- ऊना को पुन्यारो बुईए, ऊना को पुन्यारु।
बाजा बाँधी गाली लगी सूनs चांदी को धारो।‘
(मनोज इष्टवाल)
यह बेहद आश्चर्यजनक होने के साथ साथ सुखद भी है कि द्वापर युग में जिस गेंद को लाने के लिए श्रीकृष्ण भगवान ने यमुना जी में छलांग लगाई व गेंद लेकर लौटते हुए कालिया नाग के फन में बांसुरी बजाते नृत्य करते हुए प्रकट हुए उन्हीं कालिया नाग का जन्म उच्च हिमालयी शिखर सरु ताल में होते ही वे सर गांव के सात जल धाराओं में प्रकट हुए व यहीं उनका जन्म स्थान माना गया।
उत्तरकाशी के रवाईं घाटी के पर्वत क्षेत्र में स्थित सर गांव बड़ियार पट्टी के 7-8 गांवों के समूह का सबसे अधिक लोकप्रिय गांव है क्योंकि इसी गांव के कारण इस क्षेत्र को सर बड़ियार कहा जाता है व यहां के निवासियों को बड़ियारी।
मूलतः जयाड़ा जाति गांव यह गांव विभिन्न ऐतिहासिक सन्दर्भों के साथ – साथ जून जुलाई माह में जुटने वाले कालिया नाग मेले व पौष माह यानि जनवरी में आयोजित कठऊ मेले के कारण पूरे पर्वत क्षेत्र में प्रसिद्ध है। इस मेले का आयोजन पहले सर गांव के स्कूल के पास और तत्पश्चात कालिया नाग मन्दिर प्रांगण में होता है। जिसमें यहां के ग्रामीण ढोल दमाऊ के साथ तांदी गीत नृत्य करते हैं। कठऊ नामक इस मेले में एक परम्परा है कि ग्रामीण इस दिन पूड़ी (पूरी) पकाकर व चौलाई का दाना भूनकर जेब में रखते हैं व अचानक उसे मुंह में डालकर कालिया नाग मन्दिर आंगन में उपस्थित होते हैं। फिर नाग डोली आंगन में नचाई जाती है। जिस व्यक्ति पर कालिया नाग अवतरित होते हैं वे तेज धार के डाँगरों (परसों) पर चलते हैं, उन्हें मुंह में रखकर उदमत होकर नाचते हैं। उनके नृत्य के साथ ग्रामीण ढोल के साथ सीटियों की भी ताल देते हैं।
जिन पर कालिया नाग अवतरित होते हैं वे सर गांव के पूर्वज बाजा जयाड़ा या रायचन्द मालदार के डांगरे से अपने नङ्गे शरीर पर वार करते हैं लेकिन उन्हें चोट नहीं आती। फिलहाल मेले सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी के लिए आपको 09 जनवरी को आयोजित होने वाले इस मेले को देखने सर बड़ियार जाना होगा।
सर बड़ियार क्षेत्र से जुड़े ऐतिहासिक सन्दर्भ में एक सन्दर्भ ये भी:-
शोभा गोरख्या और सर-बडियार की हिरमाली के प्रेम गाथा! जिसने कालिया नाग मंदिर प्रांगण में आज भी औरतों का जाना वर्जित किया हुआ है!
