Wednesday, October 16, 2024
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ताराकुंङ का चौखुडू चौंतरुँ…! परियों-आँछरियों के आँछरी धौंढ़ का तिलस्मी रहस्य।

ताराकुंङ का चौखुडू चौंतरुँ…! परियों-आँछरियों के आँछरी धौंढ़ का तिलस्मी रहस्य।

(मनोज इष्टवाल  यात्रावृत्त 14-11-2022)

कहीं ये वही ऐडि-आंछरी/ योगिनियाँ/रणपिचासनियाँ तो नहीं जो जिन्होंने अंधकासुर दैत्य बिनाश में महादेव कैलाशपति का साथ दिया था और कुछ कैलाश जाने की जगह यहीं छूट गयी थी। कहीं ये वही कृत्या सुकेश्वरी नामक योग्निया/परियां तो नहीं जिन्होंने दैत्यों के रक्त से अपनी भूख मिटाई थी? ऐसे बहुत से प्रश्न ताराकुंड के इस आँछरी धौंढ़ में पहुंचने के बाद मन में कौंधते हैं क्योंकि समुद्र तल से लगभग 10 हजार फीट की ऊंचाई पर अवस्थित यह स्थान ताराकुण्ड की सबसे ऊंचाई वाला स्थान है, जहां से उतुंग हिमालय की गगनचुंबी बर्फीली चोटियाँ ऐसे दिखती हैं मानों हाथ बढ़ाकर उन्हें छू लें। दूर-दूर तक फैली दूधातोली पर्वत शिखर की छोटी बड़ी श्रेणियों में अवस्थित राठ व कुमाऊँ दुशान्त क्षेत्र के टिमटिमाते छोटे बड़े गाँव यहां के मनोरम दृश्यों को आंखों से ओझल नहीं होने देते। पलक बिना झपके ही होंठ बुदबुदा उठते हैं….. वाह।

यह स्थान ताराकुंड क्षेत्र की सबसे उतुंग शिखर पर मौजूद है। इसे मूलतः जिन्नी ढौंड के नाम से भी जाना जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि माँ तारा की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर सात बैणी आंछरियों ने अपनी अपनी तंत्र विधाएं यहीं आकर माँ तारा को समर्पित की थी। पूर्व खंड विकास अधिकारी आशाराम पंत जी बताते हैं कि इस स्थान की पवित्रता का हम बिशेष ख्याल रखते हैं ताकि आंछरियाँ अप्रसन्न न हों, वरना यहाँ अक्सर कई घटनाएँ घटित होने का अंदेशा रहता है। पूर्व में स्कूल के छात्र –छात्राएं यहाँ बेहोश हो गए थे जिनकी पूजा देने के बाद ही वह ठीक हो पाए। यह स्थान तंत्र साधकों के लिए बिशेष महत्व रखता है व वे यहाँ बेहद गोपनीय रूप में रात्रि पहर में तंत्र साधना करने पहुँचते हैं।

आँछरी ढौंड से राठ क्षेत्र का सम्पूर्ण क्षेत्र बहुत ही दर्शनीय दिखता है। बड़ेथ गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि यहीं सर्वे ऑफ़ इंडिया ने सर्वे प्लेट दफन की है जिससे दिशाओं का हवाई माप लिया गया है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मैं आँछरी ढौंड नहीं जा पाया लेकिन सुनील पंत को मैंने वहां कि फोटो खींचकर लाने के लिए कह दिया था जिसे वह बखूबी अंजाम दे पाए। हमारी टीम के साथी ठाकुर रतन असवाल, अजय कुकरेती व रवि शर्मा जरुर ग्रामीणों के साथ आंछरी ढौंड पहुंचे।

ताराकुण्ड की आँछरियाँ अर्थात परियां ….! जिन्हें उत्तराखण्ड में मातृकाएँ, मातृयां,  ऐड़ी, आँछरियाँ, बणदयो, बणकियां, भराड़ी, अहेड़ी, डागणियाँ, रक्त-पिचासिनियाँ इत्यादि नामों से जाना जाता है, इन सभी का एक अद्भुत संसार आपको 7000 फिट से लेकर हिमालयी ऊंचाइयों की तमाम ताल-धार, बुग्याल व गुफाओं में सुनने देखने को मिल जाएगा। इन पर लिखने के लिए उनके हिसाब से उन पर शोध करना और भी अनूठा व कठिन कार्य है।

