Friday, November 22, 2024
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मोइला टॉप/बुधेर गुफा में आज भी भटकती है दो अंग्रेज प्रेमियों की पवित्र आत्मा! बेहद साहसिक है मीलों लम्बी बुधेर गुफा में प्रवेश करना!

मोइला टॉप/बुधेर गुफा में आज भी भटकती है दो अंग्रेज प्रेमियों की पवित्र आत्मा! बेहद साहसिक है मीलों लम्बी बुधेर गुफा में प्रवेश करना!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग)

मोइला टॉप (फोटो-मनोज इष्टवाल)

जौनसार बावर के चकराता से लगभग 26 किमी दूरी पर देवदार, कैल, सुरई के घनघोर जंगल के बीच बने एक खूबसूरत बंगले में जब हमारी टीम (विंग कमांडर अविनाश, स्वेता पाठक उनका पुत्र व मैं) पहुंची तब लगभग अँधेरे ने अपनी चादर फैलानी शुरू कर दी थी! अविनाश व स्वेता प्रकृति के इस स्वरूप से न सिर्फ अभिभूत थे बल्कि मन्त्रमुग्ध भी थे! स्वेता कई बार बोल पड़ती – थैंक्स मनोज, सचमुच यह मेरे लिए नया अनुभव है! फिर अपने पति अविनाश को संबोधित कर कहती- अवि, देखा मुझे सिर्फ सी बीच ही नहीं बल्कि खूबसूरत पहाड़ भी पसंद हैं! अविनाश लोहखंडी के बाद 3.5 किमी जंगलात की बुधेर बंगला पहुँचने वाली सडक पर बेहद सतर्कता से नजरें गढ़ाए हुए प्रश्न के जवाब में सिर्फ मुस्करा देते! उनकी की हेडलाइट दरख्तों से गुजरती देवदार के ऊँचे वृक्षों के झुरमुटों को छू कर फिर इस कच्ची सड़क पर लौट आती ! वृक्षों में रात्रि के झेंवरों ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया था! गाड़ी बंगले के मुख्य द्वार पर जैसे ही पहुंची चौकीदार श्याम सिंह छोटी सी टोर्च लेकर पहुँच चुका था! श्याम सिंह सचमुच कम उम्र का बेहद कम बोलने वाला व शर्मिले स्वभाव का कर्मठ व्यक्ति है!

थकान काफी थी इसलिए आज हमने खाना खाकर कम्प्लीट रेस्ट करने का मन बना लिया! कल की दास्ताँ लिखूं इस से पूर्व मैं अपना 16 से 18 अगस्त 2016 के उस यादगार सफर को याद करते हुए स्वप्नलोक के झंझावतों से उलझता हुआ मोइला टॉप व बुधेर केव जा पहुंचा!

(16से 18 अगस्त 2016 यात्रावृत्त!)

बुधेर केव (फोटो- मनोज इष्टवाल)

चकराता से लोहखन्डी तक 23 किमी. का सफ़र इसलिए भी सुखदायी लगता है क्योंकि यह क्षेत्र पूर्णरूप से प्रदुषणमुक्त है और एक सीधे लेकिन सांप की तरह रेंगती हॉटमिक्स सड़क आपको प्रकृति के भरपूर प्यार से रूबरू करवाती यहाँ तक पहुंचाती है. लोहखंडी टॉप से एक यु टर्न लेती बड़ी सड़क जहाँ सीधे त्यूनी होकर हिमाचल निकल जाती है वहीं बांयी ओर मुड़ते ही हम लोहखंडी के छोटे से बाजार में प्रवेश करते हैं जहाँ बन विभाग का वायरलेस सिस्टम या बीट चौकी है. यहीं आप श्याम सिंह चौकीदार के बारे में पूछेंगे तो एक छरहरे बदन का भोली सूरत का युवा आपके सामने खड़ा मिलेगा और अपनी बाइक पर किक मारकर बंगले तक अगुवाई करेगा.

