Saturday, July 27, 2024
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महाकाली अंचल की रणसैनी माँ त्रिपुरा सुन्दरी की असाढ़ी जात सम्पन्न..! भारत के उत्तराखंड में झाली-माली व राजराजेश्वरी माता के रूप में पूजी जाती है रणसैनी ..!

महाकाली अंचल की रणसैनी माँ त्रिपुरा सुन्दरी की असाढ़ी जात सम्पन्न..! भारत के उत्तराखंड में झाली-माली व राजराजेश्वरी माता के रूप में पूजी जाती है रणसैनी ..!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 05 जुलाई 2017)

त्रिपुरा सुन्दरी के यों तो नौ रूप माने गए हैं लेकिन माँ का रणसैणी रूप इन सबसे अलग है क्योंकि यह हमेशा रण भूमि में सेना की अगुवाई करने वाली देवी मानी गयी है। कत्युरी काल में कत्यूरियों की कुल देवी रही रणसैणी त्रिपुरा सुन्दरी की उत्पत्ति के बारे में बेहद रोचक तथ्य हैं। उनके बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार उनकी उत्पत्ति मोनी गाँव महाकाली अंचल के जिला बैतडी के मोहिनी जी से जुड़ा हुआ माना गया है।
बताया जाता है की यह मंदिर पांचवीं या सातवीं सदी के पास भी यहाँ अवस्थित था लेकिन कालांतर में हर राज काज में इसके डिजाईन में परिवर्तन आया है।

इसके जागरों में भी ठेठ वही बाते जुडी हुई हैं जो माँ झाली माली या राजराजेश्वरी के गढ़वाली जागरों में दिखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि गोरखा काल में यानी 18वीं सदी में रणसैनी त्रिपुरा सुन्दरी राजपुरोहित नेपाल राज दरवार की पुकार पर ही गोर्ख्याणी काल में युद्ध की अगुवाई करती हुई यहाँ पहुंची। वह जहाँ-जहाँ गयी वहां वहां उसे विभिन्न रूपों में पूजा गया।

रणसैनी त्रिपुरा सुन्दरी का पुजारा गाँव जिला बैतडी में भव्य दरवार है जहाँ आज भी पांच दर्जन से अधिक देवदासियाँ उनकी सेवा में जुटी हुई रहती हैं। मोनी गाँव के मोहिनी जी एक बेहद निर्धन व्यक्ति थे जो बमुश्किल अपना गुजारा चलाया करते थे। कहा जाता है कि वे माँ के अगाध भक्त थे. एक बार वे ढाकर लेने महेंद्र नगर गए थे जहाँ से एक कुंतल जौ का भारा लेकर कई दिन पैदल चलने के बाद जब वह अपने गाँव के निकट गायपानी नामक स्थान पर पहुंचे तब उन्हें लघुशंका की संभावना हुई। उन्होंने भारा नीचे रखा और लघुशंका त्याग कर जब पुन: भारा उठाना चाहा तब उन्हें भारे के अंदर से आवाज सुनाई दी। खबरदार मुझे मत छूना क्योंकि तू पूरे नियम संयम के साथ अब तक मुझे यहाँ तक ले आया है. इस बार लघु शंका त्याग करने के बाद तुमने हाथ नहीं धुले और न ही कुल्ला किया।

पल्ला जौली के पंडित ईश्वरी दत्त भट्ट बताते हैं कि तत्पश्चात मोहिनी जी ने पास ही बह रहे जलधारा से अपने को शुद्ध किया और जौ का भारा उठाकर चल दिए। आगे चलकर जब वे पुजारा गाँव पहुंचे तब फिर जौ के भारे से आवाज आई कि भारा नीचे रख ..क्योंकि मुझे यह स्थान बहुत पसंद है। मोहिनी जी ने भार नीचे रखा तब फिर आवाज आई कि अब तू घर जा मैंने तेरे घर को धन-धान्य से सम्पन्न कर दिया है। जब मोहिनी जी घर पहुंचकर चमत्कार देखते हैं तो उनके मुंह से निकल पड़ता है जय माँ त्रिपुरा सुन्दरी।

