Sunday, September 8, 2024
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बंजरों में तब्दील होते पूर्वी नयार क्षेत्र के खेत खलिहान! बदहाल है राष्ट्रीय राजमार्ग 121…!

(मनोज इष्टवाल 01 फरवरी 2020)

ट्रेवलाग…! नैनीडांडा महोत्सव 2020……….!

सचमुच आज मन बहुत भारी है! आज लगा….पलायन ने तो हमारी जिन्दगी ही लील दी है! खेत-खलिहान तो बंजर हुए-हुए लेकिन यहाँ की धर्म संस्कृति व लोकसमाज भी उसके साथ खत्म हो रहा है! इसकी परवाह हम क्यों नहीं कर रहे! चौंदकोट व चौंदक्वटया बांद को अब याद करेगा भी तो कौन? पिंगलापाख़ा जहाँ कभी खुशहाली के सरसब्ज गीत गूंजा करते थे वहां वीरानियों की बेपनाह उदासियों में शमशान की सी शान्ति है! क्या इसी सब के लिए “मंडुवा-झंगोरा खायेंगे- उत्तराखंड बनायेंगे” के नारे बुलंद हुए थे? आइये आप भी आज मेरे सफर के साथी बनिये और मीलों फैले इस भयावक क्षेत्र पर मेरे शब्दों के साथ नजर गढ़ाइये! शायद इस धरती पर यहीं के किसी लाल को दया आ जाए!

दीबा डांडा दीबा मन्दिर।

आज जल्दी उठकर कैंप महासीर से विदा लेने का समय आ गया था! हमें हर हाल में नैनीडांडा महोत्सव या उसके आस-पास कहीं अपना डेरा डालना था! अभी हम ब्रेकफास्ट में कैंप महासीर में ही उगे ऑर्गेनिक बेहद छोटे लाल आलू व रोटी का मजा ले ही रहे थे कि रतन असवाल जी का फोन बजा! बात हुई तो पता चला कि मित्र चन्द्रेश योगी सतपुली पहुँच गए हैं जो हमारे आगे के सफर के साथी होंगे! चन्द्रेश सोशल साईट पर आये दिन की जाने वाली अपनी पोस्टों व कमेन्ट के लिए चर्चित तो थे लेकिन मेरी उनसे रुबरु कभी मुलाक़ात नहीं थी!

दुगड्डा तक पहुँचते-पहुँचते हमें लगभग 11:30 बज गये थे जहाँ चन्द्रेश व उनके साथ एक और मित्र हमारा इन्तजार कर रहा था! कार का शीशा नीचे होते ही फ्रंट सीट पर जब उनकी निगाह मेरे पर व बैक सीट में बैठे दिनेश कंडवाल जी पर पड़ी तो बोल पड़े- वाह…आज तो मानों मन की मुराद पूरी हो गई! आप जैसे शख्सों के साथ यात्रा का आनन्द ही अलग होगा! तब तक एक पन्नी उठाये उनके मित्र भी प्रकट हुए जिन्हें रतन असवाल तो जानते थे लेकिन हम दोनों अनभिज्ञ थे! पिछली सीट का दरवाजा खुला चन्द्रेश व उनके मित्र अंदर घुसे तो चन्द्रेश बोले- दो किलो ही मिल पाई! आज लोकल आई ही नहीं! रतन असवाल बोले- महासीर ही है या कुछ और….! खैर अब समझ गये थे कि वो जो भी है मछली ही है!

1- बीरोंखाल 2- मैठाणाघाट 3- दीबा डांडा रोड।

परिचय के बाद पता चला कि दूसरे शख्स विवेक नेगी हैं! इनके नाना जी दुगड्डा क्षेत्र में नाथूसिंह रियासत के मालिक हुआ करते थे जिनके नाम से नाथूखाल पड़ा! नाथूसिंह इनके बूढ़े नानाजी हुए जो अंग्रेजों के जमाने में राय बहादुर के नाम से जाने जाते थे! दुगड्डा में दो ही राय बहादुर अंग्रेजों के जमाने में मशहूर थे! एक श्रीराम नैथानी व दूसरे नाथूसिंह…! भवानी सिंह उन्हीं नाथू सिंह के पुत्र हुए! पिता अंग्रेजों की चारिणी से रायबहादुर कहलाये तो बेटा भवानी सिंह क्रान्तिकारी वीर चन्द्रशेखर आजाद के मित्र के रूप में सुप्रसिद्ध हुए! क्रांतिकारी वीर चन्द्रसिंह ने यहीं नाथूखाल में क्रांतिवीरों को गोली चलाना सिखाया था! आज भी वहां मेला आयोजित होता है! चन्द्रेश योगी व विवेक नेगी दोनों ही दुगड्डा के नजदीक ऐता गाँव के हुए! चन्द्रेश सहारा समय की पत्रकार ज्योत्स्ना बौंठियाल के चाचाजी के पुत्र हुए तो स्वाभाविक था कि मैं उनके परिवार की कुशल क्षेम पूछता! चन्द्रेश को भी यह पता नहीं था कि मैंने जब दुगड्डा मंडी व चन्द्रशेखर आजाद व भवानी सिंह पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए 1990 के आस-पास एक डाकुमेंटरी फिल्म बनाई थी तब मैं उनके घर ऐता रहा हूँ व उनके ताऊ मोहन बौंठियाल व पिता सोहन बौंठियाल से पूर्व से ही परिचित हूँ!

