Saturday, October 19, 2024
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सुप्रसिद्ध रामलीला…बद्रीनाथ घाटी में महिलायें निभाती हैं रामलीला का हर किरदार!

(मनोज इष्टवाल)

शास्त्रों में लिखा गया है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:!” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है या फिर नारी पूजनीय होती है वहीँ देवता रहते हैं या विचरण करते हैं! शायद यही कारण भी है कि गंगा -यमुना संस्कृति से सुसज्जित उत्तराखंड के इस भू-भाग में चार धाम यात्रा होती है! हर बर्ष विश्व समुदाय के कई अनुयायी माँ गंगा , बहन यमुना के इस घाटी प्रदेश के वानस्पतिक, महत्व, पर्यावरणीय महत्व, मध्य व उतुंग हिमालयी शिखरों के पादप प्रदेश के गाँवों की भौगोलिक व लोक सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों को अंगीकार करने पहुँचते हैं व प्रसाद भले ही बद्री केदार या यमुनोत्री गंगोत्री मंदिर से ग्रहण कर अपने को धनी समझते हैं लेकिन यह भी अकाट्य है कि यहाँ के लोक समाज व संस्कृति की वानगी से तर्र विश्व भर के लोग अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं!

उत्तराखंड में नारियों का जो स्थान समाज में है वह लिखने की आवश्यकता नहीं क्योंकि शायद ही भारतबर्ष के अन्य किसी समाज में नारी शक्ति को इतने सम्मानजनक दृष्टि के साथ सर्वाधिकार दिए गए हों! यहाँ की नारी भी उस सम्मान को न्यायोचित्त सम्मान देती हुई हर बिषम परिस्थिति का मुकाबला करती हुई निरंतर माँ नंदा का अनुशरण करती हुई आगे बढती जाती है! यह सप्ताह यूँहीं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है ऐसे में प्रदेश के महिला समाज की भागीदारी का ख़याल न किया जाय तो वह भी सर्वत्र गलत ही है!

आइये हम इसी बहाने आपको देवभूमि की सैर पर लिए चलते हैं! आप हरिद्वार ऋषिकेश स्नान कर जब पहले प्रयाग देवप्रयाग पहुँचते हैं तब वहां अवस्थित रघुनाथ मंदिर आपको त्रेता युग में पुरुषोत्तम राम, लक्ष्मण यति व जगत जननी सीता माता की याद दिलाता हुआ आगे बढ़ने के लिए एक सोच मनोमस्तिष्क पर विकसित कर देता है! जो कीर्तिनगर के ढूंढप्रयाग तक आपके साथ चलती हुई सीता माता द्वारा झेली गयी उस प्रताड़ना की गवाह है जब राम नगर भ्रमण के दौरान यह सुनते हैं कि क्या रावण द्वारा हरण की गयी महिला हमारी पटरानी बनने लायक है! ऐसे में लक्ष्मण पुरुषोत्तम राम के कहने पर माँ सीता को निर्जन प्रदेश में छोड़ देते हैं जहाँ वह लव कुश को जन्म देती हैं व वह क्षेत्र सीतावनस्यूं कहलाता है जो आज भी पौड़ी गढ़वाल में स्थित है!

श्रीनगर पहुंचकर आप अलकनंदा के किनारे बसे गढ़वाल नरेश की उस राजधानी में पहुँचते हैं जो 52 गढ़ नरेशों पर विजय के पश्चात एक छत्र राज्य के रूप में गढवाल कहलाया! यहीं नारद को अपने रूप पर घमंड हुआ था व यहीं महामाया ने उन्हें बंदर की शक्ल दी थी! यहीं आदिगुरू शंकराचार्य को हैजा व कोलरा हुआ था और यहीं उन्होंने श्रीयंत्र को उलटा कर दिया था! अलकनंदा के साथ आगे बढ़कर आप माँ धारी देवी के दर्शन करते हुए जब अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम रूद्रप्रयाग पहुँचते हैं तब आप असमंजस में पड़ जाते हैं क्योंकि तब आप सोचते हैं कि मंदाकिनी के साथ साथ केदारनाथ की ओर बढूँ या फिर अलकनंदा के साथ बदरीनाथ की ओर! यहाँ भगवान शिब को रूद्र के रूप में जाना गया इसलिए यह रूद्रप्रयाग कहलाया!

