Tuesday, May 6, 2025
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हसीन वादियों के सुकून के बीच पहलगाम का खौफ

(केएस चौहान संयुक्त निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तराखंड)

अपने परिवार के साथ कश्मीर टूर पर निकलते वक्त मेरे मन में बहुत सुकून था। इसकी वजह, यह थी कि दो वर्ष पूर्व केरल का टूर बहुत ही अलग सी स्थिति में कैंसिल करना पड़ा था। तब मैं, पत्नी और दोनों बच्चे केरल टूर के लिए देहरादून से दिल्ली तक पहुंच चुके थे। हमारी फ्लाइट दिल्ली से तिरूवंतपुरम के लिए बुक थी। दिल्ली होटल में पहुंचते ही हम चारों ने अपने-अपने सामान के बैग कार से बाहर निकाले। चूंकि हम चार लोग थे, तो योजनानुसार बैग भी चार ही पैक किए थे, परंतु जब कार से बैग बाहर निकाले तो उसमें केवल तीन ही ट्रॉली बैग थे। पत्नी का बैग गलती से देहरादून ही रुम में छूट गया था। चूंकि पत्नी का सारा सामान उसी बैग में था, तो उनका मूड खराब होना लाजमी था। मैने दिल्ली में ही शॉपिंग करने की पेशकश की, लेकिन बात बन न पाई और हम सब यह टूर कैंसिल करके देहरादून लौट गए।

गुजरे दो वर्ष में चाहकर भी ऐसा कोई अवसर नहीं आ पाया, जबकि हम चारों कहीं एक साथ लंबे टूर पर निकल पाते। इस बीच, बेटी अनन्या कई बार लंबे टूर पर जाने की जिद्द करती रही। चूंकि अप्रैल माह में शासकीय कार्य की व्यस्तता थोड़ी कम रहती है, तो मैंने इस बार परिवार के साथ विचार-विमर्श कर कश्मीर टूर प्लान कर लिया। सरकारी सेवा में 10-10 साल के अन्तराल में अवकाश यात्रा की सुविधा मिलती है। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने एक माह पूर्व 16 से 30 अप्रैल तक जम्मू-कश्मीर की यात्रा के लिए विभाग में आवेदन किया। फलस्वरूप मुझे 15 दिन का अवकाश यात्रा सुविधा स्वीकृत हो गई। फिल्म सेक्टर में सक्रिय बेटा अभिनव चौहान ने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर आने में असमर्थता जताई, लेकिन हम सभी यह तय कर चुके थे कि टूर पर जाएंगे, तो चारों ही। नहीं तो नहीं जाएंगे। हालांकि पत्नी व बेटी ने बाद में अभिनव को कश्मीर टूर के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद, हमने 18 से 24 अप्रैल तक का जम्मू-कश्मीर यात्रा को अंतिम रूप दिया। चूंकि बेटी अनन्या दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में अध्ययनरत है। ऐसी स्थिति में हम तीनों लोग 18 अप्रैल को दोपहर दो बजे सड़क मार्ग से दिल्ली के लिए रवाना हुए। 18 अप्रैल का रात्रि विश्राम दिल्ली में ही किया। 19 अप्रैल की सुबह हमारी फ्लाइट 07.55 बजे दिल्ली से श्रीनगर (कश्मीर) के लिए बुक थी। शाम को पता चला कि फ्लाइट 04 घंटे विलंब से जाएगी। हमारी फ्लाइट 12 बजे दिल्ली से श्रीनगर के लिए रवाना हुई और लगभग 01.30 बजे श्रीनगर एयरपोर्ट पर हम पहुंच गए।

एयरपोर्ट से जैसे ही हमने टैक्सी से श्रीनगर शहर के लिए प्रस्थान किया तो देखा कि रोड में दोनों तरफ पैरामिलिट्री फोर्स जगह-जगह पर तैनात थी। रोड साइड में पैरामिलिट्री फोर्स को देखकर मन में एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। सुरक्षा कर्मियों को देखकर मैं सोचने लगा कि हम लोगों ने यहां घूमने का कहीं गलत निर्णय तो नहीं ले लिया है। मैंने टैक्सी ड्राइवर ज़ाहिद अब्बास से पूछा कि क्या जम्मू-कश्मीर में अभी भी खतरा बरकरार है। टैक्सी ड्राइवर ने कहा-सर यहां पर पिछले दो वर्षों से बहुत शांति है। किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। एक और बात यह अच्छी लगी कि एयरपोर्ट से निकलते समय जगह जगह कश्मीरी महिलाएं अपने कश्मीरी लिबास में बहुत ही तन्मयता से विभिन्न स्थानों जैसे एयरपोर्ट, होटल, शॉपिंग स्थानों पर कार्य कर रही थी l

