दि हाई हिलर्स ग्रुप’ ने ‘गढवाली, कुमाउनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी’ के सहयोग से गढ़वाली नाटक ‘अपणु-अपणु सर्ग’ का किया शानदार मंचन।
(वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी की कलम से)
दिल्ली की पुरानी और प्रतिष्ठित नाट्य संस्था ‘दि हाई हिलर्स ग्रुप’ ने ‘गढवाली, कुमाउनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी’ के सहयोग से गढ़वाली नाटक ‘अपणु-अपणु सर्ग’ का मंचन किया गया। इसका हिंदी अनुवाद ‘अपना-अपना आकाश’ है। प्रवासियों के महानगरों के जीवन और उनके अपने घर लौटने की जीवन भर की उत्कंठा और उससे उपजे अंतर्द्वंदों के बीच की छटपटाहट को समझने की कोशिश करते इस नाटक का लेखन वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरण एक्टिविस्ट सुरेश नौटियाल और रंगकर्मी दिनेश बिजल्वाण ने किया। एक तरह से यह इनका भोगा यथार्थ है।
सुरेश नौटियाल का पहाड़ के सवालों को समझने और उन्हें बहुत संवेदनशील नजरिए देखने का सैद्धांतिक और व्यावहारिक अनुभव रहा है। वे लिखने-पढ़ने के अलावा वहां के जनांदोलनों का हिस्सा रहे हैं। चूंकि राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता और सामाजिक-पर्यावरणीय सवालों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े होने से उन्होंने चीजों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में सोचने की दृष्टि पाई है।
दिनेश बिजल्वाण सत्तर-अस्सी के दशक से ही रंगमंच से जुड़े रहे हैं। उन्होंने अभिनय के साथ कई नाटकों का लेखन किया है। सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने बहुत अध्ययन किया है। पहाड़ के विषयों में उनकी गहरी रुचि रही है।
स्वाभाविक रूप से जब इन दोनों ने मिलकर इस कहानी का ताना-बाना बुना तो निश्चित रूप से खुद की आकांक्षाओं को भी उसमें शामिल किया। इसका फायदा यह हुआ कि वह जो भी बताना चाह रहे थे वह एक लिखी कहानी से ज्यादा भोगे गये यथार्थ को प्रतिबिंबित कर रहा था। यह इस कहानी के कथ्य का सार है।
नाटक का निर्देशन चार दशक से ज्यादा समय से रंगमंच में सक्रिय हरि सेमवाल ने किया। वह एक कुशल निर्देशक तो हैं ही नाटक की हर विधा के गहन जानकार भी हैं। वे अभिनय करते हैं। निर्देशन करते हैं। लाइटिंग से लेकर बैंक स्टेज का भी अपनी तरह से प्रबंधन करते हैं। नाटक मंचन के साथ गहरा रिश्ता होने के साथ उन्होंने अपने निर्देशन को हमेशा जीवंत बनाए रखा है। इस नाटक में उनकी जानकारी और अनुभव साफ दिखाई दिया।
‘अपणु-अपणु सर्ग’ में शामिल कलाकारों का काम तो कमाल का था। रमेश ठंगरियाल पहाड़ के ऐसे रंगकर्मी हैं जिनकी एक छोटी भूमिका भी मंच का रुख बदल सकती हैं। एक ठेठ पहाड़ी को देखना हो तो ठंगरियाल उसकी प्रतिमूर्ति हैं। यहां भी उन्होंने पूरे मंच पर कब्जा किया था। रवीन्द्र रावत (गौरी) तो हमारी रंगमंच की युवा पीढ़ी का ऐसा नाम है जो आने वाले दिनों में बड़े कलाकार के रूप में अपने को स्थापित करेगा। उन्होंने संपूर्णानंद सती के किरदार को बहुत स्वाभाविक तरीके से निभाया। उत्तराखंड रंगमंच के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बृजमोहन वेदवाल ने हमेशा की तरह अचलानंद सती के किरदार को जीवंत कर दिया। उमेश चंद्र बंदूनी लंबे समय के बाद रंगमंच और सामाजिक दुनिया में सरकारी सेवा के बाद लौटे हैं, उन्होंने जिस तरह सूत्रधार के दायित्व को निभाया वह बहुत सुखद है। इतने लंबे संवादों को बहुत अच्छी गढ़वाली और भाव-भंगिमाओं के साथ इतने स्वाभाविक रूप में रखना उनकी प्रतिबद्धता को बताता है।
सविता पंत ने तो गजब का काम किया। उन्होंने इस बीच जिस तरह अपने को गढ़ा है, वह चौंकाने वाला है। उन्होंने अन्नपूर्णा सती के रूप में जब से इंट्री ली कहीं भी अपनी ऊर्जा, टाइमिंग और अभिनय को कमजोर नहीं पड़ने दिया। शशि बडोला और गिरधारी रावत ने अपने किरदारों में जिस तरह जान फूंकी उसने पूरे नाटक को बांधे रखा। लगुली सिंह के रूप में मुस्कान भंडारी ने अपना प्रभाव छोड़ा। प्रोफेसर रामसिंह रावत के रुप में दर्शन सिंह रावत और कुसुमलता रावत के रूप में कुसुम बिष्ट का काम बहुत प्रसंशनीय रहा।
ममता कर्नाटक एक मंजी हुई कलाकार हैं। उन्होंने अपनी बहुत छोटी भूमिका रेंजरबोडी के किरदार में जो जान फूंकी, वह बताता है कि उनकी कला और अनुभव कितना गहरा है। धर्मवीर सिंह रावत, लक्ष्मी शर्मा जुयाल, रामपाल किमौडी, इंद्राप्रसाद उनियाल, सुधा सेमवाल, मनीषा भट्ट, किरण रामपाल, अंश रामपाल, दीपा नेगी, रवि रंजन गुप्ता, ध्रुव, दीनदयाल शर्मा ने अपने किरदार बखूबी निभाया। संचालन जगमोहन सिंह रावत ने किया।
‘दि हाई हिलर्स ग्रुप’ इस नये नाटक के सफल मंचन की बहुत-बहुत बधाई। बहुत सारी खूबियां नाटक में थी, निश्चित रूप से कमियां भी होंगी। कुल मिलाकर ‘दि हाई हिलर्स ग्रुप’ ने एक अच्छी प्रस्तुति दी है।