Tuesday, August 12, 2025
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पूर्व प्रधानमंत्री के बिशेष दूत रहे प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह बने मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार। कोरोना महामारी आपातकाल में क्या निभा पाएंगे भूमिका?

(मनोज इष्टवाल/सम्पादकीय)

ये तो सभी जानते हैं कि केंद्र द्वारा अप्रत्याशित तरीके से जिस तरह पौड़ी लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत की प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी की थी उसने राजनीति जगत में सबको हक्का-बक्का कर दिया था क्योंकि न विपक्ष के पास कुछ कहने को था न भाजपा की अंदरुनी लड़ाई के बीच कोई ऐसा क्लू कि वे उसे जनता के बीच उठा लाएं। एक बेदाग नेता व सरल व्यक्तित्व के धनी तीरथ सिंह रावत जब मुख्यमंत्री बने तो गढवाल-कुमाऊं से जनता अपने स्वच्छ छवि के जनप्रतिनिधि को मिलने को ऐसे उमड पड़ी जैसे राम राज आने वाला हो।

लेकिन…हाय रे किस्मत। अपनी वह मुख्यमंत्री कार्यालय के विस्तार की फाइल्स टटोल ही रहे थे कि अचानक एक साथ पूरे प्रदेश के जंगल धूँ-धूँकर जलने लगे। मानों कोई प्रायोजित तरीके की आग पूरे उत्तराखण्ड में फैलाई गई हो। आनन -फानन वन विभाग की अपर्याप्त तैयारियों के बीच मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत दिल्ली से मदद मांगते हैं और सेना के हैलीकॉप्टर आकर आग बुझाने में जुट जाते हैं। गढवाल मंडल के जंगलों की आग अभी थमती नहीं हैं कि कुमाऊं मंडल के जंगल धूँ धूँ जल उठते हैं। शुक्र है प्रकृति का…वह पीड़ा समझ गयी व उसने अपनी अश्रुबर्षा रूपी जल बरसाकर जंगलों की आग शांत की।

अभी जंगलों की आग शांत भी नहीं हुई थी कि कोरोना ने आकर घेर लिया। इतनी बुरी तरह से कोरोना का कहर ढा गया कि सरकार को सम्भलने का मौका ही नहीं मिला। ऐसा लगा मानो कोरोना भी राजनीति का षड्यंत्र रहा हो और चीन ने अपने गुप्तचर कुम्भ में भेजकर वहां कोरोना वायरस लाखों जनता के बीच हवा में छोड़ दिया हो, क्योंकि वैज्ञानिकों ने भी इस बात से इनकार नहीं किया कि यह वायरस हवा में तेजी से फैल रहा है।

चारों तरफ कोहराम की चिल्लाहट के बीच पक्ष, विपक्ष व पोषित बुद्धिजीवियों ने सरकार को घेरना शुरू किया। सोशल मीडिया में उत्तराखंड को इतना ट्रोल किया गया, मानों प्रदेश में कोरोना से विश्व के इतिहास में सबसे ज्यादा मौतें हुई हों। जिस प्रदेश में कुम्भ हुआ है वहां अब जाकर लगभग 5000 मौतों ने आंकड़ा पार किया है जबकि अकेले दिल्ली में यही आंकड़ा 50 हजार पार है। जलती चिताओं की फोटोज फेसबुक में ट्रोल होती रही व मुख्यमंत्री पर कई अनर्गल आरोपों को जड़ने का कार्यक्रम शुरू भी हो गया। कहीं जुबान फिसली नहीं कि बिके हुए मीडिया ने उसी को टीआरपी के लिए हाई प्रोफाइल खबर बना दिया।

यहां काबीना मंत्री गणेश जोशी ने सरकार की यथास्थिति को बेहद साफगोई से बयान करते हुए आम जन की बात बहुत साधारण तरीके से रखी कि उन्हें भी लगा कि पिछले साल का कोरोना अब नहीं लौटने वाला। इसी पर उन्हें खूब ट्रोल किया गया। वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने बेस अस्पताल कोटद्वार की लगातार मॉनिटरिंग की और मरते लोगों का समय पर इलाज न करवा पाने पर खुद को असहज पाकर दिल के उद्गारों के साथ आंसू क्या बहाए वे भी जबरदस्त ट्रोल किये गए व उनके आंसुओं की फोटो डाल डालकर खुद ही सरकार पर उन्ही के माध्यम से शब्दों का हेर फेर कर प्रश्न दागने शुरू हुए। कुछ अफसरशाहों के मूक रवैये ने भी कहीं न कहीं यह साबित तो कर ही दिया कि वे पर्दे के पीछे के उन गन्दी राजनीति के चेहरों के इशारों पर ही काम कर रहे हैं जिन्हें सिर्फ गद्दी की चिंता है, जनता जाय भाड़ में।

