Wednesday, November 20, 2024
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स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का वह गढ़वाली गीत..जो गढवाळी सिनेमा जगत को अजर अमर बना गया।

(मनोज इष्टवाल)

‘मन भरमैग्ये मेरी सुध-बुद ख्वेग्ये, सुणी तेरी बांसुरी सुर, बण मा सुरासुर बाँसुली, मन मा सुरासुरा..! 1989 में यह गीत जब लता मंगेशकर ने गढवाळी फ़िल्म “रैबार” के लिए गाया था तब प्रोड्यूसर व डायरेक्टर इस बात के लिए ज्यादा चिंतित थे कि जाने लता दीदी कितना पैंसा इस गीत को गाने के लिए मांगती हैं। वहीं दूसरी ओर गीतकार देवी प्रसाद सेमवाल रोमांचित थे कि उनका यह गीत इतिहास बनने जा रहा है।

विगत 6 फरवरी 2022 को बसन्त पंचमी के दिन 93 बर्ष की उम्र में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने लम्बी बीमारी के बाद अंतिम सांस लेकर पूरे राष्ट्र को अलविदा कहा और साथ में देशवासियों के नाम अपने सरस्वती कंठ का अमृत कलश छोड़ गई। उसी अमृत कलश से एक छलकी बूंद ने गढवाळी सिनेमा जगत के साथ-साथ यहां के लोक समाज में रची बसी संस्कृति का मान मनोबल भी बढ़ाया इसके लिए लता दीदी के साथ फ़िल्म रैबार के गुजराती निर्माता “किशन पटेल” निर्देशक सोनू पंवार, गीतकार देवी प्रसाद सेमवाल, हिमालयन फ़िल्म के प्रोप्राइटर रविन्द्र लखेड़ा व उनके भाई मोहन लखेड़ा जी, निर्देशक अनुज जोशी जी सभी लोग बधाई के पात्र हैं जिन्होंने हम सब तक इस गीत की टूटती कड़ियों को पुनः जोड़ने का काम किया।

2001-2002 में टीवी सीरियल “कसौटी जिंदगी की” के डेढ़ सौ से ज्यादा एपिसोड निर्देशित करने वाले विकास नगर देहरादून मूल के निर्देशक अनुज जोशी ने लता मंगेशकर को “हम दिल दे चुके सनम” के गीत गाने के लिए स्टूडियो आते देखा तब उनके दिलोदिमाग में एक ख्याल आया कि काश..वे लता दीदी से एक गढवाळी गीत गवा पाते तो उनकी दिली इच्छा पूरी हो जाती। अनुज बताते नहीं कि बाद में लता दीदी की तबियत खराब होने के कारण इस फ़िल्म के गीत कविता कृष्णमूर्ति ने गाये।

मुम्बई छोड़कर अनुज जोशी इस जुनून के साथ उत्तराखंड लौटे कि नव निर्मित राज्य के निर्माण में उन बलिदानियों के ऊपर एक फ़िल्म बनाएंगे जिन्होने इस राज्य के निर्माण हेतु अपनी शहादतें दी हैं। फिर मुज्जफरनगर कांड पर एक पटकथा जन्म लेती है जिसका नामकरण “तेरी सौं” के रूप में होता है। फ़िल्म के प्रमोशन को लेकर अनुज जोशी अमर उजाला के पत्रकार विपिन बनियाल से मिलते हैं जो तब गढवाळी सिनेमा पर एक पूरे पेज का फीचर लिखते हैं। अनुज जोशी बताते हैं कि उन्हें यह देखकर अचम्भा होता है कि लता मंगेशकर ने “रैबार” फ़िल्म के लिए गढ़वाली गीत गाया हुआ है। वे उसकी कैसेट ढूंढने में लग जाते हैं और लगभग एक बर्ष की ढूंढ के बाद उन्हें वह कैसेट मिल जाते है। जिसे सुनने के लिये उन्होंने पहली बार टेप रिकॉर्डर लिया।

2007 तक जाने उन्होने कितनी बार इस गीत को सुना और फिर तलाश में निकल पड़े “रैबार” फ़िल्म के निर्माता किशन पटेल की। जो उन्हें आखिरकार मिल ही गये लेकिन “रैबार” फ़िल्म का नाम सुनते ही वे बिदक गए और बोले- इस फ़िल्म का नाम लेना ही उनके लिये पाप है। बड़ी मुश्किल से सम्भला हूँ। तुम्हे उसके गीत से जो मर्जी करना है करो, मेरा उस से कोई लेना देना नहीं। आखिर अनुज जोशी गीतकार देवीप्रसाद सेमवाल की शरण में जाते हैं व उनसे गीत के रिशूट के कॉपीराइट मांग लेते हैं।

2010 में यह गाना हिमालयन फ़िल्म के बैनर तले फिल्माया जाता है, जिसे स्वयं अनुज जोशी ने निर्देशित किया और तब लोगों को पता चलता है कि लता मंगेशकर ने कोई गढवाळी गीत भी गया है।

2016 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उपन्यास ‘मेजर निराला’ पर एक फ़िल्म के संवाद लिखने देहरादून आये देवी प्रसाद सेमवाल के साथ जब मेरी मुलाकात हुई तब मेरे साथ फ़िल्म के निर्देशक गणेश वीरान, कला निर्देशक देबू रावत व आशु चौहान किसी होटल में बैठे थे। तब चर्चा के दौरान इस गीत के गीतकार देवी प्रसाद सेमवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि जब लता दीदी मुम्बई के लाल चंद रिकॉर्डिंग थियेटर में इस गीत को गाने के लिए पहुंची थी तब सभी को धुकधुकी लगी थी कि जाने दीदी कितना चार्ज करती है लेकिन लता दीदी ने कहा कि आप इस गीत के बोलों का हिंदी अर्थ बता दीजिए ताकि मैं इसे समझ सकूँ। और हां मैं इसे गाने का एक भी पैंसा चार्ज नहीं लूँगी। मेरे लिए यह पहाड़ी गीत एक नया अनुभव होगा।

आज स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भले ही इस लोक से दूसरे लोक की यात्रा पर निकल चुकी हैं लेकिन उनकी एक गीत को दिए कंठ की सौगात गढवाळी सिनेमा जगत के लिए एक सौगात बनकर रहेगी।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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