श्रीनगर एयरपोर्ट से निकलते ही बारिश शुरू हो गई। तीन बजे लाल चौक के पास के होटल में चैक-इन करने के बाद हम लोगों का प्लान श्रीनगर सिटी में घूमने का था, किन्तु बारिश होने के कारण उस दिन हम होटल से बाहर नहीं निकल पाए। 20 अप्रैल की सुबह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, 9.30 बजे होटल से गुलमर्ग के लिए प्रस्थान किया। गुलमर्ग की दूरी श्रीनगर से लगभग 56 किमी0 है। गुलमर्ग जाते समय चारों ओर सुंदर पहाड़ियां, देवदार के जंगल और बर्फ से ढकी चोटियां दिख रही थी l वास्तव में ऐसा लग रहा था कि यह जन्नत है। श्रीनगर से लगभग 45 किमी0 आगे तंगमर्ग स्थानीय मार्केट से किराये में रेनकोट तथा बर्फ में चलने के लिए जूते लेने होते हैं, जिसका चार लोगों का किराया 1200 रू0 था। पूर्वाह्न साढे़ ग्यारह बजे के आस-पास हम लोग गुलमर्ग पहुंचे। गुलमर्ग में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखी। गुलमर्ग में उस दिन लगभग 20 से 25 हजार पर्यटक घूमने आये थे। यहीं से हमने जम्मू-कश्मीर टूरिज्म के अधिकृत गाइड को अपने साथ लिया।

गुलमर्ग के बेस कैम्प से गोंडोला अर्थात् केबल कार के माध्यम से गुलमर्ग के फेस-1 में पहुंचने के बाद हम लोगों ने वहां पर विभिन्न प्रकार के एडवेन्चर स्पोर्ट्स की गतिविधियों जैसे स्लेजिंग,स्नो बोर्डिंग,स्कीइंग में भाग लिया। गुलमर्ग के फेस-1 के बायीं तरफ स्नो स्कीइंग और दायीं तरफ स्नो बाईकिंग की गतिविधियां संचालित होती हैं। स्नो बाईकिंग की गतिविधियां जहां से संचालित होती हैं, वहां तक खड़ी चढ़ाई है, जिसकी दूरी लगभग आधा किमी0 होगी, जो पैदल अथवा घोड़े से पूरी करनी होती है। हम चारों वहां चार घोड़ों की पांच हजार फीस देने के बाद स्नो बाईकिंग प्वाइंट पर पहुंचे। बेस कैम्प से प्वॉइंट वन का किराया दो हजार रूपये, प्वॉइंट टू का किराया चार हजार रूपये और प्वॉइंट थ्री का किराया छह हजार प्रति व्यक्ति निर्धारित था। हम चारों ने प्वॉइंट टू तक स्नो बाईकिंग से एडवेन्चर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाया। एंट्री पॉइंट्स से प्वॉइंट टू तक लगभग पांच से छह फीट तक बर्फ जमी हुई थी। एडवेन्चर स्पोर्ट्स समाप्त करने के बाद हम लोग फेस-1 पर वापस लौटे। चूंकि वहां से हमें फेस-2 में भी जाना था, किन्तु सुरक्षा कारणों से उस दिन फेस-2 केबल कार का मार्ग बंद किया गया था। गुलमर्ग में भी जगह-जगह सुरक्षाकर्मी पूरे बर्फीले पहाड़ में तैनात थे। पुनः गोंडोला केबल कार से लगभग चार बजे हमने गुलमर्ग के बेस कैम्प के लिए प्रस्थान किया। फेस-1 से केबल कार में वापस आने के लिए लगभग तीन हजार लोगों की कतार लगी हुई थी। गुलमर्ग के बेस कैम्प से जैसे ही हमने श्रीनगर के लिए प्रस्थान किया, हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई। रास्ते में तंगमर्ग से हमने स्नो शूज और रेनकोट लिये थे, उसको वापस करने के बाद वहीं पर एक रेस्टोरेन्ट में भोजन किया। उसके बाद चूंकि बारिश शुरू हो चुकी थी तो हम लोग लगभग सात बजे अपने होटल पहुंच पाए।