इसी रूद्रप्रयाग की दो महिलाओं से जब मुलाक़ात हुई तब महसूस हुआ कि ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: !” की कहावत क्यों चरितार्थ हुई होगी! एक महिला जो पेशे से अध्यापक हैं व महिला पंतजलि को संचालित करती हैं वह हुई श्रीमती लक्ष्मी शाह! दूसरी महिला जो सामाजिक स्तर पर समाज सेवा से जुडी है वह हुई श्रीमती वीरा फर्स्वाण! यूँ तो ये चेहरे इसलिए जाने-पहचाने लगे क्योंकि विगत दो बर्ष पूर्व ये लोग मांगल गीतों की प्रस्तुती देने श्रीनगर आये थे ! “माँ नंदा मंगल समिति” के बैनर तले जब इन्होने मंगल प्रस्तुती दी तब ये सिर्फ रूद्रप्रयाग का नाम नहीं बल्कि पूरे जिले का नाम रोशन करके टीम के साथ लौटी थी! बस यूँहीं बातों की सिलसिलेवार जब जानकारी मिली और पता चला कि ये वही हैं जिन्होंने पुरुष समाज द्वारा संरचित समाज में पैठ शुरू करते हुए रूद्रप्रयाग जिले के अगस्तमुनि में महिला रामलीला मंचन कर अपनी प्रसिद्धी के झंडे बुलंद कर दिए थे तब स्वाभाविक सी बात हुई कि मेरी रूचि इन मातृशक्ति के कार्यों के प्रति ज्यादा बढ़ गयी होगी!

महिला रामलीला कब और कैसे मंचित की गयी इस बिषय पर बाद में आते हैं सबसे पहले यह जान लेते हैं कि रामलीला का मंचन कब अैार कहां हुआ ? इसका भी कोई साक्ष्य नहीं है लेकिन कई सबूत ऐसे मिले हैं जो साबित करते हैं कि रामलीला का मंचन काफी पहले से किया जाता रहा है। दक्षिण-पूर्व एशिया में कई पुरातत्वशास्त्री और इतिहासकारों को ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे साबित होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का मंचन हो रहा था। इतिहास गवाह है कि जावा के सम्राट ‘वलितुंग’ के एक शिलालेख में ऐसे मंचन का उल्लेख है यह शिलालेख 907 ई के हैं। इसी प्रकार थाईलैंड के राजा ‘ब्रह्मत्रयी’ के राजभवन की नियमावली में रामलीला का उल्लेख है जिसकी तिथि 1458 ई में बताई गई है। 

नामचीन लेखक निजामुउद्दीन अहमद ने ‘तबकाते अकबरी’ में इलाहाबाद की रामलीला का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है ‘गंगा जमुनी’ एकता के पैरोकार बादशाह अकबर यहां आयोजित रामलीला में राम वनवास और दशरथ की मृत्यु लीलाएं देख कर भावुक हो गये थे और उनकी आंखे बरबस ही नम हो गयीं थी। रामलीला इस मार्मिक मंचन से बादशाह अकबर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने विशेष फरमान जारी कर वर्तमान सूरजकुण्ड के निकट कमौरी नाथ महादेव से लगे मैदान को रामलीला करने के लिए दे दिया था। 

श्रीमती लक्ष्मी शाह बताती हैं कि- सर, रामलीला से पहले हम लोगों ने महिला पतंजलि के माध्यम से नगरासू में द्रोपदी चीर हरण, नंदा राज जात, जीतू बगड़वाळ, अंगद रावण संवाद व सीता स्वयंबर जैसे पांच दिनी मंचन किये जिनमें मेरे द्वारा द्रोपदी व माँ नंदा देवी की माँ मैनावती का अभिनय अभिनीत किया गया! ये वीरा हैं इनकी तो मत ही पूछिए क्या गायन, क्या वादन क्या अभिनय ! इन्हें तो शायद धरती पर भेजा ही इसलिए गया है कि ये इन कलाओं से अपनी सनातन परम्पराओं को जीवित रखें व धर्म प्रचार का माध्यम बनें!

श्रीमती वीरा फर्स्वाण बताती हैं कि उनकी टीम ने 11दिवसीय रामलीला की शुरुआत बर्ष 2018 में मई माह की 31 तारीख से शुरू की जिसमें केदार-बदरी मानव श्रम समिति एवं महिला पतंजलि रुद्रप्रयाग की महिलायें सम्मिलित हैं। यह सचमुच रुद्रप्रयाग जिले के लिए ऐतिहासिक रामलीला बनने बन गई क्योंकि हम सब शुरूआती दौर में घबरा रहे थे कि जाने कैसे क्या होगा लेकिन जब उसे देखने के लिए अपार भीड़ जुटी तब हमें लगा कि टीवी मोबाइल इन्टरनेट के इस युग में भी हमारे समाज ने अपने रंगमंचीय मंचन नहीं खोये। उन्होंने कहा किआमतौर पर रामलीला मंचन में पुरुष ही महिला पात्रों की भूमिका निभाते हैं। कुछ स्थानों पर महिला पात्रों की भूमिका महिलाओं को दी जाती हैं लेकिन हमारी इस रामलीला मंचन ने पुरुषवादी वर्चस्व को तोड़ते हुए अगस्त्यमुनि में एक नया इतिहास रच दिया जिसका यहाँ के पुरुष समाज ने खुलकर समर्थन ही नहीं किया बल्कि आशीर्वाद स्वरुप जहाँ जिसकी जो जरुरत पड़ी हमें सहयोग भी किया।

