षिक गोपनीय रिपोर्ट संस्था प्रधान द्वारा अपने विभाग में कार्यरत सचिवों/कार्मिकों के कार्य मूल्यांकन के आधार पर दी जाती है ।