(मनोज इष्टवाल)
1803-04 में गोरखाओं द्वारा पूरे गढ़वाल ही नहीं बल्कि हिमाचल तक अपना राज्य विस्तार फैला दिया था! ये क्रूर से भी अधिक क्रूरतम आज भी यहाँ के लोकगीतों और लामण गीतों में वर्णित हैं! ऐसा ही एक प्रकरण शोभनी डोटी या शोभा गोरख्या और सर की हिरमाली का सर बडियार के लामण व लोकगीतों में सुनने को मिलता है।
उत्तरकाशी जनपद के विकास खंड पुरोला का यह ऐसा क्षेत्र हैं जो मानव बसागत में आखिरी गाँव गिना जा सकता है! यह पुरोला से लगभग 20 से 25 किमी. पैदल दूरी व सरनौल से 06 से 08 किमी. दूरी पर ये गांव बसे हुए हैं। इन्हें 8 गाँव बडियारी भी कहा जाता है, और इन्हीं आठ गाँव की एक पट्टी है जिसे सर बडियार कहते हैं। इनमें डिंगाडी, सर, गौल, छानिका, कसलों, किमडार, पौंटी व लेवताडी प्रमुख हैं जहाँ आज भी सडक कोसों दूर है।
हिरमाली के पिता रायचन्द व ताऊ जींदा का यहाँ बड़ा नाम था। इनके पास सैकड़ों भेड़ें हुआ करती थी और हमेशा ये धाडा मारकर दूसरे की भेड़ें उठाकर लाने में प्रवीण थे। लड़ाकू मोड़ भड रायचंद के डांगरे की कई कहानियां व लामण आज भी प्रचलित हैं जिसमें दूणी-छज्जों की सैकड़ों भेड़ों को धाडा मारकार चुरा लाना भी प्रमुख है।
इनके पुत्र बाजा बडियारी के भी बड़े किस्से इतने ही मशहूर थे। अपने बाप-दादाओं द्वारा जमा अकूत दौलत का भंडार भीइनके पास था। बाजा ज़याड़ा के बॉर्डर में एक कहावत प्रचलित थी जिसे आज भी रवाई क्षेत्र में कहा जाता है कि “आदि कु बलs बाजा, आदि कु राजा” (आधे का बोले बाजा और आधे का राजा)।
1803 में राजा प्रधुम्नशाह को वीरगति प्राप्त होने का समाचार मिलते ही पर्वीतीय क्षेत्र के रण बांकुरों ने अपनी हार यूँहीं मान ली और बिना विरोध दर्ज किये गोरखाओं के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। गोर्ख्ये मारकाट मचाकर दून जौनपुर लूटते हुए जब रमा–सिराहीं पहुंचे तो वहां के खेतों को देखकर आश्चर्यचकित रह गए! उन्होंने रामासिराहीं भी जमकर लूटा। गुंदियाटगाँव के मर्छु गुन्दियाटी को लूटने के बाद शोभणु गोरख्या नामक गोरखा सेना के दलनायक ने मर्छु गुन्दियाटी से सबसे अधिक मालदार की जानकारी ली। तब मर्छु गुन्दियाटी ने प्राण रक्षा की भीख मांगते हुए कहा कि सर गांव का बाजा सबसे ज्यादा धनवान है।
गोरखे गुन्दियाटगाँव से पैदल चलकर बेहद कठिन बीहड़ रास्ता पार कर जब डोलटया नामक स्थान पहुंचे जहाँ से उन्हें सर गाँव दिखाई दिया तो उन्होंने अपनी तुरही बजाई। जिसका वर्णन वहां के लोकगीतों/लामण में कुछ यों मिलता है:-
“भैंसी ब्याणी भूरी बुईए, भैंसी ब्याणी भूरी!
