Wednesday, November 20, 2024
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द्वी हजार आठ भादों का मास। सतपुली मोटर बौगीन खास।

द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बौगीन ख़ास।

(मनोज इष्टवाल)

यह वह त्रासदी है जिसने अपने समय पर ऐसे शूल चुभाए कि उनकी चुभन 71 साल बाद भी वैसे ही महसूस होती है जैसे उस दौर में हुई होगी। इसका महज कारण सतपुली की मोटरों के बहने का नहीं अपितु उस दौर के बादी समाज ने जैसे तस्वीर अपने गीतों के बोलों में उकेरी वह आज भी ऐसे लगती है मानों आंखों के आगे की बात रही हो। सतपुली के ऐसे गीत पर  वृत्तांत को लिखते लिखते सचमुच मेरी आँखें भर आई।

संवत 2008 (14 सितम्बर1951) का यह वह समय था जब सतपुली की नयार नदी पर पुल नहीं होता था और सारी मोटर गाड़ियों का जमावड़ा नयार के किनारे हुआ करता था। इसी काल में जब नदी उमड़ी और अपने विराट रूप में मोटर गाड़ियों को बहाती ले गयी तब उस दौर को किसी गीतकार ने अपनी कलम में ढालकर यह कारुणिक गीत लिखा जिसमें शिबानंद के पुत्र गोबर्धन ने अपनी अहलीला समाप्त होने से पहले हर संभव प्रयास किया और जब लगा कि अब बच नहीं पायेगा तो छाती में बांधे अपनी जिंदगी भर की कमाई जोकि उसने एकएक रूप्या कर अपनी शादी के लिए जोड़े थे। बीच नयार से इसलिए फैंके थे कि मैं तो गया यह रकम किसी के काम तो आएगी लेकिन वो रुपये कहाँ नदी तट तक पहुँचते। गोबर्धन की शादी जोकि मार्गशीष माह में थे वह उसके सपनों की तरह जल समाधि में समां गयी। अंत काल में अपनी जन्मदायिनी माँ को याद करने वाला गोबर्धन देखते ही देखते अपनी गाडी सहित जल में शमां गया। इस दुर्घटना में लगभग 30 व्यक्तियों की जान जल समाधि में गयी।

सचमुच बेहद कारुणिक गीत जो किसी के भी आंसूं ला दे। इस गीत के बोलो को लोग आज भी दो तरीके से गाते सुनाई देते हैं। लीजिये आप भी एक नजर देख लीजियेगा-

1

द्वी हजार आठ भादों का मास,सतपुली मोटर बौगीन ख़ास।
स्ये जावा भै बंधो अब रात ह्वेग्ये,रुणझुण-रुणझुण बारिस ह्वेग्ये।
काल सी डोर निंदरा बैगे,मोटर की छत पाणी भोरे ग्ये..!
भादों का मैना रुणझुण पाणी,हे पापी नयार क्या बात ठाणी।
सबेरी उठिकी जब आंदा भैर,बौगिकी आन्दन सांदण खैर।
डरेबर कलेंडर सब कट्ठा होवा,अपणी गाडीयूँ म पत्थर भोरा।
गरी ह्वे जाली गाडी रुकी जालो पाणी,हे पापी नयार क्या बात ठाणी।
अब तोडा जन्देउ कपडयूँ खोला,हे राम हे राम हे शिब शिब बोला।
डरेबर कलेंडर सबी भेंटी जौला, ब्याखुनी भटिकी यखुली रौला।
भाग्यानु की मोटर छाला लैगी,अभाग्युं की मोटर छाला लैगी।
शिबानंदी कोछायो गोबर्दनदास, द्वी हजार रुपया छया तैका पास।
गाड़ी बगद जब तैंन देखि, रुपयों की गडोली नयार फैंकी।
हे पापी नयार कमायूं त्वेको, मंगशीर मैना ब्यौ छायो वेको।
सतपुली का लाला तुम घौर जैल्या,मेरी हालत मेरी माँ मा बोल्यां।
मेरी माँ मा बोल्यां तू मांजी मेरी, मी रयुं माँजी गोदी म तेरी।
द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बौगीन ख़ास।