इन्हीं में से जिन्नि धौंढ़ ताराकुण्ड की ऐड़ी आँछरियाँ व इनका चौखुडू चौंतरुँ (वर्गाकार चबूतरा) पुरातन काल से ही तंत्र साधना व तंत्र साधकों के लिए बेहद माकूल स्थान है। जहां कई जाने माने तांत्रिक रात्रि के अंधेरे में तंत्र साधना व तंत्र क्रीड़ाओं के लिए दूर दूर से आते हैं। यहां तंत्र देवी माँ तारा की साधना कर ये तंत्र विज्ञानी परियों, मातृकाएँ, मातृयां,  ऐड़ी, आँछरियाँ, बणदयो, बणकियां, भराड़ी, अहेड़ी, डागणियाँ, रक्त-पिचासिनियाँ को अपने वश में करने के लिए घोर साधना करते हैं व कई बार दण्डित होकर भाग खड़े भी होते हैं। इन तांत्रिकों के बीच यह कहावत प्रचलित है कि जिसने ताराकुण्ड के चौखुडू चौंतरुँ में सफल तंत्र साधना कर सिद्धि प्राप्त कर ली वह अजर-अमर तांत्रिक बन जाता है व उसे तंत्र विद्याओं का सर्वेसर्वा माना जाता है।

यों तो हिमालयी तालों, बुग्यालों, गुफाओं, हिमशिखरों की सैर करते हुए मैंने अपनी जिंदगी के लगभग 20 बसन्त से अधिक  गुजार दिये हैं व परिलोक की गाथाएं लिखते-लिखते व उन्हें महसूस करते-करते मेरे मित्र मुझे ऐड़ी-आँछरी बिशेषज्ञ तक पुकारने लगे हैं लेकिन सच यह है कि हिमालय क्षेत्रों के विभिन्न भू-भागों में विचरण करते हुए यदि आपको कोई धार-ताल, बुग्याल, पेड़ की छांव, वायु, जल व गुफा शुकून दे तो उसे नमस्कार करते मत भूलिये क्योंकि यह तय है कि वहां अदृश्य शक्ति व महान आत्माएं आपकी यात्रा में आपकी सहपाठी बन आपकी यात्राओं को आसान बनाने का काम करते हैं। ऐसे में आप जो भी खा रहे हैं तो पहले उन अदृश्य आत्माओं व अपने पित्तरों को अवश्य एक टुकड़ा तोड़ कर चढ़ा दें ताकि उन्हें यह अहसास हो कि आप भी जानते हैं कि आपको पता है कि आप भी उनके साथ यात्रा कर रहे हैं। साथ ही साथ इस बात का ध्यान भी हमें रखना चाहिए कि ऐसे स्थानों पर हमें चिल्लाना, चटक कपडे पहनना, बेवजह वाद यंत्र बजाना, प्रकृति विपरीत कार्य भूल से भी नहीं करना चाहिए क्योंकि शांत प्रिय ये पुण्य आत्माएं आपके प्रकृति विरुद्ध कार्यों से क्रोधित हो सकती हैं, इसलिए ऐसे स्थानों की यात्रा वही करें जो ऐसे स्थानों पर नियम संयम व बिना शराब कबाब शबाब के रह सकें।

ताराकुण्ड के इस आँछरी धौंढ़ में आप चौखुडू चौन्तुरु (जहाँ आंछरियाँ नृत्य कला का प्रदर्शन करती हैं व खेल खेलती हैं), देख सकते हैं साथ ही आस-पास ऐसे स्थान भी दिखाई देते हैं जहां भूलभुलैय्या गुफा जहाँ नाग आकृतियाँ उकेरी हुई हैं  व नैर-थुनैर नामक वृक्षों के पत्तों सेअजीबोगरीब खुश्बू भी महकती है।

यदि आप ऐसे स्थानों पर जाना पसंद करते हैं तो परियों को सुहागनें या उनके पति यहां परियों के श्रृंगार के लिए चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, चुनरी इत्यादि चढ़ाकर अपनी मन इच्छा फल भी मांग सकते हैं, अब चाहे वह औलाद प्राप्ति को लेकर ही की गई मन्नत क्यों न हो, वह अवश्य पूर्ण होती है लेकिन मन्नत पूरी होने के बाद पुनः ऐसे स्थानों पर आपको दूध फूल की पूजा, डोली-गुड्डी चढ़ाने या फिर बकरा चढ़ाने अवश्य आना पड़ेगा क्योंकि मन्नत के समय मुराद पूरी करने के लिए करार के रूप में आपको ऐसा ही बचन देना होता है। आप चाहें तो यात्रा सफलता के लिए चुनरी श्रृंगार व नारियल चढ़ाकर भी वन सुंदरियों को प्रसन्न कर सकते हैं।

बहरहाल मेरा मानना है कि आप ताराकुण्ड आकर आँछरी धौंढ़ तक जरूर जाएं यह मंदिर से बमुश्किल 500 मीटर की दूसरी पर अवस्थित है। यहां से प्रकृति के नजारे देखना अपने आप में सुखद अनुभव महसूस कराते हैं।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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