बंजर खेतों का आलम व अलसाये गांव।

परिचय की व्यापकता समाप्त हुयी तो ठाकुर रतन असवाल व चन्द्रेश योगी विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते! मैं कभी कोई बात काट भी देता तो रतन असवाल भडक जाते! बहुत शांतचित्त से दो ही लोग बैठे थे! पहले दिनेश कंडवाल व दूसरे विवेक नेगी!

अब तक सडक हम कोटद्वार पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग छोड़कर मलेठी बैंड से चौन्दकोट क्षेत्र में प्रविष्ट कर चुके थे! मलेठी सैण के बंजरों की दशा तो आते-जाते दिख ही गयी थी लेकिन मलेठी के भैरव मंदिर से आगे बने बिशाल भवन पर नजर पड़ी और जब जाना कि यहाँ शराब की फैक्ट्री (बोटलिंग प्लांट) लग चुका है तो बहुत दुःख हुआ! खेत खलिहान सब बंजर थे और उद्योग के रूप में कुछ पहाड़ के नसीब में आया भी तो वह शराब फैक्ट्री!

on the way of Digolikhal दिनेश कण्डवाल जी व रतन असवाल जी।

जहाँ नजर दौड़ाई सब बंजर ही बंजर..! हे भगवान यह क्या? रीठाखाल क्या संगलाकोटि से आगे बिजोरापाणी व वहां से कटती पोखड़ा के लिए सडक, पोखड़ा से घनियाखाल, वेदीखाल तक जहाँ नजर दौड़ाई चारों ओर बंजरों ने अपना साम्राज्य फैलाया हुआ था! मलेठी, सौंखेत, तल्ला डंडा, गादई, चमडल, ईडा, सीला, कबरा, कगतुन, रीठाखाल, पाली, बिंजोली, तोली, बुरगाँव, रिटेल, हलुणी, संगलाकोटी, नरस्या, खांदे, कनोता, घंडियाल, भडोली, जमरोड़ा, देवराड़ी, पाली, मसमौली, मेलगाँव, पोखड़ा, खिलासू, धार की बीणा, मटगल, धार की बगडी, गाड़ की बगडी, सेलथ,देवकुंडई, घनियाखाल, चरकांडे, शिवलेथ, वेदिखाल, खलधर, कुणजोली, धांग, कोला, मतेला, फरसाडी सहित दर्जनों गाँव पूर्वी नयार व मछलाड़ नदी के आर-पार बसे हैं, जिनकी सड़क मार्ग सतपुली से बैजरो तक दूरी लगभग 84 किमी. है!   

आज से मात्र 10 बर्ष पूर्व तक ही इस घाटी में कदम रखते ही मन प्रफुल्लित हो जाता था! नदी घाटी के खेत लकदक रहते थे लेकिन यह क्या इस घाटी के दर्जनों गाँव के खेतों में पसरा बंजर का मातम ऐसे लग रहा था मानों प्रकृति हमसे रूठ गयी हो! संगलाकोटि के लोकलुभावन सेरों में अब कंटीले वृक्ष दिखाई दे रहे थे! इतने रस्ते में अगर कुछ चमचमाता मिला तो एक ज्वाल्पा मन्दिर, दूसरा सिपाही नेगियों के गाँव को निकली सडक, रीठाखाल बाजार की हल्की चहल-पहल, हलुणी गाँव के लिए निकला पुल के पास नानकद्वार, संगलाकोटि का अव्यवस्थित बाजार, बिजोरापानी के नीचे गदेरे पर बना फिश पोंड व दो आबाद खेत, पोखड़ा की ओर भव्य प्राइवेट डिग्री कालेज भवन, घनियाखाल में गिरी बर्फ, वेदीखाल के नजदीक बंजरों को भाती बर्फ व फरसाडी बाजार!