श्रीमति लक्ष्मी शाह बताती हैं कि शुरूआती निर्देशन की भूमिका चन्द्रप्रकाश सेमवाल जी के सानिध्य में हुई लेकिन अब इस रामलीला में मंचन से रिहर्सल और डारेक्शन और मंच निर्माण तक की जिम्मेदारी मंडली की 30 से अधिक महिलाओं के जिम्मे है।यों तो पूरी रामलीला में 52 पात्र होते हैं लेकिन हम 30 कलाकारों में भी रामलीला का सफल मंचन कर देते हैं! अभी हमारे द्वारा जनवरी 2019 में जब श्रीकोट (श्रीनगर) में महिला 11 दिवसीय रामलीला की गयी तब वहां के लोगों ने हमें हाथों हाथ लिया जिसमें हमें एक लाख से अधिक धनार्जन हुआ जिसे हमने न्यायोचित्त तरीके से उस हर कलाकार में बांटा जो इसमें अभिनय कर रहे थे!

श्रीमती वीरा फर्सवाण बताती हैं कि रामलीला में पात्र की भूमिका में 73 वर्षीय सावित्री तंगवाण से लेकर 11 वर्षीय दीया राणा शामिल हैं। रामलीला के मुख्य पात्रों में कंडारा गांव की विलोचना देवी राम, बावई गांव की आरती गुसाईं सीता/अंगद, मैं स्वयं ग्वाई गाँव कर्णप्रयाग की बीरा फरस्वाण लक्ष्मण/रावण/अंगद, कर्णप्रयाग की लक्ष्मी रावत रावण/जनक और कल्पेश्वरी देवी भरत/कैकई/मेघनाथ/परशुराम, अगस्त्यमुनि की सतेश्वरी रौथाण मेघनाथ, बावई गांव की मीना राणा सुलोचना/सुग्रीव/मन्दोदरी/कौशल्या, लक्ष्मी शाह केवट/सबरी, मंथरा व कामेडियन अभिनय, राजेश्वरी पंवार राम/विभीषण/दशरथ/मारीच, राजश्री भंडारी विभिषण, पुष्पा रावत कैकयी, कुसुम भट्ट ऋषि वशिष्ठ 14 वर्षीय अदिति रौथाण शत्रुघन और 11 वर्षीय दीया राणा गणेश का पात्र बनी हैं।

वहीँ श्रीमती लक्ष्मी शाह बताती हैं कि- सर, आप कह रहे होंगे कि एक महिला एक साथ इतने अभिनय कैसे निभा सकती हैं तो मैं बताना चाहूंगी कि हम सभी कामकाजी महिलायें हैं ! अक्सर होता यह है कि कभी कोई तो कभी कोई उपलब्ध नहीं हो पाता इस कारण हम एक ही महिला को विभिन्न किरदारों की भूमिका निभाने का प्रशिक्षण भी देते हैं ताकि जब जरुरत आन पड़े वे उसे निभा सकें इसके अलावा जैसे मंगला चौधरी मंत्री व कामेडियन, सीमा गुसाई सूर्पनखा व मंत्रीगण, संतोषी फर्स्वाण शत्रुघन/जामवंत, शशि नेगी सुमित्रा/केवटी, मुन्नी बिष्ट रावण/विभीषण/कैकई, मुन्नी कंडारी सबरी/अहिरावणअर्पिता शाह मकडध्वज इत्यादि की भूमिका निभाते हैं! उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि इस बार की 11दिवसीय रामलीला के मंचन के लिए उन्हें नागनाथ पोखरी (चमोली गढ़वाल) में आमंत्रित किया गया है!

आपको जानकारी दे दें कि 66 वर्ष पुरानी उत्तरकाशी की रामलीला में एक समय ऐसा था जब सीता और कैकेयी मुख्य महिला किरदारों का अभिनय करने के लिए महिलाएं नहीं मिल पाती थी और पुरुषों को ही महिला किरदार निभाना पड़ता था, लेकिन पिछले पांच वर्षो के अंतराल में इस रामलीला में खास बदलाव देखने को मिला। अब सभी महिला किरदार का अभिनय महिला कलाकारों ने ही किया। इससे इस रामलीला की रोचकता भी बढ़ी है। उत्तरकाशी में 1951 में पहली बार रामलीला शुरू हुई। शुरुआती दौर से लेकर 2010 तक रामलीला में सीता, कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा, तारा, सुलोचना, सूर्पणखा सहित सभी महिला पात्रों का किरदार पुरुषों को ही करने पड़ते थे। लेकिन अब सभी किरदार लड़कियों के जिम्मे है। वहीँ पौड़ी गढ़वाल के पौड़ी शहर की 119 बर्षीय रामलीला में विगत कई बर्षों से महिला किरदार की भूमिका शहर की ही रंगमंचीय कलाकार निभाती आ रही हैं!