अगले दिन यानी 21 अप्रैल को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारा श्रीनगर के स्थानीय जगहों पर घूमने का प्लान था। होटल से लगभग 10 बजे हम डल झील के लिए निकले,जो सात किमी0 की दूरी पर ही थी l डल झील यानी ऐसा अहसास, जिसे शब्दों में प्रकट करना बहुत मुश्किल है। बेहद सुंदर, रमणीय और मन को सुकून पहुंचाने वाली जगह। डल गेट पर पहुंचने के बाद जैसे ही हम कार से नीचे उतरे, तो टैक्सी ड्राइवर ने कहा-सर, डल झील में शिकारा की सवारी करने के लिए काफी बार्गेनिंग होती है। इसलिए दो से ढाई हजार से ज्यादा पैसा मत देना। डल गेट से हम लोगों ने दो हजार रूपये में शिकारा की बुकिंग कर ली। झील में शिकारा का आनन्द लेते हुए बाद में वहां स्थापित कुछ दुकानों में शॉपिंग भी की। शॉपिंग के बाद शिकारा में बैठकर डल गेट वापस आये। डल गेट से लगभग तीन-चार किमी0 की दूरी पर स्थित ट्यूलिप गार्डन में प्रवेश किया। ट्यूलिप गार्डन में रंग-बिरंगे गुलाब के फूलों और उसके बाहर हरी-भरी पहाड़ियों को देखकर मन ये ही कह रहा था कि कश्मीर को धरती का स्वर्ग यूं ही नहीं कहा जाता। इतना खूबसूरत नजारा देखने के बाद वापस आने का मन नहीं कर रहा था। ट्यूलिप गार्डन के बाद हमने दिलशाद गार्डन की सैर की। दिलशाद गार्डन में सीढ़ीनुमा ग्रीन पार्क स्थापित किया गया है, जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। दिलशाद गार्डन में बच्चों की जिद के कारण मैंने और पत्नी ने कश्मीरी परिधान में फोटो भी खिंचवाए l थोड़े पास में ही स्थित एक कालीन और पशमीना शाल की फैक्ट्री का भी अवलोकन किया l दिन भर श्रीनगर के लोकल पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने के बाद छह बजे वापस होटल आ गये। रात के आठ बजे सोचा लाल चौक के लोकल मार्केट में घूम लेते हैं। किन्तु आठ बजे तक मार्केट की अधिकतर दुकानें बंद हो चुकी थी। शहर के बीच में ही जगह-जगह पोलो ग्राउण्ड और सुन्दर पार्क बने हुए हैं। थोड़ी देर मार्केट घूमने के बाद हम वापस अपने होटल आ गये।
22 अप्रैल को सुबह होटल से चैक-आउट करने के बाद 10.30 बजे अगले पड़ाव के लिए हम निकल पड़े। हमारा अगला पड़ाव पहलगाम निर्धारित था। पहलगाम जाने के लिए बने श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे की अपनी अलग ही खूबसूरती है। हाईवे के दोनों ओर लहलहाती सरसों की फसल दिख रही थी।

श्रीनगर से पहलगाम जाते समय रास्ते में पम्पौर, संगम तथा अनन्तनाग शहर मिलते हैं। संगम में बहुत सारे क्रिकेट बैट बनाने की फैक्ट्रियां हैं। क्रिकेट के बैट ” बिलो ” के पेड़ की लकड़ी से बनते हैं l थोड़ी देर हम लोग क्रिकेट बैट बनाने वाली फैक्ट्री को देखने गये। फैक्ट्री मालिक ने बताया कि क्रिकेट के बैट बनाने में जो लकड़ी का प्रयोग होता है, उसके पेड़ संगम कस्बे के आस-पास में हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हमारी फैक्ट्री के बैट देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी निर्यात होते हैं। संगम के बाद अनन्तनाग से होते हुए लगभग 1.30 बजे हम पहलगाम पहुंचे। पहलगाम, अनन्तनाग जनपद की तहसील है। श्रीनगर से पहलगाम की दूरी लगभग 90 किमी0 है। अनन्तनाग से पहलगाम जाते हुए सड़क के दोनों ओर बहुत ही खूबसूरत और आलीशान मकान कश्मीरी शैली में बने हुए देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ। अनंतनाग से पहलगाम के बीच में कई किलोमीटर तक अखरोट के पेड़ देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ l अखरोट के अतिरिक्त सेव के बगीचा भी दिख रहे थे l मैंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि यहां मकान बहुत सुन्दर दिख रहे हैं, तो उसका कहना था कि कश्मीर में लोग दो चीजों में पैसा बहुत खर्च करते हैं। एक, मकान बनाने में और दूसरा शादियों में। पहलगाम शहर में पहुंचते ही वहां के प्राकृतिक दृश्य ने मन मोह लिया। मंत्रमुग्ध करने वाले नजारों में इतनी खूबसूरती है कि देखकर लगा कि यदि हम पहलगाम नहीं आते, तो इस टूर में कुछ अधूरापन रहता।

