(मनोज इष्टवाल)
प्रज्ञा आर्ट्स की सीनियर थिएटर डायरेक्टर लक्ष्मी रावत एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार चर्चा यह नहीं है कि वह कहां किस रंगमंच या थियेटर में नाट्यमंचन कर रही है बल्कि चर्चा यह है कि वह एक गढ़वाली फीचर फिल्म ब्यखुनी कू छैल को निर्देशित कर रही हैं।लक्ष्मी रावत को मूलतः उनके नाटकों, उत्तराखंड में समय-समय पर आयोजित थिएटर वर्कशॉप, उत्तराखंडी और हिंदी फिल्मों और विज्ञापनों में उनके प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। इस बार वह अपनी फिल्म ब्यखुनी कू छैल को लेकर चर्चा में हैं। जिसमें लक्ष्मी रावत न केवल अभिनय कर रही हैं बल्कि फिल्म का निर्देशन भी खुद कर रही हैं।
2020 में लक्ष्मी रावत द्वारा उत्तराखंड की शौर्यगाथों को समर्पित एक कैलेंडर बनाया गया था जिसकी चारों तरफ खूब हुई उसमें उत्तराखंड के उभरते युवा फोटोग्राफर एंड सिनेमेटोग्राफर प्रणेश असवाल ने फोटोग्राफी की थी। इस फिल्म में एक बार फिर प्रणेश कैमरा करते दिखेंगे।
लक्ष्मी रावत बताती हैं कि उन्होंने हिंदी नाटकों से अभिनय शुरूआत की, और गढ़वाली नाटकों के साथ निर्देशन करना शुरू किया। आज वह ज्यादातर नाटक उत्तराखंडी पृष्ठभूमि से करती हूँ। वह बताती है कि जब वह थिएटर में आई और देखा कि थिएटर उन चीजों को दूर करने में मदद नहीं करता है जो आपको असहज महसूस कराती हैं, लेकिन यह सिखाती है कि अगर आप कड़ी मेहनत करते हैं, तो आप वह कर सकते हैं जो आप उन सभी असहज चीजों के साथ करना चाहते हैं।
रंगमंच की एक सुंदरता है।
रंगमंच के बारे में उनका मानना है कि यहां सभी के लिए एक जगह है। आप कई अलग-अलग चीजों में प्रतिभाशाली हो सकते हैं। अगर आपको मंच पर रहना पसंद नहीं है, तो हमारे पास बैक स्टेज है। अगर आप चमकना चाहते हैं तो मंच है। सबके लिए कुछ न कुछ है। आप यहां हर किसी से प्यार करते हैं, चाहे आप कोई भी हों या कुछ भी करते हों।
उनके अनुसार वह अपने छात्रों को स्टेज एक्टिंग के साथ-साथ कैमरा एक्टिंग के बारे में भी बताना चाहती थी, इसलिए मैंने शॉर्ट फिल्मों की ओर रुख किया और अब वह फीचर फिल्म की तैयारी कर रही हूं। साथ ही लक्ष्मी रावत इस साल भी कैलेण्डर बनाने जा रही हैं। इस वर्ष उनका विषय पलायन होगा मगर वो उसे एक अलग ही अंदाज़ में दिखाने की तैयारी में हैं।
कैलेंडर और फिल्म दोनों ही प्रज्ञा आर्ट्स, असवाल एसोसिएट और दामोदर हरी फाउंडेशन के बैनर तले संयुक्त प्रयासों से बन रही है। असवाल एसोसिएट के प्रोपराइटर रतन असवाल उत्तराखंड के एक जाने माने चिंतक हैं एवं दामोदर हरी फाउंडेशन के संस्थापक संदीप शर्मा दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंड के लोगों के बीच एक जाने माने चेहरे हैं । फिल्म और कैलेंडर दोनों ही उत्तराखंड में शूट होंगे । जल्द ही लोकेशन फाइनल करने टीम प्रज्ञा आर्ट उत्तराखंड के अलग-अलग हिंस्सों में जायेगी। समाजसेवी रतन असवाल का कहना है कि उन्हें लक्ष्मी रावत के मंचन व अपने पुत्र प्रणेश की काबिलियत पर पूरा विश्वास है, इसीलिए वह एक इसी गढवाली फीचर फ़िल्म का जॉइंट वेंचर में निर्माण करने जा रहे हैं जिसके माध्यम से हमारे उत्तराखंडी समाज के मध्य ज्वलन्त मुद्दों के साथ साथ समसामयिक मुद्दों का भी एक सन्देश जा सके व साथ में पहाड़वासियों की लोकसंस्कृति, सांस्कृतिक पृष्टभूमि व कई अन्य बिषय भी दृष्टिगोचर हो सके।