तब भेद पाई बुईए जातरा डोलटयाकोंदी बजी तुरी।”
बाजा समझदार था वह जानता था कि अब हम चंद लोग इसकी सुरक्षा नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने कालिया नाग की मूर्ती व आभूषण लेकर बंचाटा नामक ब्राह्मण को रिखोड़ा नामक स्थान ले जाने को कहा जो सरूताल के आस-पास कहीं बुग्यालों में पड़ता है और आज भी वहां देवता की पूजा होती है।
बाजा के आत्मसमर्पण के पश्चात गोरखों ने खूब सोना चांदी प्राप्त किया जिसका गीतों में उल्लेख कुछ इस तरह मिलता है:-
ऊना को पुन्यारो बुईए, ऊना को पुन्यारु।
बाजा बाँधी गाली लगी सूनs चांदी को धारो।‘
गोरखे यहीं नहीं रुके। जब शोभणु गोरख्या की नजर बाजा की बहन हिरमाली पर पड़ी तो वह उसकी खूबसूरती पर मन्त्र मुग्ध हो गया। राजा प्रधुम्नशाह की मौत के पश्चात गुलाम प्रजा कर भी क्या सकती थी। हिरमाली अंधेरे में भी चमकती किसी हीरे के मानिंद थी। वह आसमान की चन्द्रमा सी खूबसूरत व उसकी आँखें हिरणी सी थी। बदन मानों मक्खन की टिकिया हो। शोभणु गोरख्या ने हिरमाली का हाथ पकड़ा और बाजा को बोला- या तो देवता के आभूषण व मूर्ती दे दे। नहीं तो हिरमाली मुझे दे दे।” जिसके बोल वहां के लोक में इस तरह प्रचलित हैं:-
ऊना को पुन्यारो बुईए, ऊना को पुन्यारु।
कित देण हिरमोल्या कित दे देवता कु धुन्यारु।’
बाजा जयादा ने कहा मैं देवता का धुन्यारु कभी नहीं दूंगा क्योंकि ऐसा अन्याय करने से मेरे कुल में दाग लग जाएगा और कुल वंश का समूल नाश हो जाएगा। कहते हैं इसके बाद शोभणु गोरख्या जबरदस्ती हिरमोली का हाथ पकड़कर मन्दिर में ले गया और उसने मन्दिर की पवित्रता भंग की। तब से लेकर आज तक मंदिर के अंदर विवाहित महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या हिरमोली का विवाह हो गया था या फिर शोभा गोरख्या ने मंदिर के अंदर ही हिरमोली का अंग भंग किया? क्योंकि लोकगीतों/ लामण में यह साफ़ नहीं है कि विवाहित महिलाओं का मंदिर में प्रवेश आखिर क्यों वर्जित है?
दूसरे स्वरूप में इसे प्रेम प्रसंग कहा गया है जो कि निरर्थक सा लगता है क्योंकि प्रेम दोनों ही ओर से आत्ममुग्धता का धोतक है। यहाँ तो एक आताताई ने जोर जबरदस्ती हिरमोली का वरण किया व मंदिर की पवित्रता भंग की! फिर यह प्रेम प्रसंग क्यों गिना गया।
बहुत कोशिशों और मार खाने के बाद भी जब शोभणु गोरख्या मालुम नहीं कर पाया कि मंदिर की मूर्ती व गहने कहाँ गए तब उसने जोर जबरदस्ती हिरमोली को अपने साथ ले जाने की बात कही। बाजा ने यूक्ति लड़ाई और कहा -ठीक है लेकिन जोर जबरदस्ती नहीं इसे हम पूरे सम्मान के साथ आपको सौंपेंगे। रिश्ता बनाकर भेंजेगे अत: मुझे दावत के लिए आस-पड़ोस के अपने नाते रिश्तेदार बुलाने होंगे, क्योंकि आप जैसे बहादुर व्यक्ति से बहन का रिश्ता होगा तो हमारे लिए सम्मान की बात होगी। शोभणु गोरख्या फूला नहीं समाया। शायद कामदेव ने उसे इतना कामांद बना दिया था कि उसे बाजा की कूटनीति समझ नहीं आई।