यह सब मंजर मात्र दो ढाई महीने के मुख्यमंत्री के सामने हो तो वह व्यक्ति करे भी तो क्या करे! जिसके पास अभी ढंग से प्रदेश के अफसरों का प्रोफाइल तक उपलब्ध न हो, जिसने अभी अपने पसंदीदा स्टाफ का विस्तार न किया हो ऐसा स्वच्छ छवि का राजनेता करे तो करे क्या। ऐसे समय में मस्तिष्क पर एक नाम कौंधा- शत्रुघ्न सिंह…..पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड प्रदेश। जिन्हें वे बखूबी जानते भी हैं व उनकी कार्यशैली भी। फिर क्या था शत्रुघ्न सिंह ने भी देर नहीं की व अपने मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही इस्तीफा देकर मुख्य सलाहकार मुख्यमंत्री का पद भार ग्रहण कर उस आईएएस लॉबी के मुंह खुले के खुले रख दिये जिनकी गन्दी फितरत वे भले से जानते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के विशेष दूत व उत्तराखण्ड के 12वें मुख्य सचिव रहे शत्रुघ्न सिंह को सूबे के मुख्य सलाहकार मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है।

प्रदेश ही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय व कैबिनेट सचिवालय में काम करने का लंबा तजुर्बा रखने वाले 1983 बैच के आईएएस शत्रुघ्न सिंह के मुख्य सलाहकार मुख्यमंत्री नियुक्त होने के बाद यह तो तय हो गया है कि अब न सिर्फ सचिवालय की अफसरशाही बल्कि मंत्री विधायकों के लूपहोल्स की बारीकियां भी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को मिलती रहेंगी। यह तो तय मानिए कि मुख्यमंत्री की नींद हराम करने वाले पर्दे के पीछे छुपे चेहरे आज रात सो नहीं पाएंगे व एक अज्ञात डर उन्हें बना रहेगा।

यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि 2002 में विश्व हिन्दू परिषद के बवाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने शत्रुघ्न सिंह को यूपी सरकार और वीएचपी के नेताओं से बातचीत करने के लिए अपना विशेष दूत बनाकर अयोध्या भेजा था और उन्होंने अपनी कार्य दक्षता से उस स्थिति को आसानी से सम्भाल लिया था।

शत्रुघ्न सिंह का नौकरशाही में लंबा और जटिल तजुर्बा रहा है। जिसका फायदा राज्य में अफसरशाही को मिलना चाहिए। वह भी राकेश शर्मा की तरह सख्त किस्म के अफसर है। पोस्टिंग के मामले में शत्रुघ्न सिंह काफी धनी अफसरों में है।

उनके करियर की वैसे तो काफी घटनाएं हैं, लेकिन मार्च 2002 में जब विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में रमालला की मूर्ति स्थापित करने के लिए बड़ा आंदोलन किया और यूपी सरकार व वीएचपी के बीच टकराव को रोकने की नौबत आई तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने शत्रुघ्न सिंह को बुलाया।

वाजपेई ने उन्हें अयोध्या में सभी पक्षकारों (यूपी सरकार, वीएचपी, मुस्लिम फ्रंट, विभिन्न राजनैतिक दल) से वार्ता करने के लिए अपना विशेष दूत बनाकर अयोध्या भेजा। इससे पहले शत्रुघ्न सिंह फैजाबाद के मंडलायुक्त रह चुके थे। वाजपेई ने उन पर भरोसा किया और सेना केविशेष विमान से शत्रुघ्न को अयोध्या भेजा गया।
शत्रुघ्न सिंह करीब एक सप्ताह अयोध्या रहे और मसले को शांत कराकर ही लौटे। इसलिए शत्रुघ्न के सामने प्रशासनिक दक्षता की दिक्कत नहीं आएगी। इसके अलावा सूबे की उन्हें अच्छी समझ है। क्योंकि वह मुख्यमंत्री रहते हुए बीसी खंडूड़ी के प्रमुख सचिव रह चुके है। प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री कार्यालय के संचालन का उन्हें लंबा अनुभव है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि शत्रुघ्न सिंह की ताजपोशी मुख्य सलाहकार के रूप में करवाने के पीछे कहीं न कहीं मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के राजनैतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूरी का हाथ है लेकिन सूत्र ये भी कहते हैं कि सिंह केंद्र की पसन्द भी हैं।

मुख्य सलाहकार शत्रुघ्न सिंह उत्तराखंड आने से पूर्व
यूपी में मुख्य सचिव के स्टाफ आफिसर, डीएम मुजफ्फरनगर,
मंडलायुक्त फैजाबाद कमिश्नरी, सेल्स टैक्स कमिश्नर यूपी,
केंद्रीय कैबिनेट सचिवालय में पांच साल तक संयुक्त सचिव
उत्तराखंड में ऊर्जा, सिंचाई, उच्च शिक्षा समेत तमाम विभागों के प्रमुख सचिव, यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव और बाद में अपर सचिव, मोदी सरकार में उद्योग के लिए पॉलिसी बनाने वाले विभाग में अपर सचिव, फैजाबाद कमिश्नर केबपद से जब शत्रुघ्न सिंह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली केंद्रीय कैबिनेट सचिवालय प्रमुख रहे हैं। प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री उत्तराखंड के बाद उन्हें 16 नवम्बर 2015 को उत्तराखण्ड प्रदेश का 13 वां मुख्य सचिव बनाया गया।

बहरहाल मेरा मानना है कि मुख्य सलाहकार की भूमिका में शत्रुघ्न सिंह के समुख समस्याओं का अंबार है। वे किस तरह से मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को सहयोग करेंगे यह देखना बाकी हैं

 

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