तो क्या अजमीढ़ वंशी (भरतवंशी) हैं महाबगढ़ मालिनी नदी क्षेत्रवासी? अजमीढ़ वंश के कारण पड़ी अजमेर पट्टी।
(मनोज इष्टवाल )
इतिहास के गर्भ में क्या-क्या छिपा है, यह कह पाना संभव नहीं है क्योंकि नित नये शोध में कई बार ऐसे आश्चर्यजनक तथ्य सामने आकर खडे हो जाते हैं जो हमको सोचने को मजबूर कर देते हैं। महाकवि कालिदास के महान नाट्यशास्त्र “अभिज्ञान शाकुंतलम” पर केंद्रित श्लोको में जब शकुंतला व उनकी सहेलियों अनुसूया व प्रियंवदा के आपसी बोलचाल में “हला” शब्द सुना तो भौंचक रह गया क्योंकि यह शब्द आज भी गढ़वाली लोक समाज में आम बोलचाल की भाषा में बेहद प्रचलन में है। महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम नाट्यशास्त्र संस्कृत भाषा में लिखा है जिसमें “हला” शब्द का कई बार उच्चारण हुआ है जबकि यह शब्द संस्कृतनिष्ठ शब्द नहीं है। शुद्ध व सटीक शब्दों में कहूं तो यह शब्द गढ़वाली बोली की आम भाषा में बोला जाने वाला शब्द संबोधन है जो रूद्रप्रयाग व चमोली जिले पौड़ी जिले के कई क्षेत्रों में बोला जाता है। कहीं इसका शब्दोच्चारण “अला” भी होता है। अत: यह साबित करता है कि अभिज्ञान शाकुंतलम लिखने वाले कालिदास गढ़वाल के ही थे।
अब आते हैं राजा दुष्यंत के वंश वृक्ष पर जो उनके व शकुंतला पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से भरत वंश कहलाया। हरिवंश पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण में भरत वंश ( -1) के वंशवृक्ष में हरिवंश पुराण ऋचेय (पुरुरवसपुत्र रौद्रश्व के पुत्र) से वंशावली प्रारम्भ की गई है जिसमें ऋचेय के बाद मतिनार-तंसू -सुरोध-दुष्यंत-भरत (सर्वदमन) व भरत के पुत्र भारद्वाज व भारद्वाज पुत्र वितथ बताये गए हैं। वितथ ने अपने राजकाज में भरत वंश के बाद अजमीढ़ वंश की शुरुआत की। वहीं मत्स्यपुराण में इसे औचेय-अंतिनार-अमूर्तरय-इलिना-दुष्यंत-भरत (समितिजय)-भारद्वाज (वितथ) बताया गया है जबकि भागवत पुराण में ऋतेसू -अंतिनार-सुमति-रैम्य-दुष्यंत-भरत-भारद्वाज (वितथ) का उल्लेख है व यहीं से अजमीढ़वंश का प्रारम्भ बताया गया है।
भरत वंश (2) के विष्णु पुराण व वायु पुराण में जहाँ विष्णु पुराण इस वंश वृक्ष को ऋतेसू (रौद्राश्व पुत्र – रौद्राश्व, पुरु के वंश का ग्यारहवाँ राजा) -अंतिनार-अप्रतिरथ-ऐलीन-दुष्यंत-भरत वितथ (भारद्वाज) दर्शाता है तो वहीं वायुपुराण में इसका वर्णन प्रभाकर आत्रेय (रौद्राश्व की लड़कियों का पति) रिवेयु- रंति- त्रसू- उपदात- दुष्यंत- भरत- वितथ ही बताया गया है।
इन सब उल्लेखों से यह स्पष्ट होता है कि इन सभी पुराणों में एक बात स्पष्ट है कि दुष्यंत पुत्र भरत व भरत पुत्र वितथ (भारद्वाज) हुए जिन्होंने अजमीढ वंश का आरम्भ किया। अब यह बात बहुत महत्वपूर्ण हो गई है कि हम महाब गढ़ व मालिनी नदी क्षेत्र अवस्थित कंवाश्रम को कैसे प्रामाणिक करें कि यह क्षेत्र ही वास्तव में महाकवि कालिदास रचित नाट्यशास्त्र अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित क्षेत्र है? ऐसे में कुछ तथ्य व तर्क यहाँ सटीक बैठते हैं कि यह प्रामाणिकता के आधार पर वही क्षेत्र है जैसे :-
1- वितथ वन क्षेत्र (राजदरबार) वर्तमान कंवाश्रम से 3 से 4 किमी. की दूरी पर अवस्थित है।
2- अजमीढ़ वंश अर्थात चौकी घाटा से राजदरबार महाबगढ़ मालिनी नदी क्षेत्र को अजमीढ़ ही कहाँ जाते है जो वर्तमान में पट्टी अजमेर के नाम से जाना जाता है।
3- भारद्वाज – इस क्षेत्र के लोगों का वंश गौत्र भारद्वाज ही है।
पुराणों में वर्णित यह तथ्य प्रामाणिक करते हैं कि पूर्व में कंवाश्रम यहीं अवस्थित था व भरत पुत्र वितथ (भरद्वाज) ने यहीं शासन किया व इनका दरबार आज भी जंगल के मध्य राजदरबार के रूप में प्रसिद्ध है।