(मनोज इष्टवाल)
सच कहूँ तो यह जोड़ी कमाल की है। लोग जल्दी-जल्दी नोट छापकर अमीर बनने के लिए मिलावट कर खाद्य पढ़ार्थों में जहर बेचने को तैयार हैं और ये दोनों कछुवे की चाल में उत्तराखंडी ऑर्गनिक फ़ूड के लिए अपना जीवन समर्पित करने लगे हैं। लगभग पांच सालों में इस जोड़े ने अपनी मेहनत के बूते पर एक साईकिल तो खरीद ही ली है। जी हाँ… ऐसी ही कुछ कहानी है बूढ़ दादी के नाम पर उत्तराखंडी व्यंजनों का एक अदना सा रेस्टोरेंट चला रहे कपिल डोभाल व उनकी धर्मपत्नी दीपिका की।
कपिल डोभाल की अगर बात करें तो उसके अंदर विद्यार्थी जीवन से ही धारा से हटकर कार्य करने की जीजिविषा रही है। बहुत कम उम्र में जिला पंचायत चुनाव फिर चकबंदी आंदोलन में गणेश सिंह ‘गरीब’ जी के कंधे से कंधा मिला, आंदोलन को गति देना और दीपिका से विवाह के बाद पति के नक़्शे कदम पर चलकर पहले पहाड़ी अन्न का प्रमोशन व बाद में इन्हीं अन्न को फ़ूड सप्लिमेंट के रूप में करीब 50 से 100 बर्ष पुराने उत्तराखंडी खानपान पर शोध कर उसे आमजन तक परोसना दीपिका का ध्येय बन गया। कपिल की सह-भागिता में इस जोड़ी ने इन व्यंजनों को ठेली से लेकर बड़े रेस्टोरेंट तक ले जाने के लिए मशक्कत की लेकिन अपने पहाड़ी ठेठ पहाड़ी जो ठहरे। उन्हें राजस्थानी दाल बाटी का स्वाद और बिहार के लिट्टी -चोखा का मिजाज लेना था, भला वह कहाँ पहाड़ के नाम पर पहाड़ी व्यंजन खाने के लिए समय निकालते।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जरूर अपना मुरीद बनाया। सच कहूँ तो उत्तराखंड के अन्न व खानपान को बड़े प्लेटफार्म तक ले जाने के वे ही असली ब्रांड अम्बेसडर रहे। कपिल दीपिका की जोड़ी ने उत्तराखंडी ब्यजनों को परोसने के चक्कर में दिन रात मेहनत की…। कमाई तो कहाँ लेकिन जेब का भी लगाया और आखिर एक बड़े आकार का रेस्टोरेंट बंद हो गया। हमें तब दुःख होता था जब वे लोग छिंटाकशी करते थे जिन्होंने कभी उत्तराखंडी व्यंजनों की ख़ुशबु लेने की जरुरत महसूस नहीं की।
मुझे भी लगा कि कपिल ने अब सरेंडर कर दिया है। लेकिन पहाड़ की तरह मजबूत पहाड़ की नारी दीपिका ने हार नहीं मानी। फिर जन्म हुआ नये अंवेक्षण के साथ बूढ़ दादी के नाम से पहाड़ी व्यजनों को नये प्लेटफार्म के साथ परोसने की। रिस्पना पुल से मात्र 200-250 मीटर दूरी पर स्थित हरिद्वार जाने वाले मार्ग में पेट्रोल पम्प के बेहद पास एक छोटे से रेस्टोरेंट बूढ़ दादी ने फिर पहाड़ी ब्यजनों की भरमार ला दी। दीपिका को लग गया कि अब थोड़ा पहाड़ी व्यंजनों की अलग से ट्रेंडिंग करनी पड़ेगी। उसने मंडुवे के मोमो बनाने शुरू क्या किये कि युवाओं की जुबान पर उसका स्वाद चढ़ गया। बूढ़ दादी की कृपा हुई तो रेस्टोरेंट चल पड़ा। आज दीपिका ने लगभग पांच लोगों को रोजगार दिया है।
कपिल डोभाल ने मार्केट का रिसर्च कर पाया कि जब राजस्थान की दाल बाटी व बिहार का लिट्टी – चोखा लोग खूब पसंद कर रहे हैं तो उत्तराखंड का ढूँगळा क्यों न बाजार में उतारा जाए। विगत बर्ष नवंबर दिसम्बर में आयोजित उत्तराखंड विरासत में अपने स्टॉल पर कपिल दीपिका ने ढूँगळा परोसे तो वह सबकी जुबान पर चढ़ गए।
विगत दिवस बूढ़ दादी ने ढूँगळा के प्रमोशन में राजधानी देहरादून के बेक फार्म में एक ढूँगळा पार्टी का आयोजन किया जिसमें शकुरा बेकर्स के संचालक मदन मोहन मैठाणी ने कपिल व दीपिका का सहयोग किया।
इस आयोजन में ढूँगळा का रस्वादन लेने प्रदेश के पूर्व सीएम हरीश रावत, समाजसेवी रघुवीर बिष्ट, आईआईएम काशीपुर के प्रो. डा. रामकुमार, पीसीएस रमिंद्री मंद्रवाल, पीसीएस शुक्ला जी, मुंबई कौथिग के आयोजनकर्ता केशर सिंह बिष्ट, राज्य आंदोलनकारी जयदीप सकलानी, यूकेडी की फायरब्रांड मीनाक्षी घिडिल्याल, कर्नल गुरुंग, पदमश्री कल्याण सिंह रावत, प्रख्यात साहित्यकार अरुण असफल आदि कई प्रमुख लोग पहुंचे थे।
बहरहाल आयोजन कितना सफल रहा। उम्मीद है बूढ़ दादी इस प्रयास को सार्थक बनाने के लिए इस मुख्य धारा के व्यंजनों से जोड़ने का काम करेगी।