पहलगाम की आबादी लगभग पच्चीस हज़ार है, जो समुद्र तल से 7200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है l शायद पूरा शहर 10 किमी0 की परिधि में सिमटा हुआ होगा। पहलगाम, अनंतनाग से 45 कि.मी.की दूरी पर है और अनंतनाग जिले की तहसील है l पहलगाम का जो एक खूबसूरत पहलू है, वो यह है कि इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी की “लिद्दर” नदी बहती है और शहर के चारों तरफ हरे-भरे बुग्याल, देवदार के वृक्षों का घनघोर जंगल तथा ऊँचे-ऊँचे हिमखण्ड की पहाड़ियों का सुन्दर नजारा है। मुझे पहलगाम बहुत ही स्वच्छ शहर लगा l पहलगाम शहर में हम लोग करीब एक बजे पहुँच गये थे। शहर में मुख्य मार्ग के दायीं तरफ घोड़ा पड़ाव दिखा, जहां लगभग एक हजार घोड़े मौजूद रहे होंगे। जब मैंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि इतने सारे घोड़े कहाँ जाते हैं, तो उसने बताया कि यह घोड़े पर्यटकों को लेकर बैसरन वैली जाते हैं। घोड़ा पड़ाव से बैसरन वैली की दूरी लगभग पांच किमी0 है। और घोड़े से लगभग एक घंटा लगता है l टैक्सी वाले ने हमें अवगत कराया कि आप पहले बैसरन वैली जा सकते हो। पहलगाम के मुख्य बाजार के घोड़ापड़ाव से हमारे होटल की दूरी लगभग दो किमी0 थी। मैंने बच्चों को कहा कि सामान गाड़ी में ही छोड़ते हुए पहले बैसरन वैली की यात्रा घोड़ों से पूरी कर लेते हैं, लेकिन पुत्र अभिनव का जोर पहले होटल में चैक-इन कर लेने पर था। वह इसके बाद ही बैसरन वैली जाने की बात कर रहा था। मैंने कहा कि होटल दो किमी0 आगे है। इसलिए दो किमी0 जाना और फिर दो किमी0 आना अर्थात् चार किमी0 बिना वजह आना-जाना पड़ेगा। इसलिए अभी होटल नहीं जाते हैं, किन्तु बच्चों की जिद्द की वजह से हम लोग पहले होटल ही चले गये। घोड़ा पड़ाव से यदि हम 1.30 बजे बैसरन वैली के लिए प्रस्थान करते, तो 2.30 से 3 बजे के बीच में हम लोग बैसरन वैली में होते। आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों पर किये गये हमले का समय भी 2.30 से 3 बजे के बीच था। होटल में चैक-इन करने के बाद टैक्सी ड्राइवर ने मुझसे कहा-सर पहलगाम में आपको लोकल टैक्सी लेनी पड़ेगी, क्योंकि पहलगाम में बाहर की टैक्सी लोकल के लिए अलाउ नहीं है। हमने होटल के मैनेजर से कहकर लोकल टैक्सी मंगवा ली। हम लोग जैसे ही टैक्सी में बैठे, तो हमने ड्राइवर जावेद से पूछा कि आज हम कितनी वैली घूम सकते हैं? टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि आज आप लोग बैसरन वैली, बेताब वैली और चाँद वैली कवर कर सकते हैं। एक अच्छी बात यह थी कि जावेद ने हमें प्रत्येक डेस्टिनेशन का जो किराया टैक्सी यूनियन द्वारा निर्धारित किया गया था, उसकी लिस्ट दिखाई l उस समय घड़ी में लगभग 2.30 बजे थे। हमें पहले बैसरन वैली जाना था, किन्तु ड्राइवर ने कहा-सर आप पहले बेताब वैली घूम लो। उसके बाद बैसरन वैली चल लेंगे। बेताब वैली की दूरी पहलगाम से पांच किमी0 है। टैक्सी का किराया 1400 रूपये निर्धारित है। पहलगाम से प्रस्थान करने के बाद बेताब वैली से एक किमी0 पहले ही देहरादून से मेरे मित्र अनिल दत्त शर्मा जी का फोन आया। उन्होंने छूटते ही पूछा-चौहान जी आप इस समय कहाँ हो? उनको यह मालूम था कि मैं परिवार के साथ कश्मीर हूंl मैंने उनको जवाब दिया कि मैं अभी पहलगाम में परिवार के साथ घूम रहा हूँ। उधर से उन्होंने अगली जो बात कही, वह विचलित करने वाली थी। उन्होंने कहा कि पहलगाम में अभी-अभी पर्यटकों पर आतंकी हमला हुआ है। मुझे लगा कि वो मेरे साथ मजाक कर रहे हैं, परंतु जोर देकर कहा कि सचमुच हमला हुआ है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने न्यूज चैनलों के स्क्रीन शॉट मुझे भेजने की बात कही l मेरे मोबाइल में नेटवर्क नहीं था। इसलिए मैं स्क्रीन शॉट नहीं देख पाया। मोबाइल पर हो रही बातों को टैक्सी ड्राइवर जावेद सुन रहा था। उसने पूछा-सर क्या हुआ? तो मैंने बताया कि कुछ ऐसा मालूम हो रहा है कि पहलगाम के किसी स्थान पर आतंकी हमला हुआ है। टैक्सी ड्राइवर ने कुछ दूरी पर स्थित दुकान पर कार रोककर दुकान वाले से इस सन्दर्भ में पूछा। जवाब में दुकान वाले ने कहा कि ऐसा सुनने में आ रहा है कि बैसरन वैली में आतंकवादियों ने दो-तीन टूरिस्टों को घायल कर दिया है। यह सुनकर मेरा मन थोड़ा सा विचलित जरूर हुआ लेकिन ड्राइवर ने कहा कि सर ऐसी कोई बात नहीं है। आप बेताब वैली में आराम से घूम सकते हैं, क्योंकि यह हमला दूसरी साइड में हुआ है। कुछ ही देर में हम बेताब वैली के टैक्सी स्टैण्ड पर पहुँच गये। जैसे ही हम टैक्सी से नीचे उतरे, तो वहाँ पर्यटकों में हलचल सी दिखी। पर्यटक अपनी स्थानीय भाषा में बात करते हुए टैक्सी में बैठकर वापस पहलगाम के लिए प्रस्थान कर रहे थे। कुछ पर्यटक ऐसे भी थे, जिनको इस सन्दर्भ में कुछ भी मालूम नहीं था औैर वे टैक्सी स्टैण्ड से बेताब वैली में खुशी-खुशी प्रवेश कर रहे थे। हमने भी मुख्य गेट पर टिकट लेकर बेताब वैली में प्रवेश किया।