मोइला टॉप स्थित बुग्याल (फोटो-मनोज इष्टवाल)

यहाँ से बुधेर बन बिश्राम गृह का सफ़र लगभग 3.5 किमी है अगर आपके पास फॉर-बाय-फॉर वाहन है तब आप लगभग 25 मिनट में और छोटी गाडी है तो लगभग 40 मिनट में बंगले तक का सफ़र तय करते हैं. हैरत इस बात की है कि बन विभाग ने 148 साल पुरानी इस सड़क पर कभी दुबारा गैंती-फावड़ा चलाया भी होगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, क्योंकि मात्र 3.5 किमी. का यह सफ़र बरसाती मौसम में छोटे दिल वालों का दिल मुंह तक ले आता है. यहाँ जहाँ पर बरसात का पानी ठहर जाय वहां गाडी रपटेगी जरुर. जहाँ बड़ा पत्थर सडक के बीच में उगा दिखे वह चट्टान का ही भाग होता है जिस पर गाडी का निचला हिस्सा ठुकेगा जरुर..!

मोइला/बुधेर ताल (फोटो-मनोज इष्टवाल

समुद्र तल से 2310 मीटर जीपीएस -72 व 30”.45.’51” उत्तरी व 71”.47’.19” पूर्वी अक्षांश पर स्थित इस बंगले का निर्माण ब्रिटिश काल में सन 1868 में हुआ था इसे किसने बनवाया था इसका रिकॉर्ड बन विभाग के पास भी नहीं है! पौड़ी गढ़वाल के जोश्याणा गॉव निवासी मनीष जोशी बताते हैं कि बुधेर गुफा या बंगला किसी फारेस्ट अफसर बुधेर की ही खोज है क्योंकि उस से सम्बन्धित साहित्य उन्होंने एफआरआई देहरादून में पढ़ा है।

148 साल पुराना यह बंगला उत्तर भारत में बना बन विभाग का सबसे पुराना बंगला माना जाता है. एक जर्मन मित्र मिओला के साथ बोथर नामक ब्रिटिश वाइल्ड लाइफ प्रेमी ने सबसे पहले इस जगह को वन्य जीव जंतु के चारागाह के रूप में ढूँढा जिसके टॉप तक बेहद खूबसूरत बुग्याल व चारापत्ती के वृक्ष थे! बाद में सर्वे के दौरान यह क्षेत्र उन्हीं के नाम से जाना गया, सिर्फ अंतर इतना आया कि नाम अपभ्रंश हुआ बोथर बुधेर हो गया और मिओला मोइला हो गया! जिनके नाम से बुधेर गुफा (बोथर केव), व मोइला टिम्मा या मोइला टॉप प्रसिद्ध हुआ. कहा तो ये भी जाता है कि मोइला या मिओला एक लेडी थी व बोथर उसका प्रेमी! लेकिन यह कहाँ तक सत्य है इसकी अभी भी पड़ताल होनी आवश्यक है, इनकी प्रेम गाथा के सुर आज भी परियों की तरह हवा में बहते सुनाई देते हैं. जिसे हम मन का बहम समझते हैं. लोहारी के संस्कृतिकर्मी कुंदन सिंह बेहद उत्सुकता से फोन पर बताते हैं कि सर आपने तो वह सब ढूंढ लिया जिसे हम पूरी तरह जानते भी नहीं थे, चूंकि यह हमारी ग्राम सरहद से लगा क्षेत्र है इसलिए ये कुछ बातें हम भी जानते हैं जो आपने लिखी है. आप अक्षरत: सही हैं.

मोइला टिम्मा के नाम से प्रसिद्ध खूबसूरत बुग्याल जोकि बंगले से 3.5 किमी. दूरी पर है में बना एक मंदिरनुम्मा घर इन्हीं का बताया जाता है जबकि इसे लोग मोइला = महासू से भी जोड़ते हैं. कई इसे शिब मंदिर भी कहते हैं जो तर्क सही नहीं लगते. हां यह शिलगुर, आंछरी मंदिर जरुर कहा जा सकता है. यहाँ आज भी पुराने मृद भांड मिलते हैं व जंगली जीवों के आखेट के बाद उनकी सीन्घें दरवाजे की लकड़ियों पर टंगे हुए. बहरहाल मोइला टॉप के इस मंदिरनुमा घर जिसे हम मंदिर समझकर नमन करते हैं, में कोई भी देवमूर्ति नहीं है. हाँ पहरेदार के रूप में एक लकड़ी की मूर्ती जरुर निर्मित दिखाई देती है जिसका काल पुरातत्व विभाग के पुरातत्ववैता ही बता पायेंगे. इस मूर्ती को लोग इस मंदिर का द्वारपाल मानते हैं.

