(पार्थसारथि थपलियाल/सम्पादकीय)
14 जून 2020 को दोपहर के समाचार जानने के लिए टी वी ऑन किया ही था कि बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की अज्ञात कारण से मृत्यु का समाचार ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में जानने को मिला। देशभर में सुशांत के प्रशंसकों और फ़िल्म प्रेमियों को बहुत क्षोभ हुआ। धीरे धीरे परदा उठने लगा। मुम्बई पुलिस का राजनीतिक रूप और धृतराष्ट्र की आंख बने संजय महाभारत के दृश्यों को अपने ही अंदाज़ में दिखाने शुरू हुए। चील के घोंसले में भी शिकार की तलाश का स्वांग हुआ। आग लगी थी आगरे में बुझाई जा रही थी घाघरे में। तमाम कसमों, सौगंधों, शपथ पत्रों और गवाहों से अधिक मान्य हो जाती है “लोक धारणाएं”। धोबी ने अपनी पत्नी से झगड़ा करते हुए कह दिया “मुझे राम न समझ लेना जिसकी लुगाई रावण के पास रह कर आयी है”।
इस लोक धारणा को तोड़ना तब भी कठिन था और अब भी कठिन है। यही धारणा सुशांत की मौत के मामले में चल रही जांच के तौर तरीकों से भी उभर कर आई। महाराष्ट्र पुलिस की लचर तहकीकात, शिवसेना से जुड़े ढोल नगाड़े आमना सामना हुए और एन सी पी के शकुनियों ने अपनी अपनी राजनीति चमकाने के लिए कई कलईकार जगह जगह पर सेट कर दिए। सेट रिया चक्रवर्ती भी हुई, जिसे खुद को चमकाने के लिए अंगीठी गर्म की कलईकार राजदीप सरदेशाई ने, हुआ ये कि रिया चमकी , कलईकार को कालिख से संतोष करना पड़ा। लक्ष्मीबाई के किरदार के आभास से कंगना राणौत (अभिनेत्री) ने अपने “बादल” नामक घोड़े की काठी पर बैठ कर लगाम पकड़ी ही थी कि अंग्रेज अफसर ह्यूरोज ने कुलाचे भरते घोड़े की टापों को सुनने से पहले ही मुम्बई में अपने गुरुर से मणिकर्णिका नामक किले की दीवार तोड़ दी।
शाम तक बड़बोलों का अहंकार भी टूटा। पहली बार फारसी से उर्दू में उतरे शब्द ” हरामखोर” की नई परिभाषा “नॉटी गर्ल” भी कलई खुलकर चमकी। चमकने का मौका हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कैसे गंवाते। कोंग्रेसी परिवार की कंगना केवल मंडी या मनाली की नही रही हिमाचल की बेटी बनाकर चमकाई और स्थानीय सुरक्षा उपलब्ध करा दी। चमकने का समय कंगना के कोंग्रेसी माता-पिता कैसे गवाते! उन्होंने भी कलई से तिरंगे (कोंग्रेसी) में से सफेद रंग उड़ाकर दो रंगों वाले झंडे को कंगूरे पर बांध कर चमका दिया। मेहंदी रचनेवाले के हाथ को मेहंदी यूं ही सुगंधित कर देती है। केंद्र सरकार की गर्म अंगीठी में रांगा कलई की चमक तुरंत दिखाई दी कंगना को “वाई केटेगरी” की सुरक्षा दे दी। किस्मत की कलई वकीलों की भी चमकी। मीडिया में आने से या आते रहने से उनकी फीस में चमक आ गई।
इस प्रकरण में एक अनोखी बात यह भी हुई कि सवाल तो पूछा गया था गंदम (गेंहू) की फसल को किसने बर्बाद किया? उत्तर मिल रहा चने बहुत अच्छे हैं। यानी सवाल गंदम जवाब चना। सुशांत की मौत कैसे हुई? आत्महत्या है या मर्डर? मेडिकल जांच उल्टी सीधी क्यों हुई? पहले वाली बिसरा रिपोर्ट में क्या कमी थी? एम्स से कराई गई दूसरी बिसरा रिपोर्ट 17 सितंबर को आनी थी उसका क्या हुआ? सी बी आई का हफ्तेभर से वही हाल है जैसे आसमान का बादल हो, न जाने कब किस तरफ रुख ले ले।
फिलहाल जनता का ध्यान बदलने के लिए गंजेड़ी नशेड़ी, मज़माबाज़ों और हरामखोरों (नॉटी लोगों) की ताक झांक के लिए स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (NCB) ने छेदों से बेड रूम की कवरेज करने वाले मीडिया को भी कलई चमकाने का मौका दे दिया। स्टूडियो से चीखने चिल्लाने वालों को अभद्र और अश्लील भाषा बोलने का अवसर भी इन बहसों ने पैदा किया। गिरने से भी चमक पैदा होती है इस दौर में उसका उदाहरण ये बाज़ारू मीडिया है। किस्मत चमकाने के अवसर सुशांत प्रकरण ने उन्हें भी दिया जिनको कोई कभी अच्छे कारणो से नही ज्ञे जाते थे। लगता है नवंबर पहले सप्ताह तक इस मामले की कलई की चमक ढीली नही पड़ेगी। कलई करने और कराने वाले नशेड़ी, गंजेड़ी, भंगेड़ी खिते सिक्के की तरह तब तक काम आएंगे जब तक दाऊद इब्राहिम के प्यादों तक इसकी जांच की आंच न पहुंच जाए या नवंबर पहले सप्ताह तक इसकी चमक बनाई रखनी है ताकि बिहार में कलई चमक जाए और मुम्बई में उतर जाए। सुशांत मामले में FR लग जायेगी उससे पहले एक और समाचार चमक कर आ जायेगा। कितना कुछ चमका गया सुशांत, नही चमकी तो बूढ़े बाप की मायूसी जिसकी आंखों में चमक नही, चमत्कार की उम्मीद बाकी है।