बेताब वैली के अन्दर से साफ़ पानी की नदी, पहाड़, बुग्याल तथा पेड़ों का बहुत ही मनोहारी दृश्य है। इसी बेताब वैली में “बेताब” और “बजरंगी भाईजान” फिल्म की भी शूटिंग हुई है l हम लोग उन दृश्यों को निहारते हुए जिप लाइन स्टैण्ड के पास पहुँचे। मैंने बच्चों से कहा कि जिप लाइन कर लेते हैं, लेकिन बच्चों ने इस पर अनिच्छा दिखाई, परंतु मैं जिप लाइन करना चाहता था। मैं उसका टिकट लेने के लिए टिकट काउन्टर पर पहुँचा, तो वहां पर संबंधित कर्मचारी टिकटघर पर ताला लगाता हुआ मिला। मैंने उनसे कहा कि मुझे एक टिकट जिप लाइन का लेना है। उस कर्मचारी ने सहमे तथा डरे हुए अन्दाज में जवाब दिया कि आपको जिप लाइन करने की पड़ी है। यहाँ कुछ दूर पर ही आतंकवादियों ने पर्यटकों पर हमला किया है। मैंने कहा वो तो हमसे काफी दूर है, लेकिन उसका जवाब था कि आतंकवादी अब बेताब वैली में भी अटैक कर सकते हैं। इसलिए आप लोग भी यहां से जल्दी निकलने की कोशिश करो। उसका यह जवाब सुनकर थोड़ी घबराहट हुई और मैं बच्चों को लेकर टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंच गया। जब हमने बेताब वैली में प्रवेश किया था, तो उस समय टैक्सी स्टैण्ड पर लगभग 300-350 टैक्सी होंगी l इसी तरह, लगभग 1500-2000 तक टूरिस्ट मौजूद थे, लेकिन जब तक हम वापस टैक्सी स्टेंड पर आए तब तक नजारा एकदम बदला हुआ था। अब सिर्फ 40-50 लोग ही दिख रहे थे और टैक्सी स्टैण्ड पर भी केवल 10-12 टैक्सी ही खड़ी थीं। यह सब दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था मानो बेताब वैली में कोई आपदा आ गई हो। टैक्सी में बैठकर हमने तुरन्त ही पहलगाम के लिए प्रस्थान किया। पहलगाम शहर में पहुंचते ही वहां का नजारा देखा तो पूरे शहर में सन्नाटा, गाड़ियों की लम्बी-लम्बी कतारें, दुकानों के शटर डाउन, घरों के दरवाजे-खिड़कियां बन्द और रोड में वाहनों के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था। टैक्सी ड्राइवर जावेद ने रोड पर जैसे ही कारों का जमावड़ा देखा, उसने तुरन्त ही कार को बैक कर लिया। जैसे ही टैक्सी ड्राइवर ने कार को बैक किया, तो मैंने उनसे पूछा कि आपने कार को बैक क्यों किया ? एक अनजाना भय अब मुझे हर बात में नजर आ रहा था। टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि यहां बहुत लम्बा जाम लग चुका है, आप इस जाम में दो-तीन घंटे फंस जाओगे, क्योंकि मुख्य चौराहे पर पुलिस तथा पैरामिलिट्री फोर्स ने शायद नाकेबंदी कर दी है। इसलिए मैं आपको गलियों के मार्ग से होटल पहुंचाता हूँ। स्थिति ही कुछ ऐसी थी, कि ड्राइवर की बात माननी पड़ी। टैक्सी ड्राइवर ने जैसे ही टैक्सी से किसी मौहल्ले की संकरी रोड में प्रवेश किया, वैसे ही बच्चों के मन में भी डर पैदा हो गया कि कहीं ये टैक्सी ड्राइवर हमको गलत स्थान पर तो नहीं ले जा रहा है। जिस रास्ते पर वो टैक्सी ले जा रहा था, वह बहुत ही संकरा और डरावना प्रतीत हो रहा था। पुत्र अभिनव ने टैक्सी ड्राइवर से कहा कि आप इस रास्ते में टैक्सी क्यों लाये हो? तो टैक्सी ड्राइवर का जवाब था कि आप डरो मत, मैं आपके परिवार को दूसरे रास्ते से होटल तक सुरक्षित पहुँचा रहा हूँ। शायद टैक्सी बैक करने से लेकर होटल तक पहुंचने में हमें 10 मिनट लगे होंगे, लेकिन इस छोटे से अंतराल में हम जिस डर से गुजरे, उसका बयान करना मुश्किल है। तरह-तरह के डरावने ख्याल मन में उमड़ रहे थे। मगर बाद में होटल सुरक्षित पहुंचने का सुकून भी महसूस हुआ। हम चार बजे अपने होटल में थे।