फरसाडी के बाद जरा सा अस-जगी क्योंकि नदी घाटी के एक आध गाँव में व उसके खेतों में हरियाली दिखने को मिली! बैजरो बाजार से पूर्व ही हमें पूर्वी नयार पार कर स्युंसी-बीरोंखाल के लिए मुड़ना था! यहाँ से एनएच 121 शुरू हो जाता है जो रामनगर-बीरोंखाल पौड़ी नाम से जाना जाता है व आगे इसे कर्णप्रयाग मिलना है!

रतन असवाल बोले- देखा पंडा जी,आप खुश होइए कि आप राष्ट्रीय राजमार्ग की सैर कर रहे हैं! स्यूंसी से आगे बढ़ते ही मेरे मुंह से निकला राष्ट्रीय राज मार्ग? यह भला कैसे हो सकता है! दो गाड़ियां एक साथ निकल नहीं सकती! फिर कैसा राष्ट्रीय राज मार्ग…?

बहरहाल हमने आज का रेस्ट डेस्टिनेशन दिगोलिखाल तय कर ली थी जो बैजरो पुल से लगभग दिगोलीखाल तक अभी हमें लगभग 50 किमी. दूरी तय करनी थी जिसमें दर्जनों गांव व उनके बंजर खेत देखने अभी बाकी थे। कुछ गांव जिनमें खुशहाली भरपूर थी फिंगर टिप्स में याद थे। ध्यान भटका तो सामने सेरा गाँव दिखाई दिया। दिनेश कंडवाल जी को मैंने याद दिलाया कि ये वही गाँव है जहाँ की फोटो हमने तब ली थी जब हम विधान सभा चुनाव कवर कर ने आये थे! लोकेशन को देखते ही रतन असवाल जी ने गाड़ी रोकी और सबके मोबाइल कैमरे क्लिक करने लगे! मैंने सेरा तल्ला व सेरा मल्ला दोनों की फोटो ली व दोनों ही सोशल साईट पर डाली! ब्राह्मणों का सेरा मल्ला गाँव की पूरी खेती बंजर जबकि राजपूतों/शिल्पकारों के सेरा तल्ला के खेतों की हरियाली मन को लुभाती रही! बीरोंखाल पहले जैसा ही लगा! कोई बिशेष बदलाव नहीं!बदलाव था तो बीरोंखाल के पास डुमैला गांव में। वहां के सरबज खेतों में भी ज्यादातर बंजर हो चुके थे, और तो और यहाँ वीरबाला तीलू रौतेली के स्टेचू में उनकी बिंदुली घोड़ी भी घोडा बन चुकी थी! पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज जी का ध्यान में पूर्व में भी इस पर डलवा चुका था! उन्होंने इस गलती को सुधारने के मौखिक आदेश किसी को मेरे सामने में ही फोन पर दिए थे लेकिन बिंदुली अभी भी बिन्दुला बना हुआ है! यानि स्टेचू में घोड़ी की जगह घोड़ा बना दिया गया है!

चंद्रेश योगी जी

फिलहाल आपको लगे हाथ बैजरो से पहले पूर्वी नयार पर बने पुल से लेकर दिगोलीखाल तक के दर्जनों गांव गिनवाए चलता हूँ जिनमें सड़कमार्ग की नजदीकी दूरियों पर मटेला, स्युन्सी, कोलागाड़, बंगार, लकचौरी, पडीन्दा, चंदौली,स्यारा तल्ला-मल्ला, गुडिन्डा, रिखाड़, बीरोंखाल, डुमैला, भामरे, पनास तल्ला-मल्ला, सेली-पखोली, खालागांव, दुनाव, पीपलसैण, भनार सेरा, दलगांव, डांग, घोड़ियाणा, सिन्दूडी, गर्जिया महादेव, मैठाणाघाट, भवंसा तल्ला, ग्वीन तल्ला-मल्ला, खाल्यूं, बमखोला, सिरोवाला खोला, तन्दोला, घिमिड्या, रणिहाट, रसिया महादेव, सुंगरिया, सिल्ली तल्ली-मल्ली, भुजखेत, सौंफखाल, कोटा, ख़लूण, किंगोड़ीखाल, जड़ोखांद, किंगोड़ीखाल और दिगोलीखाल। दीबा डांडा यानि दीबामन्दिर से लगभग दो ढाई किमी आगे से हम दिगोलिखाल के लिए बाएं मुड़ेंगे।

इस दौरान पूर्वी नयार में गिरने वाले गाड़ गदेरे भी दिखाई दिए जिनमें कोला गाड़, मंगरो गाड़, रिखाड गाड़, कुनागाड़, दुनाऊ गाड़, सिन्दूडीगाड़, खाटलगाड़, ग्वीनगाड़ इत्यादि नदियां प्रमुख हैं।