फिर क्या था बाजा की ओर से क्षेत्र के सयाणा पंचों को आमन्त्रण दिया गया। हिरमोली ने भी बिणासू की मातृकाओं को आमन्त्रण देकर कहा कि हे बनदेवियों यदि तुमने मेरे कुल व मान-सम्मान की रक्षा की तो मैं तुम्हारे लिए वहीँ जंगल में “क्वीई” (कुुआं) बनवाउंगी।
इस तरह आमन्त्रण पाकर दो दिन बाद पर्वत क्षेत्र व रवाई क्षेत्र के सुप्रसिद्ध भड व “भाट” सर गाँव पहुंचे! जहाँ गोरखे तम्बू गाड़े थे और रोज बाजा जयाड़ा की भेड़ बकरियों का भक्षण कर दावत मना रहे थे। सभी जीत में उन्मत थे व अंहकार से चूर। कहा जाता है कि साजिश के तहत जब आपसी परिचय का दौर चल रहा था तब सरनौल के नाकचंद “भाट” जो स्वयं में बहुत ताकतवर था लेकिन तब सरनौल और बडियारियों की आपस में नहीं बनती थी, लेकिन इस समय क्षेत्र की अस्मत दांव पर लगी होने के कारण वह भी यहाँ पहुंचा था। जैसे ही नाकचंद “भाट” शोभणु गोरख्या के समीप पहुंचा उसने एक जोरदार लात शोभणु गोरख्या के सीने पर जड़ दी। लात इतनी जोरदार पड़ी कि शोभणु गोरख्या मूर्छित होकर एक आंगन से दूसरे आँगन जा गिरा। फिर क्या था सारे बडियारी व आये सयाने गोरखों पर टूट पड़े। दर्जनों गोरखे मारे गए। बाजा की रस्सियों खोली गयी और शोभणु गोरख्या को उसके सम्मुख लाया गया। कहते हैं बाजा ने अपने पिता रायचन्द के डांगरे से उसकी गर्दन ऐसे उड़ाई कि वह लुढकती हुई कई खेतों पार चली गयी। बताया जाता है कि हिरमोली की शादी जखोल गाँव पर्वत हुई जहाँ सुपिन पार बिणासू की बन देवी जिन्हें यहाँ मात्री/मातृका या परी कहकर पुकारा जाता है, के मन्दिर में हिरमोली ने भेंट स्वरूप प्रसाद बनाया और पास ही परियों के पानी पीने की “क्वीई” (कुंवा) बनवाया जो आज भी मौजूद है।
यहाँ जो बात खलती है वह दो दिन प्रश्न अवश्य खड़े करती है। पहला- क्या हरमोली पहले से ही शादी-शुदा थी। अगर नहीं तो वह पर्वत क्षेत्र के बिणासु की मात्रियों के बारे में कैसे जानती थी ? दूसरा- क्या शोभणु गोरख्या ने कालिया नाग मंदिर में हिर्मोली के साथ ज्याद्त्ती की थी या अंगभंग किया था ? अगर नहीं तो फिर क्या सिर्फ उसके मंदिर में सोने से मंदिर की पवित्रता भंग हुई। फिर विवाहित महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित क्यों?
इन दोनों प्रश्नों की उलझी गुत्थी तो यही बताती है कि हाँ हिरमोली पूर्व से ही शादी शुदा थी, और शोभणु गोरख्या उससे मंदिर में सम्बन्ध बनाये यही कारण हो सकता है कि वहां विवाहित महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया हो, लेकिन ये भी हो सकता है कि बिणासू की मातृकाओं ने उसकी लाज की रक्षा की हो। खैर यह सब भविष्य के गर्भ में है। लेकिन लोकगीत में शोभणु गोरख्या और हिरमाली के प्रेम प्रसंगों की चर्चा कुछ ज्यादती लगती है क्योंकि भला एक आक्रान्ता से एक ही दिन में वह लड़की कैसे प्यार कर सकती है जिसके भाई को उसने बंधक बना दिया हो जिसके घर को लूट दिया हो, अर्थात कहीं न कहीं इसे प्रेम प्रसंग का लवादा इसलिए पहनाया गया है क्योंकि वह सौन्दर्य की धनी थी तो स्वाभाविक तौर पर उससे कईयों को जलन भी रही होगी।