पहलगाम में हमारा होटल मुख्य बाजार से ऊंचे स्थान पर देवदार के घनघोर जंगल के बीच में था, जहां से मार्केट का पूरा दृश्य दिख रहा था। सभी होटल कर्मी तथा कुछ टूरिस्ट होटल के बाहर निकलकर पहलगाम मार्केट का विचलित करने वाले दृश्य देख रहे थे। होटल पहुंचते ही जैसे ही हम टैक्सी से बाहर निकले तो देखा पूरे बाजार में कारों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई हैं और ऊपर से सेना के दो-तीन हेलीकॉप्टर मंडरा रहे हैं। पहलगाम के पूरे शहर में एम्बुलेन्स और पुलिस के सायरन बज रहे हैं और पुलिस एवं पैरामिलिट्री की बख्तरबंद गाड़ियां इधर से उधर दौड़ रही थीं। जिस बैसरन वैली में आतंकवादियों ने हमला किया था, वह वैली भी होटल से दिख रही थी। एक अजीब से विचलित ख्यालों से हम सभी गुजर रहे थे। मन में आया कि पहलगाम के इस होटल को छोड़कर श्रीनगर निकल जाते हैं क्योंकि आतंकी हमले के बाद उपजे माहौल में यहां रात काटनी मुश्किल हो जायेगी। तब तक शाम के पांच बज चुके थे। पत्नी ने कहा कि रात को होटल छोड़कर श्रीनगर के लिए निकलना ठीक नहीं रहेगा। बच्चे होटल छोड़ने की जिद कर रहे थे। मैं यह निर्णय नहीं ले पा रहा था कि हम होटल छोड़कर श्रीनगर निकल जायें या आज रात पहलगाम के होटल में ही रूकें। इसी बीच मैंने श्रीनगर में एक परिचित कश्मीरी मित्र सलीम वाणी को कॉल करके पूछा कि हमको इस परिस्थिति में क्या करना चाहिए। उनका जवाब आया कि रात को होटल से निकलना उचित नहीं होगा क्योंकि पहलगाम से श्रीनगर आते वक्त जगह-जगह पुलिस की नाकेबंदी होगी। इससे आप रात भर रोड पर ही फंसे रहोगे। आप अभी होटल को किसी भी दशा में न छोड़ें। राय-मशविरा करने के बाद पहलगाम के होटल में ही रात काटने का निर्णय हुआ। इस बीच कई मित्रों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, विभागीय अधिकारियों के फोन कॉल आने शुरू हो गये थे। कभी-कभी नेटवर्क ना होने के कारण मेरा फोन भी नहीं मिल रहा था l बच्चों के फोन में प्रीपेड सिम होने के कारण उनके फोन कॉल नहीं लग रही थी। फोन ऑफ के कारण भी परिवार के लोग और भी अधिक विचलित होने लगे l नेटवर्क मिलने पर जब सगे-संबंधी फोन कॉल पर कुशल क्षेम पूछ रहे थे तो बात करते वक्त कई बार मेरे आंसू भी आ रहे थे, कि हम किस मुश्किल में फंस गए हैं। शायद वह लोग टीवी न्यूज और सोशल मीडिया पर इस आतंकवादी हमले के डरावने दृश्य देख रहे थे l इसी बीच कश्मीर में ही तैनात मेरे गांव के निकट के सैनिक मित्र राजेश ने एक सन्देश भेजा कि शायद कल कश्मीर बन्द है, इसलिए गाड़ियां नहीं चलेंगी। रात को कुछ देर राजेश ने फोन पर भी बात की और कश्मीर के आतंकवाद के बारे में वार्तालाप किया। भूख नहीं होने के बाद भी मैं बच्चों को रात को लगभग 9.30 बजे डिनर करने के लिए डाइनिंग हॉल में ले गया, देखा वहां सन्नाटे की स्थिति थी। सिर्फ दो पर्यटक और कुछ वेटर व होटल के कर्मचारी मौजूद थे। मैंने वेटर से कहा कि इस होटल में कितने लोग स्टे कर रहे हैं ? वेटर ने कहा-लगभग 150 हैं। मैंने कहा कि क्या सबने डिनर कर लिया है या नहीं क्योंकि डाइनिंग हॉल तो खाली दिख रहा है। तो वेटर ने जवाब दिया कि कोई भी गेस्ट डर के मारे रूम से बाहर नहीं निकल रहा है। यह सुनकर हमारे रौंगटे खड़े हो गए। होटल स्टाफ सहमा हुआ था। एक वेटर ने बताया कि मेरे घर वाले फोन करके कह रहे हैं कि जल्दी से जल्दी होटल को छोड़कर घर आ जाओ। शायद उसका घर पहलगाम से 50 किमी0 की दूरी पर था।