2-

द्वी हजार आठ भादों का मास,
सतपुली मोटर बोगीन खास।
औड़र आई गये कि जांच होली,
पुर्जा देखणक इंजन खोली।
अपणी मोटर साथ मां लावा,
भोल होली जांच अब सेई जावा।
सेई जोला भै-बन्धों बरखा ऐगे,
गिड़गिड़ थर-थर सुणेंण लेगे।
भादों का मैना रुण-झुण पांणी,
हे पापी नयार क्या बात ठाणीं।
सुबेर उठीक जब आयां भैर,
बगीक आईन सांदन-खैर।
गाड़ी का भीतर अब ढुंगा भरा,
होई जाली सांगुड़ी धीरज धरा।
गाड़ी की छत मां अब पाणी ऐगे,
जिकुड़ी डमडम कांपण लेगे।
अपणा बचण पीपल पकड़े,
सो पापी पीपल स्यूं जड़ा उखड़े।
भग्यानूं की मोटर छाला लैगी,
अभाग्यों की मोटर डूबण लेगी।
शिवानन्दी कु छयो गोवरधन दास,
द्वी हजार रुप्या छै जैका पास।
डाकखानों छोड़ीक तैन गाड़ी लीने,
तै पापी गाड़ीन कनो घोका दीने।
गाड़ी बगदी जब तेन देखी,
रुप्यों की गड़ोली नयार स्य फैंकी।
हे पापी नयार कमायें त्वैकू,
मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू।
काखड़ी-मुंगरी बूति छाई ब्वै न,
राली लगी होली नी खाई गैंन।
दगड़ा का भैबन्धों तुम घर जाला,
सतपुली हालत मेरी मां मा लगाला।
मेरी मां मा बोल्यान तू मांजी मेरी,
नी रयों मांजी गोदी को तेरी।
मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस,
सतपुली मोटर बोगीन खास।

हिंदी भावार्थ-
दो हजार आठ भादों के महीने,
खास सतपुली में मोटरें बह गई।
यह आदेश आया कि मोटरों की जांच होगी,
पुर्जा देखने के लिए इंजन खोलना है।
अपनी मोटर साथ लाओ,
कल जांच होगी अभी सभी सो जाओ।
सो तो जायेंगे पर भाई बन्धों, बारिश आ गई है,
उसकी गिड़गिड़ाहट सुनाई देने लगी है।
भादों के महीने का लगातार बरसता पानी,
हे पापी नयार नदी आज तूने क्या बात ठानी है।
सुबह उठकर जब बाहर आये,
तो सागंण-खैर के पेड़ नयार नदी में बह के आ रहे हैं।
गाड़ी के भीतर अब पत्थर भरो,
नदी जल्दी कम हो जायेगी, धीरज रखो।
गाड़ी की छत पर भी अब पानी पहुंच चुका है,
सभी का दिल अब कांपने लगा है।
अपने बचने हेतु पीपल का पेड़ पकड़ा,
पर पापी पीपल भी जड़ से उखड़ गया।
भाग्यवानों की मोटर नदी किनारे लग गई है,
भाग्यहीनों की मोटर नदी में डूबने लगी है।
शिवानंद का बेटा था गोबरधनदास,
दो हजार रुपए थे उसके पास।
पोस्टआफिस में जमा करने के बजाय उसने गाड़ी खरीदी,
उस पापी गाड़ी ने आज उसे कैसा धोखा दिया।
गाड़ी नदी में बहती जब उसने देखी,
रुपयों की गड्डी उसने नयार नदी से फैंकी।
हे पापी नयार मैंने तेरे लिए ही कमाया,
मंगसीर के महीने मेरी शादी थी।
मां ने घर पर ककड़ी-मकई बोई है,
अब वह यही कहती रहेगी कि हम नहीं खा पाये।
मेरे साथियों तुम घर जाओगे,
सतपुली की हालत मेरी मां को बताओगे।
मेरी मां को बोलना कि,
मैं तेरी गोदी का नहीं रह पाया।
मेरी मां को यह भी बोलना मेरी आस न‌ करना,
क्योंकि खास सतपुली में मोटर बह गई हैं।

 

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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