Saturday, July 27, 2024
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21वीं सदी में 20वीं सदी का गीत है “स्याळी रामदेई”- नरेंद्र सिंह नेगी।

देहरादून (हि. डिस्कवर)

सुरेश जोशी एवं मशकबीन प्रोडक्शन द्वारा आज राजधानी देहरादून के एक होटल में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत “स्याळी रामदेई” के वीडियो का लोकार्पण किया गया। इस दौरान पूरा हाल गढ़वाली सिनेमा जगत को कलाकारों, गायक, गायिकाओं व संगीतज्ञ व संगीत प्रेमियों तथा साहित्यिक विधा से जुड़े लोगों से खच्चाखच भरा रहा।


इस दौरान लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जहां एक ओर सभी का आभार व्यक्त किया वहीं उन्होंने कहा है कि वर्तमान के गीतकार, गायक व अभिनय के क्षेत्र में कार्य कर रहे कलाकारों को अपने गीत संगीत में वैरायटी लानी होगी ताकि वे जनमानस की पसंद बन सकें व उनके गीतों की उम्र 50 साल से अधिक हो ताकि वे भविष्य में लोकगीत बन सकें।

उन्होंने कहा कि वे 21वीं सदी में 29वीं सदी का गीत लेकर आये हैं। यह गीत मूलतः उन लोगों के लिए है जिन्होंने पहाड़ में पहाड़ जैसा जीवन व्यतीत किया है व वे उसे आज भी गीतों के माध्यम से अपनी स्मृतियों में साझा करना चाहते हैं। जिनमें नई पीढ़ी के दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाची-चाचा शामिल हैं। आज भी पहाडों में वही लोकसमाज जीवन यापन कर रहा है जिसके मूल में 20 वीं सदी है, भले ही वे 21वीं सदी में जी रहे हों।

उन्होंने कहा कि वे आज भी अपने दिनों को याद करते हैं, नई पीढ़ी नई पीढ़ी के ही नए गीत गा रहे हैं जबकि चाचा ताऊ बोड़ा बोडी को अभी भी 20वीं सदी के गीत चाहिए । ऐसे में उस पीढ़ी के लिए मैं हूँ।

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि जब मैं 22-24 उम्र का रहा होऊंगा तब भी मैंने बुजुर्गों के गीत लिखे। यह अच्छी बात है कि आज की पीढ़ी ने संगीत व गढ़वाली सिनेमा को कॉमर्शियल रूप से खड़ा कर इसे जीवनयापन का साधन बना दिया है लेकिन यह भी जरूरी है कि हमें लोक संस्कृति, लोक समाज , लोक भाषा व लोक परम्पराओं के लिए भी काम करना होगा। हमें अपनीं लोक भाषा अपने कल्चर को भी देखना है। नई पीढ़ी के लेखक व गायक को यह समझना होगा कि हमें 21वीं सदी में भी 20वीं सदी के गीत लिखने होंगे पहाड़ो में रहने वालों के लिए , ताकि वे अपने संगीत पक्ष में अपना कल ढूंढ सकें।

उन्होंने कहा कि नए बच्चे अपने गीतों में वैरायटी लाएं। आप लोगों को ही इस इंड्रस्ट्री को समृद्ध करना है। नए गीत हों हास्य हो, खुडेड हों, संवेदना हों, बुजुर्गों के लिए गीत हों,। बुजुर्गों ने जो पहाड़ में जीवन जीवन है उसे भी तारोताजा करने है।
कैसेट युग समाप्ति पर सोशल मीडिया, नई नई कम्पनियां इस फील्ड में आ रही है। जब अचानक कैसेट निर्माण के बाद इस इंडस्ट्री में एक विराम आया तो लगा जाने अब क्या होगा लेकिन उसके फौरन बाद सोशल मीडिया ने गति पकड़ ली। एक ठहराव के बाद फिर संगीत गतिशील हो गया। इसलिए हमें इन प्रोडक्शन हाउस के लिए भी अच्छे गीत लिखने चाहिए ताकि ये फले फूंले।

हम बहुत भली भांति जानते हैं कि पहले कैसे कैसेट कम्पनियां कलाकारों का शोषण करती थी। आज के प्रोडक्शन हाउस में शोषण की गुंजाइश कम है। आप अपना बेहत्तर दीजिये तो यकीन मानिए आपके लिए सभी के दरवाजे खुले मिलेंगे। मैं रेडियो से यहां पहुँचा हूँ और आज भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा हूँ। हालांकि मैं हमेशा कैसेट कम्पनियों के लिए अपवाद जरूर हूँ कि मैंने कभी किसी कैसेट कम्पनी की शर्तें नहीं मानी। टी सीरीज से मेरी पहली कैसेट बरखा निकली जिसकी रिकॉर्ड सेल हुई। तब टी सीरीज के मालिक का मुझे पत्र आया कि उनकी काफी डिमांड है आप जल्दी सेअपने गीत भेजिए हम चयन करेंगे। मैंने उन्हें लिखा कि गीत में अपने पसन्द के लिखता हूँ व गाता हूँ, जो मेरे समाज को पसन्द है। आप बताएं मेरे गीतों का चयन कौन करेगा? मैं एक साल में एक नम्बर करता हूँ। इसके कुछ समय बाद उनका पत्र मिला कि आप आइए आप अपने हिसाब से गीत लिखिए व टी सीरीज के लिए गाइये। मेरा सन 1982 में मेरा कैसेट आया। उस से पहले गोपाल बाबू गोस्वामी का कैसेट आया था। 2010 में मेरा लास्ट कैसेट आया। उस दिन से लेकर लगभग 12-15 साल तक मैं लगातार टी सीरीज के लिए गाता रहा।

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने युवा कलाकारों का आवाहन करते हुए कहा कि आप गीतों में वैरायटी लाइये। ऐसा कुछ हो कि आने वाले 50 साल बाद भी आपके गीत जिंदा रहे। कालजयी रचनाएं बनेगी, लोकगीतों में शामिल होंगी तो यह सबसे बड़ी उपलबधि होगी।

इस दौरान इस गीत में अभिनय कर रहे रंगकर्मी बृजमोहन शर्मा वेदवाल, साहित्यकार नन्द किशोर हटवाल, कवि साहित्यकार ओमप्रकाश सेमवाल, कमल जोशी, गोविंद नेगी, कविलास नेगी तथा आरजे काव्या ने अपने विचार रखे। मंच संचालन की जिम्मेदारी वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने बखूबी निभाई है!

ज्ञात हो कि “स्याळी रामदेई” में मुख्य भूमिका में बृजमोहन शर्मा वेदवाल व अंजली नेगी ने किरदार निभाया है जबकि गीत व संगीत लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व गायिका अंजली खरे, संगीत संयोजक विनोद चौहान, रिदम सुभाष पांडे, रिकार्डिस्ट पवन गुसाईं, वस्त्र सज्जा श्रीमती ऊषा नेगी, मेकअप खुशी रावत, प्रोजेक्ट निदेशक सोहन चौहान, सिनेफोटोग्राफी व एडिटिंग गोविंद नेगी, निर्देशन कविलास नेगी व निर्माण कमल जोशी का है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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