इसी बीच, ठीक रात्रि 9.45 बजे मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी का फोन आया और उन्होंने मेरे से पूछा कि आप सभी लोग सुरक्षित हैं? मैंने कहा कि सर हम होटल में हैं और पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। अभी किसी प्रकार की असुविधा नहीं है। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोई भी परेशानी होगी तो मुझे अवगत कराना। चिंता करने की कोई बात नहीं है। आप सकुशल परिवार सहित घर लौट आओगे। मुख्यमंत्री जी के फोन कॉल से हम लोगों का काफी मनोबल बड़ा, क्योंकि मैं यह सोच रहा था कि कल कहीं पहलगाम में कर्फ्यू न लग जाए, जिसके कारण हमको श्रीनगर जाने में असुविधा हो। यदि ऐसा होता है तो जरूर मुख्यमंत्री जी हमें निकालने में मदद करेंगे l हमारी श्रीनगर से 23 अप्रैल को दोपहर दो बजे एयर इण्डिया की फ्लाइट निर्धारित थी। नाममात्र का डिनर करने के बाद हम लोग अपने रूम में आ गए। होटल घने देवदार के जंगल के बीच में था और वहां पर बहुत बड़ा पोलो ग्राउण्ड भी था। डाइनिंग हॉल से हमारे रूम की दूरी लगभग 200 मीटर थी, लेकिन इस दूरी को तय करते वक्त भी हम अनजाने भय से लगातार गुजरते रहे। हमारे रूम तक होटल का कर्मचारी भी साथ आया था। रूम पर पहुंचने के बाद होटल के कर्मचारी ने कहा कि रात को यदि कोई भी दरवाजे की घंटी बजाये या दरवाजा खटखटाये, तो आप दरवाजा मत खोलना। यह सुनकर हम सभी के होश उड़ गए। हमें लगा कि कहीं आतंकवादी रात को इस होटल में हमला न कर दे। बच्चे अपने रूम में चले गये और हम अपने रूम में। रूम में प्रवेश करने के बाद ऐसा लगा मानो आतंकवादी खिड़की या रोशनदान तोड़कर रूम के अन्दर न आ जाये। हमारे रूम की खिड़कियों से बाहर घनघोर देवदार का जंगल दिख रहा था। सामान्य स्थितियों में भले ही यह जंगल इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाता हो, लेकिन इस वक्त हमारे डर में और इजाफा ही कर रहा था। मुझे और मेरी पत्नी को अपने से ज्यादा चिन्ता बच्चों की हो रही थी। पत्नी ने कहा कि बच्चों को भी अपने रूम में बुला लेते हैं ताकि बच्चे अपने पास रहेंगे तो बच्चों की सुरक्षा का डर थोड़ा कम हो जायेगा। हम लोगों ने बच्चों को अपने रूम में बुला लिया। थोड़ी देर लगभग रात के 11 बजे तक हम लोग एक ही रूम में बैठे रहे। इसी बीच में पत्नी ने कहा कि होटल के रूम के अन्दर बातें मत करो, कहीं आतंकवादी हमारी आवाज सुनकर रूम के अन्दर प्रवेश न कर लें। मेरे मन में ख्याल आया कि कहीं यदि आतंकवादियों का हमला हमारे रूम में हो जायेगा तो हम चारों की मृत्यु निश्चित है। मैंने सोचा कि बच्चों को वापस उन्हीं के रूम में भेज देता हूं। यदि हम लोग अलग-अलग रूम में रहेंगे तो हो सकता है कि कुछ आतंकवादियों के हमले से बच जायें। बच्चे वापस अपने रूम में चले गये। नींद तो सभी की आंखों से गायब हो चुकी थी, इसलिए हम कोई भी सो नहीं पा रहे थे। हम चारों फैमिली मेम्बर का एक व्हाट्सएप ग्रुप बना हुआ है। उस ग्रुप में एक-दूसरे से चैट करके पूछ रहे थे कि नींद आ रही है या नहीं डर तो नहीं लग रहा आदि। हम एक दूसरे को हिम्मत भी दे रहे थे कि डरना नहीं है। कुछ नसीहतें भी साझा हो रही थी। मसलन, लाइट ऑफ करके रखना, बातें बिल्कुल भी मत करना, ताकि ऐसा लगे कि होटल के रूम खाली हैं। रात के दो बजे मन में ख्याल आया कि होटल में दो रूम और ले लेते हैं और प्रत्येक रूम में अकेले-अकेले ठहरते हैं ताकि यदि आतंकवादी हमला होता है तो अलग-अलग रूम में रहने से किसी के बचने की संभावना बनी रहेगी। मेरी पत्नी बहुत डरी हुई थी। डर की वजह से उसके आंसू आंखों से बाहर नहीं आ रहे थे। चेहरे में भय, मायूसी के भाव साफ दिख रहे थे। पत्नी ने कहा मैं अकेले तो रूम में बिल्कुल भी नहीं रह सकती हूं। सुबह 6 बजे तक का समय निकल जाए। रात किसी तरह से कट जाए, बस मैं यही दुआ कर रही हूं। रात भर हममें से कोई भी सदस्य नहीं सोया। सुबह जब 6 बजे रात खुलने पर हल्की सी रोशनी दिखी तो थोड़ा डर कम हुआ। पत्नी सबसे पहले सीधे बच्चों के रूम में गई। बच्चों को सुरक्षित देखकर सुकून हुआ। हम लोगों ने प्लान किया कि ठीक आठ बजे होटल से श्रीनगर के लिए निकल जायेंगे। मैंने अपने टैक्सी ड्राइवर को सुबह सात बजे कॉल करके पूछा कि क्या श्रीनगर के लिए हम टैक्सी से निकल सकते हैं या नहीं। चूंकि ड्राइवर श्रीनगर का रहने वाला था, तो उसने मालूम करके मुझे कहा कि सर सुबह पर्यटकों की टैक्सी शायद श्रीनगर जा सकती हैं। टैक्सी ड्राइवर होटल से सात-आठ किमी0 दूर किसी परिचित के यहां रूका हुआ था। 23 अप्रैल को सुबह ठीक 7.30 बजे वह होटल पहुंच गया। हम लोग प्रातः 7.30 बजे तैयार होकर रूम से बाहर निकल गये थे। रूम के बाहर निकलते ही लॉन में होटल के मालिक तथा दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे। उन लोगों से थोड़ी वार्तालाप हुई। होटल के मालिक इस घटना से बहुत ही विचलित थे और कह रहे थे कि इस घटना से पूरे कश्मीर घाटी में टूरिस्ट का अकाल पड़ जायेगा और लोग बेरोजगार हो जायेंगे।