फिर माँ उनके व पुजारा गाँव के थापा परिवार के सयाना के सपने में जाकर कहती है कि मुझे यह जगह पसंद आ गयी है। आज से मैं इस पूरे इलाके की कुल देवी हूँ। तुम्हारे हर सुख दुःख में तुम्हे तुम्हारी रक्षा का वचन देती हूँ। तब मोहिनी जी पुजारा गाँव आकर मंदिर के लिए जगह मांगते हुए अपने सपने की बात कहते है तो दोनों ही नहीं बल्कि आस-पास के लोग माँ त्रिपुरा सुन्दरी का यहाँ मंदिर बना देते हैं। यह किंवदन्ती कितने बर्ष पूर्व की है यह खुद वहां के लोग भी नहीं जानते लेकिन जागरों के वर्णन के आधार पर यह कहानी युगों से चलती आ रही है।

तब से आदिशक्ति माँ रणसैनी की यहाँ कार्तिक जात व असाढ़ी जात के मेले लगते हैं। कार्तिक जात में तो हजारों हजार लोग नेपाल भारत व विदेश से यहाँ जुटते हैं जहाँ सैकड़ों बकरियों व भैंसों की आज भी बलि होती है। पंडित ईश्वरी दत्त भट्ट बताते हैं कि थापा, मोनी,चंद, मार्कण, बोहरा, भट्ट, लेखक सहित कई एनी जाति के लोग माँ के दरवार का अलग अलग जिम्मा संभाले हैं! वहीँ श्रीमती रेखा भट्ट पल्ला गाँव की बताती हैं कि भट्ट और मोनी लोग आज भी माँ त्रिपुरा सुन्दरी की सवारी बोकते (ढोते) हैं। यहाँ हर माह तीन बार त्रिपुरा सुन्दरी की पूजा लगती है।
वहीँ पुजारा गाँव के त्रिपुरा सुन्दरी के मुखिया त्रिलोक सिंह थापा का कहना है कि कार्तिक अष्टमी व असाढ अष्टमी को प्रति बर्ष रणसैनी देवी अपने मायके कापड़ी गाँव जाती है जहाँ उन्हें अम्बिका माई के रूप में पूजा जाता है। कापड़ी गाँव के चंद वंशी ही माँ के कोष का पूरा हिसाब किताब रखते हैं. इसके अलावा दो नवरात्र (दशहरा व असूज ) व सावन में बोकाली पूजा का भी आयोजन होता है। उनका कहना है कि यह मंदिर लगभग 700 बर्ष पुराना है।

मेरे द्वारा मंदिर के पुराने ढर्रे की जब खोजबीन की गयी तब जानकारी मिली कि संवत 2068 में इस मंदिर को नेपाल राजा द्वारा ताम्रपत्र मिलने के पश्चात यह महाकाली अंचल अर्थात पश्चिमी नेपाल का सुप्रसिद्ध मंदिरों की श्रेणी में शामिल हो गया है। विगत दिनों सम्पन्न असाढ़ी जात में भी भारत व नेपाल के विभिन्न भागों से मेले में पहुंचे हजारों लोगों ने माँ त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

ज्ञात हो कि भारत के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 35 किमी. दूरी पर झूलाघाट पहुंचकर आप काली नदी पर बने लगभग 25 या 30 मीटर झूलापुल पार कर आप नेपाल की सीमा ज्युलाघाट पहुँच सकते हैं जहाँ भारत सीमा पर एसएसबी व कर विभाग की चौकियां हैं वहीँ नेपाल क्षेत्र में नेपाल पुलिस की चौकी हैं। चौकी के नजदीक ही सड़क से आपको नेपाली वाहन मिल जायेंगे जो लगभग 18 किमी. दूरी पर स्थित माँ त्रिपुरा सुन्दरी के मंदिर तक आपको ले जा सकते हैं!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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