मोइला टिम्मा से लगभग आधा किमी. दूरी पर एक गुफा है जिसे बुधेर गुफा कहते हैं. जौनसार बावर के जन मानस के इस गुफा से सम्बन्धित दो मत हैं जिनमें एक यह कि यह लाक्षागृह (लाखामंडल) से पांडवों को निकालने वाली सुरंग है तो कोई कहता है यह बुधेर ने ढूंढी है जो कनासर देवता का द्वारपाल था, और उसी ने इसे बनाया है ताकि महाभारत काल के पांडव यहाँ से सुरक्षित निकल पाएं.
यह गुफा किस काल में बनी और कैसे बनी इसका इतिहास अस्पष्ट है! फिर भी इस रहस्यमयी गुफा में कई बार कई लोग खजाने की तलाश में लगभग 20 किमी तक गए हैं. बन विभाग के पास इसके परिणाम के तौर पर आज भी ब्रिटिश काल के वे लम्बे-लम्बे रस्से मौजूद हैं जिनके सहारे ब्रिटिश कई मील इसमें घुसे हैं. उनका मानना है कि लगभग 3 किमी. के बाद इसका रास्ता गहराई में उतरता है इसलिए कोई इसमें आगे बढ़ने का रिस्क नहीं लेता.

आम धारणा को आधार मानकर अगर बात की जाय तो यह गुफा लगभग 150 से 200 किमी. लम्बी है. अब जिसका आदि न अंत हो उसके मानक कुछ भी तय किये जा सकते हैं! कोई इसे द्वापर युग की सुरंग से जोड़कर यमुना या तमसा नदी में उतरने का मार्ग कहते हैं तो कोई इसे ऐसा छेडद जो पहाड़ी ताल के पानी की निकासी का काम करता है जो सत्य प्रतीत नहीं होता. पास ही मोइला टॉप के बुग्याल में एक छोटा सा ताल है जिसे मोइला ताल के नाम से ही पुकारा जाता है. इसमें बिशेषत: सर्दियों में बर्फ़ जमीं रहती है और गर्मियों में इसका पानी वन्य जीव जंतु व भेड़ बकरियां तथा गुजरों की भैंसों के काम आता है. मोइला टॉप के इस मन्दिर में पुराने सिक्कों को लकड़ी पर ठोककर गाड़ा गया है! यहाँ के जनमानस का कहना है कि ऐसा अक्सर भेड़ाल किया करते हैं ताकि उनकी मन्नत के अनुसार जब तक उनकी भेड बकरियां यहाँ रहें मोइला टॉप की परियां उनकी रक्षा करें! आज भी कई भेडाल यहाँ उन परियों के नाम का सेरुआ काटते हैं! सेरुआ एक तरह का गुड व आटे घी का बना रोट (रोटी) होती है जो काफी मोटी व वृत्ताकार होती है! कहा तो यह भी जाता है कि इस थात (बुग्याल) में पूर्व में भेडाल नुणाई मनाते थे लेकिन कांडोई भरम व कोटि-कनासर क्षेत्र के लोगों में आपसी झगड़े के बाद इसे बंद कर दिया गया!

लगभग 2523 मीटर की उंचाई पर स्थित मोइला टॉप के हरित बुग्यालों में सर्दियों में जमकर बर्फ़ पड़ती हैं. एक अनुमान के आधार पर यहाँ 7-8 फिट बर्फ़ पड़ती है. जो कई महीनों तक नहीं पिघलती. जून-जुलाई में जब आप इन बुग्यालों की सैर पर निकले और आनायास ही आपके कानों में पास से हवा के साथ तैरती हंसी सुनाई दे, बांसुरी सुनाई दे या सरसराहट सुनाई दे या फिर आहट महसूस हो तो समझिएगा या तो परियां आपके करीब से विचरण कर रही हैं या फिर मोइला और बुधेर की आत्मा या फिर देवगण ? आप श्रधा से नमन करें आपके मनोरथ जरुर हल होंगे.

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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