मैंने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि क्या हम आठ बजे पहलगाम से श्रीनगर के लिए प्रस्थान कर सकते हैं? तो उन्होंने बताया कि अभी आठ बजे तक तो प्रतिबंध है। इसी बीच उन्होंने अपने किसी सीनियर अधिकारी से बात कर मुझे अवगत कराया कि आठ बजे के बाद आप पहलगाम से श्रीनगर के लिए बाई रोड निकल सकते हैं। सुबह 7.30 बजे फिर से पहलगाम घाटी में सेना के हेलीकॉप्टर मंडरा रहे थे। आठ बज चुके थे। हमारा किसी का भी ब्रेकफास्ट करने का मन नहीं था, किन्तु होटल मालिक के बहुत ज्यादा अनुरोध करने पर मेरी पत्नी को छोड़कर हम तीनों ने थोड़ा ब्रेकफास्ट कर लिया। पत्नी की मनोदशा देखकर होटल मालिक ने वेटर से उनका नाश्ता पैक कराकर रखवा दिया, ताकि रास्ते में जहां भी मन हो, वह बेक्रफास्ट कर ले। होटल मालिक का यह व्यवहार देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। ठीक 8.15 बजे हम टैक्सी में बैठकर श्रीनगर के लिए रवाना हो गये।
पहलगाम शहर से निकलते वक्त रोड में सुरक्षाकर्मी तथा उनके बख्तरबंद वाहन दिख रहे थे।

इक्का-दुक्का जगह पर मीडियाकर्मी न्यूज कवरेज करते दिखे। पहलगाम से अनन्तनाग संगम, पम्पौर व श्रीनगर तक लगभग पूरे 90 किमी0 में सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे। जगह-जगह पर वाहनों की चैकिंग हो रही थी। ठीक 10.30 बजे हम श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंचे। श्रीनगर एयरपोर्ट पर भी पर्यटकों की बहुत भीड़ जमा हो गई थी। सभी पर्यटक कश्मीर से लौटना चाहते थे। श्रीनगर एयरपोर्ट पर चैक-इन करने के बाद हम लोगों ने राहत की सांस ली। दो बजे हमारी फ्लाइट श्रीनगर एयरपोर्ट से प्रस्थान करते हुए लगभग दोपहर 3.30 बजे दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंच गई। दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचने पर जो सुकून हासिल हुआ, वह बखान करने लायक शब्द नहीं हैं। एक सुरक्षित माहौल की अलग ही खुशी हम चारों महसूस कर रहे थे। कश्मीर की यह यात्रा मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव वाली रही, जिसके एक हिस्से में धरती के स्वर्ग की नैसर्गिंक सुंदरता से उपजी वो खुशी रही, जो अवर्णनीय है, तो दूसरे हिस्से में पहलगाम में आंतकी हमले के बाद उपजे खौफ, दहशत और असुरक्षा का वो माहौल रहा, जिसके जिक्र करने मात्र से रौंगटे खडे़ हो जाते हैं। पहलगाम के बैसरन वैली में मारे गये 26 निर्दोष पर्यटकों की घटना ने मुझे पूरी तरीके से झकझोर दिया। एक बात मुझे यह समझ नहीं आयी कि एयरपोर्ट से लेकर सड़क, पर्यटन स्थलों आदि पर सुरक्षा कर्मी तैनात थे, लेकिन पहलगाम शहर और जब हम बेताब वैली में गए जहां पर अत्यधिक पर्यटक भी थे एक भी सुरक्षा कर्मी नहीं दिखा l स्थानीय लोगो का कहना था कि यहां कभी असुरक्षा का माहौल था ही नहीं शायद इसी कारण से सुरक्षा कर्मी तैनात नहीं थे l 52 वर्ष की आयु में इससे पहले कभी ऐसे अद्भुत अनुभव से साक्षात्कार नहीं हुआ। इस घटनाक्रम से मुझे ऐसा लगा कि पर्यटकों के मन में फिलहाल तो डर का डेरा है। पर्यटन से अपनी रोजी-रोटी जुटाने वाले कश्मीर के स्थानीय लोगों की आजीविका भी काफी समय तक अब प्रभावित हो सकती है। इस आतंकवादी घटना से हमारा परिवार 22 अप्रैल को सुरक्षित बच निकला, निश्चित ही यह हमारे कर्मो का फल, माता-पिता का आशीर्वाद, परिवार, मित्रों एवं शुभचिन्तकों की प्रार्थनाओं और आराध्य देव चार भाई महासू महाराज की कृपा से संभव हुआ है। इतना जरूर है कि यह कश्मीर यात्रा ताउम्र याद रहेगी।

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