जहाँ कैलेंडर में पलायन को आप एक अलग रूप में देखेंगे वहीँ फिल्म की कहानी उत्तराखंड में नई पीढ़ी के पलायन और पीछे रह जाने वाली उनकी पुरानी पीढ़ी के अकेलेपन पर प्रश्न करती है। नई पीढ़ी की तरक्की देखने की ललक हमें बहुत आगे तक तो ले जाती है मगर पीछे छोड़ जाती है कुछ ऐसी नाकामयाबी जो ज़ख्म बन जाती है और कभी-कभी तो नासूर और नासूर कभी ठीक नहीं होते। उन ठीक ना होने वाले नासूरों का दर्द बयां करेगी यह फिल्म। फ़िल्म बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ को छोड़कर जाने वाले लोगों के लिए एक प्रश्न होगी जिसका जवाब देखने वाले को खुद खोजना होगा। हमारी कोशिश रहेगी की हम इसे OTT प्लेटफार्म पर दिखाएँ।
कौन हैं रंगकर्मी/निर्देशक/लेखक लक्ष्मी रावत।
लक्ष्मी रावत राष्ट्रीय रंगमंच की ऐसी अदाकारा हैं जिन्हें नाट्यमंचन, निर्देशन व लेखन की महारत हासिल है। वह प्रगतिशील रंगमंच समूह प्रज्ञा आर्ट (रजि.) दिल्ली की संस्थापक सदस्य हैं, जहाँ उन्होंने 18-20 से अधिक नाटकों में अभिनय किया है। उन्होंने विभिन्न प्रतिष्ठित निर्देशकों के तहत काम किया है। उन्हें बंसी कौल (पदमश्री), हबीब तनवीर, सत्यब्रत राउत, मुस्ताक काक (पूर्व निदेशक एसआरसी, नई दिल्ली), सतीश आनंद (दीन मारवाह स्टूडियो), सुरेंद्र शर्मा आदि के साथ काम करने का सम्मान मिला है। उन्होंने श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स एंड कल्चर, नई दिल्ली से अभिनय में दो वर्षीय डिप्लोमा प्राप्त किया है। वह पिछले करीब 15 साल से थिएटर में सक्रिय हैं। उन्होंने हिंदी नाटक आधे-अधूरे, मृगतृष्णा, मोहल्ला, लाल सलवार, संध्या-छाया, अदालत, स्पार्टाकस, मुओवाज़े, खामोश अदालत जारी है, सीगल आदि में काम किया है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान वह नाटकों पर कार्यशालाओं के आयोजन से सक्रिय रूप से जुड़ी रही हैं।
उन्होंने 2000 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) द्वारा आयोजित भारत रंग महोत्सव में भी भाग लिया है। उन्होंने 2012 में साहित्य कला परिषद (एसकेपी) द्वारा आयोजित मोहन राकेश नाट्य सम्मान उत्सव, 2014 में जवाहर कला केंद्र नाट्य समारोह, जयपुर और साहित्य कला परिषद, 2015 द्वारा आयोजित भारतमुनि नाट्य उत्सव में भाग लिया है।
विगत अप्रैल माह में उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के जिला पौड़ी यमकेश्वर ब्लॉक की पट्टी तल्ला उदयपुर के बणास गांव की थियेटर आर्टिस्ट लक्ष्मी रावत देश के बड़े थियेटर ग्रुपों में शुमार ‘श्रीराम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट’ की नयी वर्कशाप डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त की गयी हैं। लक्ष्मी रावत रंगमंच के छात्रों को विभिन्न तरह के प्रशिक्षण देंगी। दिलचस्प बात यह है कि लक्ष्मी रावत ने अपने थियेटर कैरियर की शुरुआत श्रीराम सेंटर से ही साल 1999 में की थी।
उत्तराखण्ड से गहरा लगाव होने के कारण बर्ष 2002 में खुद के थियेटर ग्रुप ‘प्रज्ञा आर्ट्स’ की बुनियाद रखी, ताकि वह प्रदेश के सम सामयिक मुद्दों, ऐतिहासिक प्रविष्टि व भड़ गाथाओं, लोकसमाज व लोकसंस्कृति के विभिन्न आयामों को नाट्य मंचन के माध्यम से हम सबके मध्य रख सके। यही कारण भी है कि प्रज्ञा आर्ट्स के बैनर तले लक्ष्मी रावत ने कई नाटकों का निर्देशन किया और उनमें से कई नाटकों में अभिनय भी किया।
लक्ष्मी रावत द्वारा अभिनीत व निर्देशित नाटकों में तीलू रौतेली (हिंदी), तृष्णा, जीतू बगड़वाल, चल अब लौट चलें, कै जावा भेंट आखिर (गढवाली), शांति विहार गली नंबर 6, क्योंकि मैं औरत हूं, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ आदि प्रमुख हैं।