विवेक नेगी जी।

बीरोंखाल से मैठाणाघाट तक सडक के हाल बेहाल थे! सोचा इसका वीडियो क्लिफ बनाकर क्षेत्रीय विधायक व सांसद को भेजूं व लिखूं कि इस सीमान्त के क्षेत्र वासियों का आखिर दोष क्या है जिन्हें ऐसे गड्डों-खड्डों से भरपूर पतले से राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर गुजरना पड़ता है लेकिन फिर रुक गया क्योंकि ठान ली थी कि सांसद तीरथ सिंह रावत जी को इस बात का संज्ञान जरुर दिलाऊँगा! मैठाणाघाट से फल इत्यादि खरीदकर हम आगे बढे! दिगोलीखाल में चन्द्रेश योगी द्वारा बनाए जा रहे कैंप में हमारे दिन के खाने की व्यवस्था थी! 3 तो मैठाणाघाट ही बज चुके थे!

दिगोलिखाल कैम्प में दिनेश कण्डवाल जी के साथ।

अब हम दीवामाँ के सानिध्य में आगे बढ़ रहे थे! दीवाडांडा के उतुंग शिखरों में सबसे ऊँची छोटी की ओर अंगुली उठाते हुए चन्द्रेश बोले- इष्टवाल जी, वो रहा गुजडूगढ़..! फिर गुजडू गढ़ कब बना उसमें क्या-क्या है? इस सबका पोस्ट मार्टम शुरू हो गया! दीवाखाल से पहले ही लकदक बर्फ सडक के दोनों छोर हमारा बान्हे फैलाए स्वागत कर रही थी! एक सूखे गदेरे पर अथाह हिमखंड व बर्फ की चादर बिखरी थी जहाँ गाड़ी रोक हमने तसल्ली से फोटो खिंचवाई! यहीं किनारे एक बछिया के उपर किसी ने बोरा डाला हुआ था! वह उठ नहीं पा रही थी! मैंने पास ही बांज वृक्षों की लताएँ व किल्मोड़ा/अल्मोड़ा के पात उसके आगे रखे! वह उसे खाने लगी! भूखी थी बेचारी..!

बछडे को ऊर्जा देते रतन असवाल जी।

इधर रतन असवाल जी को लगा कि ही न हो वह प्यासी भी हो! वह एक हिमखंड लेकर आये ब बछिया ने उसे चूसना प्रारम्भ कर दिया! अब तक रतन असवाल बांज की टहनियां तोड़कर उसके आगे डाल चुके थे! बछिया को उसके हाल पर ही हमने छोड़ दिया व फोटो खींचने में ब्यस्त हो गये! कंडवाल जी का ध्यान गया तो देखा अब बछिया अपने पैरों एन खड़ी है! अब चन्द्रेश व विवेक भी बछिया के लिए चारापत्ती तोड़ लाये थे!

दीबा मन्दिर

दीवाखाल में माँ दीवादेवी के मंदिर को प्रणाम कर हम आगे के सफर पर निकल पड़े! मेरे मस्तिष्क में बस झंझावत ही चल रहे थे क्योंकि बहुत से लेख मुझसे दूर छिटक रहे थे और हम आगे बढ़ते जा रहे थे! दीवाखाल से करीब दो किमी. आगे चलकर हमने बांयी तरफ गाड़ी को मोड़कर शोर्टकट दिगोलिखाल का रास्ता चुना! विवेक नेगी ने बताया कि यह स्थान लिस्टयाखेत है। यहाँ से ही सौंफखाल होकर सीधी। सड़क मनीला, सराई खेत निकलती है।

सड़क के उपर ही फारेस्ट बंगला था जहाँ पहले हमारा आज का बिश्राम का इरादा था लेकिन बाद में इरादा बदलकर हम आगे चन्द्रेश की कैंप साइड के लिए निकल पड़े! रास्ते में हमें विवेक बताते हुए चल रहे थे कि हमने कहाँ कहाँ घ्वीड, चीतल दिखने वाले हैं! सचमुच वाइल्ड लाइफ के धनी इस क्षेत्र में हमें कई जंगली जानवर दिखे! गाड़ी के आगे कई बार वन मुर्गियां आई लेकिन उन सबको बचाते हुए हम लगभग पांच सवा पांच बजे दिगोलीखाल पहुंचे! वीर बाला तीलू रौतेली ने यहीं रणचंडी बन कत्यूरियों की बिशाल सेना का बिनाश किया था! मैंने मन ही मन उस देवी का स्मरण किया जिसने 11 बर्ष लड़ाई में ही ब्यतीत किये व गढवाल राज्य का विस्तार चौन्दकोट गुराड़ से लेकर सुदूर कुमाऊं तक फैलाया!

क्रमशः……..(आगे है जीतू रौत की खाल का किस्सा, परसोली के किले में जादूवी तलवार व मर्चुला में गुजडू गढ़ पर चर्चा!

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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