यह सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं हुआ बल्कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ इलाके के एक छोटे से गांव का है। यहाँ एक अदाकारा हैं गजल खान ..! जो अलीगढ़ यूनिवरसिटी से एमएससी कर चुकी है। साथ ही यह कई सारे टीवी सीरियल मे भी काम कर चुकी है। कहा जाता है कि एक बार रामयाण के कार्यक्रम में सीता का रोल निभाने के लिए किरदार नहीं मिल रहा था।
इस युवती के बारे मे पता चला तो उन्होंने गजल खान से बात की। और रामयण मे सीता बनने का ऑपर किया। जहां खुशी से गजल खान ने रामलीला में सीता का किरदार निभाया। जब हिंदू संप्रदाय के लोगों को इस बात का पता चला तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। वह इस मुस्लिम लड़की देखने के लिए पहुंचे। जब इस महिला को सीता का किरदार निभाते देखा तो लोगों ने दांतो तले अंगुली दबा ली। इसके अलावा उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल बूढाकेदार क्षेत्र में भी वहां की ग्रामीण महिलायें व युवतियां महिला रामलीला का मंचन करती आ रही हैं! अकेले रुद्रप्रयाग जिले में रतूड़ा, घोलतीर व अगस्तमुनी में महिला रामलीला मंचन हो रहा है लेकिन रूद्रप्रयाग की इस महिला रामलीला ने अपने आप को सिर्फ क्षेत्र तक ही नहीं सीमित रखा अपितु इसकी चर्चाएँ पूरे देश में होने लगी हैं! इन महिलाओं का लक्ष्य भी यही है कि वे अपनी विरासत को बड़े मंचों तक पहुंचाए ताकि वे नारी सशक्तिकरण का उदाहरण पेश कर सकें!

विश्व प्रसिद्ध बूढाकेदार गाँव की वह महिला रामलीला! जिसने महिला सशक्तिकरण का पिछली सदी में ही पेश की अनूठी मिशाल!

                     ( मनोज इष्टवाल)

महिला सशक्तिकरण की भले ही इस सदी में बड़ी बड़ी बातें होती रही हैं लेकिन पिछली सदी से ही उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण के नाम से पूरे देश व दुनिया में अपना नाम रोशन कर चुका है. भले ही महिला सशक्तिकरण क्या है यह परिभाषा टिहरी जिले के बूढाकेदार गांव में रामलीला का मंचन करती ये लडकियां आज भी न जानती हों लेकिन आज से लगभग 37 बर्ष पूर्व महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश करने वाली इस गाँव की कई लड़कियों ने मिलकर ऐसा कर दिखाया कि पुरुष समाज दांतों तले अंगुली दबाए बिना रह न सका। वर्ष 1980 में गुड्डी नेगी, रमा देवी और दुर्गी बहुगुणा, सूचि सेमवाल, शैला देवी, संगीता बहुगुणा आदि लड़कियों ने क्रमशः राम, लक्ष्मण, सीता, रावण, हनुमान व मेघनाद  के पात्र की भूमिका निभाई वहीँ सम्पूर्ण रामलीला में एक भी पात्र पुरुष नहीं था। यह रामलीला तब से अब तक मात्र 7 बार ही हो पाई.

महिलाओं द्वारा बूढ़ाकेदार में रामलीला मंचन की बात भले ही उस समय में टिहरी जनपद के कुछ इलाकों में आग की तरह फैली हो लेकिन इसका समुचित प्रचार प्रसार न होने के फलस्वरूप व महिला रामलीला कमेटी की ज्यादातर कलाकारों के विवाह बंधन में बंध जाने के कारण यह रामलीला आगे नहीं बढाई जा सकी है. टिहरी जनपद का बूढाकेदार एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां की खासियत यह है कि देश के अन्य हिस्सों में जहां आश्विन माह में दशहरे के समय रामलीला का आयोजन होता है वहीं बूढाकेदार में मागशीर्ष के महीने में रामलीला का मंचन किया जाता है। शुरूआत में यहां पर कुछ सालों तक लडकों ने रामलीला का मंचन किया, लेकिर धीरे-धीरे गांव के युवा रोजगार की तलाश में बाहर चले गए।  गांव में लड़कों की कमी होने लगी, जिस कारण कई सालों तक गांव में रामलीला का मंचन नहीं हो सका। ग्रामीणों को भी इसका दु:ख सालता रहा। जब सालों से गांव में रामलीला नहीं हुई तो गांव की पढी-लिखी लडकियां इसके लिए आगे आई ।  इसके लिए ग्%A

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