गौरतलब है उनके अधिकतर नाटकों का परिवेश उत्तराखंडी है। लक्ष्मी रावत द्वारा निर्देशित और उन्हीं की मुख्य भूमिका वाला प्रज्ञा आर्ट्स का नाटक ‘क्योंकि मैं औरत हूं’ भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी मंचित हुआ। इस चर्चित नाटक की पृष्ठभूमि दिल दहला देने वाले निर्भया काण्ड के इर्द-गिर्द रची गयी थी। लक्ष्मी द्वारा निर्देशित लोकप्रिय नाटक ‘चल अब लौट चलें’ भी प्रवासी उत्तराखंडियों के दुखों और अंतर्द्वंदों को बहुत बेहतर तरीके से रचता है।
यही नहीं लक्ष्मी रावत हिंदी समेत कई क्षेत्रीय भाषाओं में दिखाए जा रहे ‘डव’ साबुन के विज्ञापन में दिखाई देती है। जल्द ही वे अमेजन प्राइम की वेब सीरीज हश्श.. में अभिनेत्री करिश्मा तन्ना की मां की भूमिका में दिखाई देंगी। इसके अलावा पर्यटन विभाग उत्तराखण्ड के आने वाले विडियो एड की शूटिंग वे पूरी कर चुकी हैं।
स्त्री शक्ति (सोच एक परिवर्तन की) कार्यक्रम के तहत वे उत्तराखण्ड के कई इलाकों में जागरूकता अभियान चला रही हैं। प्रज्ञा आर्ट्स थियेटर अवार्ड ‘पाटा’ के तहत लक्ष्मी उत्तराखण्ड के थियेटर आर्टिस्टों को हर साल सम्मानित करती हैं। प्रज्ञा थियेटर के ‘नेचर विद थियेटर’ अभियान के तहत उत्तराखण्ड के दुर्गम गांवों में पर्सनालिटी डेवेलपमेंट के कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं।
प्रणेश असवाल युवा फोटोग्राफर।
कभी क्रिकेट के प्रति जुनून रखने वाले प्रणेश असवाल अब फोटोग्राफी का जुनून रखते हैं। पहले छुटपुट फोटोग्राफी फिर टेक्निकल फोटोग्राफी की बारीकियां सीखने का प्रशिक्षण लेकर प्रणेश वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बन गए। यही कारण था कि 2017 में उन्हें लिटरेचर फेस्टिवल में समय साक्ष्य की टीम द्वारा प्रथम पुरस्कार दिया गया। 2020 में वे हिमालयन ढाकर शोध यात्रा के सदस्य के रूप में सबसे युवा चेहरे व फोटोग्राफर के रूप में जाने गए।
प्रणेश असवाल ने सुप्रसिद्ध रंग व नाट्यकर्मी श्रीमती लक्ष्मी रावत के प्रज्ञा आर्ट्स प्रोडक्शन के साथ जुड़कर अब फोटोग्राफी में शौर्य – गाथा लिखनी शुरू कर दी है। यह शौर्य – गाथा भले ही श्रीमती लक्ष्मी रावत की स्क्रिप्ट “तीलू रौतेली” की हो लेकिन इस शौर्यगाथा का बयां करती प्रणेश की फोटोग्राफी मन मोह लेती है। स्वयं लक्ष्मी रावत कहती हैं कि “उन्होंने शौर्यगाथा (उत्तराखंड की मिट्टी की) की संकल्पना करते समय इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा है कि प्रज्ञा आर्ट्स थियेटर ग्रुप व प्रज्ञा आर्ट्स प्रोडक्शन का पहला महतवपूर्ण मकसद कला व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। शौर्य, स्वाभिमान, देशभक्ति और सन्तोष, इन्ही गुणों से सराबोर है उत्तराखण्ड का अतीत, वर्तमान और यहां की गौरव गाथाएं। ऐसे में प्रज्ञा आर्ट्स थियेटर ग्रुप के साथ एक नवयुवक का नाम और जुड़ गया है..प्रणेश असवाल। प्रणेश ने हाल ही में फोटोग्राफी कोर्स किया है। उन्होंने प्रज्ञा आर्ट्स के कलेंडर के लिए फोटो खींचने की जिम्मेदारी खुद सम्भालने का फैसला किया है।”
बहरहाल प्रज्ञा आर्ट्स, असवाल एसोसिएट और दामोदर हरी फाउंडेशन बैनर तले बनने जा रही गढवाली फीचर फ़िल्म ब्यखुनी कू छैल की शूटिंग अगले माह से गढ़वाल व कुमाऊं मंडल की कई वादियों घाटियों व गांवों में देखने को मिल सकती है।